सीढ़ी – माधुरी गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

सुलभा हर रोज़ की तरह सुबह सोकर उठी तो देखा कि उसकी मां नीला देवी पहले से उठकर दो कप चाय बना कर उसका इन्तज़ार कर रही थी।उसे आश्चर्य हुआ कि रोज़ तो माँ उसके ऑफिस जाने के बाद ही उठती हैं फिर आज ये परिवर्तन कैसे।उसने े मांसे पूछा क्या आज आपको कहीं जाना है जो आप इतनी जल्दी उठ गई।

अरे,नहीं कही नही जाना है वो,तो आज मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी।शाम को तो ऑफिस से लौटने का कोई समय निश्चित नही होता और फिर तुम थकी हुई होती हो तो बात हों नहीं पाती ठीक से

बताइए न माँ क्या आपको अपने लेडीज़ गुरप ग्रुपके साथ फिर कहीं घूमने जाना है। जिसके लिए पैसों की ज़रूरत है।

नहीं बेटा में कही घूमने नहीं जा रही।

वो मैं कह रही थी कि तुमको याद है न कि तुम्हारी छोटी बहन रेवा का बेटा अगले इतवार को पूरे एक साल का हो जाएगा ,यानी अगले इतवार को उसका पहला बर्थ डे है तो घर में एक छोटी सी पार्टी करते हैं न।

वो सब तो ठीक है माँ लेकिन रेवा की ससुराल तो इसी शहर में है तो अपने घर में करें पार्टी,हम लोग भी वहीं जाकर ऐंजॉय कर लेंगे।

वो सब तो ठीक है पर तुम तो जानती ही हो न कि उसके ससुराल वाले कितने कंजूस हैं ।वे लोग तो कोई पार्टी करने से रहे रेवा का मन था पहली बर्थ डे है तो धूमधाम से मनाया जाता ।

चाय का कप ख़ाली करके सुलभा अपने ऑफिस के लिए निकल गई।परंतु उसका मूड आज बहुत उखड़ गया था।

मन ही मन सोचने लगी, कैसी माँ है,रेवा के बेटे की बर्थडे पार्टी की तो चिन्ता है,लेकिन उसकी शादी की बावत जरा भी चिंता नहीं है।अगले इतबार को बह भी तो पूरे पैंतीस साल की हो जायेगी।

सुलभा अपने,तीनों भाई बहिनों में सबसे बड़ी थी,उससे छोटी बहन रेवा व उससे दो साल छोटा भाई सुवीर.।उसके बाबूजी बैंक में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे, रिटायरमेंट के सिर्फ दो साल रह गये थे।सुलभा का ग्रेजुएट पूरा करते ही उसकी शादी कर देना चाह रहे थे।

परंतु मन चाहा सदैव पूरा होजाय तो कहना ही क्या।होता तोवहीहै जो ईश्वर ने हमारे लिए रच रखा है।सुलभा के बाबूजी को किसी लड़के बावत जानकारी दी थी कि अमुक घर में न केवल लड़का योग्य है ऊपर से दहेज का भी कोई चक्कर नहीं है। इतबार का दिन था,

बाबूजी अपनी धुन में चले जारहे थे कि पीछे से किसी स्कूटर बालेने टक्कर मारी, बाबूजी लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिर पड़े, उम्र का तकाजा था ,गिरते ही वेहोश हो गये किसी तरह किसी भले इनसान ने बाबूजी को पानी पिलाया फिर उनसे घर का पता पूछ कर घर पंहुचा दिया। डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि वीपी हाई होने के कारण ही एसा हुआ है, साथ ही बाबूजी का दांया हिस्सा भी पैरालैटिक अटैक का शिकार हो गया था।

बाबूजी की पूरी सेवा की जिम्मेदारी सुलभा ने संभाल ली थी,उनके सूसू। पॉटी तक की।मां तो उस कमरे तक में जाने से कतराती थी।उनको तो उस कमरे में जाने से ही उल्टी आने लगती थी।

बाबूजी सुलभा से कहते बेटा तू मेरी इतनी सेवा कर रही हैं इसका अच्छा फल तुझे ज़रूर मिलेगा।

देखना तेरी शादी में कितनी धूमधाम से करूं गा। तू इस घर की बड़ी बेटी जोहै पहली शादी होगी घर में।

पहले आप ठीक हो जाइए फिर बात करते हैं।शादी की बात सुनकर सुलभा के दिल में खुशी की घंटियां सी बजने लगती,और उसे अपने सहपाठी अमल की याद आने लगती।अमल व सुलभा साथ ही पढ़ते थे दोनों कीपसंद नापसंद भी एक दूसरे से बहुत मिलते थे थे।अमल आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया,

लेकिन सुलभा से यह वायदा जरूर किया कि प्लीज़ मेरा इंतजार करना मेराी जगह किसी और को मत देना।यह सब सुन कर सुलभा मन्द मन्द मुस्करा देती,हां उसके गाल जरूर लाल हो जाते।

तभी एक दिन बाबूजी की तबियत अचानक बहुत बिगड़ गई सुलभा का हाथ अपने हाथ में लेकर धीरे धीरे शब्दों में कहा ,बेटा मुझसे एक वायदा कर यदि मुझे कुछ होगया तोइस घर को संभालने की जिम्मेदारी तेरी होगी।यह कह कर बाबूजी ने प्राण त्याग दिए।

सुलभा की आंखों के सामने अंधेरा छा गया , समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। सारे क्रियाकर्म करने के बाद सुलभा ने देखा कि बैंक में जो भी पैसा जमा था,वह बाबूजी के इलाज में खर्च हो चुका था।

मां ने तो तटस्थ रुख अपना लिया था,वह तो अच्छा हुआ कि वैंक बालों ने सुलभा को बाबूजी की जगह नौकरी देगी।कम से कम घर का खर्चा तो चलने लगा।नोकरी के साथ ही सुलभा ने कुछ ट्यूशन पढ़ाने भी शुरू कर दिऐ।

समय अपनी गति से बीत रहा था,रेवा का भी ग्रेजुएशन हो गया था , छोटा भाई समीर भी इंजीनियरिंग में प्रवेश ले चुका था।

घर में सभी की आंखें समीर पर टिकी थी कि कब इसकी पढ़ाई पूरीहो नौकरी लगते गाड़ी कुछ आगेखिसके। शुरू में तो सुलभा के लिए भी कुछ अच्छे रिश्ते आते लेकिन मां उन रिश्तों को यह कह कर लौटा देते कि अभी हमारी बेटी शादी नहीं करना चाहती। जब सुलभ ने कभी अपने लिए मुंह खोलना चाहा तो

मां ने यह कहकर उसको चुप करा दिया कि तुम शादी कैसे कर सकती हो।तुमको तो अभी पूरे परिवार की नैया पार लगानी है।फिर रिश्ते आने बंद हो गए।

रेवा को आगेपढाई में कोई रूचि नहीं थी,सो अच्छा रिश्ता मिलते ही उसकी शादी करती,समीर की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी,उसने अपनी सहपाठी नीरजा से शादी करली।नीरजा से पिता एक बड़े बिजनेस मैन थे ,उनकी जान पहचान काफी बड़े लोगों से थी, अतः उन्होंने समीर की जॉव तो किसी इनटरनेशनल कम्पनी में लगवा दी थी

,लेकिन एक शर्त जरूर रखती थी समीर के सामने कि मेरी बेटी नीरजा तुम्हारे मिडिल क्लास घर में नही रहेगी।मैं शादी में एक बड़ा बंगला देदूंगा,तुम दोनो बही रहेंगे।

पहले इतने बड़े बिजनेस मैन की बेटी से शादी फिर एक जॉव साथ ही रहने को बंगला,समीर का जमीर इन सुविधाओं के पीछे डोल गया ।उसने नीरजाके पापा की शर्तें मान ली।शादी के बाद वह मां से मिलने घर जरूर गया था। लेकिन अकेले।मां से बोला मां मैंने शादी करली हैं परन्तु तुम्हारी बहू सबके साथ नहीं रहना चाहती,बैसे मैं इसी शहर में ही तो हूं आपसे मिलने जब तब आया करूंगा। चिन्ता मत करो कुछ दिनों में सब ठीक हो जायेगा।

अब घर में सुलभा व उसकी मां ही रह गए थे,लेकिन घर की जिम्मेदारियों में कोई कमी नही आईं थी।मां ने अपना मन लगाने के लिए किट्टी पार्टी जॉइन करली थी।वे अपनी सहेलियों के साथ कई बार घूमने जा चुकी थी।जब भी जाना होता वे झिझक सुलभा से पैसा मांग लेती।

और आज ये रेवा के बेटे की बर्थडे पार्टी की बात। सुलभा मन ही मन टूट चुकी थीसुलभा के ऑफिस जाने केबाद समीर व रेवा का परिवार आकर मां के साथ पार्टी करते।ऐसा ही एक दिन था इन लोगों की पार्टी चल रही थी हंसने खिलखिला नेकी आबाजे घर के बाहर तकआरही थी।

सुलभा के आते ही सब अपने अपने घर खिसक लिए।सुलभा के सिर में दर्द था सो आज जल्दी घर आगई थी। रसोई में जाकर देखा तो सारा नाश्ता खत्म था।सुलभा ने अपने लिए एक कप चाय बनाईं और अपने रूम में जाकर लेट गई।मां ने उसका हाल तक जानने की जरूरत नहीं समझी।

इसी ऊहापोह में उलझी बैंक पहुंची तो अमल की आवाज आई,आगई मेरी सुलू। पहले तो उसे अपने कानों पर यकीन नही हुआ फिर मुड कर देखा तो सचमुच दो केबिन छोड़ कर अमल को बैठा पाया।अरे तुम तो विदेश चले गए थे न ।हां गया तो था लेकिन तुम्हारे विना वहां मन ही नही लगा।

कह कर जोर से हंस दिया। बिलकुल भी नहीं बदले तुम अमल इन सालों में,और तुम तो एक दम बदल गई हो,ये आंखों के नीचे काले निशान बालों से झांकती चांदी जैसी सफेदीऔर चेहरा तो देखो कैसा निस्तेज हो गया है।एसा क्या हो गया इन बीते सालों में कि हसतीहस्ती खिलखिलाती मेरी सुलू की ये हालत हो गई।

अमल ने सुलभा के कंधे पर हाथ रख दिया,और सुलभा को जैसे एक सुरसुरक्षा कवच मिल गया हो।

उसने इन बीते सालों में जो भी घटित हुआ वह सब अमल से कह सुनाया।अमल थक चुकी हूं मैं इन जिम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए,अब अपनी जिंदगी सुकून से जीना चाहती हूं।

सुलभा,बुरा मत मानना, तुम कब तक सीढ़ी बनी रहेगी अपने परिवार के लिए,अपने भाई वहन को सैटल कर दिया,भाई ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया रेवा भी अपने परिवार में खुश है , तुम्हारी मां भी अपनी लाइफ एंजॉय कररहीं हैं।तुम्हें नहीं लगता कि तुम इन लोगों के आगे बढ़ने में सीढ़ी का रोल प्ले कर रही हो जिस पर चढ़ कर सभी लोग आगे बढ़ गए हैं बस सिर्फ तुम वहीं कि वहीं खड़ाी हो।

तुम चाहो तो तुम भी खुश रह सकती हो,हम शादी करलेते हैं फिर देखना कैसे खुशियां तुम्हारे आस-पास होंगी। अच्छा शाम कोकैफे में मिलते हैं आराम से बैठ सारी बातें तय कर लेते हैं,फिर डिनर करके ही तुम आज घर जाना।

तो क्या तुमने अभी तक शादी नहीं की।अरे कैसे घर लेता शादी,वायदा तो तुमसे किया था शादी करने का

अच्छा मैं मां से बात करके बताती हूं।

घर लौटने में सुलभा को काफी देर हो चुकी थी लेकिनआज उसकामन फूल थी तरह हल्का व खुशी से लबरेज था।घर में घुसते ही मां ने घूर कर देखा ये कोई टाइम है घर बापस लौटने का। पता नहीं कहां कहां मुंह उठाए घूमती रहती हो।

मां आज मैंने अपने लिए लडका पसंद करलिया है और कल मैंउसके साथ शादी कर रही हूं।।

ऐसे कैसे किसी के साथ तुम शादी घर सकती हो,कौन है कैसा है ये सब मैं डिसाइड करूंगी तभी तुम शादी घर पाओगी।

नहीं मां आपको परेशान होने की कोई, जरूरत नहीं है जब मेरी शादी की उम्र थी तो आपने घर आए रिश्तों कों यह कह घर बापसकरदिया कि अभी हमारी बेटी शादी नहीं करना चाहती। मैंने इस घर की खुशियों को अपनी खुशियों से ऊपर रखा और आपने मेरे प्यार व विश्वास काफायदा उठाया।

समीर व रेवा की तरफ तो आपने पूरी जिम्मेदारी निभाई।समीरकी पत्नी जब आपसे मिलने आई तो आपने झट से अपने गले से सोने की चेन उतार कर उसको पहना दी और रेवा के बेटे का बर्थडे मनाने के लिए अभी भी मुझसे फरमाइश घर रहीं हैं।याद रखिए # प्यार व विश्वास के बीच में एक पतला धागा होता है वो अपने तोड़ दिया है।

इतना कहकर अपना जरूरी सामान पैक करके सुलभा बाहर जाने को निकली,जहां अमल उसका इंतजार कर रहा था।मां मैं अमल से शादी घर रहीं हूं कोर्ट में कल।आप मुझे आशीर्वाद देने आएंगी तो मुझे अच्छा लगेगा,कह घर सुलभा ने घर थी देहरी लांघ ली।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता नई दिल्ली ७६

#रिश्तों के बीच में विश्वास का एक पतला धागा होता है

2 thoughts on “सीढ़ी – माधुरी गुप्ता   : Moral Stories in Hindi”

  1. सही किया, आजकल माँ बाप भी स्वार्थी हो गए हैं, अपने होने का नाटक करने वालो के चेहरे से पर्दा हटता है तो उनका असली घिनौना चेहरा सामने आता है

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!