स्नेह का बंधन – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

पिछले ‘एक साल’ से बोल रहा हूं  “मां” चलो हमारे साथ•• !

‘ पापा की बरसी ‘भी खत्म हो गई•• अब तो मुझे बेटा होने का फर्ज निभाने दो••और अपनी सेवा का मौका दो•• ! पापा भी नहीं रहे•• एक गहरी सांस छोड़ते हुए•• कम से कम तुम अगर हमारे साथ रहोगी तो हमें अच्छा लगेगा ••!कहते हुए अवनीत मायूस हो गया।

बेटा ••तू तो हमेशा मुझे असमंजस में डाल देता है•• तुझे पता है कि मुझे ‘इस घर और शहर’ से कितना लगाव है•• और जब से तेरे पापा गए हैं तब से जाने क्यों मुझे इस स्थान को छोड़ने का मन नहीं करता मुझे लगता जैसे तुम्हारे पापा यहीं कहीं बैठे हों •••! फिर कुछ देर रुक के•• जाओ बेटा! “मैं फिर कभी आऊंगी इस बार मुझे रहने दो! कहते हुए निर्मला जी की आंखें भर आई । 

हर बार आप यही कह टाल जाती हैं अब कोई बहाना नहीं चलेगा••! मां ••क्या सिर्फ दीदी भैया ही आपके बेटे-बहु हैं हम कुछ नहीं••? रीना निर्मला जी को चाय देते हुए बोली।

 ओहो!  रीना और अवनीत जी इतनी जीद कर रहे हैं तो कुछ दिनों के लिए हो आइये ना मां••?घर की चिंता आप ना करें  मैं हूं ना•• सब संभाल लूंगी,वरना रीना मुझे हमेशा ताना देते रहेगी कि दीदी आप मां को यहां से जाने नहीं देना चाहती!

निर्मला जी की बड़ी बहू सरिता रीना के गाल को खींचते हुए बोली।

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 कुछ देर सोचते हुए :-

चल ठीक है चलती हूं!  लेकिन 15 दिन से ज्यादा नहीं रह पाऊंगी! मुझसे वादा करो कि 15 दिन बाद मुझे मेरे शहर छोड़ दोगे••? 

 ठीक है मां•• हमें मंजूर है! आप हमारे साथ जा रही हैं यही हम सबके लिए काफी है रीना खुश होते हुए बोली ।

 मैं अभी आपका रिजर्वेशन करता हूं !

निर्मला जी को दो बेटे और एक बेटी थी। बड़ा बेटा अंशुल की नौकरी उसके ‘होमटाउन’ में होने की वजह ,वह परिवार सहित अपने मां-बाप के साथ रहता। छोटे का ट्रांसफरेबल जॉब थी इसलिए वह भिन्न-भिन्न शहरों में घूमता••।

 “धीरेंद्र बाबू की आकस्मिक मौत” से निर्मला जी गहरे सदमे में चली गईं ! पोते-पोतियो से भरा परिवार को देख वह खुश तो हो जाया करतीं परंतु फिर धीरेंद्र बाबू को याद कर वह फूट फूट के रोने लगती।

 क्यों मुझे अकेला छोड़ चले गए तुम••? बीमार तो मैं रहती थी तुम नहीं••! मुझे हमेशा लगता कि तुमसे पहले मैं ही इस दुनिया को छोड़कर जाऊंगी पर तुम कहते कि पगली•• तू ही चली जाएगी तो मेरा क्या होगा•• इस घर का क्या होगा•• जिसे तूने तिनका तिनका जोड़कर खड़ा किया है! 

पर तुम मुझे छोड़ कर चले गए मुझे हमेशा के लिए अकेला कर दिया••! अकेले में धीरेंद्र जी की फोटो देख वह घंटों रोया करतीं ।

 निर्मला जी अपने छोटे बेटा-बहू के साथ उसके कार्य स्थल नागपुर जाने वाली थी सारी तैयारियां हो चुकी।  शाम 5 बजे की ट्रेन थी ।

“मां एक सिल्क वाली साड़ी भी डाल दिया है” !

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बड़ी बहू सरिता बोली ।

पर किस लिए••? चार-पांच कॉटन की साड़ी बहुत है कौन सा मुझे महीना भर वहां रहना है!

  देवर जी आपको कहीं ना कहीं  घूमाने जरूर ले जाएंगे तब इसे पहन लीजिएगा!

 हां मां••  अच्छा है ,आपके बहाने  हमें भी बाहर जाने का मौका मिलेगा ! रीना खुश होते हुए बोली। 

निर्मला जी चुप हो गईं 

 “जा रही हूं मैं ••आपको छोड़कर, क्या करूं ••आपने ही तो कहा था कि फर्ज के आगे कभी-कभी हमें झुकना पड़ता है! सिर्फ 15 दिन के लिए•• फिर जल्द ही वापस आ जाऊंगी! 

जाते हुए उनकी तस्वीर को हाथ जोड़ वह वहां से चली गईं ।

 बेटा-बहु, पोता-पोती सभी निर्मला जी को छोड़ने स्टेशन तक आए जब ट्रेन अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान करने वाली थी कि निर्मला जी फुट-फुट के रोने लगीं। 

मां क्यों रो रही हो••? हम भी  तुम्हारे ही बच्चे हैं !क्या हमारे साथ तुम्हारा दिल नहीं लगता••? अवनीत मां के आंसू पूछते हुए बोला।

 नहीं-नहीं बेटा ऐसी बात नहीं••! दिल लगता है तभी तो तुम लोगों के साथ जा रही हूं! पता नहीं क्यों पहले जब तेरे पापा जिंदा थे तो मैं कई बार तुम लोग के साथ आई- गई तब तो मुझे बहुत अच्छा लगता !अब मुझे घर छोड़ने का बिल्कुल भी जी नहीं करता! निर्मला जी अपनी भावना व्यक्त करते हुए बोलीं ।

 कोई बात नहीं•• आपको हम लोगों के साथ भी मन लगेगा! निर्मला जी के हाथ पे हाथ रखते हुए रीना बोली।

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 घर पहुंचते ही सभी काफी थक चुके थे।  निर्मला जी को चेंज करने के लिए कपड़े थमाते रीना चाय बनाने किचन में चली गई। इधर अवनीत मां को चेंज करवा कर उनके पांव दबाने लगा बेटे की इस आओ-भगत को देख ,उनका कलेजा गदगद हो गया और मन ही मन•• अच्छा हुआ इन लोगों के साथ चली आई वरना अवनीत को बहुत बुरा लगता!

अब अवनीत हर दिन ऑफिस से जल्दी आ जाया करता और बचा समय अपने मां के साथ गुजारता। अवनीत के ऑफिस जाने के बाद, रीना दिन भर अपनी सासू मां की सेवा में समर्पित रहती ।अगर सब्जी के लिए रीना को मार्केट जाना भी होता तो दोनों पोतें दादी को बिल्कुल भी अकेला नहीं छोड़ते।

 ” कल संडे है” चलिए•• आपको कहीं घुमा लाता हूं  अवनीत निर्मला जी से बोला।

 बेटे की इच्छा को देखते हुए निर्मला जी ना नहीं कह पाईं। परंतु रीना ने निर्मला जी के चेहरे के हाव-भाव से समझ लिया कि इन्हें घूमने में कोई दिलचस्पी नहीं। 

 “मां•• आप नहीं जाना चाहती है तो कोई बात नहीं हम फिर कभी  चलेंगे!

 नहीं नहीं चलूंगी ऐसी कोई बात नहीं !

कल होकर  सभी निकल पड़े  घूमने।  

परंतु उनके चेहरे पर वह खुशी नही थी जब धीरेंद्र बाबू के रहते हुए दिखती। 

घर आने के बाद ।

“मां “सिर्फ बड़े बेटे-बहु से खुश रहती हैं! हम कितनी भी उनके लिए करें पर •• उनका चेहरा हमेशा लटका रहता है! अब मुझे बुरा लगने लगा है कि इनको हमारे प्रति कोई स्नेह और प्यार नहीं! सारा का सारा प्यार उन्होंने उन सब को ही दे रखा है ••! 

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मुंह बिचकाते हुए रीना बोली।

 उनकी हालत तो देखो•• अभी इस समय वह किसी के बारे में नहीं सोचतीं ••!60 साल से दोनों इकट्ठे रहें अब अचानक पापा का साथ छूट जाने से वह विचलित हैं दोनों कभी भी एक दूसरे सेअलग नहीं रहे! इसलिए हमें उनके मनोभाव को समझते हुए उनके हिसाब से चलना चाहिए! अवनीत रीना को समझाते हुए बोला।

 परंतु रीना के दिमाग में तो बस इतना था कि हम सब इतना मां को मान-सम्मान देते हैं ,उन्हें  खुश रखने की कोशिश करते हैं•• परंतु वह हमेशा मुंह लटका के बैठी रहती हैं ।

बेटा 25 दिन हो गए मुझे अब घर पहुंचा दो••!

अरे•• आप तो दिन गिननें लग गईं••? क्यों हम सब ने आपको पानी में रखा है कि आप यहां से इतनी ऊब चुकी हैं•••?

 निर्मला जी के इतना बोलते हैं रीना उन पर बरस पड़ी।

 रीना बकवास बंद करो••! ऐसे बात करते है मां से•••? अवनीत रीना को डांटते हुए बोला ।

नहीं बेटा•• मुझे कोई तकलीफ नहीं बल्कि तुम सब ने तो मुझे हाथ पर बैठा रखा है परंतु मैं नहीं रहना चाहती••!

 कहते हुए निर्मला जी फुट-फुट के रोने लगीं !

निर्मला जी को इस तरह से रोता देख,अवनीत फॉरेन टिकट कटवाने का फैसला किया। परंतु “दशहरे की त्यौहार” के वजह से रिजर्वेशन नहीं मिल पा रहा था इधर निर्मला जी की व्याकुलता भी दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी।

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 “मां की  नौटंकी” से अब तो मुझे गुस्सा आने लगा है रीना अपनी जेठानी से फोन पर बात कर रही थी। 

हां उनको भी छोटे बेटे के साथ कुछ समय बिताना चाहिए था पर क्या करोगी जो उनकी मर्जी है वह उन्हें करने दो! 

 सरिता अपनी देवरानी की बातों से सहमत होते हुए बोली।

   कल हम लोगों का तत्काल में टिकट बुक हो चुका है•• कल ही निकलना होगा! अवनीत रीना को फोन पर बताया। 

मां के लिए एक साड़ी खरीद लाता हूं और सुनो•• उन्हें अभी बताना नहीं कि उनका ‘टिकट बुक’ हो चुका है मैं आकर उन्हें बताऊंगा!  ठीक है••कहते हुए रीना फोन रख देती है।

  देखो मां कैसी लगी यह साड़ी••?  पसंद है ना ?

निर्मला जी को साड़ी दिखाते हुए अवनीत बोला।

 साड़ी को एक और पटकते हुए•• नहीं चाहिए साड़ीऽऽऽ! निर्मला जी गुस्से से बोलीं ।

अभी तो मुझ पे एक मेहरबानी कर कि मुझे घर पहुंचा दे•••!

 मां का ऐसा व्यवहार देखकर, अवनीत को आश्चर्य हुआ ।परंतु कंट्रोल करते हुए बोला 

 यही तो खुशखबरी तुम्हें बताने आया था कि तत्काल में हमारा टिकट बुक हो चुका है कल  हमें निकलना पड़ेगा ! परंतु तुम ऐसा क्यों कर रही हो ? इतने गुस्से में क्यों हो••?हमसे कोई गलती हुई है तो हमें बता दो••? 

बेटा देख यह लेन-देन का अब कोई मतलब नहीं मेरे पास पहले से इतनी साड़ी है कि शायद मैं अब उन सबको पहन भी ना पाऊं फिर क्यों फिजूल का खर्च करना है? निर्मला जी संभलते हुए बोलीं।

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  अवनीत चुप था परंतु रीना के मन में निर्मला जी के लिए खटास भर गया ।

आज सुबह-सुबह निर्मला जी जल्दी-जल्दी नहा कर तैयार हो गईं उनके चेहरे पे वो खुशी थी जो यहां आने के बाद कहीं खो सी गई थी।

रीना••! मुझे अभी खाने को कुछ भी मत दे, भूख नहीं! 

 हमारा खाना गाड़ी के लिए पैक कर दे हम वही खा लेंगे!

ठीक है मां मैं आप लोगों के लिए रास्ते के लिए खाना पैक कर देती हूं ••!

  कितनी खुश हैं पता नहीं यहां क्यों इतनी नाराज सी रहती थीं•• जैसे हम लोगों ने उनके लिए कुछ किया ही ना हो! रीना मन में सोचने लगी।

 तुम सब गर्मी छुट्टी में जरूर आना! मुझे तुम लोगों का इंतजार रहेगा ! बच्चों के हाथ में पैसा देते हुए निर्मला जी बोलीं।

  “बहू अपना ख्याल रखना! कहते हुए वह गाड़ी में बैठ गईं ।

घर पहुंचते ही पति के तस्वीर को प्रणाम करते हुए•• लो जी ••मैं आ गई !अब मैं आपको छोड़, इस घर को छोड़ ,कभी नहीं जाऊंगी••!

 महीना बीता ही था कि अचानक तबीयत खराब हो जाने की वजह से, निर्मला जी इस “घर और दुनिया “को हमेशा के लिए अलविदा कह गईं । 

लेकिन•• रीना के सवाल का जवाब देती गईं कि क्यों वह वहां से जाना चाहती थीं•• और क्यों उनका लगाओ इस घर से था••!  

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धन्यवाद ।

मनीषा सिंह

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