सोने के कंगन का मोल – पूजा मनोज अग्रवाल

   विशाल,,, ,, पिछ्ले 6 माह से मै अपने सोने के कंगन का इन्तजार कर रही हूँ,,,,हद होती है कंजूसी की ,,,,ऐसा तो कुछ नही मांगा है मैने,,, की तुम पूरा ही ना कर सको,,,,इस बार किट्टी पार्टी में नये कंगन ही पहन कर जाऊंगी ,,, रिया ने लगभग चीखते हुए कहा।

विशाल भी चुप रहने वाला न था,,, ” मेरे पास इतना पैसा नही है कि मैं रोज- रोज तुम्हे शॉपिंग पर ले जा सकूं ,घर परिवार और मां के प्रति भी मेरी कुछ जिम्मेदारियां हैं जो मुझे पूरा करनी है ,और फिर तुम जानती हो ना कि मां की घुटनों की सर्जरी कराने के लिए मुझे दो लाख का बंदोबस्त करना है ,,,,

तुम्हारे लिये सोने के कंगन लेने से जरूरी है मेरी माँ के घुटनों की सर्जरी । उनके घुटने अब जवाब दे चले हैं  मुझे इसी साल उनकी सर्जरी करानी है  ,,,” और हाँ,,,,तुम्हारी ख्वहिशों  और अरमानो का बोझ मै और वहन नही कर पाऊंगा  ,, कह कर विशाल बाहर चला  गया  ।

 विशाल की माँ सुनीता जी विशाल के पीछे टिफिन ले कर दौड़ी,,,, वह रिया के व्यवहार से बहुत आहत था,, तो माँ को भी अनदेखा कर ऑफ़िस के लिये निकल गया ।

 रिया ने भी गुस्से मे दन दनाते हुए बैग पैक किया और अपने बेटे लव को लेकर अपनी माँ के घर चली गई,,,,रिया अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी ,,, माँ बाप ने बहुत प्रेम से पाला था ,,,उसका यह  मानना  था कि उसके मां पिताजी ने उसे पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया  ,,तो उसकी कमाई पर सिर्फ उसके मां पिताजी का ही हक है ना की विशाल और उसके परिवार का,,। विशाल की मां की  बीमारी और घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों से रिया को कोई सरोकार नहीं था। वह तो बस सखी सहेलियों संग शॉपिंग करने , मौज उड़ाने और घूमने फिरने मे मशगूल रह्ती थी ।

रिया और विशाल एक ही कंपनी मे काम करते थे,,,एक दूसरे के स्वभाव से बाखूबी वाकिफ़ भी ना हुए थे ,,, की प्यार परवान चढ़ा और दोनो ने जल्दबाजी  मे कोर्ट  मैरिज कर ली। रिया विवाह करके  ससुराल आई तो सुनीता जी  ने बहू का खूब स्वागत किया ,,,वे उसका मनपसंद खाना बनाती, कपडे धोती , इसत्री करती और घर का सब रख रखाव करती । इन सब कामों की उनकी उम्र ना थी पर रिया विशाल की जिन्दगी को आरामदायक बनाने के लिये  वे पूरा दिन घर के कामों मे खटती रह्ती ।

     माँ की ये दुर्दशा देख कर विशाल बहुत परेशान था,,, जल्दबाजी में विवाह का निर्णय उसके गले की फांस बन गया था। रिया को सुबह -सुबह माँ  बैड टी देती,,,,वह उठती मां का पैक किया  टिफिन लेकर ऑफिस निकल जाती । घर के किसी काम के प्रति उसका कोई उत्तरदायित्व ना था,,। 


कुछ दिन तक यूं ही चलता रहा सुनीता जी  पर कार्यभार बढ़ता रहा । विवाह को एक वर्ष बीत चला था  कुछ समय बाद  रिया ने एक बेटे को जन्म दिया,,,,सुनीता जी की खुशी दोगुनी हो गई वह अपने सब दुख दर्द भूल कर उस को पालने पोसने  में लग गई । सुनीता जी की अस्वस्थता बढ़ने लगीं  तो उन्होने रिया को ऑफ़िस से कुछ माह की छुट्टी लेने को कहा ,,,।

  माँ जी ,, मै पहले ही बता चुकी हूँ,,,,मै ऑफ़िस से ब्रेक नही लूंगी ,,,। आप लव के लिये आया का बन्दोबस्त कर लीजिये ,,,। रिया के स्वर मे आक्रोश था ।

” छोटे से बच्चे को मै आया के हाथों  में कतई ना दूंगी  ,,”। बच्चे के लिये आया स्वीकार ना थी इसलिये  उसको खिलाने, पिलाने और नहलाने तक की जिम्मेदारी सुनिता जी ने खुद ही उठा ली थी ,,। पर बुढ़ापे का  शरीर ज्यादा दिन तक बढता कार्यभार वहन ना कर सका,,,घुटने का दर्द बढ़ता गया ,, परिस्थितिवश डॉक्टर ने अगले ही माह  सर्जरी करने का सुझाव दिया । रिया ऑफ़िस छोड़ कर बच्चे की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार ना थी और सुनीता जी की सहनशाक्ति जवाब दे चुकी थी ।

विशाल को दो लाख रुपयों की सख्त जरूरत थी,,,और रिया मायके  से वापस आने को तैयार ना थी ,,, उसने रिया से बात करने के लिये उसके मायके फोन मिलाया और अपना फ्यूचर डिपोजिट तुडवाने के  लिए कहा ।  विशाल के बहुत समझाने पर भी रिया  कुछ सुनने को तैयार न थी,,,उसने  विशाल की मदद करने से मना कर दिया। विशाल को कोई रास्ता नजर नही आ रहा था उसकी परेशानी देखकर उसके सहकर्मियों ने उसकी मदद करने के लिये  सर्जरी की बकाया राशि एकत्रित  करके अस्पताल मे जमा करवा दी । इतना सब होने पर रिया अपनी सास से मिलने अस्पताल भी ना पहुँची ,,इस बात पर विशाल रिया से बहुत नाराज़ हो गया था ।

विशाल के मित्रो की मदद से सुनीता जी की सर्जरी हो गई ,,,कुछ ही दिनो मे वे अस्पताल से छुट्टी लेकर अपने घर आ गई ,,,,इधर रिया के माता-पिता ने बात बिगड़ती देख कर रिया को समझा-बुझाकर ससुराल वापस भेज दिया । रिया और विशाल के रिश्ते तल्ख हो चुके थे ,,,,रिया से दूरी बनाने के लिये वह ऑफ़िस मे ओवर टाईम करने लगा ,,,, कड़ी मेहनत के दम पर उसने अपने बॉस का दिल जीत दिया । अगले साल उसकी पदोनत्ति हुई और  उसकी सैलरी भी बढकर दुगनी हो गई।

सुनीता जी एक समझदार माँ थी,,, हर हाल मे वे अपने बेटे का बसा हुआ घर देखना चाहती थी,,,उनके कहने पर विशाल ने ,रिया और अपने रिश्ते मे समझौता कर लिया,,,अब वह  सब कुछ भुला कर अपने विवाहित जीवन को बचाने का हर सम्भव प्रयास करने लगा ,,,,। समय बीतते लव तीन साल का हो गया ,,, विशाल ने उसका स्कूल में एडमिशन करा दिया ,,,,विशाल और सुनीता जी के प्रेम भरे व्यवहार ने धीरे-धीरे रिया की कठोरता को कोमलता में परिवर्तित कर दिया। रिया के स्वभाव मे अंतर आने लगा उसे अपना  दायित्वबोध होने लगा था। कुल मिला कर रिया और विशाल की शादीशुदा जिंदगी पटरी पर आने लगी थी ।


एक दिन अचानक  रिया की मां का कॉल आया ,,,वह बहुत हडबड़ी मे लग रही थी,,,” रिया तुम जल्दी से नेशनल अस्पताल पहुँचो ,, तुम्हारे पिताजी सीढ़ियों से गिर गए हैं ,,उनके कूल्हे की हड्डी में फैक्चर हो गया है , डॉक्टर का कहना है कि आज ही सर्जरी करनी पड़ेगी,,,,” । माँ की बातें सुनकर रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई वह दौड़ कर हॉस्पिटल जा पहुँची,,,,। रिया की आंखों से निरंतर अश्रुपात होने लगा था,,,,,उसने तो अभी कुछ दिन पहले ही अपनी जमापूँजी से सोने के कंगन बनवा लिये थे , अब तो  उसके पास बचत के नाम पर कुछ भी नही बचा था,,, वह पापा की सर्जरी का पैसा कहाँ से जुटायेगी ,,,,,यह सवाल उसके मन में  प्रतिक्षण  कौंध रहा था,,,,।

एकाएक उसे वह दिन याद आ गया जब विशाल ने उसे अपनी  माँ की सर्जरी के लिये फ्यूचर डिपोजिट तोड़ने के लिए कहा था,,,,,कैसे निष्ठुर हृदय से उसने विशाल की बात को अस्वीकार कर दिया था,,,, किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह किस मूँह से  विशाल से मदद की गुहार लगाये,,,उसका अन्तर्मन ग्लानि से भर गया था , अपने किये पर खेद  था,,,परंतु पश्चाताप के अलावा वह कुछ नहीं कर सकती थी ।

रिया ने दोनो कंगन माँ को बेचने के लिये दे दिये,,,, तभी विशाल का स्वर उसके कानो मे पड़ा  ” डॉक्टर आप पैसों की चिंता ना करें  ,,,,पेशेंट को कोई तकलीफ़ ना होने पाये ,,,, आप सर्जरी की तैयारी  कीजिए,,,,मै कैश काउंटर पर पैसे जमा करवाता  हूँ,,,” ।

यह सुनते ही रिया फूट-फूट कर रोने लगी,,,,यह देख कर विशाल ने रिया को गले से लगा लिया ,,, सुबकते हुए रिया ने विशाल और सुनीता जी से माफ़ी मांगी और पिताजी की सर्जरी के लिये मदद करने के लिये शुक्रिया किया,,, रिया को अपनी गलती का एहसास हो था ।

     विशाल ने रिया को समझाया,, ” सोना-चांदी जैसी सांसारिक वस्तुएँ हमारे जीवन मे इतनी महत्वपूर्ण नही है ,,,जितना कि हमारे परिवार के सदस्य ,,,, इन वस्तुओं की अहमियत इन्सान के जीवन के सामने  नगण्य है  ,,, धन ,दौलत, सोना -चांदी एकत्रित करने के लिये जिन्दगी हमे हजारों मौके देती है ,,,परंतु इन्सान को वापस लाने का मौका जिन्दगी मे कभी दोबारा नही मिलता,,,,।

    और रही बात तुम्हारे माँ और पिता जी की ,,, तो वो भी हमारे परिवार का अभिन्न अंग है, वो मेरे भी माँ बाप हैं ,,तो शुक्रिया किस बात का ,,,,। माँ से कंगन लेकर विशाल ने रिया के हाथों मे पहना दिये।

   अगले दिन पिताजी को होश आया  तो रिया और विशाल उनसे मिलने गये,,,। उनके होश मे  आते ही सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई,,,,,, सबकी मुस्कान के आगे रिया को अपने  मूल्यवान कंगन बड़े सस्ते लग रहे थे ,,,। ।

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

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