सीधे साधे बिटवा का मुंहफट बहुरिया – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

” हे भगवान, जरा देखो तो कैसे कतर कतर जुबान चल रही है… !! हमारा बिटवा तो बिलकुल गाय है गाय.. और बहू को तो देखो । ,,

लेकिन अम्मा. , गाय तो बहु बेटियों को कहते हैं.. भईया तो लड़के हैं ना !! ,,

” चुप कर निगोड़ी…. लगता है तुझपे भी इस बहु का असर आ गया है… कभी सुना है गाँव में किसी बहु को इस तरह मुंह चलाते…. ?? ये भी ना देखती कि तेरे बाऊजी भी घर पर हैं….. बेचारा मेरा भोला भाला सा बच्चा फंग गया शहरी मुर्गी के चक्कर में।”

शिवानी को अपने बेटे रनवीर के लिए पसंद तो कमला जी ने किया था लेकिन उन्हें पता नहीं था कि लड़की शहर में अपनी बुआ के पास रहकर पढ़ाई करती थी….. उन्होंने तो गाँव की लड़की समझकर रिश्ता पक्का कर दिया था।

कमला जी को अपनी शहरी बहू शिवानी की हरकतें हजम नहीं हो रही थी । वहीं शिवानी की ननद और आस पड़ोस की लड़कियां उसके हंसमुख व्यवहार और स्मार्टनेस पर मुग्ध हुई जा रही थीं।

” हाय…. भाभी कितनी अच्छी है… लेकिन घमंड का नामोनिशान नहीं…. हमारे गाँव में ऐसी दो चार बहुएं आ जाएं तो गाँव का माहौल हीं बदल जाए।”

लड़कियों की बातें सुनकर कमला जी खीझ रही थीं… लेकिन अब कर भी क्या सकती थीं।

कुछ दिनों में हीं शिवानी घर के हिसाब से सारे काम करने लगी लेकिन उसका चंचल और बिंदास स्वभाव तो बदलने से रहा। रनवीर जितना संकोची स्वभाव का था शिवानी उससे बिलकुल विपरीत।

एक दिन बातों बातों में शिवानी ने रनवीर से पूछा, ” मम्मी जी, और पापा जी की शादी को कितने साल हो गए??”

” शायद पच्चीस साल होने को आए….”

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” अरे वाह, !! तब तो हमें उनकी सिलवर जुबली मनानी चाहिए ,, शिवानी चहकते हुए बोली।

” अरे नहीं नहीं…. माँ बाऊजी को ये सब पसंद नहीं।” घबराते हुए रनवीर बोला।

” अच्छा… !!! आप रहने दो। पसंद तो तब होगा ना जब कुछ करेंगे.. सबको चाव होता है लेकिन कुछ माहौल और कुछ परिस्थितियों के कारण इंसान उसी को अपनी जिंदगी मान लेता है जिसमें वो रहता है । देखना कुछ नया करना उन्हें जरूर अच्छा लगेगा।”

शिवानी ने अपनी ननद के साथ मिलकर गांव की धर्मशाला में सारा इंतजाम कर लिया। बहु और बेटी का यूं बिन बताए बार बार बाहर जाना कमला जी को बहुत बुरा लगता था। वो डांटती थी तो ननद कोई ना कोई बहाना बना देती। सालगिरह के दिन जिद्द करके शिवानी और महक ने कमला जी को सुंदर सी नई पहनाई और बहुत मना करने के बाद भी शिवानी ने उनका श्रृंगार कर दिया। आईने में खुद को देखकर कमला जी शर्मा रही थीं।

रनवीर ने भी बाऊजी को नया कुर्ता पायजामा पहन दिया और मंदिर के बहाने दोनों को धर्मशाला ले गए। वहां बहुत से रिश्तेदार और मेहमान पहले से ही मौजूद थे। बहुत सुंदर सजावट की गई थी । बिजली की झालरें और फूल सजे थे। कमला जी और उनके पति की पुरानी फोटो को भी जगह जगह लगाया था जिसे देखकर दोनों को अपने पुराने दिन याद आ गए। कमला जी तो बहुत शर्मा रही थीं और बार बार आंखे दिखा रही थी लेकिन बच्चे हंस कर टाल देते।

शिवानी बोली ” मम्मी जी , हमारे लिए और आपके लिए आज बहुत बड़ा दिन है। आपको जितना डांटना है बाद में डांट लेना लेकिन अभी इस दिन को अच्छे से मना लो। ससुर जी ने कोहनी मारते हुए कहा, ” भाग्यवान, जिंदगी में पहली बार सालगिरह मना रहे हैं और सच कहूं तो आज तो तुम बिलकुल वैसी लग रही हो जैसी हमारी शादी के दिन लग रही थी…।” कमला जी शर्म से लाल हो गईं।

सबने बहुत धूम धाम से उनकी पच्चीसवीं सालगिरह मनाई…. ऊपर से कमला जी की आंखों में खुशी से आंसू भी छलछला उठे…

घर आकर शिवानी ने कान पकड़ते हुए कहा, “मम्मी जी अब जितना डांटना है डांट लो।”

 कमला जी उसके गालों पर थपकी लगाते हुए कहा, ” ऐसी ही बनी रहना बहू… तेरे आने से इस परिवार ने भी हंसना मुस्कुराना सीख लिया… सच में कुछ अलग होने का अपना ही मजा है।”

रनवीर और महक भी उनसे लिपट गए ।

लेखिका : सविता गोयल

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