स्नेह का बंधन – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

“माई तू मेरे माथे पर अपना हाथ रख और खा मेरी कसम कि तू अबसे खाने के वक़्त नहीं रोयेगी।” 

पटिया पर लेटी माई को उसने  सहारा देकर उठाया और प्यार से बोला-“देख तो मैंने तेरे लिए ही आटे का हलूआ बनाया है। थोड़ी जल गई है पर तुझे चबाने में तकलीफ होती है न इसीलिए  आज यही बना दिया। जब तू पूरी तरह ठीक हो जाएगी न तो मैं तुम्हारे लिए पुरी और आलूदम बनाऊंगा और हम दोनों जी भर के खाएंगे।” 

केसरी की स्नेह भरी आंखे देख माई अपने आँचल से अपनी भींगी पलकों को पोंछने लगी और कराहते हुए बोली-” बेटा तू ही बता मैं कितने दिनों तक तुम्हारे सिर पर बोझ बनी रहूंगी। तू मुझे कब तक अपने  हाथ जलाकर मेरे लिए खाना बनाता रहेगा। ” 

उसने अपने हाथ माई को प्यार से खिलाया और बगल में रखे गिले कपड़े से माई का  मूंह पोछ दिया और वापस से उन्हें लिटा दिया। 

उसने भी जल्दी जल्दी खाया फिर झोपड़ी में एक तरफ करीने से रखी मिट्टी की मूर्तियों को अपने ठेले पर रखते हुए कहा-”  माई! तू बोझ नहीं  .. तू मेरी माई है ….माई ! समझ गई ना! तू जानती है गंगा मइया ने मुझे मेरी माई लौटा दी है जिसे भगवान ने मुझसे बचपन में छीन लिया था !” 

स्नेह का बंधन – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

‘गंगा मइया’ का नाम सुनते ही माई फिर से रोने लगी। वह थोड़ा सहम गया पता नहीं गंगा मइया का नाम सुनते ही माई रोने काहे लगी । ओह ! लगता है माई को कुछ याद आ रहा है। फिर उसने पुचकारते हुए कहा-” माई घर का पता याद आया है क्या तुझे? ” 

“बता ना!” 

“नहीं आया! आया है तो बता दे मुझे! ” 

“अच्छा छोड़ माई!” 

“कोई बात नहीं पर रोना नहीं ।नहीं तो  देख लेना तेरी कसम मैं तुझे आज ही अपने ठेले पर बिठाकर तेरे घरवालों को ढूंढने चल दूँगा और जब तक तेरे घर वाले नहीं मिल जाते तुझे लेकर पूरी दुनियां में घूमता रहूंगा।” 

लेकिन माई तू जानती है  तेरा यह गरीब बेटा चार पैसे कमाने के लिए ही आया है। गांव में अपने छोटे -छोटे बच्चों को पत्नी के साथ बीमार पिता के सहारे छोड़कर आया हूँ। हमने सोचा है माई ,थोड़े पैसे कमा कर इकठ्ठी कर उन्हें भेज दूं फिर तुझे लेकर चल दूंगा और जब तक तेरा घर नहीं मिल जाता ढूंढता रहूंगा। तब तक तुझे अपने घर का पता भी याद  हो आएगा। ठीक है  ना। ” 

केसरी की बात सुनकर माई ने उसे बुलाकर अपने पास  बिठा लिया और अपनी झुर्रियों वाले हाथों से उसके माथे को सहलाते हुए बोली-” बेटा तू मेरी चिंता मत कर मैं ठीक हूँ। आज मुझ “सबरी” को तेरे जैसा बेटा “राम” बनकर अपनी  कुटिया में  शरण दी है। माई की आंखे भर आई थीं । उन्होंने कहा बेटा  तू जा अपने काम पर मैं यहां आराम से लेट जाती हूं।” 

‘केसरी अपना ठेला लेकर निकल पड़ा । प्रयागराज की धरती ने कुम्भ के मेले में उसे शरण दी थी। वह अपने ठेले पर सुबह से शाम तक देवी देवताओं की मूर्तियां बेचा करता था। घर तो उसका दूसरे शहर में था पर रोजगार की तलाश में वह कुम्भ चला आया था। यहां आकर तो उसकी किस्मत ही खुल गई थी। रोज सुबह -सुबह वह मूर्तियां लेकर निकल जाता था और वहां एक घाट से दूसरे घाट पर  घूम -घूम कर बेचता रहता। जगह बदलते रहने से उसकी सारी मूर्तियां बिक जाती थी और उसकी आमदनी बढ़ने लगी थी। 

बेटी कहे तो बीमारी बहू कहे तो बहाना – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

          दूसरे अमृत स्नान के दिन काफी भीड़ थी।वह अपने ठेले के साथ बहुत दूर निकल गया था। शाम  तक मूर्तियां लगभग बिक गईं थीं बस थोड़ी बहुत ही बची हुई थी । उसे भूख भी जोड़ों की लगी हुई थी।  वह चाहता तो भंडारे में जाकर खाना खा सकता था । वहां तो हजारों लोग खाते रहते थे। पर केसरी ने कभी कोशिश नहीं की क्योंकि उसने सुन रखा था कि “जो गरीब ,लाचार , बुढ़ा , या रोगी हो  उसी का भंडारे में खाना उचित होता है। उसने यह भी सुन रखा था कि अगर किसी को पुण्य का भागी बनना है तो उसे वहां जाकर अपनी कमाई से कुछ दान कर देना चाहिए। ” 

उसने अपने भूख को समझा  बुझाकर  शांत किया और वापसी का सोच धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा तभी उसकी नजर कंबल में लिपटी माई पर गई जो अधमरी सी पड़ी थीं। वह तो संयोग था कि कंबल से झाँकती उनकी बालों को देख केसरी ठिठक गया। उसने देखा बेचारी नीचे गिले बालू पर औंधे मूंह के बल बेहोश गिरी थीं। 

पहले तो केसरी ने नजरअंदाज कर आगे बढ़ना चाहा पर उसके भीतर की इंसानियत ने उसके पैरों को आगे बढ़ने से रोक दिया।वह वहीँ ठिठक गया।  “गंगा- मइया” ने अपने घाट पर उसको शरण देने के साथ-साथ हृदय में ममता भी कूट- कूट कर भर दिया था। 

उसने ठेले को वही खड़ा किया और कंबल में लिपटी    माई  को हिला कर देखा। जब कोई हलचल नहीं हुई तो वह घबड़ा गया।

उसने वहां से आते जाते लोगों से अनेकों बार गुहार लगाई पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सब के सब कुम्भ स्नान कर पुण्य कमाने की होड़ में दौड़े चले जा रहे थे। शायद असली पुण्य उनके नसीब में था ही नहीं। जिसके दिल में किसी के लिए   दया धर्म नहीं वह क्या ही और कौन सी पुण्य का भागी बनेगा भला किसी का प्राण बचाने से बड़ा कोई और पुण्य हो सकता था ! 

बेबस केसरी ने अपने नाम को सार्थक करते हुए  ‘जय बजरंगबलि’ का नारा लगाते हुए उनको उठाकर अपने ठेले पर लाद लिया और अपने झुग्गी की ओर चल पड़ा। भीड़ को चीरते हुए उसने माई को अपनी कुटिया में ले आया। माई का शरीर बर्फ सा निष्प्राण बना हुआ था। 

अपमान – चाँदनी झा : Moral Stories in Hindi

केसरी ने बचपन में अपनी माँ को देखा था कि जब कभी उसे ठण्डी लगती थी तो वह उसे गरम तेल से मालिश करती थी। उसने जैसे तैसे पटिया पर माई को लिटाया स्टोव जलाकर सरसों का तेल गरम किया और पूरी रात माई के हाथ पैर में खूब मालिश की जब तक कि उनको होश नहीं आ गया। 

आँख खोलते ही माई ने पानी माँगा। केसरी ने गरम पानी में थोड़ी चीनी और नमक मिला कर पिलाया। अब वह निश्चिंत हो गया था कि माई की जान बच गई है। उसकी सेवा ने माई को जीवन दिया और मौत को धकिया कर झोपड़ी से बाहर कर दिया था। थका हुआ केसरी माई का हाथ पकड़ वही सो गया। 

  अब तो केसरी की दिनचर्या बन गई थी वह दिन भर मेहनत करके शाम को माई के लिए कुछ न कुछ खिलाने के लिए लेकर जाता। फिर स्टोव जलाकर पहले माई के लिए पानी गरम करता उनके ज़ख्म को सेंकता ।फिर  दवा जबरदस्ती उन्हें पिलाता। रोटी बनाकर उसे पानी में भींगाकर नींबु के आचार के साथ माई को खिलाते हुए उन्हें  कुम्भ में दिनभर घटी घटनाओं की आँखों देखी सुनाता। केसरी का सेवा भाव और स्नेह देख ‘माई’ भावुक होकर रोने लगती । बिना जन्म लिये ही केसरी ने माई को अपने प्रेम के बंधन में बाँध लिया था। 

लगभग पन्द्रह दिन बीत चुके थे। अब माई स्वस्थ्य लगने लगी थीं। गाल और पीठ पर लगी चोट काली से सफेद हो चली थी। केसरी की सेवा रंग लाने लगी थी। वह बहुत खुश था कि अब उनकी यादाश्त वापस लौट आएगी। बेचारी अच्छे घर -परिवार की लगती हैं ।उनके घर वाले कितने परेशानी में होंगे। उसने धीरे -धीरे माई के पैर में मालिश करते हुए कहा-” माई क्या अब तू चल सकती है? ” 

माई केसरी की बात सुनकर सहम गई। उन्हें डर था कि कहीं उसे यह पता न चल जाए कि उनकी यादाश्त ठीक है। उन्हें तो सब याद है।  अपने पति की मृत्यु के बाद वह बेटे के साथ शहर में रहने लगी थी। उस दिन बेचारी बड़ी याचना लेकर बेटे के पास गईं थीं। उनकी भी इच्छा थी कि उनका बेटा उन्हें भी कुम्भ- स्नान करवाने ले चले। आगबबूला  होकर बेटे ने ऐसी झिड़की लगाई की वह मन मसोस कर रह गईं।

अपमान का बदला – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

उसने चिढ़ते हुए कहा कि इस तरह के फालतू काम के लिए उसके पास समय नहीं है। बेटे की कर्कश आवाज सुन  मारे क्षोभ के वह अपने कमरे में चली गईं और स्वर्गवासी पति  के तस्वीर के सामने रोने लगीं। रात भर उन्हें नींद नहीं आई। फिर न जाने कौन सी शक्ति ने उनका साथ दिया। सुबह बहू बेटे के उठने के पहले ही घर से स्टेशन के लिए निकल गईं । वह तो गुस्से में आकर स्टेशन पर बैठी थीं ।पता नहीं कैसे लोगों की भीड़ ने उन्हें धकियाते हुए प्रयाग राज जाने वालीं ट्रेन पर चढ़ा दिया। 

प्रयाग राज आने के बाद उन्हें याद है कि वो भीड़ के साथ-साथ बहुत दूर तक आईं थीं ।चलते -चलते भूख प्यास और ठंढ से बेहाल वो एक अखाड़े के पास बैठ गई थीं। किसी ने उनके ऊपर एक कंबल फेका था उसके बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं  ….। 

होश आया तो वह एक कुटिया में पड़ी थीं और  वह जिससे उनका कोई नाता नहीं था उनके हाथ पैर और तलवे में सरसों का तेल मालिश कर रहा था।  तन पर अनेकों ज़ख्म थे। वह सोच रही थी कि केसरी के रूप में भगवान खुद से चलकर आये थे उन्हें बचाने के लिए।  उनकी आंखे डबडबा गईं और बोली ” बेटा तू चिंता मत कर मैं चली जाऊँगी।” 

केसरी ने अपनी उँगली माई के मूंह पर रख दिया और  कहा-” माई मैं तुझे त्रिवेणी में स्नान करने ले जाना चाहता था और तू ने उल्टा समझ लिया । ” 

माई ने केसरी के हाथों को पकड़ लिया और बोली -” बेटा …पर   …मेरे नसीब में  गंगा मइया का दर्शन नहीं लिखा है।” 

*अहम* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

-“क्या कह रही है तू माई …  तेरा केसरी तुझे ले जाएगा गंगा मइया से मिलवाने वह भी अमृत स्नान के रोज बस तू दवा दारू अच्छे से खाया कर।” 

अमृत स्नान के दिन सुबह सवेरे केसरी ने माई को बड़े मनुहार से अपने साथ ले जाने के लिए तैयार किया। माई को डर लग रहा था कि ठीक से उठ नहीं पाती हैं चलकर घाट तक कैसे जायेंगी।  अभी वह विचारों में उलझी थीं तभी केसरी ने उन्हें सहारा देकर अपनी झोपड़ी से बाहर ले लाया। माई बाहर फूलों से सजी केसरी के ठेले को देखती रह गईं। 

केसरी ने माई को उसपर बिठाते हुए कहा-” माई तेरा गरीब बेटा तुझे इसी पर बिठाकर ले चलेगा त्रिवेणी घाट पर कुम्भ स्नान करवाने।” 

माई की आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी उन्होंने केसरी को अपने कलेजे से लगा लिया और बोली-” बेटा भले ही मैंने तुझे जन्म नहीं दिया पर तू तो मेरा श्रवण पुत्र है रे ….! 

संगम तट पर के इस दृश्य में स्नेह के बंधन ने यह साबित कर दिया था कि कई रिश्ते खून के मोहताज नहीं होते !!

स्वरचित एवं मौलिक 

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 

मुजफ्फरपुर बिहार

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!