स्नेह का बंधन – रश्मि वैभव गर्ग : Moral Stories in Hindi

 14 वर्ष की अल्पायु में उसके सिर से पिता का साया उठ गया था। गरीबी इतनी कि 2 जून की रोटी की भी जुगाड़ नहीं। राजन….. जी हां यही नाम था उसका, परिस्थितियां बिल्कुल नाम के विपरीत, हौंसले यथा नाम। पिता की असमय मृत्यु ने अंदर तक झकझोर दिया था उसको, उसका बाल मन समझ नहीं पा रहा था

कि यह चुनौतियों का अंत है ,या शुरुआत है। लेकिन गरीबी सब दुखों को भुला देती है, 2 जून की रोटी प्राथमिकता बन जाती है। पिता के जाने के बाद राजन ने भी काम ढूंढना शुरू कर दिया था। सेठ राम जी दास, बड़ा ही नाम था उनका, सुना था बिना परखे वह किसी को नौकर भी नहीं रखते थे।

कसौटी पर खरा उतरना राजन के स्वभाव में ही था ,और वह सेठ जी के पास नौकरी के लिए इम्तिहान देने चला गया। कड़ा इम्तिहान लिया था सेठ जी ने, सुबह से शाम तक का काम बताया था। राजन भी मेहनती था और उसने सेठजी के यहां नौकरी प्राप्त कर ही ली।

 भरा पूरा परिवार था सेठ जी के यहां, दो बेटियां एक बेटा, मां बाप, सेठ जी और सेठानी रहते थी। संपन्नता चहुं ओर दिखाई पड़ती थी। बड़ी बेटी कुछ चंचल स्वभाव की थी। छोटी बेटी गंभीर स्वभाव की थी। राजन की मेहनत और लगन ने सेठ जी का दिल जीत लिया था कभी-कभी गृह कार्य के लिए वह उसे घर भी भेज दिया करते थे।

स्नेह का बंधन – चंचल जैन : Moral Stories in Hindi

चंचल स्वभाव की सारिका और गंभीर स्वभाव की सरिता, दोनों ही के बीच जाने से राजन को डर लगता था।सारिका को घर में सारा बुलाते थे ,वह अपने स्वभाव वश मसखरी करने से बाज़ नहीं आती थी। बड़ी बड़ी आंखें, तीखी नाक और गौर वर्ण ने सौंदर्य से धनी ही बनाया था सारिका को। आवाज़ मानो वीणा झंकृत होती हो,

हंसी तो उसके होंठो पर बरबस ही आ जाया करती थी। जीवन की पीड़ाओं से दूर सारिका जीवन का सिर्फ उजला पक्ष ही जानती थी, वहीं ,उसी का हम उम्र राजन जीवन के स्याह पक्ष को बहुत नजदीक से देख चुका था। सारिका की हंसी ने राजन के मन में एक अजीब सी कशिश पैदा करती थीं। 

किशोर मन बडा ही चंचल और भ्रमित होता है। उसकी आंखों में भविष्य के सपने तो होते हैं, लेकिन अनुभव की पाठशाला से अनपढ़ ही होता है। राजन ने अपनी ज़िन्दगी की जंग को देखते हुए, अपने मन को काबू में रखा और पढाई में गहराई से मन लगाया , साथ ही दिन में,

अपने मालिक का मेहनत से काम करता था।इसी वजह से राजन ने सेठजी का विश्वास जीत लिया था। सेठ जी के यहाँ एक नौकर चंदन रहता था, वह मानसिक रूप से कमजोर था, सारिका के चंचल स्वभाव ने मज़ाक़ में चंदन से कहा मैं तुम्हारी शादी करवाऊँगी, और मानसिक रूप से कमजोर चंदन शादी की ज़िद करने लगा।

सारिका ने सरिता के साथ मिलकर एक योजना बनाई। योजना में राजन को ,चंदन की दुल्हन बनाया गया। मेधावी राजन ,सारिका की मज़ाक़ को सच करते करते ,कब सारिका को दिल दे बैठा उसे पता ही नहीं चला। चंदन के विवाह में सारिका की अट्टहास भरी हँसी राजन के दिल के तारों को झंकृत कर गई।चंदन और राजन का विवाह तो मज़ाक़ था लेकिन राजन की चाहत सच्ची थी।

कैप्टन मोनिका खन्ना, – सुषमा यादव

 राजन ने रात रात भर पढ़ाई शुरू कर दी और फलस्वरूप बारहवीं बोर्ड में राजन फर्स्ट डिवीज़न पास हो गया। राजन की प्रतिभा किसी से नहीं छुपी थी ,सेठजी भी राजन की मेहनत के क़ायल हो गए। सारिका और सरिता दोनों बड़ी होने लगी, सेठजी दोनों के लिए वर तलाशने लगे। सरिता के लिए उसी के सहपाठी के घर से एक रिश्ता आया

उच्च घराने से रिश्ता आया देख सेठजी इनकार नहीं कर पाये ,चूँकि लड़का भी उच्च पद वाला था तो सेठजी ने ख़ुशी ख़ुशी हाँ कर दी। अब सेठजी को सारिका ,जो कि सरिता से बड़ी भी थी, के विवाह की चिन्ता सताने लगी थी। राजन के ग्रेजुएशन का रिजल्ट देखकर सेठजी की पारखी निगाहें राजन जैसे हीरे को तराशने की सोचने लगी।

सेठजी ने सोचा सारिका के लिए राजन का चुनाव ग़लत नहीं होगा और वह राजन की माँ के पास रिश्ता लेकर पहुँच गये। राजन की तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई और उसकी माँ ने भी तुरंत हाँ कर दी। छोटी बहिन का विवाह तय हो जाने के दबाब में सारिका ने भी बुझे दिल से विवाह के लिये रज़ामंदी दे दी

। सारिका के पिता ने राजन को पहले एक अच्छा व्यवसाय करवाया ,फिर विवाह करने की तारीख़ निश्चित कर दी। राजन तो सारिका की ख़ुशी के लिये रात दिन एक करना चाहता था।उसने व्यवसाय में भी मेहनत शुरू कर दी। विवाह की तारीख़ भी नज़दीक आ गई और दोनों विवाह बंधन में बंध गये।

उच्च घराने से आई सारिका को छोटे से घर में आना .. उसके अरमानों पर पानी फेर गया। राजन सारिका की मनःस्थिति समझते हुए वह पहले सारिका का दिल जीतना चाहता था। उसने सारिका का दैहिक स्पर्श भी नहीं किया। राजन सारिका के साथ घर के काम में भी हाथ बटाने लगा था। सारिका राजन से उखड़ी उखड़ी सी रहती थी, वो सोचती थी इसी की वजह से मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गई है।

पुखराज – ज्योति अप्रतिम

 कुछ समय बाद सारिका की छोटी बहन सरिता के विवाह की तारीख़ निश्चित हो गई ,तो राजन ने सारिका को नई साडी दिलवाने को कहा। सारिका बोली मुझे नहीं लेना तुम्हारी पसंद की साडी ,मैं तो अपने मायके जाकर ही ख़रीददारी करूँगी। सारिका की ख़ुशी के लिये वह उसे उसके मायके छोड़ आया।

राजन ने मेहनत से व्यवसाय को तो ऊँचाई पर पहुँच दिया था ,बस सारिका के दिल में घर बनाना चाहता था। सारिका मायके चली गई , वहाँ के ऐशोआराम में उसे कुछ परायापन लग रहा था। विविहोपरांत स्त्री मायके में वो अधिकार महसूस ही नहीं कर पाती जो ससुराल में करती है। सारिका को रह रह कर राजन का सहयोग और प्यार याद आ रहा था, साथ में अपने द्वारा की गई राजन की उपेक्षा भी उसको मलाल दे रही थी।

अपनी बहिन और माँ के साथ बाज़ार ख़रददारी करने गई, तो राजन के दिये हुए पैसे याद आ रहे थे। दुकान पर एक नवविवाहित दम्पति को साडी ख़रीदते देख उसका मन राजन को याद कर रहा था। राजन की उदारता को याद करते हुए उसने साडी न लेने का फ़ैसला किया। घर आकर अपनी माँ से कहा मुझे मेरी ससुराल जाना है.. माँ की अनुभवी नज़रें बिटिया की बेचैनी को समझ गईं थी और राजन को संदेश भिजवा दिया गया। राजन अचानक यूँ संदेशा आया देख थोड़ा घबरा गये ..

लेकिन कर्तव्यनिष्ठ राजन अविलंब लेने आ पहुँचे। आकर सबकी कुशलता पूछी… फिर सारिका से कहा ,तुम तो विवाह तक रुकने वाली थी, फिर क्या हुआ? आँखों से अविरल धारा बहते हुए सारिका ने कहा मुझे घर ले चलो.. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, सच कितनी निर्मोही हूँ मैं..

और आप.., अरे इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं दरअसल मैं तुम्हारे समकक्ष हूँ ही नहीं..राजन ने बीच में ही बोलते हुए कहा। आप बहुत अच्छे हो, मैंने आपके प्यार की कद्र नहीं की.. अब जब मैं आपसे दूर हुई तो मुझे आपके स्नेह बंधन की कसक महसूस हुई… मैं आपके लायक़ नहीं.. कहते हुए सारिका राजन के गले लग गई …

और हां मुझे आपकी पसंद की ही साड़ी खरदनी है..। हम दोनों एक दूसरे के लिये ही बने हैं.. ये जो स्नेह का बंधन है न! वो एक दिन का नहीं , बल्कि जीवनभर का नाता है…कहते हुए राजन ने सारिका को अपने आलिंगन में ले लिया।

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समाप्त 

( अप्रकाशित, स्वरचित) 

 रश्मि वैभव गर्ग 

कोटा

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