कल ऋचा के छोटे देवर की शादी है और आज सुबह सुबह ऋचा अपने पति और बच्चों के साथ ससुराल पहुंची है। दो मिनट नहीं हुए थे बैठे हुए कि सासू मां ने कहा आज व्रत में रहकर पूजा के लिए खीर , दाल वाली पूरियां , ठेकुआ, लड्डू सब तुम बना लोगी। उसने हां में सिर हिला दिया। ये देखते ही सास का साहस थोड़ा और बढ़ा और कहा कल भी व्रत में रहकर कालीस्थान, ब्रह्मस्थान जाकर पूजा कर आना।
उसने फिर हां में सिर हिला दिया। अब साहस कुछ और बढ़ा माता जी का तो बोली और परसों की भी पूरियां जो मोहल्ले में बांटी जाएगी वो भी तुम ही बना लेना। इस बार ऋचा जो हां में सिर हिलाए जा रही थी, जड़वत बनी रही। उसकी सास को समझ में क्या आया क्या नहीं पर उन्होंने कहा परसों की परसों देखी जायेगी। आज और कल का तुम कर लो बोलकर वो वहां से खिसक गई ये सोचकर की ऋचा का पति पवन कहीं हल्ला न मचा दे कि मेरी बीवी ही क्यों।
इधर ऋचा नहा धोकर आई तो पता चला कि घर की तीन बेटियों से लकड़ी के चूल्हे पर दूध उबालना नहीं हो पाएगा क्योंकि वो सब गैस स्टोव पर खाना बनाती है। सबसे ज्यादा पढ़ी -लिखी , बड़े पद पर आसीन, महानगर में रहनेवाली नौकरीपेशा बड़ी बहू ही बस कर सकती है ये छोटा सा काम क्योंकि सारे बड़े लोग इस काम को कैसे करते।
वो मुस्कुरा उठी लोगों की धूर्तता पर और वो सब चालाकियां समझती है का भाव बिना चेहरे पर लाए लकड़ी का चूल्हा जलाया और दूध उबालकर रख दिया। आंगन में बैठे उसके बड़े और छोटे ननदोई उसको देखते रह गए। बड़े ने चुटकी ली की परिवार का होकर आप सबसे बाद में पहुंची हैं। उसने बड़ी शालीनता से कहा, काम पर खड़ी हूं ना। बैठे रहने और गप्पे मारने का खाली वक्त मेरे पास है नहीं। छुट्टी भी देखकर ही लेनी होती है।
बच्चों की जरूरत के हिसाब से। सप्ताह पहले आकर मैं नहीं बैठ सकती।छोटे ननदोई ने तब कहा। सही कहा भाभी ने । आते ही काम पर लग गई हैं। वहां से फिर ऋचा कुलदेवता वाले आंगन में गई और फिर सास द्वारा दिए आदेश का पालन किया। ऋचा और पवन ने अंतर्जातीय प्रेम विवाह किया है लेकिन परिवार की सहमति से। फिर भी ऋचा ने हमेशा महसूस किया है की वो अपनी सास को फूटी आंखों नहीं भाती।
वो हमेशा आदर्श बहु बनने के चक्कर में फंसी रही और अपने टॉम बॉय वाला रूप शादी के दिन ही त्याग दिया। वो इतना सताई गई अपनी शादी के बाद के दस सालों तक की कोई सुने तो रोने लगे। पहले तो पति को भी विश्वास नहीं होता की उसके परिवार वाला खास तौर पर उसकी मां उसकी पत्नी को इतनी मानसिक वेदना देते हैं लेकिन धीरे धीरे उसको भी लगने लगा कि ऋचा की अच्छाई और उसके खुद की निश्छलता का फायदा उसके परिवार वाले खूब उठा रहे हैं।
ऋचा काम करती हुई सोच रही थी की सास सही कहती है सास वो जो सांस न लेने दे। मेरे लिए ही बस ऐसी है मेरी सास। मंझली बहु में जाने ऐसा क्या है की सासू माता उसको कोई काम नहीं कहती। बीच में मंझली बहु आई कुल देवता की पूजा के लिए तो उसने कहा लाओ दीदी मैं मदद करवाऊं।
इतने में सास बोली, तुम रहने दो। तुम उधर चलो मेरे साथ। सास अपने निर्देश देकर जब चली गई तो मंझली को ऋचा ने कहा। मुझे पता है की किस किस को आराम देने के लिए उसको सारे काम बताए गए हैं। लेकिन मैं तमाशा करना नहीं चाहती आखिर खुशी का माहौल है। मेरे पति ने कहा की तुम मूर्ख हो जो मां की बातों में आ गई। इतना कुछ सहने के बाद भी तुमने हां कह दिया। किस मिट्टी की बनी हो। मैं बहु होता तो मैं मना कर देता।
मैंने कहा मैं मना नहीं कर सकी। इसलिए नहीं क्योंकि मैं आदर्श बहु दिखना चाहती हूं , ऐसी इच्छाओं को तिलांजलि दे चुकी हूं और ये सब जाहिर भी कर चुकी हूं । आज तो बस ये सोचा कि ये मेरा सौभाग्य है की जान बुझकर मुझे यह काम पकड़ाया गया मेहनत वाला काम समझकर । कुलदेवता की पूजा के लिए प्रसाद बना पाना भाग्य से ही मिलता है। इसमें मेरी खुशी है इसलिए मैने हां की नहीं तो अब ना कहने में कोई संकोच नहीं है मुझे।
उसने मंझली को बता दिया की उसको और ननदों को आराम मिले इसलिए ये सारा निर्देश ऋचा को दिया गया है पर ठीक है। पहले वाली ऋचा होती मैं तो ये जो मैंने तुमको कहा है वो भी नही कहती। चुपचाप कर लेती पर अब कहना इसलिए शुरू किया की मुझे मेरे ससुराल वाले बेवकूफ न समझे। बड़ा समझे। जिसकी सोच छोटी नहीं है और जो परिवार में राजनीति करने में यकीन नही रखती। उसकी देवरानी उसको बस देखे जा रही थी।
उसका बदला रूप जिसमें विनम्रता के साथ वाली धृढता थी। सब काम निबटाते उसने देखा रात के नौ बज गए थे। अगले दिन फिर काम काम और काम। अभी उबटन लगाना है। अभी कुआं पूजने चलना है। अभी आम महुआ होगा। अब शाम होने लगी थी। पूजा करने जाना था उसको। वो गई।
पूजन करके सात बजे वो घर पहुंची तो बारात निकलने के लिए तैयार होने लगी । इधर उसके पति ने कहा खा लो कुछ तुम। जाने अपना खाना ही क्यों भूल जाती हो तुम।पसीने से लथपथ थी वो। थोड़ी देर पंखे के सामने बैठकर खाना खाने लगी। दो कौर न खाया होगा कि उससे खाया ही नहीं गया। दो दिन लगातार भूखे रहना ऊपर से सैकड़ों काम। उसने खाना छोड़ दिया। ऋचा की खासियत और खामी भी ये है कि महिलाओं के सजने संवरने वाले गुण उसके अंदर थे ही नहीं।।
उसको सजना संवरना आता ही नहीं था। उसको कभी वक्त मिला भी कहां था सजने का कि वो सोचती भी।इधर उसके सास की बेटियां पेंट पाउडर लिपस्टिक, टिंट लगा लगाकर चमकने लगे थे और मंझली बहु भी। ऋचा थी की जैसी है वैसी ही दिख रही है। कमाल का आत्मविश्वास है उसके अंदर। वैसे भी सास की नजर में वो साधारण है।
पति की नजर में असाधारण महिला है वो जिसकी राय हमेशा चाहिए होती है इसके पति को किसी भी तरह के सामाजिक आर्थिक, पारिवारिक मसले पर। सास से उसको उम्मीद तो है ही नहीं कि वो कभी उसकी अच्छाइयों के लिए पब्लिक में तो दूर कभी अकेले में भी सराहेगी। सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेती हैं और वो है जो उनके द्वारा दिए जख्मों को भूलकर भी उनकी कही हर बात मान लेती रही है।
सोच रही थी वो “सिर्फ बहु से बेटी बनने की उम्मीद क्यों ???”
जब सास कभी मां नहीं बन पाती । ऋचा का सास के प्रति मोह धीरे धीरे भंग हुआ था। अपनी मां से ज्यादा प्यार करने लगी थी वो सास को। उनको खुश रखने के लिए महीने में उनके लिए एक दो साड़ी ले आना। मेकअप की चीजें लाकर देना। एक काम न करने देना। सारी बात मान लेना। उसका दुख तब और बढ़ गया जब दुनिया में अपने पिता से ज्यादा प्यारा उसको कोई न था लेकिन उनकी मौत पर भी सास ने उसके मायके आना तो दूर ऋचा या उसकी मां से बात करना भी जरूरी नहीं समझा।
ऋचा को सबको झूठ बोलना पड़ा की सासू मां की तबियत ठीक नहीं है इसलिए नहीं आ पाई। फोन आया था मुझे। उसकी सास ने उसको काम करने की मशीन से ज्यादा कभी कुछ समझा नहीं। सुबह उठकर चाय नाश्ता, दोपहर का खाना बनाकर ऑफिस जाना, आते ही अपने भूखे बच्चों को खाना खिलाना क्योंकि सास का बहाना तैयार रहता था ये मुझसे नहीं खाते।
फिर शाम का चाय नाश्ता , बच्चों का होमवर्क, रात का खाना फिर अगली सुबह की तैयारी। थक कर चूर हो जाती पर स्नेह और प्यार का एक शब्द भी सास के मुंह से नहीं निकलता। सास की निर्दयता इतनी की बहु सबके लिए नाश्ता खाना सब बनाकर जा रही है , ऑफिस के लिए देर हो रही है। महीने में बीस दिन नाश्ता नहीं कर पाती है समय की कमी से लेकिन ये भाव कभी नहीं आया सास के मन में की थोड़ी मदद कर दें। सब्जी ही काट दें।
संपन्न परिवार में जन्मी ऋचा ने ऐसा सोचा था सास भी दूसरी मां होती है लेकिन सास ने उसे कभी भी बेटी नहीं समझा। फोन पर बेटियों से बातों के दौरान कई ताने उसने अप्रत्यक्ष रूप से सुने जो उसके दिल को छेद देते और वो सोचती क्यों मार रही है वो खुद को। उसने पवन के प्यार में और अपने मां बाप के दिए संस्कार की वजह से सम्मान किया पर 10 साल सहन करते करते एक दिन लावा फूटा और उसने सारा आग बाहर निकाल लिया वो दिन वो भूलती नहीं।
उसकी देवरानी की बेटी हुई थी। उसका छठी पूजन था। चालीस लोगों को निमंत्रण दिया गया था और ऐन मौके पर दिन के नौ बजे ये कहा उसके देवर ने की हलवाई नहीं मिल पाया है। मुझे भी बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास जाना है। उसने फटाफट किचन संभाला था । अपने मायके में कभी किचन में नहीं गई ऋचा आज चालीस लोगों के लिए खाना बना रही थी वो भी अकेली। इधर सास का शासन की अभी मंझली के लिए पांच तरह की सब्जी, रोटी, चावल, बनेंगे।
वो बनाने के बाद बारह तरीके के विविध व्यंजन बनाए उसने। सन्डे था। उसने ग्यारह घंटे किचन में खड़े रहने का रिकॉर्ड बनाया। तीन बजे उसका पति गुस्सा होकर कहा। मार जाएगी सबके लिए करते करते। कोई नहीं पूछने की तुमने कुछ खाया की नहीं। आओ पहले खाओ। फिर बनाना। बेचारा वो भी तो परेशान था घर में आनेवाले मेहमानों की खातिरदारी कर कर के। उधर सास बस आराम से सोफे पर पड़ी रही। हद तो तब हो गई जब अगले दिन मेड ने छुट्टी कर ली ।
उसको ऑफिस जाना था सो वो किचन में पड़े जूठे बर्तन के ढेर साफ नहीं कर पाई। शाम में जब वो घर आई उसने देखा देवर देवरानी गायब है। छोटा देवर भी नहीं है और माताजी चादर तानकर सोने का नाटक कर रही है। कमरे में चावल कहीं और कहीं जूठे प्लेट रखे हुए है । उसकी सास ने कहा मेरे पैर में दर्द है और तुम्हारा मंझला देवर देवरानी आज अपने घर रुकेंगे। वहां से ही हॉस्पिटल जायेंगे और बच्चे से मिलकर कल आयेंगे।
छोटा वाला अपने दोस्तों से मिलने गया है। उसको रोना आ गया को गलती हो गई पवन से शादी नहीं करनी चाहिए थी। मैं जितना सहती हूं ये उतना मुझे सताते जा रहे हैं। उसने प्राण लिया बस अब और नहीं। उसने अपनी सास से कहा मैं नौकरानी नहीं हूं इस घर की। घर भी मेरा, कमाकर भी लाऊं। पकड़कर भी खिलाऊं। कुछ बोल भी न पाऊं। आज के बाद मुझसे उम्मीद मत करिएगा की मैं इतना सब करूंगी।
मेरे मां बाप ने आपके निर्दय लोगों से भरे खानदान की सेवा करने के लिए मुझे पैदा नहीं किया था। उसने जान बुझकर आज घर की वीडियो बनाई और अपने पति को भेजा और कहा बस अब और नहीं। दुनिया की नज़र में स्ट्रॉन्ग वुमन का खिताब लेकर घर में दबी कुचली बहु थी वो। उसने सधी भाषा में सास को जता दिया था की राजनीति राजनेताओं का काम है। मां का नही।
उसका काम सबको समझना और सबके लिए समान भाव रखना है। जब आप सास हैं तो मुझसे बेटी बने रहने की उम्मीद छोड़ दीजिए। उसकी चालाक सास को शायद तब भी समझ में नहीं आया की वो जिसे मूर्ख समझकर सब कुछ करवाती रही वो संस्कारी है और शालीन है। उनकी चालाकियां समझते हुए भी वो नजरंदाज करती रही ताकि परिवार न बिखरे। लेकिन सास को इतना जरूर समझ आ गया की वो गूंगी गुड़िया नहीं है। प्यार में बेशक वो किसी हद तक झुक जाए लेकिन जब बात उसके स्वाभिमान की होगी वो बता देगी कि हद में रहना क्यों चाहिए।
लेखिका : रंजना कुमारी