स्नेह का बंधन – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“अम्मा भौजी (भाभी)का कमरा चकाचक सजा दिए है… जाकर देख तो लो… कोई कमी होगी तो वो भी दुरुस्त कर देंगे।” मोहन चहकते हुए चारुलता जी से बोला

“ तेरा काम हमेशा नम्बर वन रहता है… अब जो कौनों कमी होगी वो तो तेरी भौजी ही तुम्हें बताएगी ।” हँसते हुए कहकर चारुलता जी ने मोहन के चेहरे को थपथपा दिया 

शाम का समय हो चला था मोहन की नज़रें दरवाज़े पर ही टिकी हुई थी अब कार आएगी तब कार आएगी….. तभी कार का हॉर्न सुनते मोहन जोर से चिल्लाया..,” आ जाओ अम्मा भैया भौजी आ गए।” 

चारुलता जल्दी से पूजा की थाल लेकर दरवाज़े पर आ गई 

कार मुख्य दरवाज़े पर आकर रूकी ही थी कि मोहन ने दरवाज़ा खोल कर क्षितिज को देखते ही पैर छूकर आशीर्वाद लिया और पूछा,”सफर ठीक रहा ना भैया कोई दिक़्क़त तो ना हुई?” 

“ नहीं रे मोहन तु भी कैसी बातें कर रहा है… मैं क्या कोई पहली बार घर आ रहा हूँ!” हँसते हुए क्षितिज ने कहा और दूसरी ओर जाकर दरवाज़ा खोल कर धरा को बाहर निकलने के लिए हाथ बढ़ाया ।

“ भौजी सँभल कर उतरना ।” मोहन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा 

“ हाँ हाँ तेरी भौजी को सँभाल कर ही उतारूँगा चल तू ये सब सामान घर के अंदर लेकर चल।” क्षितिज ने मोहन से कहा 

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धरा सँभल कर उतरी और सधे कदमों से घर की ओर क्षितिज के साथ साथ चलने लगी

दरवाज़े पर चारुलता जी ने दोनों की आरती ली और ढेरों बलैयाँ लेते हुए अंदर आने को कहा

दोनों झुककर उनके पैरों की ओर आशीर्वाद लेने को हुए तो चारुलता जी ने धरा को बीच में ही रोकते हुए गले से लगाकर कहा,” मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है अभी बढ़े पेट के साथ झुकने की ज़रूरत नहीं है ।” 

“ बहू सफ़र में कोई दिक़्क़त तो नहीं हुई कहो तो हमारे डॉक्टर को बुला कर चेकअप करवा लें? 

“ नहीं मम्मी जी मैं बिलकुल ठीक हूँ और डॉक्टर की इजाज़त से ही सफर कर के आई हूँ ।” धरा ने कहा 

इतनी देर में मोहन ने रसोई में जाकर काम करने वाली कमली से चाय नाश्ता लाने को कह दिया 

“ बहू तुम कुछ देर कमरे में जाकर आराम कर लो दो घंटे फ़्लाइट का सफ़र फिर घर तक एक घंटे का सफर तुम थक गई होगी ।” चारुलता जी ने प्यार से कहा 

धरा ने भी सहमति जताई और कमरे की ओर बढ़ गई पीछे पीछे मोहन उसका सामान लेकर चल दिया 

“ भौजी देख लो आपका कमरा सही से दिख रहा है ना… अम्मा जी के कहेनुसार आपके कमरे में सब कुछ रख दिया है ।” मोहन सामान रखते हुए बोला 

“ हाँ मोहन भैया सब कुछ बहुत अच्छा दिख रहा है… आप जरा कमली को कमरे में भेज दो मेरे पैरों में थोड़ा दर्द है वो मालिश कर देंगी ।”  कहकर धरा बिस्तर पर लेट गई

कमली आ कर उसके पैर दबाने लगी और बोली,” पता है भाभी…जब से आप लोगों के आने की खबर मिली है ये मोहन भैया ना पगला गए हैं…. भैया भौजी आ रहे हैं अम्मा ये बनाकर खिलाना है उनको ये करना वो करना और अब तो नया मेहमान आने वाला है उसके लिए भी जाने क्या क्या सोच कर रखे हैं अम्मा से बार-बार पूछ रहे थे…. भौजी यहाँ रहेगी ना अम्मा कि फिर चली जाएगी….जैसे शादी के चार महीने बाद ही चली गई थी उसके बाद बस एक बार ही आई और तीन साल में ये तीसरी बार …. भैया को बोलो भाभी को यहीं रहने दे खुद भी यही रहे।”

धरा ये सब सुन कर हू हू कर रही थी वो यहाँ कभी आना नहीं चाहती थी शादी के बाद जब आई थी तभी उसे महसूस हो रहा था ये मोहन कुछ ज़्यादा ही लगा रहता है और उसे अपने आसपास मोहन का होना खटकता था…. वैसे भी मोहन क्षितिज का भाई तो था नहीं फिर भी अम्मा जी का चहेता बना फिरता था वो भी उसपर वैसे ही जान देती जैसे क्षितिज पर देती थी …. धरा नई नई थी इसलिए कभी कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं की, क्षितिज भी उसे भाई कहकर ही संबोधित करता था…. उन दिनों क्षितिज अपने होम टाउन में ही जॉब कर रहा था इसलिए धरा को भी यही रहना पड़ रहा था …. कारण यह भी था कि क्षितिज के पिता जी विश्वेश्वर बाबू  की तबियत ख़राब चल रही थी और बार बार अस्पताल के चक्कर लगते रहते थे ऐसे में उन्हें छोड़कर जाना मुश्किल था और धरा यहाँ रहना नहीं चाहती थी पर मजबूरी थी।

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कुछ वक़्त ही गुजरा था कि रात को अचानक मोहन उनके कमरे के दरवाज़े को खटखटाते हुए बोला,”क्षितिज भैया क्षितिज भैया।” 

अंदर से कोई आवाज़ ना सुन मोहन ने आनन फ़ानन में दरवाज़ा खोल दिया और बत्ती जला दिया… इस अप्रत्याशित घटना के लिए धरा क़तई तैयार नहीं थी और बत्ती के जलते ही क्षितिज भी उठ गया और ग़ुस्सा करते हुए बोला,” ये क्या तरीक़ा है मोहन …ऐसे कमरे में घुस आए?”

मोहन ये सुन कर डर भी गया और रोनी सी सूरत करके बोला ,” भैया बाबूजी की तबियत सही नहीं लग रही वो ज़ोर ज़ोर से साँस ले रहे हैं अम्मा ने आपको आवाज़ लगाई पर आप सुने नहीं तब मुझे बुलाया… और मैं बाबूजी को देख कर आपको बुलाने आ गया आप सुने नहीं तो मैं…।” नज़रें झुकाये कहकर मोहन जल्दी से अम्मा बाबूजी के कमरे की और दौड़ा

ये सुनते ही क्षितिज भी भागा और पीछे से धरा भी आ गई।

पिताजी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया…..पर होनी को कौन टाल सकता था…..विश्वेश्वर बाबू सबको छोड़कर जा चुके थे ।

किसी तरह सारे संस्कार सम्पन्न किए गए…और अब घर के हालात बदल गए थे…चारुलता जी गुमसुम रहने लगी थी… मोहन हमेशा उनके आसपास ही रहता… क्षितिज अपने ऑफिस… धरा घर में रहती तो उसे मोहन को देखकर ग़ुस्सा आता पर मोहन इन सब से अंजान भौजी भौजी कर धरा के साथ बात करने में लगा रहता और वो उससे कन्नी काटने लगती…एक दिन उसने क्षितिज से कहा ,”मैं अब फिर से जॉब करना चाहती हूँ और मुझे दूसरे शहर से जॉब का ऑफर आ गया है।”

क्षितिज जो पहले से ये जानता था कि धरा शादी के पहले भी जॉब करती थी वो तो शादी के लिए जॉब छोड़ कर उसके साथ यहाँ रह रही थी पर वो बता चुकी थी कि वो आगे जॉब करेगी घर में नहीं बैठी रहेगी…उसने अपनी माँ से बात की तो वो बोली,” बेटा ये फ़ैसला बहू का है उसे मैं मना नहीं कर सकती…अगर तुम भी यही चाहते हो तो उसे जॉब करने दो पर ऐसे अलग-अलग रहने से बेहतर है तुम भी उसके साथ रहो और अपने लिए उधर ही जॉब देख लो।”

“ पर माँ मैं आपको ऐसे छोड़कर कैसे जा सकता हूँ…मेरे सिवा आपका है ही कौन?” क्षितिज ने कहा 

“ तू चिंता क्यों करता है मोहन है ना यहाँ तू आराम से जा बस आते रहना।” मन पर सौ मन पत्थर रखकर चारुलता जी ने बच्चों के हित में सहमति जताई 

कुछ समय बाद ही क्षितिज और धरा यूपी से मुम्बई चले गए 

क्षितिज बीच बीच में आया करता था एक बार वो ज़िद करके माँ और मोहन को अपने साथ मुम्बई ले आया 

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धरा को फिर अपनी ज़िंदगी में मोहन को आया देख ग़ुस्सा आने लगा… ये सब चारुलता जी अपने घर में कभी समझ नहीं पाई थी पर यहाँ दो कमरों के घर में उन्हें दिखने लगा था कि धरा मोहन को नापसंद करती है…. वो धरा से मोहन को लेकर बात करना चाहती थी पर समझ नहीं पा रही थी कैसे और कहाँ से शुरुआत करें ।

उन्हें आए पाँच दिन ही गुज़रे होंगे कि एक दिन सुबह ऑफिस जाने की हड़बड़ी में घर से निकल रहा था लिफ़्ट किसी फ़्लोर पर अटका पड़ा था वो भुनभुनाते हुए सीढ़ियों से उतरने लगा और अचानक जूते की खुली लैस में उलझ कर वो गिर पड़ा… आसपास वालों ने जल्दी से उसे उठा कर उसे घर तक पहुँचा दिया 

क्षितिज के सिर से बहुत खून बह रहा था धरा एम्बुलेंस बुला कर उसे अस्पताल ले गई उसके हाथ में भी चोट लगी थी सिर पर टाँके और हाथों में प्लास्टर… ऐसे में मोहन ने क्षितिज के साथ साथ सबको सँभाला ।

कुछ दिन अस्पताल में रहकर क्षितिज घर आ गया पर डॉक्टर ने सप्ताह भर आराम करने की सलाह दे दी थी ।

मोहन क्षितिज के लिए बायाँ हाथ बन गया था वो उसका पूरा ध्यान रख रहा था और कभी-कभी वो अकेले में रो पड़ता था ।

एक दिन धरा ने मोहन को यूँ रोते हुए देखा तो पूछ बैठी,” आप रो क्यों रहे हो?” 

मोहन अपने आँसुओं को पोंछ कर बिना कुछ कहे वहाँ से हट गया 

धरा चारुलता जी के पास गई और बोली,”मम्मी जी ये मोहन भैया कौन हैं….. जहाँ तक मुझे याद है जब मेरी शादी की बात करने पापा आए थे तो आप लोगों ने ये बताया था कि क्षितिज आपका इकलौता बेटा है फिर मोहन भैया हमेशा साथ क्यों रहते और आज तो मैं उन्हें क्षितिज के लिए रोते हुए भी देखी पर वो मुझे कुछ नहीं बोले।”

“ बहू मैं भी बहुत समय से सोच रही थी मोहन के विषय में तुमसे बात करूँ… मुझे पहले कभी समझ नहीं आया कि तुम्हें मोहन से आपत्ति है पर यहाँ तुम्हारे रूखे व्यवहार से मोहन के प्रति तुम्हारी भावना समझ रही थी पर उसे लेकर कुछ कहना कहाँ से शुरू करूँ ये समझ नहीं पा रही थी… बेटा मोहन से यूँ हमारा कोई खून का रिश्ता नहीं है…पर उसके माता-पिता हमारे गाँव वाले घर के बगल में रहते थे तुम्हारे ससुर जी का उस परिवार से बहुत स्नेह था…एक दिन मोहन के माता-पिता खेत पर काम करने गए हुए थे…

दोनों काम करके सुस्ता रहे थे तभी ना जाने कहाँ से ज़हरीला साँप आ निकला और दोनों को डस लिया.. वैध हकीम के इलाज से वे बच ना पाएँ तब मोहन बस पाँच बरस का ही था…. अपने माता-पिता को खोने के बाद वो सहम कर मुझसे चिपट गया और अम्मा कहकर रोने लगा…क्षितिज उससे बड़ा था और समझदार उसने कहा,” माँ अब मोहन का क्या होगा… कौन उसकी देखभाल करेगा… चलो हम लोग जब शहर जाएँगे मोहन को अपने साथ ही रखेंगे…और बस मोहन के साथ हमारा स्नेह का बंधन बँध गया और वो हमारे साथ ऐसे घुलमिल गया जैसे परिवार का हिस्सा हो… वो तुम्हें बहुत मान देता है बहू … भौजी ज़रूर बोलता है पर दिल से तुम्हें बहन मानता है तभी तुम्हारे साथ वो लगा रहता है।”

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धरा ये सब सुन कर कुछ कह नहीं पाई….उसकी नज़रों में वो खुद को बहुत छोटा समझने लगी ।

अब वो मोहन के साथ बहुत स्नेह का व्यवहार करने लगी जिसे चारुलता जी और क्षितिज दोनों ने महसूस किया ।

क्षितिज के ठीक होने के कुछ समय बाद चारुलता जी और मोहन वापस अपने शहर लौट गए ।

अब धरा को रह रह कर दुःख हो रहा था कि उसने मोहन से दूरी बनाने के चक्कर में इतनी दूर नौकरी करने आ गई क्षितिज अपनी माँ को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहता था पर उसकी वजह से वो उसके साथ रह रहा था…मम्मी जी ने भी कभी मुझे कुछ नहीं कहा… अगर मोहन नहीं होता तो वो इतने बड़े घर और खेती कहाँ से सँभाल पाती वो क्षितिज से कहने लगी थी….हम चाहे तो फिर से अपने घर रहने चलते हैं पर क्षितिज ये नहीं चाहता था कि वहाँ जाने के बाद फिर से धरा मोहन को लेकर जाने की सोचे।

साल गुज़र रहा था धरा और क्षितिज अब अपना परिवार बढ़ाने की सोचने लगे…धरा जब गर्भवती हुई तो शुरू में सब ठीक था पर धीरे-धीरे उसे अकेले रहकर सब कुछ करना मुश्किल लगने लगा… उसकी माँ उसके पिता को छोड़कर उसके पास आने में असमर्थ थी और चारुलता जी का कहना था बेटा मेरे लिए वो जगह नई है…. यहाँ पर सब जाना समझा है अगर डॉक्टर इजाज़त दे तो यही आ जाओ… सब कुछ हम लोग सँभाल लेंगे और वो लोग यहाँ आ गए ।

आज घर में सारे पकवान क्षितिज और धरा की पसंद से बने हुए थे ।

खाना खाते हुए अचानक से मोहन ने पूछा,” भैया भौजी अब आप यहीं रहेंगे ना… मेरा और अम्मा का मन आप लोगों के बिना नहीं लगता है… भौजी हमसे कोई गलती हो तो हमें डांट लेना पर अब घर से मत जाना।” 

इस अप्रत्याशित बात से धरा एकदम सकपका गई पर अपने भीतर के जज्बातों को रोक ना सकी और बोल पड़ी,” मैं तो अब यही रहने वाली हूँ…क्षितिज का पता नहीं वो तो बस काम में लगा रहता है  ऐसे में हमारे होने वाले बच्चे को उसके  चाचू नहीं नहीं मामा को ही तो सँभालना होगा।”

धरा की ये बात सुनकर सबके अधरों पर मुस्कान छा गई।

“ हाँ तो हम है ना आपके भाई… क्यों चिंता करती हो।”मोहन ने भी भाई का प्यार जताते हुए कहा 

चारुलता जी ईश्वर को धन्यवाद देते हुए बोली ,” भगवन मेरे परिवार को किसी की नजर ना लगें और ये स्नेह का बंधन अब कभी ना टूटे।”

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# स्नेह का बंधन

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