सीता – कल्पना मिश्रा

“सीता! जल्दी से मेरे लिए चाय बना दे,फिर उसके बाद साहब के लिए नाश्ता तैयार कर देना।”

“सीता आँटी! मेरे लिए कॉर्नफ़्लेक्स”..बिट्टू कमरे से ही चिल्लाया।”

“सीता बेटा! मेरे लिए तो कम तेल लगाकर दो पराठें ही बना दे और हां,मुलायम बनाना,वरना फिर दाँतों से नही कटते”…दादी माँ ने भी अपनी फरमाइश सुना दी।

“जी भाभी!, जी भइया!, जी दादी..कहते हुए सीता सबकी फरमाइश पूरी करने लगी। गजब की फुर्ती थी उसमें और उतनी ही हंसमुख। तीन महीने पहले ही तो काम पर लगी थी। इसके अलावा वह दो अन्य घरों में भी काम करके आती; पर मज़ाल है जो कभी उसके चेहरे पर शिकन तक आई हो।

“सीता,बहुत अच्छे और मुलायम पराठें बनाये तूने। पेट के साथ-साथ मेरा मन भी भर गया। भगवान करे तेरा बेटा खूब बड़ा आदमी बने” नाश्ता करके जब दादी ने कहा तो उसके चेहरे पर अजीब से भाव आ गए।

“ना दादी ना! देना है तो ये आशीर्वाद दो कि मेरा बेटा खूब पढ़ाई करे और एक अच्छा इंसान बने,औरतों की इज़्ज़त करे, उस पर भरोसा भी करना सीखे,,, अपने बाप जैसा नही”  फिर वह धीमे से बुदबुदाई।

“क्या बुदबुदा रही है रे! दादी बोलीं…”किसके जैसा नही?”

“मेरे आदमी के जैसा दादी! शादी से पहले लड़कियों के कितने अरमान रहते हैं? ऐसे ही मेरे भी थे। शादी हुई। चार दिन बहुत प्यार से बीते,वह मेरा बहुत ख्याल रखता और फिर पांचवें दिन ही अगले महीने आने का वादा करके वह नौकरी पर वापस चला गया। उसी महीने मैं पेट से हो गई जिसका पता मुझे बाद में चला। फिर उसे ख़बर दी तो इतनी खुशी की ख़बर सुनकर भी वो कुछ ना बोला और फिर वह अगले महीने तो नही आया, हां सातवें महीने आया तो चुप-चुप रहता, ज़्यादातर समय गायब रहता। देर रात लौटकर आता भी तो शराब के नशे में धुत होकर। फिर हर बात पर खीजकर गाली देता, खाना फेंक देता,हाथ उठा देता फिर दूसरे बिस्तर पर पसरकर खर्राटे भरने लगता।




 मैं समझती कि नौकरी से सम्बंधित कोई तनाव होगा इसीलिए दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलने चले जाता होगा,,, शायद इसीलिए,,,,” कहते हुए उसका स्वर भर्रा गया।

“पर एक दिन मैंने ही जबरन उसका हाथ पकड़ा और अपने पेट में लगाकर बोली,,,”इतनी चिंता क्यों करते हो जी,इसे देखो, आपका बच्चा कैसे हाथ-पाँव मार रहा है, महसूस करो” इतना सुनते ही उसने एकदम से मेरा हाथ झटक दिया, मानो उसे करंट छू गया हो। फिर तत्क्षण ही बोला ” क्या देखूं? पहले ये तो बता कि ये बच्चा मेरा ही है,या?”

छि,, छि,,,, इतना अविश्वास, इतना बड़ा लांछन? मैं सन्न रह गई। फिर उसका शराब पीना, मुझसे गाली देकर मारपीट करना,खाना फेंकना,बात-बात पर गुस्सा होना और ज़्यादातर समय घर से गायब रहना,,,ये सब मेरी आंखों के सामने चलायमान हो गये। शायद इसीलिए मेरा और होने वाले बच्चे का तिरस्कार करता रहा और मैं नासमझ क्या-क्या समझती रही,,,,,उसी क्षण मेरे अंदर की औरत मर गई। शर्मिंदगी और क्षोभ मेरे आंसुओं के रूप में बह निकला। मैं एक मिनट के लिए भी उस कमरे में नही ठहर पाई,,,, कैसे ठहर सकती थी? उस आदमी के साथ जिसने मेरे चरित्र पर तो उंगली उठाई ही, मेरे बच्चे का भी तिरस्कार किया”… कहते हुए वह शून्य में ताकने लगी।

“फिर,,,बाद में उसने माफ़ी माँगी? दादी ने पूछा।

“माफ़ी? अगर शर्म होती तो वह ऐसी बात ही क्यों कहता? ऐसे लोग अपनी गंदी मानसिकता नही बदल नही सकते दादी। पर मैं राम की सीता नही;आज की सीता हूँ,,,, मैंने उसी पल उसका परित्याग कर दिया।”

#तिरस्कार

कल्पना मिश्रा

कानपुर

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