स्नेह_का_बंधन – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

रघुवीर जी का इकलौता बेटा था राघव। यथा नाम तथा गुण। संस्कारी पढ़ने में होशियार। हर माता-पिता की तरह रघुवीर जी का भी सपना था कि उनका बेटा बहुत बड़ा आदमी बने। जबकि उनकी पत्नी मीना जी हमेशा ही कहती, देखो जी ज्यादा ऊंचे ख्वाब ना देखो। ना अपने बेटे को दिखाओ।

हमारा इकलौता बेटा है। इसे अपने पास रखकर ही या तो कोई व्यापार करा देना या फिर यहीं कहीं नौकरी कर लेगा। हमारे पास किस चीज की कमी है। ईश्वर की कृपा से हमारा जो भी कुछ है, सब इसी का तो है। ऐसा ना हो कि यह सपनों के पंख लगा कर इतना ऊंचा उड़ जाए कि हमारी पहुंच के भी बाहर हो जाए। अच्छा भाग्यवान चलो छोड़ो जो किस्मत को मंजूर होगा देखा जाएगा। 

रघुवीर जी के यहाँ एक नौकर था श्यामू। उसका भी एक ही बेटा था मानव। जिसकी पढ़ाई की जिम्मेदारी रघुवीर जी ने ही ले रखी थी। समय तेजी से बीत रहा था। पता ही नहीं चला कब राघव का स्कूल कॉलेज खत्म हो गया। और वह एक बड़ी कंपनी का मैनेजर बन गया। 

एक दिन राघव ने घर पर आकर बताया कि कंपनी वाले उसको अमेरिका भेज रहे है। मीना जी को तो जैसे सांप सूँघ गया। लेकिन रघुवीर जी ने अपनी पत्नी को समझाया कि बेटे को आगे बढ़ने दो। अब कोई दूरी नहीं है। अगर कोई आना जाना और मिलना चाहे तो सब रास्ते खुले हैं। आखिर मीना जी ने अपने दिल पर पत्थर रखकर बेटे को विदेश भेज दिया। 

लेकिन रघुवीर जी को क्या पता था कि विदेश की हवा ऐसी लगेगी कि उनका बेटा सब संस्कार और मान मर्यादा भूल जाएगा। शुरू-शुरू में तो फोन पर बात हो जाती थी ।लेकिन अब रघुवीर जी को लगने लगा था जैसे उनके बेटे को उनसे बात करने में रुचि नहीं होती थी। धीरे-धीरे बातों का सिलसिला कम होने लगा ।

एक दिन राघव का फोन आया कि उसने एक अमेरिकन लड़की से शादी कर ली है। मीना जी ने तो रोकर और बड़बड़ा कर अपने मन की भड़ास निकाल ली। लेकिन रघुवीर जी अपने दिल पर लगे इस आघात को चुपचाप अंदर ही अंदर पी गए। उन्हें अपने बेटे से ऐसी उम्मीद नहीं थी।

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उम्र बढ़ने के साथ-साथ दोनों बीमार रहने लगे थे। उनके नौकर श्यामू के देहांत के बाद उसका बेटा मानव उनके पास आता-जाता रहता था। वह उनके काम भी कर देता था। उसकी सरकारी नौकरी लग गई थी। जिसका पूरा श्रेय वह रघुवीर जी को ही देता था। उसकी भी शादी हो चुकी थी। और एक दो साल का बेटा भी था। 

एक दिन रघुवीर जी ने मानव से कहा कि बेटा पूरा घर खाली पड़ा है। यह सूनापन काटने को दौड़ता है। अगर तुम्हें कोई परेशानी ना हो तो तुम ऊपर वाले हिस्से में रहने आ जाओ। हमारा भी मन लग जाया करेगा। मानव ऊपर कमरे में आकर रहने लगा।

उसने अपनी पत्नी से भी कहा कि ये दोनों मेरे माता-पिता से भी बढ़कर हैं। इनका कभी तिरस्कार मत करना। एक दिन हृदय गति रुकने से मीना जी भी परलोक सिधार गई। बहुत फोन किया उन्होंने अपने बेटे को कि आकर अपनी मां का अंतिम संस्कार तो कर दे। लेकिन राघव बातें बनाता रहा और नहीं आया। मीना जी की मृत्यु के बाद तो रघुवीर जी ने भी बिस्तर पकड़ लिया। मानवऔर उसकी पत्नी जी जान से उनकी सेवा करते थे। 

रघुवीर जी अपने बेटे से मिलने के लिए तरस रहे थे। आने के लिए आदेश की जगह अब मिन्नतों ने ले ली थी। बेटा तेरी मां तो चली गई एक बार अपने बाप से तो मिल ले। पता नहीं किस दिन मेरा भी बुलावा आ जाए। क्या पापा आप भी। मानव कर तो रहा है आपकी देखभाल।

आखिर आपने उसके ऊपर पैसा लगाया है तो उसकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं? तो क्या बेटा तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। पापा मेरे पास यहाँ भी बहुत जिम्मेदारियाँ हैं। यह रोज-रोज एक ही बात करके मेरा समय खराब मत किया करो। और फोन काट दिया।

आज रघुवीर जी ने एक दृढ़ फैसला लिया। उन्होंने अपने वकील दोस्त को बुलाकर अपनी सारी जायदाद मानव के नाम कर दी। एक बेटे के सारे हक भी उसी को निभाने के लिए कहा। इतना करके उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। अपने पापा के लिए तो राघव नहीं आया। पर जब उसे पता चला की सारी जायदाद रघुवीर जी ने मानव के नाम कर दी है। तो तुरंत भारत आ गया। 

उसने अपने पापा के दोस्त से कहा कि अंकल मानव ने पापा को अकेला पाकर बहका लिया। मैं उनका सगा बेटा हूंँ। तो उनकी जायदाद पर मेरा हक है। बेटा जायदाद के लिए तो तुम्हें अपना हक याद है। लेकिन क्या एक बेटे का अपने माता-पिता के प्रति कोई कर्तव्य नहीं होता। बेटा आज रक्त बंधन पर स्नेह का बंधन भारी पड गया। मैं भी आज भगवान से यही प्रार्थना करूँगा कि तुम्हारे जैसा बेटा भगवान किसी को ना दे। उसने देखा कि सभी पड़ोसी, रिश्तेदार उसे तिरस्कार पूर्ण दृष्टि से देख रहे थे। सही बात है। मैं तो अपने माता-पिता के स्नेह को कब का त्याग चुका था। और शर्मिंदा होकर वापस अमेरिका चला गया।

नीलम शर्मा

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