नेहा एक स्वछन्द स्वभाव की हँसमुख सी लडकी थी । बचपन से ही आत्मविश्वास से लबरेज नेहा अपने दम पर कुछ करने की चाह रखती थी,,,एम बी ए के आखिरी वर्ष मे ही थी,,,कि माता-पिता ने लड़का देखना शुरु कर दिया । नेहा अभी अगले कुछ वर्षों तक विवाह करने की इच्छुक ना थी,,,वह आत्मनिर्भर बन कर ही इस बारे मे सोचना चाहती थी ।
नेहा की मौसी ने एक बड़े घराने का पढ़ा लिखा लड़का उसके माता पिता को दिखाया,,,, । राज देखने मे स्मार्ट , लम्बी-चौड़ी कद काठी का अच्छा लड़का था । देखते ही वह माँ पिताजी को पसंद आ गया । राज भी पहली नजर मे नेहा की सुन्दरता पर मन्त्र मुग्ध हो गया था,,,,। नेहा इच्छुक ना थी ,,,पर माँ की इच्छा के आगे उसने घुटने टेक दिए और कुछ ही माह मे उनका विवाह हो गया ।
राज एक मल्टी नेशनल कंपनी मे जॉब करता था,,, शादी के तुरंत बाद जॉब में प्रमोशन हुआ और राज को USA जाने का ऑफर मिला,,, । नेहा अपने दोस्त ,मायके और ससुराल वालों को छोड़कर USA जाने के पक्ष में नहीं थी । परंतु राज की जॉब के चलते उसे यह कठिन फैसला लेना पड़ा और अगले महीने USA शिफ्ट हो गये ।
अगले वर्ष नेहा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया । तीन-चार साल बेटी के पालन पोषण में कहाँ बीत गए , उसे पता ही नहीं चला । बेटी को स्कूल में एडमिशन करवाते ही नेहा घर पर अकेली पड़ गई ।
राज सुबह ऑफिस जाता और देर शाम ही घर वापस लौटता । वहीं पूरा दिन घर में नेहा अकेली बोर होती रहती । रविवार की शाम भी दोस्तों के नाम हो जाया करती ।
धीरे – धीरे नेहा का एकाकीपन डिप्रेशन मे बदलने लगा । उसकी परिस्थिति से नेहा की माँ वाकिफ थी इसलिये उसकी मां ने सुझाव दिया ” नेहा तुम कोई ऑफ़िस ज्वाइन कर लो,,, तुम्हारी मन ना लगने की समस्या का निदान तो होगा ही ,,, साथ ही साथ तुम्हारा खोया हुआ आत्मविश्वास भी दोबारा मिल जायेगा ” ।
मां का सुझाव नेहा को बहुत अच्छा लगा,,, तो उसने राज से बात करके एक जॉब ढूंढ ली । वह उच्च शिक्षा प्राप्त थी ,,,,तो उसे जल्दी ही एक कंपनी मे बढ़िया जॉब भी मिल गई ।
अब नेहा के एकाकी जीवन की नीरसता दूर हो गई थी । मित्र मंडली मिली ,,तो कभी कभार बाहर घूमना फिरना भी हो जाया करता ।ऑफिस में उसके कुछ मित्र भी बन गए । पर कुछ समय बीतते ही राज को नेहा से जलन होने लगी । नेहा भी नौकरी वाली हुई तो घर की जिम्मेदारियों का कुछ बोझ राज के कन्धों पर भी पडने लगा ।
कभी सुबह की कॉफी खुद बनानी पड़ती,,,, तो कभी मौजे और टॉवल खुद ही निकालने पड़ते । इन सब छोटे मोटे कामों की जिम्मेदारी तो नेहा ने खुद संभाल रखी थी,,,, राज को यह सब स्त्रियोचित काम अनावशयक बोझ लगने लगे थे ।
रोज-रोज की इन परेशानियों से राज तंग आ चुका था । दिन प्रतिदिन वह नेहा की नौकरी से चिढने लगा था ,,,वह चाहता था कि नेहा अपनी नौकरी छोड़ दे और पहले की तरह अपनी घर गृहस्थी की जिम्मेदारी उठाये ।
पर नेहा को अब कभी छोटी-मोटी जरूरतों के लिये राज के आगे हाथ ना फैलाना पड़ता था,,,इसलिये अपनी इस नौकरी को कतई अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी ।
नेहा की बेटी बड़ी हो रही थी ,,,नौकरी के चलते राज और नेहा के झगडे भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे । अब तो राज को नए मौके की तलाश रहती कि वह किसी भी तरीके से नेहा की नौकरी छुड़वा सके,,, एक दिन उसने नेहा को अपने किसी पुरुष मित्र के साथ ऑफिस से लौटते हुए देख लिया,,,।
दरअसल बात यूँ थी की ,,,, नेहा ऑफिस में चक्कर खाकर गिर पड़ी थी ,,,उसे परेशानी मे देख कर उसके एक पुरुष साथी ने नेहा को घर ड्रॉप कर दिया। यह बात राज को बिल्कुल नागवार गुजरी और उसे मौका मिल गया था ,,,नेहा को जलील करने का ।
नेहा के घर पहुँचते ही राज जोर-जोर से पागलो की तरह चीखने लगा और बोला,,, ” मै तो जानता ही था तुम जैसी औरतों को घर से बाहर भेजने का अंजाम यही होता है,,,, शर्म नही आई तुम्हे उस मर्द के साथ गुलछर्रे उडाते हुए ” ।
” राज पागल हो गये हो तुम ,,,ऐसा कुछ भी नही है जो तुम सोच रहे हो ,,, अपने घिनौने शब्द वापस ले लो ,,,,, मै यह सब बर्दाश्त नहीं कर सकती , ” नेहा राज से कहते हुए फफ़क फफ़क कर रो पड़ी ।
अगले दिन शनिवार सुबह नेहा अकेले ही अस्पताल गई उसने अपना चेकअप और टेस्ट करवाये । घर वापस आई तो राज ने फ़िर नौकरी छोड़ देने की रट्ट लगा रखी थी ,,,,नेहा का सर दर्द से फटा जा रहा था,,, वह राज को अनदेखा कर बेटी के कमरे मे जा कर सो गई ।
सोमवार तक उसकी सब रिपोर्ट्स आ गई ,,,, उनके अनुसार वह दो माह की प्रेग्नेंट थी। वह बहुत खुश थी ,,, राज दूसरे बच्चे की बात सुन कर खुशी से उछल पडेगा ,,, यह सोच कर वह दौड कर राज के पास पहुंची ।
पर राज तो अपने ही शक के बुने ताने बाने मे फंसा हुआ था । नेहा की प्रेग्नेंसी की बात सुनकर वह और भड़क गया था ,,,। नेहा के बच्चे को उसने अपना खून मानने से इन्कार कर दिया ,,,अपने ऊपर लगे इस झूठे इल्जाम से नेहा टूट गई थी ।
कुछ पल उसकी उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया,,,अपने को सम्भाल कर उसने राज से कहा , ” आपकी नौकरी के पिछ्ले ग्यारह सालों मै आप पर पूरा विश्वास करती रही और अपना घर परिवार संभालती रही ,,,और आप ! ,,,मेरी नौकरी के मात्र एक ही वर्ष मे आपने अपने दिलो दिमाग मे मेरे लिये इतना शक भर लिया ??
यदि मेरे सहकर्मी के साथ मुझे एक पल देख लेने मात्र से आप मुझे चरित्रहीन समझ लेते हैं , तो माफ कीजियेगा ,,, फ़िर मेरी नजरों मे आप भी चरित्रहीन ही हैं,,,,क्योकि आपकी सेकेंट्री के साथ आपके संबंधो की चर्चा मुझ तक भी पहुँची थी,,,,परंतु इन सबके बावजूद मैने सिर्फ शक के बिनाह पर अपने रिश्ते को खराब नही किया था । पर शायद मैं ही गलत थी,,, मुझे उसी पल आपसे सब रिश्ते खत्म कर लेने चाहिये थे “,,, यह कह कर नेहा ने राज से हमेशा के लिये अलग होने का फैसला सुना दिया था ।
राज को नेहा से यह उम्म्मीद ना थी ,,, उसे लगता था अकेली औरत इतना बड़ा फैसला ना ले पायेगी,,,,पर नेहा तो फैसला कर चुकी थी ,,,, उसके चरित्र पर उंगली उठाने का पश्चाताप राज को करना ही होगा । नेहा और राज की शादी के ग्यारह साल का पवित्र बँधन एक पुरुष अहं और शक के कारण खत्म हो गया था। नेहा ने राज से तलाक ले लिया ,,,और वापस अपने देश लौट आई ।
आज नेहा आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर है,,, अपने बच्चों को स्वयं पालन पोषण कर रही है । उसे नहीं चाहिए पुरुष प्रधान समाज का वह पति रूपी पुरुष जो उसकी स्वच्छंदता और खुशियों पर अंकुश लगाता हो ,,,,जो बिना वजह उसके के चरित्र पर उंगली उठाता हो ।
पूजा मनोज अग्रवाल