स्नेह का बंधन – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

तेंदुए के हमले से वो बुरी तरह जख्मी हो गया था जैसे कैसे उसे हॉस्पिटल ले जाया गया। डॉक्टर ने उसकी मरहम पट्टी दवाई इत्यादि करके घर भेज दिया  मगर अभी वो पूरी तरह ठीक नही हुआ था अंदर ही अंदर शायद दर्द में था जिसे वो बोलकर बता नही पा रहा था मगर उसका दर्द उसकी आँखों से महसूस किया जा सकता था।

 हमारा घर जंगल के बीच बसे एक गांव में था चारों तरफ जंगल होने के कारण अक्सर जंगली जानवर घरों तक पहंच जाते फसल का नुकसान तो होता ही कभी कभी इंसान भी उनका शिकार होकर घायल हो जाते थे। हमने जंगली जानवरों से बचाब के लिए घर के आंगन में चारों तरफ बांस की चारदीवारी लगा रखी थी।

मैं हमेशा कहता कि एक कुत्ता पाल लेते हैं मगर घर वाले कभी इसके लिए तैयार नही थे क्योंकि उन्हें लगता था कि कुत्ते मौत के समय पागल हो जाते हैं जो लोगो को काटते हैं। या उनकी मौत बहुत ही दर्दनाक होती है अक्सर उन्हें कीड़े पड़ जाते हैं और तड़प तड़प के मरते हैं। इसलिए वो कभी भी कुत्ता पालने को तैयार नही होते थे।

एक बार की बात है गांव में एक लाबारिस कुत्तिया थी जो आठ बच्चों को जन्म दी मगर महीने भर के बाद ही किसी तेंदुए का शिकार बन गई अब उसके बच्चे इधर उधर बिलखने लगे ज्यादातर तो धीरे धीरे मर ही गए मगर एक कुत्ता जो गहरे काले रंग का था वो हमारे घर आने लगा हम भी बचा हुआ खाना उसे डाल देते।

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वो हर रोज आता खाना खाता और चला जाता। पन्द्रह बीस दिन के बाद वो आया मगर बापिस नही गया वो हमारे आंगन में एक कोने पर बैठा रहा जैसे ही मां ने गाय जंगल मे चराने के लिए छोड़ी वो भी मां के पीछे पीछे चल पड़ा। दोपहर तीन बजे तक वो मां के साथ ही रहा यहाँ यहां गाय बहां बहां वो। 

शाम को घर आकर मां ने सबको बताया कि आज पूरा दिन ये गाय चराता रहा आज माँ ने उसे एक रोटी ज्यादा डाल दी। अब वो रोज मां के साथ जाता और गाय चराकर आता। फिर शाम को जब पापा घास लेने जाते तो उनके पीछे पीछे जाने लगा। बाकी समय घर के आंगन के कोने में बैठा रहता

कोई भी अनजान आदमी आता तो भोंकने लगता अब तो गांव का कोई भी आदमी बिना आवाज लगाए घर में नही आता बाहर खड़ा होकर किसी का इंतजार करता तो ही अंदर आने की इजाजत मिलती।

अब हमने इस डर से की वो किसी को काट न ले इसलिए उसे चैन से बांधना शुरू कर दिया। मगर जब भी गाय चराने के लिए मां जाने लगती या घास लेने पापा जाते तो वो अपनी टांगो से जाने का इशारा करके चूं चूँ करके भोंकने लगता।

अब उसका नामकरण भी हो गया था उसका नाम जिम्मी रखा था वो अपने नाम से सुनने भी लगा था घर मे जब भी कोई जिम्मी करके आवाज लगता तो वो भागकर उसके पास आ जाता।

जिम्मी के आने के बाद कितनी बार रात को हमारी गाय तेंदुए का शिकार होने से बची थीं। जब कभी भी तेंदुआ आता तो जिम्मी जोर जोर से भोंकना शुरू कर देता और हम बाहर निकलकर टॉर्च जलाकर आसपास देखते तो कितनी बार तेंदुए को सामने खेत मे खड़े हुए देखा फिर शोर मचाने के बाद वो भाग जाता।

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अब जिम्मी घर के सदस्य की तरह हो गया था हर किसी का लाडला बन गया उसके आने के बाद घर और पशुओं की सुरक्षा एकदम मजबूत हो गई थी हम बेफिक्र होकर रात को घर से बाहर निकलते या कहीं जाना होता तो घर की रखवाली जिम्मी के हवाले होती। ऐसे ही कई महीने गुजर गए एक दिन शाम के समय जिम्मी पापा के साथ घास लेने गया।

पापा घास काट रहे थे कि अचानक झाड़ियों से गुर्राते हुए तेंदुए ने पापा पर हमला करने की कोशिश की तो जिम्मी ने छलांग लगाकर तेंदुए पर हमला बोल दिया दोनों में काफी देर लड़ाई हुई तेंदुआ जख्मी होकर भाग निकला मगर जिम्मी भी घायल हो गया था। वो नीचे बैठ गया पापा ने उसे उठाने की कोशिश की मगर वो उठ नही पा रहा था। 

पापा भागकर सामने कच्ची सड़क तक आए यहाँ कोई न कोई मोटरसाइकिल वाला आता जाता था।पापा ने एक मोटरसाइकिल वाले को रुकवाकर घर मे फ़ोन करके बताया तो मैं अपनी मोटरसाइकिल लेकर बहां पहंचा। दोनों जिम्मी को उठाकर सड़क तक लाए और पापा उसे पकड़कर पीछे बैठ गए।

हम जल्दी जल्दी जिला पशु हस्पताल तक पहुंचे और डॉक्टर को दिखाया डॉक्टर ने उसकी मरहम पट्टी दवाई बगैरह करके घर भेज दिया। जिम्मी के गले मे दांत लगने की बजह से उसका गला सूज गया था वो ढंग से खाना नही खा पा रहा था। सभी बारी बारी से उसे खिलाने की कोशिश करते मगर वो सूंघकर मुह मोड़ लेता।

तीसरे दिन उसने थोड़ा दूध पिया तो हमे लगा कि शायद अब वो ठीक हो रहा है मगर वो ठीक नही था उसका दर्द उसकी आँखों मे दिखता था हमने तीन चार बार उसे हॉस्पिटल में दिखाया डॉक्टर हमेशा की तरह मरहम पट्टी बगैरह करके भेज देता।

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आज दोपहर को माँ उसके पास बैठकर उसके सिर पे हाथ फेर रही थी तो जिम्मी ने धीरे से अपना सिर मां की गोद मे रख दिया। और कब माँ के हाथ फेरते फेरते उसने प्राण त्याग दिए पता ही नही चला।

हमने काफी कोशिश की उसे हिलाने की उठाने की मगर वो नही उठा। आज हर किसी की आंख भर सी आई थी ऐसा लग रहा था जैसे घर का कोई सदस्य बिछुड़ गया हो। हमने उसे कपड़े में लपेटकर अच्छे से दफना दिया था। शाम को किसी ने भी खाना नही खाया। रह रहकर हर कोई जिम्मी के खूंटे की तरफ देखता और उसका मन भर आता। 

सबको आदत सी हो गई थी अपने हिस्से में से कुछ खाना जिम्मी को डालने की अब भी अनायास ही हाथ उठ जाता है खाना डालने के लिए। मगर जब याद आता है कि जिम्मी तो इस दुनिया मे है ही नही तो अपनी भी भूख जैसे मर सी जाती है रोटी खाने को बिल्कुल मन ही नही करता। इस तरह कब एक अनजान से स्नेह का बंधन सा बन गया कब वो हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया कुछ पता ही नही चला मगर जब वो गया तो सबको रुला गया।

                 अमित रत्ता

            अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

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