सिमरन ये तूने क्या किया ? – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

दिल्ली का एक ऐसा इलाका जहाँ ज्यादातर मध्यम वर्गीय लोग रहते है जिनमे से कुछ नौकरी पेशा है कुछ अपना कोई ना कोई व्यापार करते है। यूँ तो कोई खास बात नही इस इलाके मे रोज की तरह सुबह होती है और रोज की ही तरह शाम पर आज की सुबह कुछ अलग थी ।

आज इसी इलाके के एक घर मे मातम छाया था जहाँ एक माँ रो रही थी , एक पिता गुस्से और बेबसी मे इधर उधर चक्कर लगा रहा था एक भाई और एक बहन कोने मे दुबके बैठे थे। यूँ तो सबके चेहरे पर अलग अलग प्रतिक्रिया थी पर मन मे एक ही सवाल था ” सिमरन ये तूने क्या किया ?” 

जी हाँ सिमरन इस घर की बड़ी बेटी है सिमरन जिसके लिए लड़के की तलाश चल रही थी । आप भी सोच रहे होंगे ऐसा सिमरन ने क्या किया जो हर कोई परेशान है तो बात ये है कि पिता की लाडली , बहन – भाई की प्रेरणा और माँ की परछाई सिमरन आज भाग गई पास के मोहल्ले के आवारा लड़के विवेक के साथ। अपनी शादी के लिए बनवा कर रखे गहने और रूपए भी वो साथ ले गई और पीछे छोड़ गई एक चिट्ठी। 

थोड़ी देर बाद ये खबर जंगल मे आग की तरह पूरे मोहल्ले मे फैल गई। सिमरन के घर वालों का घर से निकलना भी मुहाल हो गया। फिर भी किसी तरह उन्होंने पुलिस मे रिपोर्ट लिखवानी चाहिए पर क्योकि सिमरन बालिग़ थी और अपनी मर्जी से गई थी इसलिए लड़के पर कोई गुनाह साबित नही होता था।

फिर सिमरन के पिता विवेक के घर गये किन्तु वहाँ उन्हे विवेक के माता पिता ने जलील किया और सारा इल्जाम सिमरन पर डाल उसे चरित्रहीन बता दिया साथ ही जगत जी से यही कहा कि तुमसे अपनी बेटी संभाली नही गई । अपनी बेइज्जती का घूंट पी जगत जी घर आ गये और गुस्से मे सबसे बोल दिया आज के बाद सिमरन का नाम कोई नही लेगा। 

इस घटना के बाद कुछ दिन तक मोहल्ले मे इस बात की चर्चा हुई फिर सब सामान्य होने लगा । किन्तु सिमरन के घर मे कुछ सामान्य नही हो पा रहा था। एक लड़की जब गलत कदम उठाती है तो उसका खामियाजा हमारे समाज मे पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है ऐसा ही यहाँ हुआ

सिमरन की छोटी बहन पर मोहल्ले के आवारा लड़के फबतियाँ कसने लगे मजबूरी मे उसने स्कूल छोड़ दिया और घर मे बैठ गई , मोहल्ले की औरते गाहे बगाहे सिमरन की माता जी से सहानुभूति के नाम पर ताना दे देती इसलिए उन्होंने बाहर निकलना छोड़ दिया। सिमरन के भाई रितेश को कॉलेज के दोस्त मजाक मजाक मे ऐसी बाते बोलने लगे कि उसका कॉलेज जाने का मन नही करता । रही जगत जी की बात उन्होंने तो मानो खुद को पत्थर कर लिया था परिवार चलाने को बाहर तो निकलना था पर लोगो के ताने उनपर कोई असर ना डालते ऐसी कठोरता ओढ़ ली थी उन्होंने चेहरे पर । कुल मिला कर एक हँसता खेलता परिवार बर्बाद सा हो गया था। 

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उधर विवेक के घर पर भी कुछ दिन हंगामा रहा पर कुछ महीने बाद सिमरन का सारा पैसा उड़ा कर वो उसके साथ घर आ गया दोनो ने कोर्ट मैरिज की थी और उसके घरवालों ने इकलौते बेटे को अपना भी लिया। इधर जैसे ही जगत जी को पता लगा कि सिमरन लौट आई है उनकी रातो की नींद उड़ गई। जिस बेटी की मुस्कान से उनका दिन शुरु होता था अब उसकी खबर लगने बाद उन्हे चैन नही था। 

थोड़े दिनों बाद सिमरन को कोर्ट का सम्मन मिला जिसमे उसपर मानहानि का मुकदमा किया गया था ।

सन्न रह गई सिमरन वो सम्मन देख एक पिता अपनी बेटी पर मुकदमा कैसे कर सकता है । उसने अपने घर पर फोन किया किन्तु किसी ने उसका फोन नही उठाया। लिहाजा उसे विवेक के साथ कोर्ट जाना पड़ा। 

” हाँ तो जगत जी आपने अपनी बेटी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा क्यो किया है इसकी वजह ये अदालत जानना चाहती है ?” कोर्ट मे जब केस शुरु हुआ तो पहला सवाल यही किया गया जगत जी से। 

” वकील साहब , जज साहब हमने अपनी बेटी को बाईस साल पाला पोसा बड़ा किया । बेटियां माता पिता का मान होती है यही सोच हमने इसकी हर इच्छा पूरी करते हुए बेहतर परवरिश दी पर मुझे नही पता था इसने बड़े हो मेरे घर को सराय समझ लिया जहाँ पली बड़ी , खाया पिया पर कोई मोह नही किया ।

ना ये सोचा इसके इस कदम से एक माँ पर क्या बीतेगी जिसने इसको नौ महीने कौख मे रख जन्म दिया , उस पिता की क्या इज्जत रहेगी जिसने अपनी बेटी की जरूरत के आगे कुछ नही देखा । और वो भाई बहन जो इसे दीदी दीदी करते नही थकते थे उनकी तो जिंदगी ही बर्बाद कर डाली इसने घर से निकलने के काबिल नही छोड़ा !” जगत जी ये बोलते बोलते गुस्से मे हाँफने लगे। 

” पर जगत जी आपकी बेटी बालिग है वो अपने फैसले खुद कर सकती है कानून ये हक देता है उसे और जो आपने किया उसके लिए वो तो हर पिता का फर्ज होता है !” सिमरन का वकील बोला।

” वकील साहब नही मानता मैं ऐसे कानून को जिसमे फर्ज माँ बाप के है सारे और हक बच्चो के । अरे माता पिता क्या इस दिन के लिए बच्चे पैदा करते है कि वो बालिग होते ही उनकी पगड़ी उछाल चल दे किसी भी ऐरे गैरे के साथ । क्या बच्चो का फर्ज नही बड़े होकर माँ बाप का मान रखे ।

क्या साल दो साल का प्यार जनमदाताओ के प्यार से बड़ा हो जाता है । मुझे पता है इसके घर से चले जाने के बाद छह महीने मेरे परिवार ने कैसे काटे है । चार दिन चूल्हा नही जला मेरे घर । हम सब खून के आंसू रोये है जज साहब । इतनी सी इतनी सी थी जज साहब जब नर्स ने मेरी गोद मे इसे दिया था ।

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सारे जमाने की बुरी बला से बचा इसे पाला , ऊँगली पकड़ चलना सिखाया। जब ये बड़ी हुई इसकी माँ ने कोई अच्छी साड़ी नही पहनी जो नई साड़ी आती इसके लिए रख देती , अपने गहने तुड़वा इसके लिए गहने बनवाये , घर के खर्च से बचा इसके लिए पैसे जोड़े । इस अरमान के साथ कि एक अच्छे लड़के से इसका ब्याह करेंगे । पर नही जज साहब माँ बाप के अरमानो का कोई मोल नही एक आवारा के प्यार के आगे। ” ये कह रोते हुए जगत जी कटघरे मे बैठ गये। 

” हाँ तो सिमरन तुम्हे कुछ कहना है अपनी सफाई मे !” वकील साहब ने सिमरन से पूछा ।

” सर मैं विवेक से प्यार करती थी मैने पापा से बोला भी था लेकिन …!” ये बोल सिमरन चुप हो गई।

” प्यार …प्यार का मतलब पता है इसे । घर से 4-5 लाख का सामान लेकर भागी थी तू क्या ये भी कुछ लेकर गया था ? नही ना बस इसलिए मैं इस शादी के पक्ष मे नही था। जज साहब एक आवारा , नाकारा इंसान को कौन अपनी बेटी देगा आप खुद सोचिये !” जगत जी गुस्से मे खड़े होते हुए बोले। 

” हाँ तो आप अपनी बेटी ले जा सकते है मुझे भी शौक नही इसे अपने साथ रखने का !” अचानक विवेक खड़ा हो बोला । जज ने उसे खामोश रहने का इशारा किया । इधर विवेक के मुंह से ये सुन सन्न रह गई सिमरन । 

” मेरी बेटी तो उस दिन ही मेरे लिए मर गई थी जब उसने ये कदम उठा हम लोगो को जीतेजी मार दिया था जज साहब । इसकी माँ घर से निकल नही सकती क्योकि मोहल्ले की औरते जीना मुहाल करती है , इसकी बहन को स्कूल छोड़ना पड़ा क्योकि आते जाते मनचले उसे छेड़ते है इसका नाम ले ,

इसके भाई को कॉलेज छोड़ना पड़ा क्योकि दोस्तों के सवालों से शर्मिंदगी होती है उसे । और मैं मेरा तो ये हाल है जज साहब जीतेजी खुद की लाश ढो रहा हूँ मैं परिवार का पेट भरने को । जज साहब एक बेटी जब भागती है ना तो वो अकेली खुद का भविष्य नही बिगाड़ती वो बिगाड़ देती है अपने भाई बहनो का कल , वो बिगाड़ देती है अपने माता पिता का जीवन !” जगत जी बोले। 

” पापा मुझे माफ़ कर दो !” रोती हुई सिमरन हाथ जोड़ बस इतना ही बोली। 

” जगत जी अब सिमरन ने शादी तो कर ली अब आप क्या चाहते है क्योकि अब इस शादी को आप बदल नही सकते !” जज साहब भावुक हो बोले क्योकि वो भी एक बेटी के पिता थे तो जगत जी की स्थिति समझ रहे थे। 

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” जज साहब मैं इस अदालत मे इस लड़की से अपने सारे रिश्ते तोड़ता हूँ । आज के बाद मेरे घर मे इसका प्रवेश भी वर्जित है । इसने अपने लिए खुद से ये राह चुनी है अब इसकी कोई राह मेरे घर तक नही आएगी । कल को मेरे घर मे किसी की या मेरी मौत भी होती है तो इसको उसका मुंह देखने का भी हक नही बस यही चाहता हूँ मैं !” जगत जी कठोर शब्दों मे बोले उनके बर्फ जैसे सर्द शब्दों से सिमरन काँप गई। 

” ये बात आप इससे सीधे भी बोल सकते थे आपने इसके लिए केस क्यो किया ?” जज साहब उलझन मे बोले। 

” जज साहब आजकल की पीढ़ी ने माता पिता को बस जरूरते पूरी करने का जरिया मात्र समझ लिया है और माता पिता के घर को सराय । इस अदालत के जरिये मैं संदेश देना चाहता हूँ ऐसी पीढ़ी को जो माँ बाप तुम्हे जन्म दे सकते , हर जरूरत पूरी कर सकते तुम्हारी वो वक्त पड़ने पर कठोर निर्णय भी कर सकते है । एक रिश्ते को बनाने के लिए इतने रिश्तो का दिल दुखाया है तो अब वो सब रिश्ते खत्म इसके लिए । आज के बाद सिमरन मेरी बेटी नही मैं उसका पिता नही !” जगत जी ने ये बोल बात खत्म की अपनी । 

” मैं चाहूंगा आज इस केस से हमारा कानून भी कोई सबक ले और ऐसे बच्चो को सिर्फ इसलिए ना छोड़ दे कि वो बालिग़ है । भले वो बालिग़ है पर उन्हे बालिग बनाने मे माँ बाप का खून पसीना लगा है जिसे आज की युवा पीढ़ी चार दिन के प्यार मे भूल जाती है । साथ ही मैं लिखित मे ये कानून बनाने की दरख्वास्त करूंगा कि कल को कोई बच्चा ऐसा करता है

तो उन्हे सख्त सजा दी जाये या फिर कोर्ट मैरिज के लिए लड़का लड़की का बालिग होना ही सब ना हो उसमे माँ बाप की रजामंदी भी शामिल हो । क्योकि जगत जी ने सही कहा माँ बाप का घर सराय नही जहाँ 22-24 साल खाया पिया फिर निकल लिए। इसी संदेश के साथ मैं ये अदालत खत्म करता हूँ कि माँ बाप के बिना बच्चे का वही वजूद है जैसे किसी भी संख्या के बिना 0 का ।” जज साहब बोले और अपनी सीट से उठ गये। 

” पापा मुझे माफ़ कर दो मैने बहुत गलत किया !” अदालत के बाहर सिमरन रोते हुए जगत जी का हाथ पकड़ कर बोली । 

” अभी अभी मैं तुमसे अपने सब रिश्ते तोड़ कर आया हूँ फिर पापा कैसे मैं तुम्हारा !” जगत जी बोले और वहाँ से निकल गये। 

सिमरन रोती हुई वापिस आ गई हालाँकि विवेक उसे लाना नही चाहता था पर मजबूर था। अगले दिन सिमरन को खबर मिली उसके पिता ने अपने घर मे उसकी मृत आत्मा की शांति के लिए पूजा रखी है ये सुन उसकी रूह काँप गई। अब उसे समझ आ गया था जो गलती उससे हुई वो वाकई मे बहुत बड़ी थी क्योकि अब विवेक के परिवार मे भी उसकी हैसियत महज नौकरानी वाली थी। 

दोस्तों इस कहानी के माध्यम से मैं भी आज की युवा पीढ़ी को संदेश देना चाहती हूँ कि प्यार करना गलत नही पर जब आपके माता पिता को आपके लिए वो प्यार सही नही लग रहा उसकी कोई तो वजह होगी । या तो उस वजह को मिटाइये या फिर माँ बाप की बात मानिये ।

अगर आपका प्यार सही भी है तो माता पिता को वक्त दीजिये उसे स्वीकार करने के लिए बजाय की घर से भाग जाये और माँ बाप की इज्जत को उछाल दे। वैसे भी अगर कोई प्यार आपसे रुपये , जेवर ला भागने को बोल रहा है तो वो सच्चा कतई नही है । इस बात को समझिये माता पिता का आशीर्वाद जहाँ औलाद की जिंदगी बनाता है वही उनका दिल दुखाना भगवान का दिल दुखाना है । 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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