सिर्फ दूसरों के लिए जीना नहीं है।- अंजना ठाकुर: Moral Stories in Hindi

मांजी आज हम लोगो को देर हो जायेगी आने मैं.. आप अन्नू और मुन्नू को खाना खिला देना और पापाजी से कहना उनका होमवर्क करा कर उनके बैग लगा दे ।नही सुबह स्कूल को देर हो जायेगी।

सरिता जी बोली ठीक है ।क्योंकि अक्सर ही उनके बेटा – बहु घूमने निकल जाते और उन पर ही जिम्मेदारी आ जाती ।

सरिता जी का एक  बेटा नितिन और एक बेटी पिंकी है पहले अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी मैं वो कहीं घूमने नही जा पाई उनके पति विशाल कहते एक बार रिटायर हो जाऊं फिर हम अपनी जिंदगी जिएंगे।तब तक तुम भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाओगी।

पिंकी की शादी के बाद नितिन की शादी करी बहू मधु भी नौकरी करती थी क्योंकि नितिन को कमाने वाली लड़की ही चाहिए थी ।विशाल भी रिटायर हो गए थे शादी के बाद उन्होंने सोचा चलो अब फ्री हुए

तब तक जल्दी ही मधु ने खुशखबरी सुनाई।जिसे सुनकर दोनों बहुत खुश हुए और दोनो  अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे ।

पहले एक बेटा हुआ मुन्नू  दादा ,दादी बनकर  दोनों खुश थे।और खुशी मै जरूरत से ज्यादा ध्यान रखने लगी । तब तक मधु जिम्मेदारी समझती तब तक दूसरी बार मां बन गई वो अभी बच्चा नहीं चाहती थी पर सरिता ने कहा अब आ गया है तो कर लो परिवार पूरा हो जायेगा ।इसी जिम्मेदारी मैं पांच  साल निकल गए।मधु ने बच्चों के लिए आया रखनी चाही तो सरिता जी बोली अरे हम है ना तुम चिंता मत करो ।मधु भी चिंता मुक्त हो गई लेकिन जिम्मेदारी के बढ़ने से सरिता अब थोड़ी उदास हो जाती लेकिन उसे यही लगता की बुढ़ापे मैं अपने लिए क्या जीना आखिर परिवार की खुशी ही तो खुद की खुशी है ।लेकिन कभी कभी अफसोस जरूर होता की हमारे समय तो हम अपनी जिंदगी जी नही पाए क्योंकि तब सास के सामने ऐसे बच्चे छोड़ कर जा नही सकते थे ।

पर आजकल के बच्चे अपनी जिंदगी भी जी लेते है और जिम्मेदारी भी उठा रहे है ।चाहे आया ही रखनी पड़े अब अक्सर मधु और नितिन घूमने या फ्रेंड के साथ निकल जाते ।

कभी कभी विशाल कहते भी की तुम बहु को आया रखने दो जिस से हम भी कहीं घूम आयेंगे ।सरिता कहती लोग क्या कहेंगे की इन्हे पोता पोती छोड़ कर घूमने की पड़ी है ।मन तो मेरा भी करता है पर अब ठीक है ।।

एक दिन सरिता की बहन और उसके पति कुछ दिन रहने के लिए आए ।उसने सरिता को बताया की उनका पूरा ग्रुप महाराष्ट्र घूमने आया था तो वो लोग भी आए और मैं तुमसे मिलने आई तो वो लोग निकल गए ।

सरिता को आश्चर्य हुआ कैसा ग्रुप और तू अपनी बहु और पोते को छोड़कर कैसे घूम रही है तुझे तो उनकी देखभाल करनी चाहिए ।

मालती बोली जब घर रहते है तो देखते है और बुढ़ापा मतलब दूसरों के लिए जीना नहीं है ।हमारी भी जिम्मेदारी तभी खत्म होती है फिर हम अपने लिए कब जिएंगे इसलिए हमने सीनियर सिटीजन ग्रुप ज्वाइन कर लिया है इसमें हर महीने कही न कहीं घूमने जाते है और बीच बीच मै पार्टी होती है तो सबके बीच बुढ़ापे का अहसास नही होता ।

तेरी बहू कुछ कहती नहीं है सरिता बोली ।

नहीं बल्कि वो लोग तो खुश है की उन्हे कहीं ले जाना नहीं पड़ता क्योंकि अब उन्हें इतना समय नहीं मिलता की हमें घुमाने ले जाए ।

सरिता बोली सही कह रही है मालती मैं भी मन ही मन घुट रही थी और ये भी कह रहे थे की रिटायर

होने के बाद अपनी जिंदगी तो जीना भूल गए ।

यहां भी ऐसा ग्रुप होगा मै भी ज्वाइन कर लूंगी सरिता खुशी से बोली उसके दिल मै उमंग जाग गई थी ।बेटे बहू से बात करी तो बोले ये तो अच्छी बात  है मैं तो पहले ही कह रही थी एक आया रख लेते है आपने ही मना कर दिया था ।

सरिता जी बोली हां पहले मुझे लगा की पोता पोती की जिम्मेदारी भी हमारी है बुढ़ापे मैं यही होता है ।पर मालती ने मतलब समझा दिया ।

स्वरचित

अंजना ठाकुर

#बुढ़ापा

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