सुदृढ़ संस्कार – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

 ‘कितना बदल गया है उनका बेटा ? उनकी परवरिश कैसे फेल हो सकती है ? पिता की बीमारी की तनिक सी विपत्ति आते ही बेटे को सिखाए आदर्श और जीवन-मूल्य इतने कमजोर कैसे पड़ गये ?

संभवतः हमारे दिए संस्कारों में ही कोई कमी रह गई होगी ? क्या पिता के जीवन को धन से तौला जा सकता है कि उपचार के लिए खर्च की जोड़-तोड़ की जाए ? ऐसा क्या कह दिया था

मैंने जो वह इतना उत्तेजित हो गया ? किसी अन्य विशेषज्ञ डाक्टर की राय ले लेने का सुझाव मात्र ही तो दिया था न , किन्तु अतिरिक्त खर्चे के नाम पर कितनी कठोरता से कितना कुछ बोल दिया मुझे ! मेरा बेटा इतना निर्मोही कैसे हो गया सकता है ?’

    पिता की अत्यन्त गंभीर बीमारी से गड़बड़ा चुकी अपनी वित्तीय अवस्था पर अपने बेटे के अपशब्दों से आहत सुधाजी तुरंत अपने कमरे में आईं और धीमे स्वरों में अपने आप से ही बड़बड़ाते हुए फफक-फफककर रो पड़ीं। 

     फिर,अंतः स्थल तक आहत उनका मन अतीत में भटकने लगा था और नकारात्मक विचारों की श्रृंखला उन्हें अविरल आंसुओं की धारा में डुबोने लगी थी, ‘ यह कैसा समय आ गया है,जब पिता के उपचार में ही बच्चों को अपना वित्तीय संकट नजर आने लगता है ? कैसी पीढ़ी है यह ?

बच्चों के लालन-पालन में माता-पिता अपने सभी अभावों को ताकपर रखकर केवल उन्हें सुख-सुविधाएं देने में ही तत्पर रहते हैं। इसकी बेहतर शिक्षा के खातिर भी तो इसके पिता ने रात-दिन एक कर दिया था। अवसर मिलते ही देर रात-रात तक दफ्तर में लगातार घंटों ओवरटाइम लगाया करते थे।

इसे किसी प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त होने से बचाने के लिए स्वयं सालों-साल नए वस्त्र नहीं सिलवाए, मित्रों संग घूमना-फिरना त्याग दिया, किंतु शिक्षा की आवश्यकता का हवाला देकर इसे हमेशा अपनी हैसियत से बढ़कर पहनाया-खिलाया‌ और पढ़ाया।’

    अपने पुत्र के कटु शब्दों से चलायमान सुधाजी का अतीत मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।‌ एक-एक करके घटनाएं उनके समक्ष आ रही थीं‌, ‘कैसे वे स्वयं एक लंबे समय तक साइकिल चलाकर दफ्तर जाते रहे ,लेकिन कालेज आने-जाने में इसका समय बचाने हेतु किश्तों पर ही इसके लिए स्कूटर का इंतजाम किया और अब यह उन्हीं पर‌ हो रहे खर्च की गणना करने लगा है ।’

  तभी ,’नहीं मां ! आपके दिए संस्कारों में कहीं कोई कमी नहीं है,न ही आप फेल हुई हैं और न ही आपका बेटा निर्मोही हुआ है। पिछले दस सालों से मैं आपके साथ इस घर में हूं । चाची के अत्याचारों से पीड़ित मुझ अनाथ में और आपके पुत्र की परवरिश में आपके निश्छल प्रेम, त्याग,आपके संस्कार और आदर्श तथा जीवन-मूल्य आज भी सतत प्रवाहित हैं।

हम दोनों आप दोनों से बहुत प्यार करते हैं। उनके कटु‌ व्यवहार के लिए उनकी तरफ से मैं हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी मांगती हूं।  दरअसल और पैसों की व्यवस्था न हो पाने के कारण उन्होंने अपने कंपनी से थोड़े ऋण का आवेदन दिया था और ऋण लेने की अपनी विनय अस्वीकृत हो जाने से आज वे बहुत व्याकुल थे।

ऋण के संबंध में बताकर वे आपको परेशान नहीं करना चाहते थे और उन्होंने मुझे भी आपको बताने से मना कर दिया था। बस,उसी विवशता भरी व्याकुलता में उनके मुंह से कुछ अपशब्द निकल गए।’  बहू के शब्द सुनकर सुधाजी भीतर‌ तक द्रवित हो गईं।

    अपनी सासू मां के मुख पर आई आत्मग्लानि के भावों को पढ़ते हुए बहू पुनः बोली, ‘ सासूमां! आपने ही तो सिखाया है कि विकट परिस्थितियां हमारे मनोबल की गुलाम होती हैं। फिर,आपके दिए संस्कार कैसे फेल हो सकते हैं?’

      सहसा दरवाजे पर अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से मां और पत्नी के वार्तालाप को सुन रहे उनके बेटे ने तुरंत उनके पैरों में बैठकर अपना सिर उनकी गोद में रख दिया।

    ‌‌और अब‌ सुधाजी अपने संस्कारों  की उत्तीर्णता पर मुस्कुरा उठी थीं।

#हमारे दिए संस्कार में कुछ कमी रह गई होगी

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब

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