पता नहीं क्या कशिश थी उस शादीशुदा अनिकेत में की शैलजा जितना उनसे दूर जाने की कोशिश करती उतना ही खिंचाव महसूस करती, शैलजा और अनिकेत एक ही अस्पताल में काम करते हैं अनिकेत दिल के डॉक्टर है जबकि शैलजा नर्स है इस प्रणयकी शुरुआत लगभग 6 महीने पहले हुई थी,
ऑपरेशन थिएटर में अनिकेत ने कुछ सामान मंगा और दोनों का हाथ आपस में टकराया तो शैलजा की दिल की धड़कन बेकाबू हो गई और शायद ऐसा ही कुछ अनिकेत ने महसूस किया अब जब भी दोनों मौका मिलते दोनों कभी रेस्टोरेंट में कॉफी पीने चले जाते कभी शाम को घूमने निकल जाते शैलजा किसी भी स्थिति में अनिकेत को पाना चाहती थी
हालांकि शैलजा दिल से बुरी नहीं थी वह बहुत सुंदर मासूम किंतु चंचल स्वभाव की थी कोई भी शैलजा को एक बार देख ले तो उससे आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाता, शैलजा को पता था अनिकेत की पत्नी और दो प्यारे प्यारे बच्चे हैं वह नहीं चाहती थी की अनिकेत का बसा बसाया घर उसकी वजह से उजडे किंतु वह अपने मन का क्या करें जो अनिकेत के साथ जुड़ गया,
कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज है धीरे-धीरे शैलजा के मन में खलनायिका वाला रूप उत्पन्न होने लग गया वह बस यह चाहती की अनिकेत अपनी पत्नी को तलाक दे दे और उससे शादी कर ले किंतु अनिकेत अपनी पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था, शैलजा सही गलत में फर्क भूल गई
और एक दिन शैलजा हिम्मत करके अनिकेत के घर चली गई ताकि वह उसकी पत्नी से कह सके कि वह और अनिकेत एक दूसरे को चाहते हैं और तुम अनिकेत को तलाक दे दो, जैसे ही शैलजा अनिकेत के घर में गई अनिकेत के दो मासूम बच्चे उसकी और दौड़ पडे और बोले… आप शैलजा आंटी है
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ना पापा की दोस्त आप हमारे लिए चॉकलेट लाई हो, पापा बता रहे थे! शैलजा को सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ जिस बात को वह दुनिया से भी छुपाना चाह रही थी अनिकेत की तो पत्नी और बच्चों तक को पता है उसके मुंह से कुछ शब्द नहीं निकले, हां हूं हां हूं करती रही! अनिकेत की पत्नी ने भी शैलजा का बहुत अच्छे से स्वागत किया शैलजा तो सोच रही थी
की अनिकेत की पत्नी वहां जाने परउससे झगड़ा करेगी और कहेगी कि उसने उसका परिवार बर्बाद कर दिया किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और यही बात शैलजा को खाए जा रही थी घर आने पर भी शैलजा को चैन नहीं मिला वह बार-बार उसकी मासूम सी पत्नी और दोनों बच्चों का सोचने लगी उन छोटे बच्चों से तो उसको इतना स्नेह सा हो गया, कितनी प्यारी प्यारी बातें कर रहे थे
और आते समय जब अनिकेत की पत्नी श्रद्धा और उसकी छोटी बेटी ने कहा… आंटी परसों जरूर आना मेरा बर्थडे है, दिमाग से निकल ही नहीं रहा, नहीं नहीं… मैं इतना नीचे नहीं गिर सकती कि मैं किसी पत्नी से उसका सुहाग और बच्चों के सर से पिता का साया छीन लूं, उन बच्चों से एक स्नेह का बंधन हो गया जिसकी वजह से शैलजा ने अपनी घृणित मानसिकता वाले विचार को त्यागने का निर्णय कर लिया
किंतु कभी-कभी वह सोचती अगर अनिकेत उसे नहीं मिला तो वह क्या करेगी कैसे जीएगी और मैं क्यों किसी के बारे में सोचूं मुझे तो सिर्फ अपने बारे में ही सोचना है किंतु अगले ही पल उसकी पत्नी और बच्चों का चेहरा फिर सामने आ जाता, वह नहीं चाहती उसकी वजह से किसी का घर बर्बाद हो
और इस कशमकश से बचने के लिए कुछ दिनों बाद उसने अपना तबादला दूसरे शहर के अस्पताल में करवा लिया क्योंकि उसे पता था अगर वह यहां रहेगी तो अनिकेत से दूर नहीं रह सकती, दूर जाकर उसकी यादें ही तो आएंगी किंतु किसी की जिंदगी या परिवार बर्बाद करने का पाप उससे नहीं होगा, अनिकेत ने उसे लाख समझाया
कि तुम दूसरी जगह तबादला मत करो किंतु उसने अनिकेत को समझाया… अनिकेत हम बहुत गलत कर रहे हैं तुम शादीशुदा हो एक पति और पिता हो, मेरी गलती थी कि मैं अपने आप को तुम्हारे प्यार के आगे रोक नहीं पाई किंतु हम दोनों ही गलत करने जा रहे थे तुम्हारा एक सुखी संसार है तुम अपना सारा प्यार उन्हें दो इसलिए बेहतर होगा होगा मैं
यहां से चली जाऊं! शैलजा की बातें सुनकर अनिकेत को भी अपने ऊपर शर्म महसूस होने लगी और उसने शैलजा को बोला.. तुम सही कह रही हो हमारा यह कदम हमारे परिवार और समाज दोनों के लिए घातक होगा मैं शादीशुदा होते हुए भी कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था थैंक यू शैलजा तुमने मुझे सही रास्ता दिखाया अब हम जब भी कभी मिलेंगे एक अच्छे दोस्त के रूप में मिलेंगे जैसा कि मेरे परिवार वालों को पता है और फिर शैलजा अनिकेत को छोड़कर उसकी यादें अपने दिल में बसा कर दूसरे शहर में आ गई!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता. #स्नेह का बंधन
(स्नेह का बंधन)