फाइव स्टार होटल जैसा अस्पताल, भीड़-भाड़ के बीच अल्पना अकेली बैठी है बड़ी सी लॉबी में कॉफी शॉप की एक टेबल पर। कॉफी से उठता धुँवा अल्पना की आंखों में उतर आया है।
पापाजी का ऑपरेशन चल रहा है, तीन दिन पहले सुबह-सुबह सीने में दर्द उठा। अल्पना ने जैसे तैसे व्यवस्था कर अस्पताल में भर्ती किया। दो दिन की जांच के बाद आज ऑपरेशन हो रहा है।
किसे काल करे उसे समझ नहीं आ रहा। जितने भी रिश्तेदार हैं शहर में, उनसे पहले ही औपचारिक सा रिश्ता है। फिर उसने सोचा अकेले ही सम्हालना ठीक है, क्यों किसी का एहसान लेना।
ऑपरेशन चल रहा है, उसने बैठे-बैठे कुछ लोगों को कॉल किया, बताने के लिए। मामाजी,चाचाजी, मौसाजी जैसे रिश्तदारों ने आश्चर्य जताया, सहानुभूति दिखाई और जरूरत पड़े
तो याद करना जैसे वाक्य बोल इतिश्री कर ली। पापाजी के चचेरे भाई को लगा पैसे न मांग ले, तो वो बिना कहे पैसों का दुखड़ा रोने लगे।
अल्पना को न पैसों की जरूरत थी ना ही भीड़ की, उसे लग रहा था कि कोई होता यहां जो हिम्मत बढ़ाता उसकी, उसका हाथ थाम कर सहलाता,
उसका अकेलापन बांटता। मुश्किल की इस घड़ी में उसे कोई ऐसा नजर नहीं आया जो साथ दे उसका।
गलती किसकी है? वो सोच रही- हम ही तो समय, व्यस्तता के बहाना बना लोगों से दूरी बना लेते हैं। न किसी के घर जाना न किसी को बुलाना। सोशल मीडिया में भीड़ वाली
लिस्ट में लोगों से जुड़े रहना और जीवन में तन्हा रहना; यही कड़वी सच्चाई है आज की।
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पद-प्रतिष्ठा के रूवाब में अकड़े हुए, शहर-शहर भटकते हुए जीवन बिता देने वाले पिता ने न कभी रिश्ते जोड़े न परिवार को जुड़ने दिया। अल्पना को आज लग रहा था
कितनी बड़ी गलती की उन्होनें। सब इसी शहर में हैं लेकिन आज कौन है पास?
उसे लग रहा ये उनकी गलती सुधारने का सही मौका है, पर यह भी भय कि सब यह न समझें कि अवसर पड़ा, जरूरत हुई तो सबसे सम्बंध जोड़ रही अल्पना।
बड़ी हिम्मत कर उसने परिवार के वाट्सप ग्रुप में स्थिति बयान की और सबसे माफ़ी मांगते हुए विवेदन किया कि बीती बातों को भुलाकर पापाजी और उसे मौका दें फिर से जुड़ने का।
अब सब की मर्ज़ी चाहे अवसर दें या ठुकरा दें।
सुबह का भूला शाम को घर आना चाह रहा है तो कोई तो दरवाजा खोलेगा।
©संजय मृदुल
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