स्नेह बंधन – पायल माहेश्वरी

” कितनी सुन्दर और सुहानी सुबह हैं,हवा में कितनी ताजगी हैं, पहाड़ो पर गिरती बर्फ काँच की तरह साफ और चमकदार लगती हैं महानगर के दौड़ते-भागते जीवन में अब ऐसे सुकून के पल कहा मिलते हैं ” सीमा अपने पति नयन से बोली ।

” बिलकुल सही कहा तुमने सीमा इसी नैसर्गिक सौन्दर्य-दर्शन के लिए मैं तुम्हें व बच्चों को शिमला ले आया ” नयन बड़ा तरोताजा महसूस कर रहा था।

” मम्मी-पापा !! हमें चाॅकलेट खानी हैं “उनके दोनों बच्चे अंकुर व अंशुल बोले।

” नीचे जाकर रामखिलावन काका की दूकान से ले लो ” नयन ने कहा।

” रूको रूपये लेकर जाओ , रामखिलावन काका मुफ्त में कुछ नहीं देते हैं, और हमें किसी का अहसान भी नहीं रखना हैं ” रामखिलावन काका का नाम सुनकर सीमा के चेहरे पर तल्खी आ गयी।

” तुम रामखिलावन काका से इतनी नफरत क्यों करती हो सीमा ?” नयन ने पूछा।

” नयन छोटे लोग छोटी सोच वाले ही होते हैं तुम तो कहते थे की रामखिलावन काका पर तुम्हारे पिताजी ने बड़े उपकार किए हैं पर मुझे तो उनके व्यवहार में कृतज्ञता बिलकुल नहीं दिखी ” सीमा नाराज

नजर आयी। 

” मेरे पिताजी ने तो रामखिलावन काका की आर्थिक सहायता ही करी पर असली उपकार तो रामखिलावन काका का मेरे माता-पिता व मुझपर हैं जो तुम सोच भी नहीं सकती हो ” नयन भावुक होकर अपने बचपन की उस घटना में खो गया जिससे सीमा अनजान थी।

रामखिलावन काका व नयन के पिताजी एक हीे गाँव के मौहल्ले में रहते थे दोनों के परिवारों में स्नेह का अटूट बंधन था किसी जमाने में रामखिलावन काका के परिवार की आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय थी तब पड़ोसी होने के नाते नवीन के पिताजी ने रामखिलावन काका को व्यापार के लिए एक लाख रुपए दिए थे जिसे लेकर रामखिलावन काका सपरिवार शिमला चले आए और वहां पर अपनी पंसारी की दूकान खोल ली धीरे-धीरे उन्नति की राह पर बढ़ते हुए रामखिलावन काका ने शिमला में पर्यटकों के लिए एक छोटा सा गेस्ट-हाउस भी बना दिया।

नयन के पिताजी सपरिवार दिल्ली आ गये और उनका व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगा,वे शीर्ष के उद्योगपति कहलाने लगे पर रामखिलावन काका के परिवार से नयन के परिवार का अब भी स्नेह बंधन अटूट था।

रामखिलावन काका नयन के पिताजी को अपने बड़े भाई की तरह मानते थे और पिताजी के कहने पर नयन जब दिल्ली से शिमला भ्रमण के लिए आया तो रामखिलावन काका के गेस्ट हाउस में ठहरा ,नयन सात दिन के लिए शिमला आया था।



रामखिलावन काका का गेस्ट हाउस छोटा लेकिन बहुत सुन्दर व स्वच्छ था पर सीमा जो हमेशा फाइव स्टार होटल की शानोशौकत की आदी थी उसे वह गेस्ट हाउस रास नहीं आया लेकिन नयन ने उसकी एक नहीं सुनी और सीमा बेमन से वहां रूकी थी।

” काका !! हमें आए हुए चार दिन हो गए पर आपने हमसे एक रूपया भी नहीं लिया,गेस्ट-हाउस के कमरे का बिल,नाश्ते व खाने का बिल, व साईट सीन टैक्सी का बिल कुल मिलाकर कितना हुआ जरा बताईये? ” नयन ने रामखिलावन काका से प्रश्न किया।

” अरे बेटा!! बिल की क्यों चिंता करते हो हम रूपया थोड़ी छोड़ेंगे एक ही बार में सब हिसाब कर लेंगे, देखो सब बिल संभाल कर रखे हैं ” रामखिलावन काका बिल दिखाकर बोले।

सीमा रामखिलावन काका की इसी बात पर नाराज थी और नयन को सुना रही थी। 

” हम उनका पैसा खा कर नहीं भाग रहे थे पर झूठमूठ भी एकबार नहीं बोले की बिल नहीं लेंगे, पापाजी इन्हें अपना छोटा भाई मानते है ” सीमा ने जलभुन कर कहां। 

” तुम इतना मत सोचो सीमा मौसम का मजा लो ये लम्हे बारबार नहीं आएंगे ” नयन ने सीमा की बात नजरअंदाज कर दी।

नयन सीमा व बच्चों की खुशी के लिए रामखिलावन काका की दूकान से सामान पर सामान मंगवाता रहता था वह इस भ्रमण को यादगार बनाना चाहता था,काम की व्यस्तता के कारण वह सीमा और बच्चों को बहुत कम समय दे पाता था। 

आखिर सात दिनो के बाद उनके जाने का दिन भी आ गया ,नयन और सीमा सामान समेट चुके थे।

” काका !! अब तो सारे बिल बताए ” रामखिलावन काका से नयन ने बोला। 

रामखिलावन काका ने दराज से बहुत सारे कागज निकाले जिनपर नयन का नाम लिखा था उन्हें जमाया और फाड़ कर फेंक दिया।

” अरे …..काका !! ये क्या किया सारे बिल क्यों फाड़ दिए? ” नयन आश्चर्यचकित था।

” काहे के बिल नयन बेटा !! तुमसे पैसा लूंगा….. अपने भतीजे से…..नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी ” काका हंसते हुए बोले।



” काका !! जब आपको बिल नहीं लेने थे तो एक साथ हिसाब -किताब करने वाला नाटक क्यों रचाया? ” नयन झूठी नाराजगी से बोला। 

” नयन बेटा !! अगर में तुम्हें पहले सब बता देता तो तुम संकोच के साथ यहाँ रहते की काका बिल नहीं लेंगे पर तुम अपना घर समझकर यहाँ खुशी-खुशी रहें यही तो मैं चाहता था इसलिए हिसाब जमाने वाला अभिनय करना जरूरी था ” रामखिलावन काका ने रहस्योद्घाटन किया।

” वाह काका !! क्या अभिनय किया हैं और मैं बुद्धू बन गया ” नयन झूठे गुस्से से बोला।

” भाईसाहब ने जितने उपकार मुझपर किए हैं उसके सामने ये कुछ नहीं हैं नयन बेटा” काका भावुक हो गये।

नयन के कान रामखिलावन काका की बातों पर और नजरें सीमा की और थी जो अपनी सोच पर शर्मिंदा हो रही थी। 

” सीमा बहूरानी !! आपसे एक विनती हैं जानें से पहले अपने काका के घर आकर काकी के हाथ का  भोजन चखें हमारे लिए ये दिन यादगार रहेगा व बड़ी खुशी होगी ” रामखिलावन काका की आखों में स्नेह बंधन फिर नजर आया ।

इस बार सीमा भी अपने आभिजात्य दर्प को त्यागकर रामखिलावन काका के आगे विनम्र हो गयी।

” जी काका !! हम सब अवश्य ही आपके घर चलेंगे पर नयन हमेशा आपके द्वारा किए गए किसी उपकार की बात करते हैं, वो घटना मैं सुनना चाहती हूँ ?”  सीमा बोली।

” बचपन में चोट आ जाने से मेरे पैरों ने काम करना बंद कर दिया था माँ व पिताजी मुझे बड़े बड़े डाक्टरो व वैधो के पास ले गये और सभी ने हाथ छिटका दिए,तब रामखिलावन काका संकटमोचन बन कर आए और अपनी अनोखी मालिश करने वाली विद्या से वो पूरे एक महीने तक मेरे पैरों की मालिश करते रहे और इनकी मेहनत व श्रदा ने चमत्कार कर दिया जो आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ ” रामखिलावन काका की जगह नयन ने भावुक होकर कहां। 



सीमा सच जानकर जडवत रह गयी और रामखिलावन काका के प्रति उसका स्नेह बंधन और मजबूत हो गया। 

” अरे नयन बेटा !! तुम क्या पुरानी बातें बहूरानी को बताने लगे वो तो मेरा फर्ज था ” रामखिलावन काका सहज नजर आए।

रामखिलावन काका के घर सभी बड़े प्रेम से मिले, काकी ने स्वादिष्ट भोजन बड़े प्यार से परोसा,मीनाक्षी उनकी मान-मनुहार देखकर अभिभूत थी,जाते समय सीमा को एक सुन्दर साड़ी व नयन को एक घड़ी व दोनों बच्चों के लिए पहाड़ी लकडी के खिलौनों का बक्सा रामखिलावन काका ने भेंट किया, दोनों बच्चे अंकुर व अंशुल बहुत खुश नजर आये।

सीमा व नयन ने काका-काकी के पैर छू लिए व काका के नन्हें पोते को शगुन भी दिया।

” काका-काकी अभी आप सब लोगों को दिल्ली जल्दी ही आना हैं ” सीमा ने आग्रह किया।

” क्या सोच रही हो सीमा ?” नयन ने जानबूझकर सीमा से प्रश्न किया। 

” नयन !! छोटी सोच रामखिलावन काका की नहीं थी अपितु मेरी थी ,मैंने उन्हें बहुत गलत समझा।”

” देर आये दुरुस्त आये, सीमा रामखिलावन काका व पिताजी उस पीढ़ी के लोग हैं जब खून के रिश्तों से बढकर पड़ोसी धर्म होता था और यह रिश्ते व संस्कृति हमारे आधुनिक महानगरीय जीवन में कभी नहीं आ सकती हैं,लोग आर्थिक स्थिति से नहीं अपनी सोच से 

बड़े व छोटे होते हैं, आशा करता हूँ तुम रामखिलावन काका के परिवार से यह स्नेह बंधन यूँ ही निभाओगी ” नयन हंसकर सीमा से बोला। 

गलतफहमी का शिकार होकर सीमा ने अनजाने में रामखिलावन काका का तिरस्कार किया, पर आज की एक और सुहानी सुबह ने सूर्य की किरणों के साथ-साथ मीनाक्षी के मन को अपनी निर्मल रोशनी से जगमगा दिया और कभी ना टूटने वाले स्नेह बंधन में बांध दिया। 

आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में

#पराए_रिश्ते_अपना_सा_लगे

पायल माहेश्वरी

यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं

धन्यवाद।

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