सिंदूर – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

मैं दिल्ली में रहने वाली लड़की थी | मेरी पढ़ाई लिखाई सब दिल्ली से ही हुई | मैं एक छोटी सी कंपनी में जॉब भी करने लगी थी | जॉब मिलने के बाद मानो मैं हवा में उड़ने लगी | मेरी उम्र २५ की हो गई थी | घर वाले शादी देखने लगे |

शादी तय हो गई | लड़का दिल्ली में ही नौकरी करता था  |लेकिन उसका परिवार गांव में  रहता था |

मैं गांव के नाम से डर गई | मैं गांव  में नही रहूंगी | इस बात का पता जैसे ही  ,होने वाली सासु मां को चला ,उन्होंने  बोला बेटा तुम परेशान नही हो | तुम शादी के बाद   दिल्ली ही रहोगी, अपने पति के साथ | हा कभी कभी मेरे दुख सुख  में ,या कभी घूमने का मन करे तो गांव आ जाना | उनकी बात सुन के मन को सुकून मिला 

मेरी शादी हो गई | मैं गांव आ गई    | शादी के अगले दिन सासु मां ने बोले बेटा तुमने सिंदूर बहुत कम लगाया है , थोड़ा अच्छे से मांग भर लो , क्यों की शादी के सवा महीने तक पूरी मांग भरना एक रश्म होती है| मुझे अच्छा नही लगा  |लेकिन मैंने लगा लिया सोचा कुछ दिन की तो बात है | 

जैसे तैसे गांव में कुछ दिन रहने के बाद मैं दिल्ली अपने पति के साथ आ गई | और हम दोनो खूब घूमते मस्ती करते | मेरे पति मेरी हर जरूरत को पूरा करते | कभी कोई कमी नही होने दिया | ६ महीने बीत गए | सब बहुत अच्छा चल रहा था |

 अचानक सासु मां की तबियत खराब हो गई | और हम दोनो को गांव जाना पड़ा | गांव  में हमको बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था , गांव की बहुत सी औरते मेरे सासु मां को देखने आई थी | सासु मां से अधिक उनकी नजर  मेरे उपर थी, की मैने क्या पहना है  |कैसे पहना है, हद तो तब हो गई , एक औरत ने मेरी सासु मां से पूछा

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की तुमने अपने बहू को कुछ सिखाया नही क्या  ,नई नवेली है और मांग में सिंदूर तक नही भरा है , मेरे सास   ने तुरंत बोला ,मेरी बहू बहुत अच्छे से रहती है ,बस मेरी तवियत खराब होने के कारण उसको टाइम नही मिल पा रहा है की वो अच्छे से  सज सवर सके | उनकी बात सुन मेरे पति ने भी, अपनी मां के हा में  हा मिलाया | ये सब अपने आखों के सामने देख मेरा मन बहुत खुश हो गया | सासु मां अब ठीक हो गई थी | अब हमारे दिल्ली जाने के दिन भी आ गए | 

सासु मां ने जाने से पहले एक छोटी सी पूजा रखा | जिसमें गांव के लोग भी आने वाले थे | पूजा की सारा काम सासु मां और मेरे पति ने मिल के किया | मैं जब पूजा के लिए अपने कमरे से निकल के आई तो मानो | मेरे सासु मां की खुशी का ठिकाना ही ना हो | वो जिस रूप में  मुझे देखना चाह रही थी, आज मैं वैसे ही दिख रही थी |

 लाल साड़ी , सिंदूर से भरी मांग, हाथों में  भरी  लाल चूड़ियां |  सासू मां ने बोला खूब खुश रहो बेटा | भगवान तुम्हारी सारी इच्छा पूरी करे |पूजा खतम हुई |

हम दोनो ट्रेन में थे |मैं खिड़की से बाहर देखते हुए सोच रही थी की, एक औरत के मांग का सिंदूर, केवल लाल रंग नही , बल्कि उसका मान सम्मान होता है |

मेरे पति ऐसे देख रहे थे मानो, आज ही हमको शादी कर के लाए हो | 

रंजीता पाण्डेय

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