दो भाइयों के बीच सुभाषिनी अकेली बहन थी। कहते हैं… सुभाषिनी से पहले उनके कुल में कभी कोई बेटी पैदा नहीं हुई थी…. इसलिए पूरे परिवार की लाडली, दुलारी और सबके आंँखों की नूर थी सिब्बो जिज्जी। घर में सभी लोग उन्हें सिब्बो के नाम से ही बुलाते थे।
कक्षा पाँच पास करने के बाद आगे पढ़ाई की व्यवस्था आसपास गांँव में नहीं थी जिस कारण उनकी शिक्षा आगे नहीं हो पाई। पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थी सुभाषिनी…. घर में रहकर कई ग्रंथों का अध्ययन किया। घर के कामकाज में पूर्णतया दक्ष थी। घरेलू ऐसा कोई काम नहीं था जो उन्हें आता न हो।
कुछ साल के बाद सिब्बो जिज्जी के लिए लड़का देखना प्रारंभ हो गया। एक जगह घर वर सब कुछ ठीक-ठाक होने के कारण रिश्ता पक्का कर दिया गया।
युवराज भी पाँच बहनों के बीच घर के अकेले बेटे थे। युवराज पढ़े लिखे एवं आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। इकलौते होने के कारण पिताजी ने नौकरी करने नहीं जाने दिया। खेतवाड़ी, बाग, ट्रैक्टर, पंपिंग सेट सब संसाधन उनके घर में थे। यह सब होना उस जमाने में संपन्न परिवार के लक्षण माने जाते थे।
कुछ दिन के पश्चात सिब्बो जिज्जी का विवाह युवराज के साथ बहुत धूमधाम से संपन्न हो गया। जब वह ससुराल गई तब पाँचो नन्दों ने अपनी इकलौती भाभी को पलकों में बिठा लिया। सिब्बो जिज्जी ने अपने व्यवहार से पूरे परिवार का मन मोह लिया। सुभाषनी अपनी सभी ननदों एवं सासु माँ की हर सुविधा का ध्यान रखती थी। किसी भी ननद से न ही कोई काम करने के लिए बोलती, और न ही किसी को कोई काम करने देती थी। स्वयं सुबह से रात तक खुद ही काम करती थी। पांचों ननदों की बहुत ही दुलारी भौजाई थी सिब्बो जिज्जी।
कुछ समय के पश्चात सिब्बो जिज्जी गर्भवती हो गई…. उनके ससुराल में उन्हें हाथों हाथ रखा गया। उन्हें बिस्तर से नीचे उतरने तक की अनुमति नहीं थी। सिब्बो जिज्जी के लाख मना करने के बावजूद सभी ननदें उनकी सेवा में लगी रहती थी। सबके चेहरे खिले रहते थे क्योंकि घर में एक नन्हा मेहमान आने वाला था। परिवार के सभी सदस्य अपनी तरफ से सिब्बो जिज्जी का बहुत ख्याल रखते थे।
अम्मा की जिद पर सिब्बो जिज्जी को ससुराल से मायके बुला लिया गया। अम्मा ने कहा कि पहला बच्चा मायके में ही हमारी देखरेख में होगा।
कुछ दिन के पश्चात प्रसव का समय हो गया…. जिज्जी ने एक चांद से बेटे को जन्म दिया। पूरा परिवार खुशी से झूम उठा। जीजी के ससुराल में तुरंत खबर देने के लिए एक आदमी को भेज दिया गया।
अचानक जिज्जी की हालत खराब होने लगी। अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया गया… लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
अम्मा का रो- रोकर बुरा हाल हो गया। किसी ने रत्ती भर भी इस अनहोनी के बारे में नहीं सोचा था जो हो गई। बेटी के गम में अम्मा ने खटिया पकड़ ली और दिन पर दिन उनकी भी हालत खराब रहने लगी।
जिज्जी के ससुराल वालों के ऊपर मानो गम का पहाड़ टूट पड़ा हो। युवराज एवं उनके परिवार वालों का संभल पाना बहुत मुश्किल हो रहा था, तभी युवराज को पता चला कि- अम्मा ने खटिया पकड़ ली है। दामाद ने आकर अम्मा को ढाढस बंँधाया लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
कुछ दिन के पश्चात युवराज बच्चे को लेकर अपने घर चले गए लेकिन… नियति को कुछ और ही मंजूर था नवजात शिशु भी कुछ दिन के पश्चात चल बसा।
एक साल बीत गया अम्मा की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ… वह अपनी बेटी के गम में पागल सी हो गई। इधर घरेलू दबाव से युवराज का दूसरा विवाह रेणुका के साथ कर दिया गया। युवराज ने सुहागरात में रेणुका से कहा.. कि तुमसे एक अनुरोध कर रहा हूंँ कि यदि तुम किसी की बेटी बन जाओ तो जीवन भर तुम्हारा ऋणी रहूंँगा। यह तुम्हारा मेरे प्रति सबसे बड़ा सम्मान होगा। रेणुका ने अपनी सहमति दे दी।
दूसरे दिन युवराज रेणुका को लेकर अपनी पहली ससुराल गया….. अम्मा को देखकर कहा…. अम्मा यह तुम्हारी बेटी सिब्बो!!
रेणुका अम्मा के गले लग गई।
अम्मा ने आंखें खोल रेणुका की तरफ देखने लगी। एक ठंडी सांस लेते हुए कहा…. मेरी सिब्बो रेणुका के भेष में!!
रेणुका में अम्मा को अपनी बेटी सिब्बो ही दिख रही थी।
युवराज ने रेणुका से कहा तुम यहांँ रूको! कुछ दिन के बाद मैं तुम्हें ले जाऊंँगा। रेणुका ने भी हाँ में अपनी सहमति दे दी।
कुछ दिन के बाद अम्मा की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। रेणुका का सानिध्य पाकर वह रेणुका को ही अपनी बेटी सिब्बो मानने लगी। रेणुका के चाल- ढाल हाव- भाव बातचीत करने के अंदाज में….. रेणुका में ही उन्हें अपनी बेटी सिब्बो नजर आने लगी।
एक दिन अम्मा रेणुका को अपने सीने से बहुत देर तक लगाये रखी और एक सुकून की सांँस लेते हुए कहा कि तुम ही मेरी बेटी सिब्बो हो।
उस दिन के बाद मांँ बेटी का यह रिश्ता सबसे बढ़कर रिश्ता बन गया। सिब्बो अम्मा के आंखों का तारा बन गई।
रेणुका ही अब उस घर की सिब्बो बन गई। दोनों छोटे भाई नवीन और प्रवीण को अपनी जिज्जी मिल गई। रेणुका को अपने मायके से भी ज्यादा प्यार दुलार इस घर में मिल रहा था वह बहुत खुश थी।
कुछ दिन के बाद युवराज रेणुका को लेने आए। बेटी को तो ससुराल जाना ही है। अम्मा फिर उदास रहने लगी… लेकिन उन्हें खुशी थी कि उनकी सिब्बो वापिस आ गई है।
रेणुका का पहला सावन था। अम्मा ने बहुत ढेर सारा सामान गहने ,कपड़े शिब्बो एवं उसकी सास, ननदो के लिए श्रावणी भेजी, और बेटी को मायके ले जाने के लिए ससुराल वालों से अनुरोध किया।
सिब्बो मायके आकर अम्मा के गले लग गई। अपने नये मायके में अपनापन और असीम अनुराग पाकर बहुत खुश थी। रेणुका को अपने मायके से भी ज्यादा इस घर से लगाव हो गया था। दोनो छोटे भाई हमेशा सिब्बो जिज्जी के आने की प्रतीक्षा करते रहते और जब जिज्जी आती तब जिज्जी के साथ सोने के लिए आपस में नोक-झोंक करते। अम्मा बरोठे में एक साथ सबकी खटिया बिछाती। अम्मा जिज्जी को अपने साथ सुलाती और बहुत रात तक बिटिया के ससुराल के सुख दुख की बातें सुनती। सिब्बो जिज्जी जब तक मायके में रहती अम्मा का चेहरा हमेशा खिला रहता।
जिज्जी भी छोटे भाइयों के मिलकर खूब धमा चौकड़ी करती थी। छोटे भाई भी अपनी छोटी सी छोटी बात जिज्जी के साथ साझा करते।
एक दिन प्रवीण रोते हुए आया और बोला ननकुआ बोल रहा है कि सिब्बो जिज्जी तुम्हारी अपनी नहीं हैं क्या यह सच है अम्मा??
नहीं बेटा!! विवाह के पश्चात बेटियां परायी हो जाती हैं क्योंकि अपने घर में कम ससुराल में ज्यादा रहती हैं, इसलिए उसने यह कहा होगा। सिब्बो जिज्जी ही तुम्हारी अपनी जिज्जी है। अम्मा के मुख से यह बात सुनकर प्रवीण खुश हो गया।
वार्षिक परीक्षा खत्म होने की दोनों भाई इंतजार करते ….. जैसे ही छुट्टियां शुरू होती दोनों अपनी जिज्जी के ससुराल चले जाते।
एक दिन दद्दा की तबीयत ज्यादा ही खराब हुई दोनों भाइयों को लेकर जिज्जी जीजा तुरंत गांव आ गए। अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन दद्दा को बचाया नहीं जा सका। एक बार फिर से घर की खुशियां छिन गई। जिज्जी और जीजा ने सबको ढांढस बंधाया और पूरे घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
एक दिन अम्मा ने सिब्बो जिज्जी को गहना, जेवर और नगदी सौंपते हुए कहा अब इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारी है।
दद्दा के गम को अम्मा सहन नहीं कर पाई और कुछ दिनों में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
नवीन ने बीए द्वितीय वर्ष में ही दाखिला लिया था। घर की समस्याओं को देखते हुए एक सुंदर सुशील समझदार लड़की से विवाह पक्का कर दिया गया और कुछ दिनों के बाद जिज्जी ने पूरी जिम्मेदारी के साथ विवाह संपन्न करवाया।
कुछ दिनों के बाद प्रवीण पढ़ लिखकर एक सरकारी संस्थान में नौकरी करने लगा। जिज्जी ने उसका भी ब्याह एक समझदार पढ़ी-लिखी लड़की से करवा दिया।
आप सब कुछ सुचारू रूप से चलने लगा। जिज्जी ने एक दिन दोनों भाईयों को बैठाकर नगदी, गहने जेवरात बराबर दोनों में बांट दिए।
यह क्या जिज्जी!! दोनों भाई एक साथ बोल पड़े। जब हम तीन भाई बहन हैं तो हिस्से भी तीन ही होंगे। जिज्जी के लाख मना करने के बावजूद भाइयों ने एक न सुनी और तीसरा हिस्सा उन्हें जबरदस्ती सौंप दिया। हमारे घर की मुखिया आप ही हैं जिज्जी….और हमेशा रहेंगी।
रेणुका दो बच्चों की मांँ बन गई। बच्चे भी आजीवन नवीन और प्रवीण को सगा मामा समझते रहे। सभी कामकाज में दोनों भाई बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो रक्त संबंध से भी बढ़कर हो जाते हैं। रेणुका भी रेणुका न रहकर हमेशा के लिए सिब्बो जिज्जी बन गई।
-सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
हल्दिया, मेदनीपुर, पश्चिम बंगाल
#रिश्तो की डोरी टूटे ना