‘सिर्फ़ मेरा’ क्यों?-   विभा गुप्ता : Moral stories in hindi

 ” देखो नंदा…तुम अपने भाई को एक रुपया भी नहीं दोगी।” शैलेश ने कड़े शब्दों में पत्नी से कहा तो वह बोली,” मैं आपसे तो माँग नहीं रही….अपनी सैलेरी से ही तो दे रही हूँ..।”

   ” तुम्हारी सैलेरी क्या होती है…जब तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है तो तुम्हारी सैलेरी भी तो मेरी हुई ना….।” सुनकर नंदा चकित रह गई।

         पाँच साल पहले नंदा का विवाह शैलेश के साथ हुआ था जो एक सौफ़्टवेयर इंजीनियर था।शैलेश एक कृषक परिवार से संबंध रखता था। उसके माता- पिता गाँव में ही रहते थें, कभी-कभी बेटे-बहू से मिलने आ जाया करते थें।नंदा भी एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी।

      कुछ महीनों बाद जब नंदा गर्भवती हुई..डाॅक्टर ने उसे आराम करने को कहा तब उसने नौकरी छोड़ दी।कुछ दिनों के बाद शैलेश के पिता का एक असाध्य बीमारी के कारण मृत्यु हो गई, उसकी माँ अकेली हो गईं…तब शैलेश ने खेती की ज़िम्मेदारी एक विश्वसनीय आदमी के हाथ में सौंपकर माँ को अपने पास ले आया।नंदा को भी अच्छा लगा कि उसे एक साथ मिल गया है।

      कुछ समय के बाद नंदा एक बेटे की माँ बनी।उसकी सास ही पोते की मालिश करती और नहलाती-धुलाती थी।जब कभी वह बाज़ार जाती और देर हो जाती तो उसकी सास अपने पोते को संभालती और सब्ज़ी वगैरह भी काटकर रख देती ताकि नंदा को कोई परेशानी न हो।नंदा अक्सर ही शैलेश से कहती,” माँजी के रहने से कितना आराम है…उनके बिना तो मैं मनु(बेटा) को संभाल ही नहीं पाती।” शैलेश हाँ–हूँ करके रह जाता।

       कुछ महीनों के बाद नंदा की सास बीमार रहने लगी।डाॅक्टर की फ़ीस और दवाओं पर होते खर्चे देखकर उसे चिढ़-सी होने लगी।कभी वह सास पर चिड़चिड़ाती तो कभी पति को सुनाती कि तुम्हारी माँ पर कितना खर्च हो रहा है।यहाँ तक कि शैलेश का कोई रिश्तेदार भी आता तो वह नाक-भौं सिकोड़ने लगती।गृह-क्लेश से बचने के लिये शैलेश उसकी बातों को एक कान से सुनता और दूसरे कान से निकाल देता।

        एक दिन शैलेश का चचेरा भाई कौशल ने फ़ोन किया,” भईया….पापा गिर गये हैं…उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई है। उनको लेकर हाॅस्पीटल आया हूँ तो डाॅक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा है।भाई अगर…।” कहते-कहते वह चुप हो गया तो शैलेश घबरा गया.. बोला,” तू चुप क्यों हो गया…क्या बात है.. अगर क्या…?”

  ” भाई…कुछ मदद हो जाती तो…।”कौशल ने हिचकिचाते हुए धीरे-से कहा।

   ” तो इसमें हिचकिचाने वाली बात क्या है…तेरे पिता हैं तो वो मेरे भी तो चाचा हैं…तू कल घर आ जा…फिर दोनों साथ में हाॅस्पीटल चलेंगे।

      अगले दिन कौशल आया…अपनी बीमार ताई से मिला।शैलेश रुपयों की एक गड्डी उसके हाथ पर रखते हुए बोला,” इसे रख.. मेरा एक दोस्त उसी हाॅस्पीटल में डाॅक्टर है…वह फ़ीस भी कम करा देगा।” तभी दनदनाती हुई नंदा आई और कौशल के हाथ से नोटों की गड्डी छीनते हुए बोली,”चले आयें हैं भीख माँगने…।”

    शशांक तमाशा नहीं बनाना चाहता था..नंदा से बोला,” रुपये दे दो नंदा…चाचा का ऑपरेशन होना है।वो कोई पराये नहीं है…मेरे चाचा हैं…बचपन में उनकी ऊँगली पकड़कर स्कूल जाता था…उनका मेरे पर पूरा अधिकार है…।”

   ” था…लेकिन अब नहीं….तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है।” गरजती हुई नंदा बोली और हाथ में रुपयों की गड्डी दबाये अपने कमरे में चली गई।शैलेश तो नंदा की बात सुनकर अवाक् रह गया था।तब उसकी माँ ने अपने बचाये हुए रुपये कौशल को दे दिये थें।

       समय बदला…दो महीने बाद ही नंदा की माँ बाथरूम में फिसल गईं जिसकी वजह से उनके घुटने में फ़्रैक्चर हो गया।पिता उसके थें नहीं..भाई पर आर्थिक बोझ पड़ गया।तब उसने कहा,” माँ पर मेरा भी तो हक है…उनकी सेवा करने का मेरा भी तो फ़र्ज है…।”और इसीलिये वह अपने भाई निकुंज को अपनी कमाई के रुपये दे रही थी।लेकिन जब शैलेश ने तर्क देते हुए आपत्ति जताई तो उसे बहुत दुख हुआ।

      रात को जब नंदा बिस्तर भी थी…मनु और शैलेश सो गये थे…उसकी आँखों से नींद गायब थी।उसे याद आया कि चाचा के ऑपरेशन के समय उसने भी तो यही कहकर शैलेश को उनकी मदद नहीं करने दिया था।कितनी गलत थी वह।रिश्तों में सिर्फ़ मेरा तो उसे कहना चाहिए ही नहीं था।जैसे निकुंज का उस पर अधिकार है, वैसे ही शैलेश पर भी उनकी माँ, चाचा-चाची, भाई..सबका हक है।वो सब भी तो उनके अपने हैं।मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो गई …जैसे आज मैं दुखी हूँ तो उस वक्त शैलेश को भी मेरे दुर्व्यवहार से कितना बुरा लगा हुआ होगा।मैं कल सुबह ही शैलेश को साॅरी कहूँगी और…।

        अगले दिन शैलेश बिना नाश्ता किये ही ऑफ़िस चला गया।करीब छह घंटे बाद वह थका हुआ लौटा।फिर निकुंज भी आया तो नंदा बोली,” भाई…कल के लिये मुझे माफ़ करना…वो…।”

     निकुंज हँसते हुए बोला,” दी…माँ का ऑपरेशन सफल रहा।सुबह से जीजू हमारे साथ ही थे…।” अपने पति पर ‘ सिर्फ़ मेरा ‘ का अधिकार जताकर नंदा बहुत शर्मिंदा थी।उसने शैलेश से माफ़ी माँगी और अपनी सास से भी।तब शैलेश ने उसे समझाया,” कल यदि मनु की पत्नी भी उस पर अपना…..।” 

  ” समझ गई- समझ गई…।” शैलेश की बात पूरी होने से पहले ही नंदा बोल पड़ी तो सभी ठहाका मारकर हँस पड़े और वातावरण अपनेपन की खुशबू से महक उठा।

                                          विभा गुप्ता

                                           स्वरचित 

# तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है 

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