स्नेह का बंधन – सरोजनी सक्सेना : Moral Stories in Hindi

मैं अलार्म की आवाज सुनकर उठी | घड़ी की ओर देखा 6:00 बजा रही थी | मन कर रहा था कि थोड़ी देर और सो जाऊं | मौसम बड़ा सुहावना हो रहा है | हल्की-हल्की बारिश की बौछार, मंद मंद हवा |

मैं अलसाईं सी 5 मिनट के लिए लेट गई | लेटते ही आंख लग गई | जब आंख खुली, तब तक 7 बज चुके थे |

जल्दी से उठी किचन में चाय का पानी गैस पर रखा | मन में सोच रही थी, आज लंच में क्या बनाया जाए | इतने में मेरे कानों में आवाज आई सब्जी ले लो ताजी-ताजी सब्जी |

बाहर आकर देखा 13,14 साल का लड़का ठेले पर सब्जी बेच रहा है | मैंने खूब सारी सब्जियां ले ली |

इतने में बारिश तेज हो गई | मैंने उससे कहा यहां बरामदे में बैठ जाओ | बारिश रुक जाए तब जाना | वह बारिश में पूरा गीला हो गया था | मैं उसके लिए चाय भी ले आई और मैंने कहा बेटा चाय पी लो ठंड लग जाएगी |

हम दोनों चाय पीते पीते बातें भी कर रहे थे | मैंने उसका नाम पूछा, उसने बताया विवेक पाठक |

मैंने पूछा अच्छा तुम्हारे घर में कौन-कौन है | वह बोला मैं और मां | पिताजी कुछ समय पहले खेतों में काम करते हुए करंट लगने से हम दोनों को छोड़कर दुनिया से चले गए |

दादा दादी ने हम दोनों को थोड़ी सी जमीन और कुटीया देकर घर से निकाल दिया | अब मैं और मेरी मां है | उसी जमीन पर सब्जियां उगाते हैं | आज मेरी मां को बुखार आ गया, इसलिए सब्जी का ठेला लेकर मैं आ गया | उसकी बातों से मेरे मन में स्नेह सा हो गया | मैंने उससे कहा कल अपनी मां को लेकर आना | इतने में मेरी बेटी रिनी भी उठकर आ गई | बोली मम्मा आप किस से बात कर रही हो | मैंने उसको बताया यह सब्जी वाले भैया हैं, बारिश में भीग गए थे |इनको चाय पिलाई तब वह बोली मम्मा बच्चे चाय नहीं पीते, इन भैया को बॉर्नविटा वाला दूध देती |

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उसकी बातों से हम भी हंसने लगे | बारिश भी बंद हो गई थी, मैंने उसे सब्जी के पैसे पूछे तब उसने कहा आंटी जी अपने हिसाब से लगा कर दे दीजिए | यह काम मेरी मां करती है मैं तो कक्षा 8 में पढ़ता हूं |

दूसरे दिन विवेक अपनी मां को लेकर आया | मैंने उनसे पूछा आप अकेले सारा काम कर लेती हैं कैसे |

वह बोली क्या करूं बहन की आदत सी हो गई है | बातों बातों में मैंने उनसे कहा आप ठीक समझे तो हमारे घर में सर्वेंट रूम खाली है, आप दोनों रह सकते हैं | उन्होंने कहा बहन जी मैं आपका किराया नहीं दे पाऊंगी |

मेरे पति रवि हमारी बातें सुन रहे थे | उन्होंने मुझे बुलाकर कहा तुम भी कहां चक्कर में पढ़ रही हो | मैंने उनको बताया वह अपनी सब्जी वाले काम के साथ हमारे घर का भी काम देख लिया करेंगी खाली समय में | विवेक की मां ने जब सारी बात बताई तो वह राजी हो गए | धीरे-धीरे उन दोनों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार से हम सब उनके स्नेह भरे बंधन में बंध गए और प्यार से रहने लगे |

विवेक पढ़ाई में अच्छा था | वह सीढ़ी दर सीड़ी आगे बढ़ रहा था | समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा | रवि ने विवेक का एडमिशन बड़े अच्छे स्कूल में करवा दिया और उसकी मां की भी हमारे घर के सामने छोटी दुकान खोली नुमा बनवा दी | वहीं बैठकर सब्जी बेचती थी | बाकी समय में घर का काम कर लेती थी | विवेक ने इंटर में पूरे स्कूल में टॉप किया | अब उसको स्कूल की तरफ से स्कॉलरशिप मिलने लगी | उसने बीएससी करने का विचार बनाया | रवि ने उसका एडमिशन कॉलेज में करवा दिया | इस बीच विवेक की मां की तबीयत खराब हो गई | मैंने और रवि ने बहुत अच्छे-अच्छे डॉक्टर को दिखाया, पर उनको बचा ना पाए |

सबको बहुत दुख हुआ | विवेक ने बीएससी करने के बाद एमएससी करने की सोची | अब मां के जाने के बाद उसका भी मन यहां नहीं लगता था | उसने जोधपुर कॉलेज से एमएससी करने का मन बनाया |

अब मेरे पति रवि भी रिटायर हो गए थे | रिनी भी आठवीं क्लास में आ गई थी | हम रिटायरमेंट के बाद अपने पुश्तैनी मकान में चले गए | रिनी ने वहीं से बीएससी कर लिया | उसकी इच्छा एमएससी करने की हुई | उसका एडमिशन जोधपुर कॉलेज में हो गया |

विवेक एमएससी करने के बाद उसी कॉलेज में पीएचडी करने लगा और पीएचडी करने के बाद उसी कॉलेज में लेक्चरर हो गया |

रिनी कॉलेज के हॉस्टल में रहकर पढ़ रही थी | फिजिक्स में एमएससी कर रही थी | विवेक फिजिक्स के लेक्चरर हैं | वह फिजिक्स का पीरियड लेता है | अचानक उसकी दृष्टि रिनी पर पड़ी | उसे देखकर उनको लगा कि यह देखी देखी सी लग रही है | दो-तीन दिन उन्होंने नोट किया |

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फिर एक रजिस्टर में उसका पूरा एड्रेस देखा,

जहां उसका नाम रायना अग्रवाल, पिता का रवि अग्रवाल और मां का नाम रजनी अग्रवाल लिखा हुआ देखकर उसे विश्वास हो गया कि यह रिनी ही है |

दूसरे दिन कॉलेज की रक्षाबंधन की छुट्टी थी | विवेक उस एड्रेस पर उनके घर पहुंचा | बेल बजाई तो रिनी ने गेट खोला | मुझे देखकर बोली सर आप | पापा को बताया मेरे सर जी आए हैं | मैं उसके पीछे अंदर गया, अंकल खड़े हुए थे, मैंने उनके पैर छुए | वह बोले मैंने पहचाना नहीं, तब मैंने बताया मैं विवेक पाठक | इतने में आंटी जी भी आ गई थी |

 सब देख कर बहुत खुश हुए | एक मेज़ पर पूजा की थाली रखी थी | जिसमें राखी रखी हुई थी | रिनी ने पूछा सर जी आपने राखी नहीं बांधी | आपकी कोई बहन नहीं है | विवेक ने अपना हाथ आगे करते हुए कहा लो बांधो मेरी बहन है ना | आंटी बोली जब पूछ रही थी मेरा भाई क्यों नहीं है मम्मी मैं किसके राखी बांधू | अब ले तेरा भाई आ गया |

रिनी ने खुशी-खुशी राखी बांधी | दोनों भाई बहन खुश थे | मम्मी पापा दोनों भाई-बहन को स्नेह के बंधन में देखकर मंद मंद मुस्कुराते रहे | ऐसा मधुर होता है 

प्यार का बंधन

लेखिका 

सरोजनी सक्सेना

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