सोने की अंगूठी -शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

हमनें अभी  नई काॅलोनी में शिफ्ट किया था।यह काॅलोनी पुरानी काॅलोनी से काफी दूर थी सो यहाँ सारी व्यवस्थाएं नये सिरे से करनी पड़ी। जैसे दूधवाला , पेपर वाला, कामवाली मेड ,प्रेसवाला सामान के लिए परचूनी की दूकान ।पेपर देने वाला लड़का जिसे हम गुप्ता जी के नाम  से बुलाते थे यही कोई तेइस-चौबीस वर्ष की उम्र का रहा होगा। सुबह साइकिल से पेपर देने आता।

पेपर देते देते उन्हें करीब पन्द्रह साल हो गए थे ।अब वह अच्छी बड़ी उम्र के दिखने लगे थे।कभी-कभी जब पेमेंट लेने आते तो हम लोग उनसे हाल चाल पूछते तो पारिवारिक बातें भी कर लेते ।

कभी-कभी पेपर देर से लाने के कारण मेरे पति उनसे नाराज भी हो जाते और कहते गुप्ता जी आप बहुत देर से लाते हो, मैं दूसरा पेपर वाला लगा लूंगा। तो वह हंस कर जबाव देते बाबूजी पेपर तो मैं ही डालूंगा बात आई गई हो जाती। न हमने पेपर लेना बन्द किया न उन्होंने डालना ।

एक दिन मैंने उनसे पूछा आपके परिवार में कौन कौन हैं। कहने लगे मेरे दो बेटियों है, पढ रहीं हैं में उन्हें खूब पढ़ाऊंगा  आपकी तरह यहां स्पष्ट कर दूं मेरी भी तीन बेटीयां हैं जो अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रही थीं,सो ये बात हमेशा कहते थे कि मैं भी अपनी बेटियों को ऐसे ही पढ़ाऊंगा। मेरे मम्मी-पापा भी मेरे साथ रहते हैं।

 मैंने कहा और आपके भाई बहन नहीं है। बहन है बडी उसकी शादी हो गई है। और बडे भाई साहब भाभी जी हैं  दोनों डाक्टर हैं। 

क्या डॉक्टर हैं और मम्मी पापा को नहीं रखते । 

नहीं कभी नहीं ले जाते मेरे पास ही रहते हैं आपकी कोई मदद भी नहीं करते। आपको कोई अच्छा काम ही शुरू करवा दें। 

नहींं वे हमसे सम्बन्ध भी नहीं  रखते।

गुप्ता जी एक बात बताओ जब आपके बड़े भाई डाक्टर बन गए आपने पढ़ाई क्यों नहीं की।

आंटी पापा के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे तीन बच्चों को एक साथ पढ़ा सकते।  सो दीदी को बारहवीं सरकारी स्कूल से करा कर शादी कर दी। शादी का खर्च और उसी समय भैय्या का मेडिकल में एडमिशन हो गया, इतनी फीस भरनी थी 

फिर जयपुर रहने का खर्च पापा के ऊपर बहुत कर्ज चढ़ गया।तब पापा ने मेरी पढ़ाई रोक दी यह कहते हुए कि अभी तुम मेरा हाथ बंटाओ कुछ काम करो, जब तुम्हारे भाई की पढ़ाई हो जायेगी और थोडा कर्ज भी उतर जाएगा तब तुम पढ़ना चालू कर देना। भैया ने पढ़ाई पूरी होते ही भाभी से शादी करने को कहा जो उनके साथ ही पढ़तीं थीं वे बहुत पैसे वाले घर की थीं । शादी के बाद दोनों पी जी करने चले गए। फिर नौकरी करने लगे पर

भैया ने कभी पलट कर घर की तरफ नहीं देखा।न कभी मम्मी-पापा को रखा न उनसे कभी कर्ज के बारे में बात की  न कभी पैसे से मदद करी न कभी मेरी पढ़ाई की चिंता करी। उनके व्यवहार से मम्मी-पापा  बहुत दुःखी हुए। मेरी पढ़ाई छूट जाने का वे अपने को ही दोषी मानते। मैंनेB.Com किया। मुझे अच्छी नौकरी कहां मिलती सो बस तब से ही यही काम पकड़ लिया तो चल ही रहा है। शादी भी कर  दी मेरी पत्नी साधारण परिवार से है,

शांत स्वभाव की है। मम्मी-पापा का भी ध्यान अच्छे से रखती है। दो बेटीयां भी हो गईं। गुजर बसर हो जाती है।

और समय बीतता रहा वे पेपर डालते रहे। उनक बेटीयां बड़ी हो गईं। पढ़ने में होशियार थीं। बड़ी बेटी का चयन इंजीनीयरिंग में हो गया उस दिन  वे बहुत खुश थे ऊपर चढ़कर हमारे पास आये और हमें यह खुशखबरी दी।हम प्रथम तल पर रहते थे।

हम लोग बहुत खुश हुए उन्हें बधाई दी साथ ही उनका मुंह मीठा करवाया। अब उम्र का प्रभाव उनके चेहरे पर झलकने लगा था। बालों में सफेदी आ गई थी। छोटी सी दुकान खोल ली  थी जिस पर मैगजीनस रखने लगे थे

और भी कुछ फुटकर काम कर लेते थे । किन्तु  हमेशा थके-थके से मायूस रहते। कमरतोड महंगाई  में बच्चों को पढ़ाना आसन नहीं थी जिस पर छः सदस्यों का परिवार। साइकिल की जगह अब मोटर साइकिल ले ली थी ताकि थकान भी कम  हो एवं समय की बचत भी हो तो दूसरा काम कर सकें।

 

समय तेज गति  से चलायमान था। देखते ही देखते  चार वर्ष निकल गये और बेटी अच्छे नम्बरों से पास हो इंजिनीयर बन गई। यह खुश खबरी भी उनहोंने सुनाई तो अच्छा लगा।फिर उसकी नौकरी  एक मल्टीनेशनल कम्पनी में अच्छे पद पर लग गई ।उस बैटी ने अपने मम्मी-पापा का संघर्ष देखा था।सो वह उनकी पूरी तरह मदद करती छोटी बहन सी.ए. बनने की तैयारी कर रही थी उसकी कोचिंग लगवा दी। उसने अपने पापा के लिए

सोने की अंगूठी बनवाई। गुप्ता जी उसे पहन कर आये और बातों-बातों में बोले बाबूजी मेरी बेटी ने मेरे लिए यह अंगूठी  बनवाई है। हमलोग बहुत खुश  हुए ।गुप्ता जी आपकी बेटी बहुत समझदार है ईश्वर उसे सब तरह से सुखी रखे। यह सुन  उनकी आँखे भर आईं, गला रुंध गया और बोले मेरी बेटीयां मेरा गुरुर हैं  बाबूजी, भगवान ऐसी योग्य संतान सभी को दे ।बैटीयां हैं तो क्या हुआ मेरा नाम  रोशन कर रहीं हैं। ऐसी संतान पर किसे नाज

नहीं होगा खुशी की  आभा उनके चेहरे पर फूटी पड रही थी।

#गुरूर 

शिव कुमारी शुक्ला

2 thoughts on “सोने की अंगूठी -शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi”

  1. Betiyan beton se badhkar ma bap ka khyal rakhti hai aur rakhti rahengi ye story prerna srot rhi aur logon ko ladkiyon ke prati sakaratmak soch pradan karti hai ki padhegi beti to aage badhegi beti,rakhegi sabka dhyan ,uski kamyabi se roshan hoga khandan

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  2. Meri bhi do betia hai. Ek Airlines me to doosri CA. Garur hai un per.Dono ki acche parivaro me shadi Hui hai. Mera matlab ki betia hona to garur hai.

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