ऐसा लगता है कि वह कल की ही बात हो…।
वह समय पंख बन जाए और उसके ऊपर ही बैठकर मैं उस हसीन दुनिया में लौट जाऊं जिसे बचपन कहा जाता था।
वह हमारा गांव और गांव का वह घर, जहां हम सभी का बचपन बीता था और जवानी भी।
हम सब भाई बहन साथ-साथ बड़े हुए और सभी अपनी जिंदगी में रम गए।
सबकी पढ़ाई लिखाई के बाद सबकी शादी ब्याह…करके अम्मा बाबूजी निश्चिंत हो गए थे।
सबलोग अपनी नई दुनिया में खुश थे।
जो छूट गया वह अम्मा बाबूजी थे।
अपनी आंखों में उम्मीद की आस लगाए हम चारों भाई बहनों का इंतजार करते रहते थे। एक साथ चारों जा नहीं सकते थे क्योंकि सबकी अपनी अपनी जिंदगी थी। जैसे कोई भी जाता अपनी आंखों की ज्योति से प्रेम के जोत जलाकर दिल खोलकर सबका स्वागत करते।
सभी को अपने प्यार के पंख में छुपा कर रखे हुए थे।
बाबूजी का कहना था,”बच्चों, जिंदगी में बस एक ही मूलमंत्र है.. रिश्तो को अहमियत दो।और कुछ भी नहीं है दुनिया में।
सिवाय हमारे अपने रिश्तों के। चाहे वह घर के हो या बाहर के।चाहे खुद को भी।
हर रिश्ते को अहमियत देने की जरूरत है। अगर तुमने यह सीख लिया तो जिंदगी की पाठशाला पढ़ लिया और किसी भी चीज की जरूरत नहीं ।”
कितना अनमोल था वह सीख,जिसे मैंने गांठ बांध लिया था।
बचपन मां और बाबूजी ने कितने लाड प्यार और जतन से हम चारों नालायकों को पाला पोसा था और इस काबिल बनाया था।
मेरे तीन भाई तीनों ही पढ़ने में बहुत ही तेज थे। अपनी काबिलियत के बूते पर ही बड़े भैया डॉक्टर बन गए थे और बाकी दोनों प्रशासनिक अधिकारी।
लेकिन किसी में घमंड नाम का चीज नहीं थी।
आज बाबूजी की वही सीख मेरे लिए मेडल बनकर जिंदगी भर के लिए एक यादगार उपहार बन गया था ।
अपने स्कूल की मैं प्रिंसिपल थी। अब रिटायरमेंट का समय आने वाला था।
उससे पहले ही स्कूल प्रशासन की तरफ से मुझे शांति सम्मान दिया जा रहा था।
मेरे स्कूल का सबसे बड़ा सम्मान था शांति सम्मान जो वीरलों को ही मिलता था।
स्कूल प्रशासन का कहना था “सुनीता मैम,आपकी धैर्यता, कार्य कुशलता के साथ सबसे मिक्स अप होने का गुण आपको खास बना दिया है। आपके इसी स्वभाव के कारण हमारे स्कूल का इतना नाम हुआ है।आज हमारा स्कूल बेस्ट स्कूलों में से एक है।
स्कूल के प्रोग्रेस का कारण भी आप ही हैं ।”
जैसे ही आप फोन मुझे आया था मेरी आंखों से आंसू बह निकले थे।
मैं चाहती थी उड़कर अपने गांव वापस चली जाऊं और अपने मां बाबूजी की गोद में छुपकर सो जाऊं।
… और उनसे कहूं “बाबूजी आप ही का सिखाया हुआ सीख आज मेरे लिए यादगार उपहार बनने जा रहा है।
अपने स्कूल का सबसे बड़ा सम्मान जो जल्दी किसी भी को नहीं मिलता… वह मुझे मिलने जा रहा है “शांति सम्मान!”
मगर आज अम्मा बाबूजी नहीं थे। अब वे लोग शिवलोक में विश्राम करने चले गए थे। मुझे याद है जब मैं शादी के बाद अपने इस स्कूल को ज्वाइन किया था तब में एक प्राइमरी स्कूल की टीचर थी। स्कूल भी बहुत ही साधारण सा था। बच्चे भी बहुत ज्यादा नहीं थे।
स्कूल को खुले हुए ज्यादा दिन भी नहीं हुआ था। मैंने अपना पूरी मेहनत स्कूल में झोंक दी थी।
्स्कूल प्रशासन ने लगातार मेरे बेहतरीन प्रदर्शन पर मेरा प्रमोशन किया और आज मैं स्कूल की प्रिंसिपल होकर रिटायर करने जा रही थी।
मैं हर किसी से प्यार से मिलती, हर रिश्ते की इज्जत देती। हर किसी को सम्मान। रिश्तो के वजूद को समझने की कला मुझे मेरे माता-पिता ने समझा दिया था। जिसके कारण मेरी वैवाहिक जिंदगी भी अत्यधिक सुख मय थी। मुझे अपने ससुराल में मान सम्मान भी बखूबी मिला था और मायके में भी।
इसके साथ समाज में भी मैं लोकप्रिय थी।
आज मैं बहुत खुश हूं लेकिन फिर भी मेरा दिल रो रहा है। मुझे अपने अम्मा बाबूजी की याद आ रही है। काश वे लोग मुझे आजा आकर अपने गले से लगा लेते…!!! तभी दरवाजे पर खतर-पटर की आवाज आने लगी.
मैंने अपनी आंखों में जमे हुए आंसुओं को पोछते हुए सामने देखा।
मेरा लाडला नटखट श्याम अपने हाथों में बड़ा सा बॉक्स ले चला आ रहा था।
“अरे यह क्या है?” मैं आश्चर्य से पूछा।
“दादी मां यह सेलिब्रेशन है आपके लिए. आपको आपके स्कूल ने जो सम्मान दिया है उसके एडवांस में आज हम लोग सेलिब्रेशन करेंगे।यह एक केक है।”
उसने झटपट टेबल में केक सजा दिया और फिर परिवार के सभी लोगों को बुलाकर ले आया ।
टेबल पर रखे हुए उसे रंगीन केक को देखकर मेरा मन खुशी से झूम उठा। मैं अपने नटखट पोते को अपनी गले से लगा लिया और कहा
“यह सेलिब्रेशन सिर्फ मेरा नहीं हम सबका है।”
पूरा परिवार खुशी से तालियां बजाने लगा और मैं खुशी से मुस्कुरा उठी।
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#अहमियत