“ अरे जाहन्वी, लगता है तुम्हारे ब्लाक में जो एक खाली फ्लैट था, वहां कोई आ गया है, चलो अच्छा है, रौनक बढ़ेगी” नमिता ने फोन पर कहा।
“ हां, एक औरत दिखी तो थी कल सब्जी वाले ढ़ेले पर, देखने में तो बिल्कुल जाहिल, गंवार सी लग रही थी, पता नहीं कितनी देर सब्जी वाले से ही बातें करती रही, शायद कुछ ज्यादा ही मोल भाव कर रही होगी, ये भी पता नहीं , वो मालकिन थी ये कोई काम वाली,कोई बहन जी लग रही थी, पर थी गोरी चिट्टी” जाहन्वी ने व्यगं से हंसते हुए कहा।
नहीं जाहन्वी, बिना जाने किसी के बारे में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, नमिता ने कहा। और फिर वो दोनों अपनी बातें करने लग गई।
‘समीक्षा’ नाम की इस सोसायटी में तीन चार तरह के फ्लैटस बने हुए थे। लगभग एक ब्लाक में 50-60 घर थे, आजकल लोग अपनी हैसियत अनुसार फ्लैटस खरीद कर रहना ही पंसद करते है। कुछ ने किराए पर भी दे रखे थे। जान्हवी और नमिता यहीं रहती थी।
सोसायटी की काफी औरते सुबह शाम पार्क में मिलती तो कुछ जिम की मैंबर भी थी। किटी पार्टी भी होती रहती थी। एक सोसायटी भी आजकल एक छोटे से शहर के सामान ही होती है। जहां सब कुछ अंदर ही उपलब्ध होता है। फेरी , सब्जी बेचने वाले , काम वालिंया और भी इसी तरह के लोगों को अंदर आने के लिए प्रमिशन लेनी होती है।
वैसे ऐसे लोगों की पक्की रजिस्ट्रेशन की होती है। शाम को जाहन्वी , नमिता के इलावा रिनी, भावना, ऋतिका आदि भी पार्क में मिली तो आने वाले शनिवार को होने वाली उनकी किटी पार्टी की चर्चा भी हुई। बारह मैंबरज का ये गरूप था, सभी काफी अच्छे घरों से थी, लेकिन स्वभाव सबका अपना अपना होता है।
कुछ रूतबे वाली, पैसे वाली , सुंदर, पढ़ी लिखी होकर भी जमीन से जुड़ी होती है और कुछ दिखावे बाज होती है, चुगलखोर भी और दूसरों की बात में टांग अड़ाने वाली और कुछ अपनी हर बात को सही रखने वाली, कहने का भाव ये कि सबके स्वभाव अलग अलग होते है।
जिस बारह मैंबरज के किटी गरूप की बात चल रही है, उस गरूप की एक मैंबर नीता के पति की ट्रांसफर हो गई थी किसी दूसरे शहर में, तो ये गरूप किसी एक और अच्छे मैंबर की तलाश में था। ताकि उनकी गिनती पूरी रहे।
जिस फ्लैट की सुबह जाहन्वी और नमिता में बात हो रही थी वो पिछले दो महीने से खाली था। किसी ने किराए पर लिया हुआ था। सुनने में आया था कि अब वो बिकाऊ है।
आजकल वहां आते जाते एक परिवार नजर आ रहा थे, लेकिन अभी उनसे किसी की बात नहीं हुई थी।इन दिनों बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी तो स्कूल बंद थे। उस परिवार में पति पत्नी के इलावा एक सोलह सतर साल की लड़की और दस बारह साल का लड़का भी कभी कभी नजर आ जाता। लड़का आसपास के बच्चों के साथ शायद कुछ मिक्स हो गया था, तभी बाहर फुटबाल, क्रिकेट वगैरह खेलता दिख जाता। बच्चों का पिता भी सुबह कार में जाता दिखाई दे जाता, लेकिन मां बेटी अभी लगता है घर सैट करने में ही लगी थी।
आजकल वो जमाना नहीं रहा कि पड़ौसियों के घर ज्यादा आना जाना या फिर कुछ खत्म हो गया तो मांग लाओ। पुराने जमाने में तो दाल, चावल, चीनी, आटा या कुछ भी खत्म हो तो आसपास से उधार ले लेते और फिर वापिस कर देते।अब तो कई बार पता ही नहीं होता कि आसपास कौन रह रहा है।
मां बेटी कई बार यहां वहां आती जाती दिखी, लेकिन किसी से बातचीत नहीं हुई। दोनों बहुत ही सादे लिबास में होती। शनिवार की किटी गीता के घर पर थी। सब इकट्ठा हुई तो नीता की कमी सबको खली , प्रवेश ने जाहन्वी से कहा कि सुना है तुम्हारे ब्लाक में जो खाली फ्लैट है, वहां कोई परिवार आ गया है, सुनने में आया है कि उन्होंने वो फ्लैट खरीद लिया है। उससे तुम्हारी बातचीत हुई।उसे ही नीता की जगह किटी में ले आओ।
“ ना बाबा ना, मुझे नहीं उस बहनजी से बात करनी”, जाहन्वी ने अपने कटे बालों को झटकते हुए कहा।
“ क्यों कहा हुआ”, रिनी ने पर्स से आईना निकालकर अपना चेहरा देखा, बिंदी को उतार कर फिर से सैट करते हुए कहा।
हुआ तो कुछ नहीं, परतुं मुझे वो जाहिल, गंवार, बहुत कम पढ़ी लिखी लगती है, जाहन्वी ने साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए स्टाईल से कहा।
बिना किसी से बात किए, जाने बगैर किसी के बारे में राए बनाना ठीक नहीं, और हम सब भी तो बारहवीं , तेरहवीं तक ही पहुंच पाई। ग्रेजुएट तो ऋषिता ही है, रीटा ने मजाक से कहा।
ज्यादा पढ़ी होती तो नौकरी करती, यूं किट्टियों में समय न बिताती, अब बोलने की बारी नीता की थी, जिसे शायद कम पढ़ने का मलाल था।
अरे कहां की बात कहां ले गई, जाहन्वी ने कहा, चलो तुम कहती हो तो पता करूगीं। मैनें तो जब भी उसे देखा,सलवार सूट, दुपट्टा ओढ़े, चोटी में, सादा चप्पल पहने, हाथ में थैला लेकर मां बेटी मार्किट जाती दिखी है।
तब तक खाने की टेबल सज चुकी थी, सब खाने में मस्त हो गई।सोमवार से बच्चों के स्कूल थे। लगभग सभी बच्चे पास वाले कान्वेंट स्कूल में पढ़ते थे।
शाम को जब पार्क में औरतों की महफिल जमीं तो सब के पास एक ही विषय था और वो ये कि जिसे वो बहनजी समझ रही थी वो कानवेंट स्कूल की नई प्रिसिंपल थी, शायद पहले वाली कहीं और शिफ्ट हो गई होगी।
यह खबर भावना ने दी। आज सुबह जब वो अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई तो उसे अपनी बेटी को अगले हफ्ते चार दिन की छुट्टी दिलवानी थी क्योंकि उसके भाई की शादी के लिए सारे परिवार को जाना था। तो क्लास टीचर ने उसे प्रिंसिपल से मंजूरी लेने के लिए भेज दिया। सामने देखा तो सुंदर सी साड़ी पहने, घने खुले बाल और हल्का सा मेकअप किए प्रिसिंपल की कुर्सी पर वही औरत बैठी जिसके बारे में किटी में जाहन्वी ने’ जाहिल’ शब्द का प्रयोग किया था। उसका नाम डा. स्वराज था, जो कि उसके कमरे के बाहर लगी नेम प्लेट पर अत्यतं सुंदर शब्दों में लिखा हुआ था। जाहन्वी भी वहीं थी परतुं वो बोली तो कुछ नहीं लेकिन मन ही मन शर्मिदां थी, उसके दोनों बच्चे भी वहीं पढ़ते थे।अब सबकी राय बदल चुकी थी।
दोस्तों ,सच में ही किसी को जाने बिना राय कायम करना ठीक नहीं।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- जाहिल