“स्थापना” – ऋतु अग्रवाल

    “दुलारी काकी! दुलारी काकी!”

    “कौन है? क्या हुआ?”

     “काकी तनिक बाहर आओ।”

      “अरे लखनवा! क्या हुआ? काहे गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहा है?”

    “काकी! जरा जल्दी चलो। आज सुबह जो तुम रामशरण की बहुरिया की बच्ची जनवाई हो, वह रामशरण उसे मारे खातिर अफीम का गोला लेने गया है।”

    “क्या? उस रामशरण की तो आज मौत आ गई है। अरे!सुनैना, तू रोटी बना। मैं अभी आती हूँ ।”

   “अरे! जानकी, गोपालवा, सुरतिया!तनिक आओ तो हमारे साथ।आज इस रामशरण को छठी का दूध याद दिला दूँगी।”

 पूरे गाँव में कोलाहल मच गया। लोग लालटेन लेकर रामशरण के घर की तरफ चले। दुलारी काकी सब की अगुवाई कर रही थी।

     “दुलारी काकी! मेरी बच्ची को बचा लो। अम्मा बच्ची को लेकर कमरा बंद कर ली है। बाबू जी लाठी लिए दरवाजे के बाहर खड़े हैं।किसी को भीतर ना आने दे रहे। गुड़िया के बापू अफीम का गोला लेने गए हैं। काकी, मेरी बच्ची को बचा लो।” राधा रो रो कर हलकान हो रही थी।

    सहसा उसे चक्कर आया और वह जमीन पर गिर पड़ी। आखिर एक दिन की जच्चा ही तो थी वो।



    “अरे! सुरतिया, बहू को भीतर ले जा। अम्मा दरवाजा खोलो। काका तुम रस्ते से हट जाओ वरना गाँव वाले आज तुम्हें ना छोड़ेंगे।” दुलारी काकी दहाड़ी।

   “ए दुलारी, तू अपने घर जा। यह हमारे घर का मामला है। तू काहे बीच में बोल रही है।” रामशरण के बापू ने लाठी फटकारते हुए कहा।

    “वाह काका! बहू जनवाते समय न था ये तुम्हारे घर का मामला। अब तुम्हारे घर का मामला है। काका, ये पूरे  गाँव का मामला है। यहाँ मामला किसी एक का न, पूरे गाँव का होता है।” दुलारी काकी ने लाठी छीनते हुए कहा।

    “काकी! हट जाओ। यह बच्ची तो आज ना जीयेगी। मैं अपने घर में लड़की ना होने दूँगा। मैं अपनी मूँछ पर ताव ना आने दूँगा। लड़की रहेगी तो हमेशा मेरी गर्दन झुकी रहेगी।” रामशरण आगे आते हुए बोला।

     “तड़ाक” एक चाँटे की आवाज के साथ रामचरण के हाथ से अफीम की पुड़िया नीचे गिर गई।

     “नालायक! अगर तेरी तरह सब अपनी लड़कियों को मारने लगे तो ना तो किसी की माँ होगी ना बेटी ना बहन और बीवी। फिर तुम मरद भी कहाँ से आओगे?” दुलारी काकी रामशरण को झंझोड़ते हुए बोली।

    “मास्टरनी सही कहती थी कि गलती इन पुरुषों की ना है हम औरतों की है।हमारे घर वाले हमें पढ़ाते नहीं हैं इसलिए ना हमें अपनी कदर पता है ना अपने अधिकार। हम कमाते नहीं हैं तो इन आदमियों को हमारी वकत ना होती। इसलिए आज पहले नवरात्रि के दिन मैं मंदिर में कन्या पाठशाला के कलश की स्थापना करती हूँ।आज से इस गाँव की एक एक लड़की पढ़ने जाएगी। अपने अधिकारों के लिए लड़ेगी, आत्मनिर्भर बनेगी और आज के बाद अगर इस गाँव में एक भी लड़की मारी गई तो फिर कानून ही रामशरण जैसों की खातिर करेगा। जय माँ दुर्गा!जय माँ अंबा!” दुलारी काकी ने रामशरण के घर से कलश उठाया और मंदिर की ओर चल दी।

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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