साधारण सी मध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार में पली बढ़ी संयुक्ता ने मेहनत कर मेट्रोसिटी के नामीगामी कंपनी में अपनी जगह बना ली थी । और स्वतंत्र विचारों वाले एक संपन्न परिवार में निखिल से संयुक्ता की शादी भी हो गई थी ।
शादी के पहले वर्षगांठ पर सास ससुर ने संयुक्ता के मम्मी पापा को भी आमंत्रित किया था , जाने से पहले सविता के मन में अनेक प्रकार की आशंकांए थी … इतने बड़े लोग हैं पार्टी में बड़े-बड़े लोग आएंगे हमें भी उनके स्टैंडर्ड का ख्याल रखना पड़ेगा.. खैर, काफी सोच विचार के बाद सविता और प्रशांत जाने को तैयार हुए …!
नीचे हॉल में सभी अभिभावक हमउम्र एक साथ खाना पीना व गप्पे मारना, कर रहे थे वहीं छत पर सभी युवा (बच्चे) अपनी मौज मस्ती में लगे हुए थे l
बार-बार ऊपर छत से निखिल संयुक्ता को आवाज देते ,संयुक्ता तुम भी ऊपर आ जाओ, सास ससुर भी कहते जाओ बेटा तुम भी अपने हम उम्र के साथ में पार्टी इंजॉय करो ,पर हर बार संयुक्ता , जी मम्मी जी कहकर कुछ काम में लग जाती ।
खाने पीने के बाद संयुक्ता ने बर्तन समेटा । रसोई की सफाई की… और जब सभी बड़े अपने-अपने रूम में जाने लगे तब संयुक्ता की मम्मी सविता ने कहा , बेटा तुझे कब से दामाद जी बुला रहे हैं तू ऊपर क्यों नहीं जाती , …..
” अब जाऊंगी मम्मी “
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बचपन से मैंने देखा है दादी के साथ आप और चाची रसोई में लगी रहती थीं , पहले जब मैं छोटी थी तब आप लोग बहू के रूप में दादी बाबा के साथ कितने आदर और अदब के साथ रहती थी …..तो बस मैं भी वही कोशिश करती हूं ।
वो क्या है ना मम्मी… आपने जो भी मुझे सिखाया था , बताया था वो तो उतना याद नहीं आता …ना ही ध्यान में रहता है ….पर उस समय की देखी हुई चीजें … बिताए हुए समय… हमेशा याद रहते हैं ।
तू इतनी समझदार हो गई है बिटिया , तभी पीछे से आकर समधन जी ने कहा , इससे भी ज्यादा…. मेरी बहू संयुक्ता ने तो मेरी सोच ही बदल दी…..
मैं हमेशा सोचती थी… सास बहू यदि अलग-अलग रहे तो प्यार बना रहता है…. साथ रहने से थोड़ी बहुत खटपट की संभावना बनी रहती है , फिर वही धीरे-धीरे मनमुटाव का रूप ले लेती है…!
पर संयुक्ता ने…. संयुक्त परिवार में बिताए अपनी हर वो यादों को सांझा किया है…. जिसमें बाबा दादी की मुख्य भूमिका होती थी कितना सम्मान और प्यार था , सच में सविता जी बड़े बुजुर्ग के साथ में रहने से…..
” कितनी सारी चीजें संस्कार, बड़ों का आदर सम्मान, परंपरा, रीति रिवाज जैसी न जाने कितनी चीजें हमें कागज कलम में लिखकर रट्टा मार कर बच्चों को नहीं सीखानी पड़ती “
बच्चे देखकर उस माहौल में पल बढ़कर खुद ही सीख जाते हैं ।
क्या है ना , मैं शुरू से ही एकाकी परिवार की हिस्सा रही हूं ….बहु संयुक्ता ने …संयुक्त परिवार की वो छोटी-छोटी ,बारीकी चीजों से अवगत कराया जिससे मैं पूर्णत: अनभिज्ञ थी… सच में सविता जी आज के परिवेश में , आपाधापी की जिंदगी में… बच्चों को यदि बड़े बुजुर्ग से धरोहर के रूप में इस प्रकार के संस्कार मिले तो बच्चों को इस अवसर को कभी नहीं गंवना चाहिए…l
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समधन जी के मुख से बिटिया और अपने परिवार की तारीफ सुनकर सविता और प्रशांत फूले नहीं समा रहे थे…।
( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी