हैरान परेशान… पूजा ने घर में घुसते ही हंगामा मचा दिया, ” आखिर कबतक बर्दाश्त करुं। घर का काम मैं करुं, पैसे कमाकर मैं लाऊं…
बच्चे मैं पालूं, तुम्हारे मां-बाप की सेवा करुं और तुम मुझे आंखें तरेरो” नन्हे बच्चे सहम गये। वृद्ध सास-ससुर पूजा के इस रोज के नाटक को चुपचाप देखते रहे।
सोफे पर बैठ पति रमण हड़बड़ा गया, “क्या हुआ, मैने तुम्हें कब कुछ कहा। “
रो-धोकर पूजा शांत हो गई। मामला क्या है कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। दर असल पूजा की तेजमिजाजी और लापरवाही से उसकी नौकरी चली गई थी। वैसे भी पूजा की जरूरत घर में ज्यादा थी। बच्चे छोटे थे। वृद्ध सास-ससुर की देखभाल थी। रमण की अच्छी खासी नौकरी थी ।
लेकिन अपने मगरुरियत और दिखावे के चक्कर में वह एक फर्म में नौकरी करने लगी। नौकरी से ज्यादा मटरगश्ती के कारण निकाली गई और गुस्सा सीधेसादे पति और वृद्ध सास-ससुर पर निकालने लगी।
मोबाइल की घंटी बजी, मां का फोन… कुछ खुसुर-पुसुर हुआ और पूजा दुसरे दिन बच्चों के साथ मायके चली गई, कुछ दिनों के लिए।
“ऐसी भी क्या जल्दी है, चली जाना थोड़े दिनों के पश्चात ” रमण ने समझाना चाहा।
” नहीं मेरे भाई-भाभी आ रहे हैं, मेरी मम्मी ने बुलाया है, मैं कल ही जाऊंगी… अब संभालो अपनी घर-गृहस्थी और मां-बाप को”पूजा किसी की सुनती कहाँ थी।
“ठीक है “रमण ने टैक्सी ठीक कर दी।
यहाँ रमण माता-पिता की देखभाल और नौकरी में तालमेल बिठाकर चल रहा था। बच्चों के बिना घर सुना लगता लेकिन पूजा के हंगामे का डर भी नहीं था।
पूजा मायके आकर सास-ससुर, पति की झूठी शिकायतों का पिटारा खोल बैठ गई। भाई के विवाह के बाद पूजा की पहली मुलाकात अपनी भाभी माही से था। माही ने आश्चर्य से पूछा, “कोई परेशानी है दीदी। “
पूजा की मम्मी बीच में ही झट से बोल पडी़, ” नहीं इसकी आदत है… ऐसे ही हंगामा करने की, तुम अदरक वाली चाय लाओ, सफर से थक गई है। “
माही के जाते ही पूजा अपनी माँ पर बरस पड़ी, ” यह क्या बोल रही हो, मैं हंगामा करती हूं “।
मां के बदले तेवर… वह उलझन में पड़़ गई।
पूजा को मायके आये दो हफ्ते हो गये। न एकबार पति को फोन किया और न पति ने सुध ली।
यहाँ खुबसुरत सौम्य स्वभाव वाली भाभी ने अपने सास-ससुर पति के साथ प्यारा रिश्ता बना रखा था। दोनों इंजीनियर थे, अच्छा कमाते थे! भाई ने माता-पिता की सेवा-सुश्रूषा के लिए अपना ट्रांसफ़र इसी शहर में करा लिया है। और एक वह है जो वृद्ध लाचार सास-ससुर के साथ रहना नहीं चाहती… अलग घर लेकर रहने के लिए पति को उकसाती है।
बेवजह कलह करती है और मम्मी भी पहले उसके हां में हां मिला बढावा देती थी।
अब बहु के संतुलित व्यवहार ने मम्मी का हृदय परिवर्तित कर दिया है। अब उन्हें पूजा में ही कमी दिखाई देती है। बच्चे भी पापा, दादा-दादी को याद कर मचलने लगे थे, “हमें अपने घर जाना है। “
पूजा ने मम्मी के सामने आखिरी दांव फेंका, “आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, सभी मुझे ही दोषी ठहराते हैं… यहाँ तक कि तुम भी। “
“तुम अपने व्यवहार का आकलन करो, अपने गिरेबां में झांककर देखो ,पति की तुम इज्जत नहीं करती हो, सास-ससुर तुम्हारे लिए बोझ हैं…यहाँ तक कि अपने नन्हे बच्चों की भी तुम्हें परवाह नहीं फिर तुम्हें कौन पसंद करेगा… तुम्हीं सोचो “मम्मी के दो टूक ने पूजा के होश ठिकाने लगा दिया।
जैसे आई थी वैसे ही दूसरे दिन बच्चों के साथ ससुराल वापस आ गई। सास-ससुर खुश हो गये। बच्चे अपने घर आकर चहकने लगे और रमण शाम में पत्नी और बच्चों को देख आह्लादित हो गया।
“साॅरी रमण मैं अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए तुम्हें बहुत कष्ट पहुंचाया। “
“अरे नहीं, सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते, यह घर तुम्हारा है, बच्चे माता-पिता… यहाँ तक कि यह गुलाम भी तुम्हारा है. “
रमण के नाटकीय अंदाज पर पहली बार पूजा खिलखिलाकर हंसी। घर में आनंद छा गया।
गृहस्वामिनी को समझ आ गई थी, “आखिर मेरे साथ
ही यह सब क्यों होता है। ” प्यार सम्मान दो और बदले में सभी के दिल पर राज करो ।
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ मौलिक उर्मिला सिन्हा ©®
#आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है।