मांजी आज ये अभी तक नही आए और फोन भी नही लग रहा निकिता की निगाहे दरवाजे पर लगी थी अमर अभी तक आया नही था वैसे आठ नौ बजे तक आ जाता है आज दस बज चुके थे चिंता मैं निकिता अंदर बाहर हो रही थी
निर्मलाजी बोली चिंता मत कर कही फस गया होगा आ जायेगा और खुद भी मन ही मन दुआ करने लगी
अमर और निकिता दोनों ही नौकरी करते है निकिता ऑफिस से कैसे भी करके सात बजे तक आ जाती है उसे अपनी बेटी की देखभाल और घर का काम भी देखना होता है निर्मला जी निकिता को अपनी बेटी जैसा ही मानती और निकिता को भी कभी पराएपन का अहसास नही हुआ इसलिए निकिता सभी की बहुत इज्जत करती थी डेढ़ साल की बेटी अन्या की देखभाल भी दादा दादी
ही करते सब कहते निकिता तुम बड़ी किस्मत वाली हो जो तुम्हे ऐसी ससुराल मिली कितनी ऊंची सोच है उनकी तुम्हे किसी चीज की रोक टोक नही निकिता भी हां मै हां मिलाती
तभी दरवाजे पर अमर आता दिखा निकिता चिंतित हो बोली कहां रह गए मेरी तो जान निकल गई थी
अमर बोला रास्ते मैं गाड़ी पंक्चर हो गई सुनसान रास्ते पर कोई गाड़ी वाला नही मोबाइल की बैट्री भी खत्म हो गई परेशानी मैं याद भी नहीं रहा की किसी और के मोबाइल से फोन कर दूं
तभी मां की आवाज आई अब सारे सवाल बही पूछ लोगी थक गया होगा अंदर आने दो और पानी ला कर खाने की तैयारी करो ये एक सामान्य बात है ऐसा हो जाता है कभी कभी और ऐसा कई बार हुआ पर वो एक सामान्य बात रही सबके लिए.
फिर आज इतना बवंडर क्यों मचा हुआ है घर मैं निकिता
आंख मैं आंसू लिए खड़ी है
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आज निकिता ऑफिस से नही आई नौ बज गए उसका फोन भी बंद आ रहा था सहेली से पूछा तो पता चला वो तो समय से निकल गई
सब चिंता करने की जगह शक करने लगे सबसे पहले निर्मला जी बोली जाने किस के संग घूम रही होगी बिना बताए ये आजकल की लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है
ऑफिस की गाड़ी छोड़ने आती है अगर कुछ हुआ होता तो वो खबर करते जरूर किसी से मिल रही होगी पिताजी बोले हमने ही ज्यादा छूट दे दी अपनी बेटी की भी चिंता नहीं है अमर भी धीरे धीरे अपना विश्वास खोने लगा
निकिता के कान मै ये सब शब्द पड़े उसकी आंख मैं आंसू आ गए उसे देखते ही सब शुरू हो गए कहां घूम रही थी तुम्हे शर्म नही आती
निकिता बोली आप लोग की सोच का दायरा मेरे लिए क्यों बदल गया जब अमर कई बार बिना बताए देर से आए तो हम सब चिंता कर रहे थे फिर मेरे एक दिन देर से आने पर चिंता शक मैं बदल गई घर मैं आते ही सवाल की झड़ी लगा दी
आखिर ये सोच का दायरा कब बदलेगा सच्चाई जान कर सबको अपनी सोच पर अफसोस हुआ लेकिन अब रिश्तों मैं से अपनापन दूर हो चुका था
अंजना ठाकुर
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