Moral Stories in Hindi : शिवानी, अतुल, सभी बाहर आओ… देखो मैं और भैया तुम सभी के लिए क्या लाए हैं..? प्रज्ञा जी ने कहा…
अतुल: क्या है मां..?
शिवानी: हां मां क्या लाई हो..?
प्रज्ञा जी: तुम्हारे भैया तुम लोगों के लिए दिवाली का तोहफा लाया है… आज हम उसी के खरीदारी करने गए थे…
शिवानी: पर मां, आपने तो जाते वक्त कुछ नहीं बताया….
प्रज्ञा जी: वह इसलिए क्योंकि तेरे भैया तुम लोगों को सरप्राइज देना चाहते थे..
अतुल: अच्छा क्या लाए हैं वह बताइए, यह सब छोड़िए और हमारे गिफ्ट दिखाइए…
प्रज्ञा जी: यह ले अतुल यह तेरा, शिवानी यह तेरा और यह मेरा अतुल: वाह स्मार्ट वॉच,
शिवानी: न्यू फोन..
प्रज्ञा जी: हां और यह गोल्ड के झुमके मेरे
यह सब दूर बैठे अखबार पर रहे मनोज जी भी देख रहे थे.. मनोज जी रवि, अतुल और शिवानी के पिता थे… वह अखबार पढ़ना छोड़कर बोल पड़ते हैं.. और सुमन का तोहफा..?
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प्रज्ञा जी: आप है अपना अखबार पढ़िए… अरे उसे भला किस चीज की कमी है..? सब कुछ तो पहले से दे रखा है हमने… कभी जिंदगी में भी नहीं देखा वह सारी चीज दी है हमने.. फिर उसे गिफ्ट की क्या जरूरत..?
मनोज जी: यह कैसी बातें कर रही हो प्रज्ञा..? दिवाली पर हम लक्ष्मी जी को ही पूजते हैं और आज तुम लोग गृह लक्ष्मी का ही तिरस्कार कर रहे हो… रवि, दिवाली सबके लिए होती है… अपनी मां भाई बहन सब का ख्याल रहा तुझे, पर अपनी पत्नी को ही भूल गए..? याद रखना सभी रिश्ते एक स्वार्थ तक तेरे साथ रहेंगे, पर जीवनसाथी हमेशा तेरा साथ देगी..
प्रज्ञा जी: चुप रहिए.. आप बड़े गृहलक्ष्मी की तरफदारी करने.. मैंने आप जैसा पिता कभी नहीं देखा, जो अपने बच्चों से ज्यादा बहू की तरफदारी करते हो..
मनोज जी और कुछ नहीं कहते, इधर सुमन को भी इस बात का बुरा तो लगता है… पर वह इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देती… क्योंकि वह गरीब घर से थी… उसे हमेशा इस बात का ताना दिया जाता था… इसलिए उसे इन सब की आदत हो गई थी… यह तो मनोज जी थे जिनकी वजह से यह शादी हो पाई थी… इसलिए सिर्फ मनोज जी ही सुमन का साथ देते थे… पर कभी-कभी प्रज्ञा जी इतना क्लेश मचाती थी कि मनोज जी को भी छुपी साथ लेनी पड़ती थी
खैर दिवाली बीत गई और एक दिन रवि के व्यापार में घाटे की खबर आई… रवि ने घर पर सभी को यह बात बताई और कहा अबसे हमारे खर्चों में कटौती करनी पड़ेगी… मां, इतने लोग है घर पर सब मिलकर काम बांट लेंगे… हम मेड को हटा देते हैं और अतुल खुद कर चला कर कॉलेज जाने के बजाय कर पूल कर लेगा, और तुम शिवानी अपने हर वक्त की शॉपिंग बंद करोगी… यह सब वह खर्चे हैं जिसके बिना हमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा..
शिवानी: वाह भैया, हम सबके लिए इतना रोक-टोक और भाभी के लिए..? उनसे भी तो कहो कि वह भी फालतू के खर्च न करें… सब्जियां लाने बाजार ऑटो की जगह पैदल जाया करें
अतुल: हां भैया बिजनेस में लॉस हुआ तो इसमें आपकी गलती है, उसकी सजा हम क्यों भुगते..?
रवि: क्या यह मेरी गलती है..? फिर तुम लोग ही संभालो इस बिजनेस को.. मत भूलो इस बिजनेस को मैंने ही यहां तक पहुंचाया है, तुम्हें कुछ खबर भी है कितनी मेहनत करता हूं मैं, तब जाकर तुम लोग इतनी ठांट से रह पाते हो.. मां अब आप ही समझाओ इन्हें
प्रज्ञा जी: मैं क्या समझाऊं बेटा..? हम सब तुम्हारे भरोसे ही तो चैन से बैठे रहते हैं… तुम ऐसी लापरवाही करोगे तो कैसे चलेगा..? अब हमें इन सब की आदत हो गई है… इसके बिना हम कैसे रह पाएंगे..?
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रवि हैरान होकर कहता है… मां, आप भी..?
इतने में सुमन आकर कहती है… सुनिए जी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं घर का सारा काम कर लूंगी.. आप मेड को हटा दीजिए और मेरे जो गहने हैं उन्हें व्यापार के कामों में लगा दीजिए.. वैसे भी मुझे इन सब की आदत नहीं है..
प्रज्ञा जी: हां वह तो पता ही है बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद…?
मनोज जी: देखा रवि..? शायद अब तुझे गृह लक्ष्मी का रूप दिख गया होगा और मैंने इसे ही तेरे लिए क्यों चुना यह भी पता चल गया होगा… अब तो तुझे मेरी बात पर यकीन आ गया ना..?
रवि: हां पापा, आप सही थे…
प्रज्ञा जी: अरे क्या सही थे..? तुम लोग यह क्या बातें कर रहे हो..?
मनोज जी: रवि को इस घर की लक्ष्मी का रूप दिखाना था, इसलिए व्यापार में घाटा होने का नाटक करने को कहा था मैंने.. क्योंकि मुझे पता था खर्चों में कटौती की बात सुनकर तुम लोगों का असली चेहरा बाहर आ जाएगा और आया भी
अतुल: मतलब भैया को कोई नुकसान नहीं हुआ..
रवि: हुआ ना… पर बिजनेस में नहीं, रिश्तो में… जिसे अपना समझा वह स्वार्थी निकले और जिसे कभी कोई महत्व नहीं दिया वह रिश्ता निस्वार्थ निकला… पापा, आप सच ही कहते हैं जिस घर में गृह लक्ष्मी का आदर नहीं होता, उस घर में लक्ष्मी भी ज्यादा दिन नहीं टिकती… हां भले ही मुझे व्यापार में आज कोई नुकसान नहीं हुआ, पर यह कभी आगे नहीं होगा इसकी गारंटी भी तो नहीं है ना..
इसलिए अपने भविष्य का सोचकर अबसे मैं यह कटौतियां करूंगा… जिसको इससे आपत्ति है, वह अपना खर्च खुद उठा सकता है… क्योंकि मुझे मेरे बुरे दिन के लिए भी तो बचत करनी है… और सुमन, तुम मुझे माफ कर दो… कभी तुम्हारी इच्छाओं को न जानने की कोशिश की और ना ही उन्हें पूरा करने की कोई मनसा ही मुझ में थी.. पर अब..?
इससे पहले रवि अपनी बात खत्म कर पाता, सुमन कहती है.. अब मैंने भी अपनी इच्छाओं को पूरा करने का जिम्मा खुद ही ले लिया है… मेरी सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी लग गई है, अब दिवाली पर मैं खुद अपने लिए तोहफा लाऊंगी..
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यह कहते हुए सुमन का सर ऊंचा था… आज एक गृहलक्ष्मी ने अपने अपमान का घूंट नहीं पिया, बल्कि आत्मसम्मान की डोर पड़कर उड़ान भरने की तैयारी कर ली..
दोस्तों, हमारी बहू बेटियां हमारी गृहलक्ष्मी है.. यह कहते तो सभी है, पर जब बारी इसे निभाने की आती है, हम बहू बेटी में फर्क करने लग जाते हैं… आज समय की मांग कह ले या बदलते जमाने की सोच, लड़कों से ज्यादा लड़कियां आत्मनिर्भर होनी चाहिए… तभी हमारी गृहलक्ष्मियां खुशियों के उड़ान भर पाएगी… आपका क्या कहना है इस बारे में और आप कितने सहमत है मेरी बात से..? यह कमेंट करके जरूर बताएं
रोनिता कुंडु
धन्यवाद
#गृहलक्ष्मी
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