स्नेहिल छाँव – सपना शिवाले सोलंकी

“सुनों बहू ,इतनें सालों से खूब संभाल ली इस गृहस्थी को अब मेरे बस की बात नहीं …”

रमा ने बड़े ही तल्खी के साथ कहा था। नेहा को सुनकर थोड़ा अजीब तो लगा पर उसनें बड़े ही प्यार से कहा,

“जी मम्मी आप समझा दीजिएगा जैसा आप कहेंगी मैं वैसा कर लूँगी”

और उस दिन के बाद नेहा घर की अमूमन सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाने लगी।

एक दिन नेहा ने कहा,

” मम्मी जी को मैं शिर्डी सांई बाबा के दर्शन करवा लाती हूँ साथ ही नासिक त्रयम्बकेश्वर आदि भी घूम आएँगे “

चूँकि रमा सांई बाबा को बहुत मानतीं थी उनपर अटूट विश्वास व आस्था थी इसलिए परिवार में सब सहमत हो गए। नेहा ने फ्लाईट की टिकिट बुक की। नियत दिन एयरपोर्ट पहुँचने पर बोर्डिंग पास में गोवा पढ़कर, रमा ने आश्चर्य से नेहा की ओर देखकर पूछा,

“हम गोवा जा रहें है “

नेहा ने अनुरोध करतें हुए कहा,

” जी मम्मी,प्लीज़ अभी आप किसी से ना कहना ” हम गोवा होकर शिर्डी जाएँगे।

कुछ घण्टे बाद दोनों गोवा के एक रिसोर्ट में थे।

मम्मी आप यहाँ जितना चाहे स्पॉ व जकूजी में जाएँ,स्विमिंग पूल पर स्विमिंग करें जो मर्जी सो करें… सुनकर विस्मय से रमा, बहू नेहा को देखती रही…



नेहा ने रमा को इन सब चीजों का अच्छा खासा अनुभव भी करवा दिया । साथ ही वे स्कूटर किराये पर लेकर आसपास की सैर करतें ,रोज सी- बीच पर समुद्र की लहरों में घण्टों भीगतें रहतें ।

एक दिन शाम को रमा बोली,

” बहू तू सच सच बता ,अचानक से गोवा की सैर सपाटा का ख़्याल तेरे मन में क्यों आया “

“पहले आप बताएं आपकों मज़ा आ रहा है या नहीं “

“अरे तुम तो सवाल के जवाब में सवाल पूछनें लगीं…” मेरी बात का जवाब तो दे ।

मम्मी दरअसल मेरे दादाजी व पापा भी डॉक्टर रहें, हम दोनों बहनें भी डॉक्टर बन गईं…मेरी माँ गृह गृहस्थी में ही फँसी रही। हमनें कभी उनकें मन को समझा ही नहीं। हमें लगता सब समान्य ही तो है। पर वो हम सबके साथ रहकर भी मानों अकेली ही थी।धीरे धीरे डिप्रेशन और कई सारी बीमारियों ने उन्हें जकड़ लिया । उनके इस दुनियाँ से चले जानें के बाद उनकी लिखी डायरी मुझे मिली। जिसमें उन्होंने अपनें मन की व्यथा लिख रखी थी। पढ़कर मेरा मन बहुत आहत हुआ, हमनें अपनीं माँ को सच में अकेला सा कर दिया था।



यहाँ अपनें घर में भी मैं, पापाजी व गौरव डॉक्टर हैं। हम तीनों भी अक्सर अपनें प्रोफेशन की ही बातें करतें रहतें हैं । इस घर में जब से ब्याह करके आई ,आपको चुप चुप ही देखा तो लगा आपकों कम बोलनें की आदत है थोड़ा रिजर्व सा नेचर होगा। पर पिछले कई दिनों से आपके व्यवहार में काफी परिवर्तन दिखे तो मुझे आपकी चिन्ता होनें लगी ….इसलिए सोंचा आपके साथ क्वॉलिटी टाईम स्पेंड करूँ और सबसे जरुरी बात , एकबार अपनीं माँ को खो चुकी हूँ दूसरी बार….

कहते कहते रो पड़ी नेहा…रमा का रीता मन, बहू की बात सुन भर आया वो भी रोने लगीं… खुद को संयत करतें हुए रमा ने बताया ,ये तो व्यस्त रहते ही थे, बेटा गौरव बचपन में मेरी साड़ी का पल्लू पकड़ कर घूमता था । पूरे समय माँ माँ चिल्लाता रहता,हर काम में उसे मेरी ज़रूरत होती। पर बड़ा होते होते ,फिर मेडिकल की पढ़ाई में उलझकर वो मुझसे कब दूर होता चला गया पता ही नहीं चला…

अब हर चीज में उसे अपनें पापा की जरूरत होती,उन्हीं से सलाह मशविरा करता। तुम ब्याह करकें आयीं, डॉक्टर होने से तुम भी अपनीं ज़िंदगी में व्यस्त होती जा रही थी…

मैं एक सरीखी ज़िन्दगी जी जीकर उकताने सी लगी। मेरे अंदर छटपटाहट, पीड़ा, अवसाद बढ़ता जा रहा था। लगता किसी से कोई बात ही ना करूँ, तो कभी लगता जी भरकर मन की भड़ास निकालूँ… अजीब सी कशमकश में थी….

तुम मुझे यहाँ ले आयीं, तुम्हारें साथ मैं खुलकर हँसी,बोलीं,  तुम्हारा वो स्पॉ भी बड़ा चमत्कारी था, गजब असर किया, पूरी तरह से रिलैक्स हो गई। सच कहूँ तो बरसों बाद मुझे बड़ा सुकून मिला…..

” अच्छा सुन, माँ को याद कर अब दुःखी ना होना “

” ये तेरी माँ है न तेरे पास “

साईं बाबा की कृपा से बहू के रूप में मुझे तुझ जैसी प्यारी समझदार बेटी मिल गई… कहकर रमा ने नेहा को गले लगा लिया…दोनों बड़ी देर तक यूँ ही रोती रहीं सिसकतीं रही…. खिड़की के बाहर आकाश में सूरज ढ़लता दिखा…. जिसे देखकर रमा बोली,

” चल अब बहुत हुआ रोना धोना जल्दी से सी- बीच में छपछप कर आएँ “

फिर कल सुबह शिर्डी के लिए निकलना भी तो हैं ना…सुनकर, हाँ माँ कहकर नेहा भी हँसने लगी….

– सपना शिवाले सोलंकी

2 thoughts on “स्नेहिल छाँव – सपना शिवाले सोलंकी”

  1. कहानी तो अच्छी है लेकिन मैं शेयर नहीं करूंगा क्योंकि इसमें आपने साई बाबा का जिक्र छेड़ दिया है समझ में नहीं आता कि हम हिंदुओं को 33 करोड़ देवी देवता भी कम पड़ गए जो एक जिहादी और गंदे मुसलमान को मंदिरों लाके बिठा दिया है जिससे गजवाए हिंद बढ़ावा मिल रहा है ।

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