श्रीमती की…तारीफ – विनोद सिन्हा “सुदामा”

आज़ तो घर में मानों बवाल कटने से बची थी..

हुआ यूँ कि..

मैंने जैसे ही श्रीमतीजी के हाथों की बनी चाय की पहली चुस्की ले अखबार हाथ मे लिया..

मेरे मुँह से…..आहहहा व वाहहह दोनों स्वर एक साथ निकलें..

बता दूँ कि मेरी श्रीमती जी चाय बड़ी अच्छी बनाती थी…

मानों कोई जादू हो उसके…हाँथों में

मन कितना भी भारी क्यूँ न हो..

उसके हाँथों की बनी मसाला चाय की एक घूँट पीते ही मन तरोताजा हो जाता.

सारी थकान सारी पीड़ा क्षण भर में मिट जाती…

चाय ही क्या सबकुछ अच्छा बनाती अच्छा खिलाती…

बात व्यवहार भी बहुत सुंदर…

झगड़ा पसंद नहीं थी..

बिल्कुल शांत और सुशील…

पति के साथ मिल जुलकर रहने में विश्वास रखती..

मैं खुद को बड़ा सौभाग्यशाली भी समझता…

विरले पतियों के नसीब में ही ऐसी पत्नियाँ होती है..

जिसकी मैं अक्सर  तारीफ भी किया करता..था

अहोभाग्य मेरे जो तुम मुझे मिली…

न तो मुझे कभी उसकी अच्छाई स्वीकार करने में तकलीफ हुई और न कभी सोच विपरीत रखा..उसके प्रति..

वो भी मेरे मुख से हर घड़ी अपनी तारीफ सुनकर खुश रहती…फूले नहीं समाती ….

किसी किसी दिन तो ज्यादा खुश होकर चाय के साथ..गरमागरम पकौडे भी ला रखती…सामने

लेकिन..

क्या हुआ कि उस दिन मेरी श्रीमती जी मेरे पास आकर बोली..

सुनों…जी.

आप न यूँ बात बात पर मेरी झूठी तारीफ न किया करो..

झूठी तारीफ… मतलब….



मैने कौतूहल वश पूछा

श्रीमति जी ने हड़बड़ा कर कहा…

मेरा मतलब मेरी तारीफ नहीं किया करो….

तुम्हें नहीं पता पति के द्वारा पत्नी की तारीफ करना दुनिया को नहीं सुहाता…

मैंने आश्चर्य भरी नज़रों से श्रीमती जी को देखा..

आखिर क्यूँ भला…तुम्हें दुनिया से क्या लेना

और एक पत्नी की तारीफ उसका पति ही ना करे तो फिर कौन करेगा..

वो तो मैं समझती हूँ….और मानती भी हूँ आप बहुत भोले एवं भले इंसान है…परंतु..

क्षण भर को चौड़ा होता सीना श्रीमती के कहे “परंतु” शब्द पर सिकुड़ सा गया…

मैंने श्रीमती पर नज़रें गड़ाते हुए पूछा..

परंतु क्या….??

जी वो….वोवववो

पड़ोस वाली मिसेज बत्रा कह रहीं थी कि

आप पतियों की मानसीकता भी बड़ी अजीब होती हैं..

अच्छी पत्नी मिलें तो दिक्कत… झगड़ालू मिले तो परेशानी..

तो….इसमें तुम्हें क्या परेशानी है.

.तुम तो अच्छी भली हो…

और मैं तुम्हें कभी कुछ कहता भी नहीं…तो क्यूँ नाहक कौन क्या कहता है सोच परेशान हो रही हो..

सच्ची न…मन से कह रहे…

श्रीमती ने अविश्वास भाव से पूछा

हाँ तो..तुम्हें क्या झूठ लगती है…

नहीं नहीं ऐसी बात नहीं..

वो मिश्रा जी की पत्नी के कही बातों पर आ गयी थी.

वो तो दो कदम और आगे कह रही थी..

मेरी जिज्ञासा अपने चरम पर थी…जिसके वशीभूत होकर

श्रीमती से पूछ बैठा…

मिसराइन का कहा भी कह डालो…और उन्हींका क्यूँ…चौधराईन… हो शर्माईन हो…जिसने भी जो कहा कह डालो.. जरा मैं भी तो सुनूँ हम पतियों के बारे में तुम और तुम्हारी महिला मंडली क्या राय रखती हैं..

जी वो कह रही थी कि…

एक भारतीय पति का यह सबसे ख़ास गुण होता है कि भले ही उसे गुणवान पत्नी ना मिली हो पर वह अपनी पत्नी को अवगुणों के अनुसार नाम देता फिरता है जैसे डायन, चुड़ैल.जादूगरनी..आदि आदि

मानो पत्नियों का नामकरी करना उनका जन्मसिद्ध अधीकार हो..

किसी भी पति के लिए कहना स्वाभाविक है..पर सुनना मुश्किल

खुद लड़ाई झगड़ा करे तो कोई न..

वहीं यदि पत्नी जरा सी आँखें दिखाए और नाराज होकर मुंह फुलाए या फुफकारने लगे तो जुबान से पत्नी के संबोधन में ‘नागिन’ निकलने लगता है…

दोस्त मंडली में चर्चा का विषय बन जाती हैं हम पत्नियां..

सही तो है…झगड़ेंगी तो पति बोलेगा ही…..चाहे डायन बोले या फिर नागीन….जैसा आचरण वैसा नाम..

फिर पत्नियाँ कम थोड़े ही होती हैं

तुम क्या सभी को अपनी जैसी समझती हो…

मैने श्रीमती का भ्रम दूर और उसकी आँखे खोलने की दृष्टिकोण से बोला..

दुनिया  में कई तरह की पत्नियाँ होती हैं. जैसे जरूरत से ज्यादा बोलने वाली पत्नी, पति पर हमेशा शक करने वाली पत्नी, पूरे महल्ले के हर घर के अंदर की खबर रखने वाली पत्नी और पति के हर काम में कोई न कोई कमी निकालने वाली पत्नी..वगैरह वगैरह…

अच्छा….. मिसेज शर्मा सही कह रहीं थी..सभी पति एक से होते हैं..मुँह पर लाख तारीफ कर लें लेकिन मन में..सोचते उल्टा ही हैं..

भ्रम था मेरा..आप भी वैसे ही निकले…


बात बिगड़ती देख मैने मख्खन लगाने की असफल कोशिश की..

मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा मैं तो बस बता रहा..

दुनिया के लिए पत्नी क्या है यह नहीं जानता लेकिन मेरे लिए..हर खुशी का एक ही मतलब है और वो है तुम्हारा साथ होना

सच कहूँ तो मेरे खयाल से वो पति निहायत मुर्ख और बुद्धीहीन होते हैं जो पत्नियों को ऐसे नाम और ऐसी उपमाओं से नवाजते रहते है..

मेरे हिसाब से ऐसा कर वो अपने स्वयं का उपहास उड़ा रहे होते हैं…

श्रीमती थोड़ी नर्म हुई…

स्थिति सामान्य होता देख मैने कहना जारी रखा..

हालांकि पत्नियों को कहने को कुछ भी कहा जा सकता है..पर इस सच से कोई भी पति  मुँह नहीं मोड़ सकता..

पति-पत्नी का रिश्ता बेहद ही पवित्र माना जाता है और कहा गया है कि यह दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. इसलिए पत्नी के गुण और  व्यवहार पति के जीवन को प्रभावित करते हैं…

जैसे तुम और तुम्हारा व्यवहार…

कितनी शांत और सुशील हो तुम..

न कोई झिकझिक न किसी बात को ले पिकपिक..

श्रीमती का चेहरा गुलाब सा खिल उठा

एक बात और..

जहाँ बीवियाँ बस्ती हैं वहाँ उस घर के घर के अंदर की स्थिति सभी को पता होता है..लेकिन जहाँ इनकी पहुँच नहीं होती उस जगह के सूनेपन और वातावरण की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता…

खैर यह तो वही जाने जिनके लिए शादी महज औपचारिकता भर है मेरे लिए तो शादी मेरे सूने जीवन की रिक्तता भरने जैसा थी.।

तुम जबसे जिंदगी में आई हो जीवन खुशनुमा हुआ रहता है..

महौल हल्का करने हेतु..मैने श्रीमती का हाँथ प्यार से पकड़कर…कहा..

गुस्से में जो निखरा है इस रूप का क्या कहना

कुछ  देर   अभी   मुझसे  तुम यूही ख़फा रहना ..

मेरी यह कोशिश श्रीमती जी के चेहरे पर हल्की मुस्कान ले आई थी..

उसने हँसते हुए कहा….

आपकी चाय तो पानी हो गई…दूसरी ले कर आती हूँ..

लेकिन मैं मन ही मन सोच रहा था…

क्या पति के लिए अब शादी वह लड्डू नहीं रहा जिसे खाकर पछताना पड़े या फिर शादी कोई लाईलाज बिमारी हो गई है जिसके संग-संग जिंदगी को धक्का लगाया जा रहा है..

विनोद सिन्हा “सुदामा”

गया बिहार

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