स्नेह का बंधन – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

अखिल से मैं जब भी परिवार के बारे में बात करती हूँ वे मुझ पर यह कहकर भड़क जाते थे कि तुम मेरे परिवार को पसंद नहीं करती हो इसलिए उनके बारे में अनाप शनाप बोलकर मेरा दिल तोड़ देना चाहती हो । उनसे मुझे दूर कर देना चाहती हो जो मैं नहीं होने देना चाहता हूँ ।

मैं उन्हें कैसे समझाऊँ कि जो दिखता है वो वैसा नहीं है। वे उनका फ़ायदा उठाते हैं उन्हें मालूम है कि अखिल रिश्तों का मान रखना चाहते हैं । पाँच बहनों के बीच वे अकेले हैं उन्हें लगता है कि सबकी देखभाल करना उनकी ज़िम्मेदारी है इसलिए उनके घरों के हर फ़ंक्शन में पहुँच जाते हैं ।

मैंने कई बार सोचा कि उन्हें समझाऊँ कि तुम्हारी तनख़्वाह कम है हमारा घर ही बड़ी मुश्किल से चल पाता है क्योंकि आए दिन परिवार में कोई न कोई फ़ंक्शन होता ही रहता है । उनका ख़याल रखने के लिए हम अभाव की ज़िंदगी जी रहे हैं । जब उन लोगों को हमारी फिक्र नहीं है तो हम क्यों बार बार उनके बुलाने पर चले जाते हैं । यहीं रहकर उनके लिए कुछ उपहार भेज सकते हैं ।

 मेरी दिल की बात मेरे मन में ही रह जाती हैं और उसकी पढ़ाई का खर्चा उठाने में भी हमें तकलीफ़ होगी

उस दिन भी सुबह घर से निकलने के पहले कहने लगा था कि बड़ी बहन के पोते की शादी है और हमें जाना है क्योंकि बहन ने दो तीन बार फोन करके बता दिया है मैं शाम को टिकट बुक करा रहा हूँ तुम दोनों को भी मेरे साथ चलना पड़ेगा।

नेहा उसी समय कमरे से बाहर निकली और कहने लगी कि पापा मैं तो नहीं आऊँगी आप लोगों को जाना है तो जाइए पिछले महीने छोटी बुआ के घर उसके पहले मँझली बुआ अब बड़ी बुआ के घर आप समझ क्यों नहीं रहे हैं मेरे क्लासेज मिस हो जाते हैं । आप नहीं जानते हैं कि इस बार की परीक्षा में मुझे कम अंक आए हैं ।

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मैं अब क्लासेज मिस नहीं करना चाहती हूँ क्योंकि मेरी वार्षिक परीक्षा की तारीख़ भी आ गई है जो इस महीने की अंतिम हफ़्ते में शुरू होने वाली है ।

अखिल ने कहा ठीक है तुम घर पर रहो मैं और तुम्हारी माँ चले जाएँगे । तुम्हारी देखभाल के लिए मैं सामने के जगन्नाथ अंकल को बोल दूँगा हमारे आते तक वे तुम्हारी मदद कर देंगे।

मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की थी कि अकेली लड़की को इस तरह से छोड़कर जाना ठीक नहीं है परंतु उनकी जिद के आगे मेरी एक ना चली । उनका कहना है कि सब अपने परिजनों के साथ मिलकर आएँगे और मैं पागल के समान अकेले जाऊँगा नहीं ऐसा नहीं हो सकता है वह रह लेगी हम जाकर आते हैं ।

मैं ख़ामोश होकर उनके साथ चली गई जाते समय मेरी पड़ोसन से नेहा की देखभाल करने के लिए कह दिया था ।

हम अखिल की नौकरी के कारण मुंबई में रहते थे । वहाँ से हमें चेन्नई जाना था । हमारे वहाँ पहुँचते ही सब लोग खुश हो गए थे क्योंकि हम शादी के दो दिन पहले ही पहुँच गए थे ।

उस दिन मैं जब शादी के कामों की तैयारी में व्यस्त थी तब अखिल भागते हुए आए और कहने लगे कि सुचरिता नेहा का एक्सीडेंट हो गया है जगन्नाथ ने अभी-अभी फोन पर बताया है वह अस्पताल में है ।

मैंने कुछ नहीं कहा और जल्दी से अपने सामान पैक करने लगी थी क्योंकि वापस जो जाना था । इस बीच सास और ननंदें आ गईं और बातें सुनाने लगीं कि ऐसे जवान बच्ची को अकेले घर पर कैसे छोड़ कर आ गई हो । हम होते तो कभी ऐसा नहीं कर पाते थे ।

अखिल इन सबकी बातों को सुनने के लिए वहाँ था ही नहीं ।

हम वहाँ से निकल कर मुंबई पहुँच गए थे । जगन्नाथ जी उसे डिस्चार्ज कराकर घर ले आए थे । हम स्टेशन से सीधे घर पहुँचे नेहा घर पर ही थी । मैं उसे देखते ही गले लगाकर रोने लगी थी । इन सबसे अखिल को कोई मतलब ही नहीं था ।

हम कुछ भी कह लें या घर में कुछ भी हो जाए अखिल के रवैये में कोई सुधार नहीं आया था । नेहा का इंजनीयरिंग की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी हमने उसका रिश्ता पक्का कर दिया था । लड़का पूना में नौकरी करता है माता-पिता और एक ही बहन थी जिसकी शादी हो चुकी थी । मैं इस रिश्ते से खुश थी कि मेरी बेटी को मेरे समान इतने सारे रिश्ते के बँधन में उलझने की जरूरत नहीं है ।

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अखिल बहुत खुश थे कि आज तक वे ही सबके घर जा रहे थे लेकिन अब बहनों और रिश्तेदारों को बुलाने का समय आ गया है क्योंकि उनकी इकलौती बेटी की शादी जो हो रही है । लड़के वाले शादी मुंबई में ही करना चाहते थे क्योंकि उन लोगों के सारे रिश्तेदार आसपास ही रहते हैं ।

हाँ हमारे रिश्तेदार चेन्नई से हैं परंतु वर पक्ष के लोगों की सोच कर हमने उनकी बात मान ली थी ।

अखिल हमेशा बहनों की शादियों से लेकर उनके बच्चों की शादियों तक भी एक हफ़्ते पहले ही मुझे ले जाते थे कि उन्हें हमारी जरूरत होगी शादी का घर है बहुत से काम होंगे वे हमारे अपने हैं । मैं भी उनके घर को अपना मानकर स्टेशन जाने तक काम करती थी । ताज्जुब की बात यह है कि मेरी ननंदें

या उनके लिए हमसे काम और पैसा खर्च कराने वाली मेरी सास भी अभी तक नहीं आई हैं ।

अखिल बेचैन हो रहे थे कि कोई भी नहीं आ रहा है अंत में शादी के दो दिन पहले मेरी सास आई । अखिल ने जब बहनों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कैसे आ सकते हैं बेटा एक तो तेरा घर इतनी दूर है ऊपर से ट्रेन के टिकटों का किराया यह भी कम नहीं है । बच्चों की पढ़ाई उनके काम यह सब छोड़कर कोई कैसे आ सकता है । इसलिए उन सबकी तरफ से मैं दो दिन पहले ही आ गई हूँ ।

मैं सोच रही थी कि यही माँ हमारे लिए भी तो बेटियों से यही बात कह सकती थी कि उन्हें दूर से आना होगा पैसे बहुत लगेंगे अखिल बेटे सिर्फ़ उपहार भेज दो नहीं ऐसा कभी नहीं कहा हमेशा अखिल के पीछे पड़ी रहती थी कि लोग क्या सोचेंगे एक अकेला भाई है नहीं आएगा तो समाज में नाक कट जाएगी।

मेरी बात मेरे मन में ही रह गई लेकिन अखिल ने कह दिया कि माँ इस गाँव से वह गाँव जितना दूर है उस गाँव से यह गाँव भी उतना ही दूर है । मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि दीदी लोग ऐसा करेंगे । मेरी तो अकेली बेटी है इसकी शादी में आने के लिए भी उन्होंने मना कर दिया है मुझे आश्चर्य होता है ।

मैं ही पागल था माँ जो स्नेह के बँधन को ठीक से नहीं समझ सका हूँ । कोई बात नहीं है कहते हुए वहाँ से चला गया था । मैं सोच रही थी कि जब तक हाथ नहीं जलते हैं तब तक लोगों को समझ नहीं आती है ।

हमने शादी धूमधाम से की थी और नेहा की बिदाई करके भरे मन से बैठे हुए थे कि सासु माँ आईं और अखिल से कहने लगीं कि अखिल कल के लिए मेरा टिकट करा देना और वहाँ तुम्हारे बहनों के लिए जो उपहार ख़रीद कर रखा होगा उन्हें मुझे दे देना वे सब मुझसे पूछेंगे कि भाई के घर से क्या लाई है माँ भाई ने हमारे लिए क्या दिया है । उन्हें तुम्हारे दिए हुए तोहफ़े दे दूँगी तो खुश हो जाएँगे ।

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अखिल उठकर खड़े होकर बोले कौन से तोहफ़े किसके लिए तोहफ़े दूँ मेरी बिटिया की शादी में आने का कष्ट तो किसी ने किया नहीं है और मैं उनके लिए तोहफ़े दूँ माँ आज तक बेवक़ूफ़ बनता रहा हूँ अब आगे से नहीं बहुत हो गया है । आप अपनी पोती की शादी में शामिल हुईं हैं आप अपना तोहफ़ा लीजिए और जो नहीं आए उनके लिए मैंने कुछ नहीं ख़रीदा है । आज तक मैंने उन्हें दिया ही है उनसे कुछ लिया ही नहीं हूँ ।

एक बात और इस बेटियों के घर रहने के बदले में आप मेरे साथ रहेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा बाद में आपकी मर्जी टिकट कब करवाना है बोल दीजिए करवा देता हूँ ।

सही ही कहा है किसी ने जब तक आप पर नहीं बीतती है तब तक आप रिश्तों के बँधन को पहचान नहीं पाते हो अपनी ज़िंदगी को सँवारने के

अखिल को भी सबक मिल गया है ।

के कामेश्वरी

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