एक छोटे से जिले में डीएम बनकर आये थे राघवेंद्र जी, अभी पंद्रह दिन ही हुए थे। अचानक एक दिन एक साधारण सा आदमी रोते रोते आफिस में घुस गया, पीछे से दरबान दौड़ता आया, “सर, बहुत रोका, पर ये सुन ही नही रहा।”
“साहब, देखिए, क्या ज़माना आ गया, मेरी बेटी दसवीं में पढ़ती है, स्कूल जाते समय एक मनचले लड़के ने चेहरे पर तेजाब डाल दिया। बुरी तरह झुलस गया चेहरा, अभी अस्पताल छोड़कर आ रहा हूँ।”
उसकी बातें सुनकर राघवेंद्र की रूह कांप गयी, उसके साथ ही अस्पताल पहुँचा और पुलिस को उस लड़के को ढूंढने का जिम्मा दिया।
घर पहुँचने में रात हो गयी, वैसे भी घर मे कोई इंतज़ार करने वाला नही था। खा पीकर बिस्तर पर आराम ही करना चाहा, तभी मन पंछी लव बर्ड बनकर सुनहरे आकाश में उड़ने लगा। पच्चीस वर्ष पहले पड़ोस में दीपांजलि रहती थी, पापा के दोस्त की बेटी थी, बचपन से घरों में अपनापन था। तीखे नैन नक्श सबको लुभाते थे। एक दिन पापा ने कहा, “बेटा, जरा, दीपा को ट्रिग्नोमेट्री समझा दो, ग्यारहवीं की परीक्षा है।”
और रोज दीपा को मैंने पढ़ाना शुरू किया, पता नही कब साइन थीटा और कॉश थीटा पढ़ाते हुए मैं नैनो में झांकते हुए प्रेम की नगरी में पहुँचने लगा। हमने एक दूसरे से शब्दों में कुछ नही कहा पर नैना बतियाते रहे। वो मस्ती भरी उम्र थी, हम दीन दुनिया से बेखबर कहीं और ही विचरते थे। फर्स्ट डिवीज़न से दीपा पास हुई और कॉलेज में एडमिशन हो गया। मैं कोचिंग करके आई ए एस की तैयारी कर रहा था। फिर हम कई बार बाहर टहलते हुए एक दूसरे से रूबरू हुए, दिल की नगरी का हाल रूमानी हो चुका था, मैंने मंदिर में एक दिन उसका हाथ पकड़ कर कहा, हे ईश्वर, मेरी साधना पूरी करो फिर मेरी दुल्हन दीपांजलि ही बनेगी।
तभी एक दिन गजब हो गया, दीपा के पापा रोते हुए आये और बोले, “बेटा, मेरे साथ अस्पताल चलो।”
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“और वहां जाकर जो देखा, तो लगा किसी ने मुझसे मेरी आत्मा ही छीन ली हो। मेरी आवाज खामोश हो चुकी थी।”
वहां दीपा की एक सहेली ने रोकर बताया, “हमदोनो रिकशे से कॉलेज जा रहे थे, कोई लड़का कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा था, मैंने ध्यान नही दिया तो आज वो मेरे ऊपर तेज़ाब डालना चाहता था, गलती से इसके चेहरे पर डालकर भाग गया।”
एक सेकंड की गतिविधियों ने किसी का पूरा जीवन बर्बाद कर दिया।
फिर कई बार दीपा से बात करनी चाही पर बिन व्याही लड़की ने जन्मभर के लिए घूंघट का सहारा ले लिया, क्योंकि भयानक चेहरा वो किसी को दिखाना नही चाहती थी।
कुछ दिनों बाद ही पापा ने मुझे इलाहाबाद भेज दिया, मेरी मेहनत ने मुझे जीवन के हर इम्तहान में उत्तीर्ण किया। शादी के लिए मेरे ऊपर चारो ओर से दबाव पड़ा पर साफ तौर पर मैंने इंनकार किया।
मेरी दिल की रानी का चेहरा जला था, दिल तो सही सलामत था, पर मैं समाज और परिवार से डर गया, शायद मेरी अक्ल चरने गयी थी।
सुबह का सूरज अपनी रोशनी बिखरने लगा, तो राघवेन्द्र को महसूस हुआ, सबेरा हो चुका है और उसके विचार धरती पर पहुँच चुके थे।
आज वो अपने आप से वादा कर चुका था, ऐसे सिरफिरे लोगो के खिलाफ कुछ करना ही पड़ेगा, इसी से मेरी गलती का पश्चाताप मिटेगा।
स्वरचित
भगवती सक्सेना