संस्कारी बेटियां ही संस्कारी बहु बनती हैं। जितना और जैसा अनुभव मायके में मिलता है वही लड़की के लिए उसके ससुराल के लिए सीख होती है। रिश्तों की कोई पाठशाला तो होती नहीं है कि आप अच्छी बहु या बेटी बनने का कोर्स कर लें और बन जाए परफेक्ट बहू।
ऐसे ही अपने अच्छे और सुखद अनुभव लिए शिल्पी ने ससुराल में कदम रखा था। वह छोटी बहु बनकर इस घर में आई थी। मन ही मन उसने संकल्प लिया था इस परिवार की एकता को कभी टूटने नही देगी। और अपने संस्कारों को भी इस नए घर में साबित कर देगी।
दिन पंख लगा कर उड़ने लगे थे। जेठानी को बड़ी बहन समझने की उसने पहली भूल की थी। वह भूल गई थी कि देवरानी से प्रेम नहीं स्पर्धा होती है। हर दिन जैसे कोई रेस लगी हो और जबरन उसे इस रेस में धकेला जा रहा हो। कभी काम जल्दी खत्म करने की तो कभी अच्छा खाना बनाने की कभी ननद को नेग देने की रेस तो कभी रिश्तेदारों के सामने अपने को श्रेष्ठ साबित करने की।
शिल्पी अब थकने लगी थी। ऐसे माहौल में अब उसे घुटन महसूस होने लगी थी। उसने देखा था कि अपने घर में हर समस्या को लोग बात करके सुलझा लेते थे और रिश्ते फिर से प्रेम की चाशनी में डूब जाते।
शिल्पी ने अब जेठानी से स्पष्ट बात करने की ठानी आख़िर उसने तो उन्हें अपनी बड़ी बहन माना था और वह अपने रिश्तों को अहम और स्पर्धा की भेंट नहीं चढ़ने देना चाहती थी।
लेकिन नई नई दुल्हन बनी शिल्पी यह नहीं समझ पाई कि उसका ससुराल एक ऐसा जंग का मैदान है जहां हर समय अघोषित युद्ध छिड़ा रहता है। उसका जेठानी से पूछना भर था कि वह फट पड़ी।
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस तरह बात करने की। पूरा घर मेरे पति के पैसों से चलता है। तुम्हारे पति कमाते ही कितना हैं जो तुमसे मैं स्पर्धा करूंगी।
मैंने अकेले इतने साल इस घर को संभाला है अब मेरा मन करेगा तो काम करूंगी मन करेगा तो आराम! तुम भी तो अपनी जिम्मेदारी संभालो तब देखूंगी कितने दिन संस्कारों की बंसी बजाओगी।
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शिल्पी अपमानित सी उनके कमरे से बाहर आ गई। उसने ऐसे अप्रत्याशित उत्तर की कभी कल्पना भी नहीं की थी। क्या दीदी को मेरा सबसे प्यार से बात करना इतना खलता है कि उन्होंने ऐसी बातें अपने मन में कड़वाहट बना कर भर ली।
उसकी आंखों से आंसुओ की धार बहने लगी। जेठानी के कमरे से पूरी आवाज बाहर सासू मां के कमरे में जा रही थी। फिर भी सासू मां ने एक भी बार शिल्पी के पास आकर नहीं पूछा। वह काफी देर तक वहीं बैठी रोती रहीं फिर उठकर अपने काम में व्यस्त हो गई।
उस दिन के बाद एक और आश्चर्य जनक घटना घटित हुई। अब सासू मां का व्यवहार शिल्पी के प्रति रुखा ही रहता।
वह हर काम में उसकी गलती निकालती और बड़ी बहू सीमा को बढ़ावा देती।
शिल्पी के लिए यह समझ पाना कठिन हो गया था कि आख़िर उससे गलती कहां हुई।
आख़िर एक दिन उसके सब्र का बांध पति विशू के सामने टूट गया। वह फूट फूट कर रो पड़ी।
विशू ने उसकी पूरी बात सुनने के बाद कहा, शिल्पी भैया मुझे तीन गुना कमाते हैं। घर के खर्चे में हिस्सा तो मैं भी देता हूं और भैया भी लेकिन फिर भी मम्मी का झुकाव उनकी ओर ही अधिक रहता है। एक बात समझ लो घर में उसी का सिक्का चलता है जो ज्यादा नोट कमाता है।
तुम्हारी कोई गलती नहीं है खुद को दोष मत दो। मेरे कारण तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है। मुझे माफ कर दो।
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विशू भी लगभग रूआंसा हो गया था। शायद बरसों से जो बात वह महसूस कर रहा था शिल्पी के कारण आज उसकी जुबान पर आ गई थी।
आप चिंता मत करिए मेरे लिए तो आप दुनिया के सबसे अमीर इंसान हो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। और आज से माजी की बात का भी नहीं पड़ेगा।
उनके गलत सोचने से आप या मैं गलत नहीं हो जाते।
मैं आपके साथ हूं मुझे आपकी काबिलियत पर पूरा भरोसा है।
दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा और मन ही मन वादा किया कि अब ऐसी बातों के लिए कभी अपना मन नहीं खराब करेंगे।
शिल्पी ने जल्द ही बच्चों को पेंटिंग सिखाना शुरू किया। धीरे धीरे बच्चे बढ़ने लगे और बहुत कम समय में ही उसका पेंटिंग स्कूल चल निकला। अब वह भी विशू की आर्थिक रूप से मदद करने लगी।
सास और जेठानी का व्यवहार तो अब भी नहीं बदला लेकिन अब वो दोनों अपने जीवन में खुश और संतुष्ट हैं।
सबको खुश रखना संभव नहीं है एक और अनुभव उसके खजाने में जुड़ गया था।
वैसे भी कुछ लोग कभी नहीं बदलते किसी की अच्छाई को देखकर भी वो बुरा ही बर्ताव करते हैं। क्यों सही कहा न दोस्तो?? इसलिए ऐसे लोगों को इग्नोर कर के आगे बढ़ने मे ही समझदारी होती है।
सोनिया कुशवाहा