स्वाति बेटा देख ले एक बार मैंने सूटकेस और बैग में कौन सा समान कहाँ जमाया है.. हॉस्टल में दिक्कत नहीं होगी…सीमा ने अपनी बेटी स्वाति से कहा।
स्वाति – देख लूँगी माँ.. इतनी हड़बड़ी क्या है.. अभी तो चार दिन है ना जाने में
सीमा – अच्छा ठीक है.. लिस्ट ही दिखा.. देखूँ क्या क्या बचा है पैक करने के लिए। देख तुझे हॉस्टल में भी कभी किसी चीज की जरूरत हो तो लिस्ट बना लेना पहले… नहीं तो बार बार समान के चक्कर में अपना समय ही बर्बाद करेगी।
स्वाति – अरे हाँ.. मेरी माँ.. जैसी तुम्हारी आज्ञा…
सीमा – तुझे समझा रही हूँ और देख सुई धागा और स्टेपलर रखना भूल गई।
स्वाति माँ से ज्यादा अपने फोन की बातें सुन रही थी.. जिसे देख सीमा थोड़ी नाराज हो जाती है।
सीमा – (नाराजगी जताते हुए ) कभी तो सुन लिया करो…
स्वाति माँ की नाराजगी देख मोबाइल बगल में रख देती है..माँ को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगती है…
सीमा – जैसे मैं स्टेपलर हमेशा पर्स में रखती हूँ.. तू भी कही जाने पर हमेशा रखना… पड़े ही रहने देना पर्स में… तेरा कोई ठिकाना नहीं है.. इसलिए पर्स चेक करके ही निकलना।
स्वाति – ठीक है माँ.. बोलकर पूछती है.. चाय बनाऊँ…
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सीमा – थोड़ी देर बाद ही बनाना.. तब तक तेरे पापा भी आ जाएंगे..
स्वाति – ठीक है माँ बोलकर अपने मोबाइल में लग जाती है…
स्वाति उसी कॉलेज में पढ़ेगी.. उसी हॉस्टल में ही रहेगी.. सोचकर सीमा रोमांचित हो जाती है… स्वाति के साथ जाकर फिर से एक बार उस पल की जीवंतता महसूस कर सकूँगी… सोचकर प्रसन्नता से मुस्कुराती है। अपने सुनहरे दिनों की यादों के अनुभव में खोकर सीमा स्टेपलर हाथ में लिए लिए ही भूतकाल में पहुँच जाती है।
कॉलेज का पहला दिन.. वो और उसकी दोस्त शिखा दोनों ने कला संकाय में प्रवेश लिया था। इतिहास से दोनों को ही बहुत लगाव था। एक ही जगह की होने के कारण दोनों के माता पिता साथ ही पहुँचाने आए थे। अच्छे मार्क्स होने के कारण हॉस्टल भी मिलने में दिक्कत नहीं हुई।
गार्जियन के रुकने के लिए दो रूम का अतिथि भवन भी था और हॉस्टल के मेस में खाने की व्यवस्था तो हमलोग को शहर दिखाने के लिए दोनों के मम्मी पापा तीन चार दिनों के लिए रुक गए शुरू शुरू में गार्जियन को मद्देनजर रखते हुए मेस का खाना कुछ दिन तो बहुत अच्छा होता है.. . बाद में क्वालिटी के मामले में बिल्कुल बेकार.. बोल कर कुछ नहीं होता था..
दो चार दिन ठीक.. फिर वही स्थिति.. और समय की बर्बादी अलग.. थक हार कर लड़कियाँ भी बोलना छोड़ देती….
मानसिक रूप से तैयार करने के लिए ये सब बातें सीमा ने स्वाति से पहले ही बता दिया था। साथ ही कई तरह के पकवान भी बना रही थी.. अचानक उसे कॉलेज के बगल से जाती नुक्कड़ वाली गली और चाय वाले अंकल याद आते हैं..
पता नहीं अब वो चाय की दुकान होगी भी कि नहीं.. अगर हुई तो स्वाति को जरूर ले जाऊँगी और अंकल से मिलवाऊँगी। अंकल का बेटा अभिषेक जो उस समय प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था..
पता नहीं उसकी कहीं नौकरी लगी भी या नहीं.. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के साथ साथ चाय की दुकान पर पिता की मदद भी करता था… किसी ने वहाँ के चाय और परांठे की बहुत प्रशंसा की थी तो पापा की इच्छा हो गई.. चलो देखा जाए…
पापा तो खाने के शौकीनों में से एक… मुँह में डालते ही चाय परांठे और अंकल को पास कर दिया.. फिर तो पापा जब आते… हम दोस्तों की चाय और परांठे की पार्टी हो जाती थी.. कितने मजेदार दिन हुआ करते थे वो भी… स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने वाले हमारे स्वर्णिम दिन… उन्हीं अंकल के बेटे अभिषेक ने स्टेपलर वाला आइडिया दिया था
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हमें… सोचकर आज भी सिहर उठती है सीमा.. मदद करने कोई नहीं आता है.. मज़ाक सभी बनाते हैं.. खरीदारी करके सीमा और शिखा लौट रही थी.. बाजार हॉस्टल से थोड़ी दूरी पर था…. संयोग से उस दिन रिक्शा या कोई और वाहन नहीं मिला.. शाम भी होने लगी थी..
गर्मी का दिन था तो चलते चलते पसीने से नहा चुके थे हम दोनों.. तभी पता नहीं कैसे.. किसी पेड़ की टहनी से लगकर या क्या.. कुर्ती और सलवार दोनों फट गए.. ऐसे फटे कि आगे चलना मुश्किल लगने लगा..
आने जाने वाले भी घूरते और कोई कोई तो फब्तियाँ कसते हुए भी जा रहा था.. तभी देवदूत की तरह अभिषेक साइकिल से आकर रुका.. हमें देखकर रुक गया..
अभिषेक – क्या हुआ.. आपलोग यहाँ क्या कर रही हैं..
मेरे मुँह से तो आवाज नहीं निकली.. फिर शिखा ने सारी स्थिति से अवगत कराया..
शिखा – आप यहाँ कैसे..
अभिषेक – कोचिंग से लौट रहा था.. आपलोगों को देखकर रुक गया…
अभिषेक ने देखकर आँखें नीची कर ली.. यहाँ तो दूर दूर तक ऐसी कोई जगह नहीं है कि आप कपड़े बदल सके.. अरे हाँ.. ये कर सकते हैं.. एक मिनट बोलकर अभिषेक अपने बैग से स्टेपलर निकाल कर शिखा की ओर बढ़ाता है.. जहाँ जहाँ से फटा है.. स्टेपल कर दीजिए.. हॉस्टल पहुँचने लायक तो हो ही जाएगा..
शिखा तो खुशी से चिल्ला ही उठी.. लाजवाब आइडिया दिया आपने….आते जाते लोगों के कमेन्ट से सीमा इतनी हताश हो चुकी थी कि उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे…
सीमा के धन्यवाद बोलने पर अभिषेक ने इतना ही कहा.. मेरी अपनी बहन होती तो क्या मैं उसकी सहायता नहीं करता…
नहीं अभी तक जितने पुरुष गुजरे, भद्दे कमेंट करते ही गुजरे। शायद वो सिर्फ भावना हीन मर्द थे। आप जैसे पुरुष भी हैं दुनिया में, जो परेशानी में साथ होते हैं।
उस दिन से आज तक सीमा के पर्स में स्टेपलर ने अपना घर बना लिया और दिल में पुरुषों का देखने का नजरिया भी बदला। साथ ही तब से सीमा हर लड़की को पर्स में स्टेपलर रखने की बिन माँगे सलाह जरूर देती है।
आरती झा आद्या
दिल्ली
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