क्या बात है? कुछ दिनों से देख रहा हूं बड़ी बदली बदली सी दिख रही हो? अमर ने अपनी पत्नी मनीषा से कहा
मनीषा: अच्छा आपको अपने काम के अलावा कुछ और भी दिख गया? पर यह अजूबा कैसे हो गया?
अमर: क्या मतलब? काम पर ध्यान नहीं दूंगा तो यह घर कैसे चलेगा? तुम औरतों की यही समस्या है जो तुम्हारे डिमांड्स पूरे ना हो तो प्रॉब्लम, जो डिमांड्स पर ध्यान देने के लिए, काम पर ज्यादा ध्यान दूं तो प्रॉब्लम, आखिर तुम औरतों से कोई जीत पाया है भला?
मनीषा: तो क्या यहां कोई हार जीत का गेम चल रहा है और आपने क्या बदलाव देखा मुझ में?
अमर: यही के, ना मांग में सिंदूर, ना गले में मंगलसूत्र और ना हाथों में चूड़ियां, ऐसा लग रहा है कि यह सब अब तुम्हारे लिए कोई महत्व ही नहीं रखते, क्योंकि इससे पहले तो तुम्हें कभी ऐसे हाल में नहीं देखा?
मनीषा: अरे नहीं, वह क्या है ना? आजकल तो यह फैशन है। कौन लगाता है सिंदूर वगैरा और सब मुझे ऐसे दिखते हैं मानो वह कह रहे हो, पता नहीं कहां से देहातन आ गई हैं? बस इसलिए सोचा, और सिंदूर मैंने छुपा कर लगाया है यह देखिए, इससे सिंदूर लगाना भी हो गया और लोगों की नजरों में भी नहीं आएगा।
अमर: अच्छा अब समझा, मेरी पत्नी मॉडर्न बनने के चक्कर में ऐसा कर रही है, पर जिन औरतों को देखकर तुम यह सब कर रही हो ना? देखना यही करवा चौथ के दिन कैसे भर मांग सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, भर हाथ चूड़ियां मेहंदी और 16 श्रृंगार करके अपनी फोटोस पोस्ट करेंगी, जब यह सब एक देहाती करती है फिर यह सब यह एक दिन के लिए भी क्यों कर रही है?
मनीषा: अरे बाबा, अब पति के लिए व्रत रखेंगे, तो सोलह सिंगार भी तो करेंगे ना? आप तो बस यह औरतों की बातें औरतों तक ही रहने दिजिए।
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यह कहकर मनीषा वहां से चली गई। ऐसा नहीं था कि उसके सिंदूर मंगलसूत्र चूड़ियां ना पहनने से अमर को वह अच्छी नहीं लगती थी, लेकिन इन सब चीजों के साथ-साथ मनीषा में और भी काफी बदलाव आए थे। जैसे पहले वह बाहर का खाना घर में लाना ही पसंद नहीं करती थी, पर अब मॉडर्न लेडी दिखाने के चक्कर में होटल से खाना ज्यादा आने लगा था। पारंपरिक तरीके से किसी भी घरेलू फंक्शन में जाने वाली, आज अजीबोगरीब कपड़े पहन कर जाना पसंद करती थी। भले ही वह उसमें कंफर्टेबल ना हो पर मॉडर्न बनने का भूत उससे और क्या-क्या करवाए जा रहा था?
अमर कुछ भी कहता तो सिर्फ बहस होती और फिर सब कुछ ज्यों का त्यों रहता। एक दिन गांव से अमर के माता-पिता उनसे मिलने बिन बताए ही आ गए। दरवाजा मनीषा ही खोलती है, वह एक चुस्त पेंट और कमीज में होती है। अपने सास ससुर को यूं अचानक सामने देख वह थोड़ी असहज तो होती है, पर फिर खुद को संभाल उन्हें अंदर बुलाती है। सास ससुर को बिठाकर वह एक दुपट्टा लेकर आती है और फिर उनके पैर छूती है।
बहु, क्या हुआ तबीयत तो ठीक है ना? यह क्या हाल बना रखा है तुमने? अमर की मां आशा जी ने कहा
अमर: मां, यह अभी नहा कर निकली है ना, इसलिए ऐसी दिख रही है, जाओ मनीषा तुम तैयार हो आओ।
मनीषा: नहीं मम्मी! यह आपसे झूठ कह रहे हैं, अब मैं ऐसे ही रहती हूं। यहां रहकर मुझे देहातन बनना भुला दिया है। एक कहावत है ना जैसा देश वैसा वेष, बस मैंनें भी वही अपनाया है, पर यह है कि इस बात को समझना ही नहीं चाहते।
आशा जी चुपचाप बस अमर को देखी जा रही थी। इधर अमर भी अपनी नज़रें चुरा रहा था। फिर करवा चौथ के दिन मनीषा अमर से कहती है, सुनिए आप लाल वाला कुर्ता पहन लीजिएगा। आज शाम को हम सभी औरतें एक साथ पूजा करेंगे, सभी पति-पत्नी मैचिंग ड्रेस पहनेंगे, तो आप और मैं दोनों ही लाल पहनेंगे।
अमर हां में सिर हिला कर दफ्तर चला जाता है और शाम को जब वह तैयार होकर पूजा में छत पर आता है, मनीषा और वहां मौजूद सभी हैरान हो जाते हैं, क्योंकि अमर ने कुर्ता नहीं बल्कि शर्ट और शॉट्स डाला हुआ था।
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अमर: अब मॉडर्न पत्नी का पति तो मॉडर्न ही दिखेगा ना? इस मॉडर्न जमाने में कुर्ता कौन पहनता है? मुझे भी देहाती नहीं बनना। देखो मैंने कुर्ता अंदर पहना है छुपा कर, इससे कुर्ता पहनना भी हो गया और किसी को दिखेगा भी नहीं, जैसे तुम सिंदूर के साथ करती हो।
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मनीषा: अच्छा अब समझ आया, आप मुझसे बदला ले रहे हैं, पर यह जो मेरा बदलाव था ना, वह था भी आपकी वजह से ही, वरना एक औरत को तो सबसे ज्यादा लगाव होता है अपने सुहाग के सिंगार से।
अमर: मेरी वजह से? वह कैसे?
मनीषा: हां और नहीं तो क्या? आपको याद है आप जब भी मुझे कहीं ले जाते, तब कहते उसकी पत्नी को देखो, यहां काम करती है, उसकी पत्नी को देख रही हो, कितनी मॉडर्न है, घर बाहर दोनों मैनेज करती है। पर शायद आपने यह ध्यान नहीं दिया कि वह सारी की सारी बिना सिंदूर बिना चूड़ियां और मॉडर्न कपड़ों में ही घूमती है। जो मैंने ध्यान दिया, मुझे लगा आपको वैसे ही मॉडर्न पत्नी चाहिए, हां उनकी तरह मैं कमा तो नहीं सकती, इसलिए जो कर सकती थी वही किया, पर आपको यह भी नहीं जमी, तो अब मैं क्या करूं?
अमर: मुझे माफ कर दो मनीषा! मैंने उस इरादे से तुम्हें वह सब नहीं कहा था। मैं तो बस इतना बताना चाहता था की औरतें सिर्फ घर और रसोई के लिए ही नहीं बनी, वह चाहे तो क्या नहीं कर सकती? पर मुझे क्या पता था कि मैं दिखा रहा हूं घर और तुम देख रही हो उसकी पेंट।
मनीषा अमर के इस बात पर ठहाका मारकर हंसने लगी और फिर कहती है, हे भगवान! आज एक चुटकी सिंदुर ने तो वह कर दिया जिसे बड़े-बड़े लोग भी नहीं कर पाए।
अमर: क्या कर दिया मैं समझा नहीं?
मनीषा: वह आप छोड़ो, बड़ी लंबी कहानी है, पर मुझे आज एक चुटकी सिंदूर की कीमत समझ आ गई अमर बाबू!
वहां मौजूद सभी हंसने लगे..
दोस्तों, यह कहानी भले ही मैंने एक हास्य के रूप में लिखा है, लेकिन इस कहानी का जो अर्थ है वह बहुत गहरा है, यह सिंदूर मंगलसूत्र, चूड़ियां, पायल, बिछिया, यह सोलह सिंगार ना जाने कितने युगों से हमारी संस्कृति का हिस्सा है! देवियां हो या रानिया सभी इसे अपना सौभाग्य मानती थी, पर आज इसे लगाकर हम खुद को गवार या देहातन महसूस करते हैं, क्योंकि धीरे-धीरे हम पश्चिमी सभ्यता के दास बनते जा रहे हैं और वहीं पश्चिमी हमारे तरह सज संवरकर कितना प्रफुल्लित हो रहे हैं। वक्त न जाने कहां जा रहा है? हो सकता है एक दिन हम अपनी पीढ़ी को पश्चिमी रिवाज और पहनावे में देखने के आदी हो जाएंगे, पर सच में वह दिन हमारे लिए सबसे दुर्भाग्य का होगा।।
धन्यवाद
रोनिता
#सिंदूर