श्रद्धांजलि (भाग 6) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

यहॉ आकर उसकी सोंच को एक दिशा मिलनी शुरू हो गई। उसने नीलिमा के आफिस में फोन किया तो उसे पता चला कि आफिस में  सेकेट्री की जगह के लिये इंटरव्यू तो लिया गया है लेकिन अभी तक बॉस को कोई लड़की उचित नहीं लग रही है।

दूसरे दिन सुकन्या नीलिमा के आफिस गई। वहॉ उसने रिसेप्शनिस्ट से बहुत विनती करके कहा –

” मुझे एक बार साहब से मिल लेने दीजिये, शायद मेरी किस्मत साथ दे जाये।”

” आप मेरी बात समझने की कोशिश कीजिये, बॉस इस तरह बिना पहले से समय लिये  किसी से नहीं मिलते। जब रिक्त स्थान का विज्ञापन प्रकाशित हो तब आप भी आवेदन कीजियेगा।”

लेकिन सुकन्या नहीं मानी, वह वहीं रिसेप्शनिस्ट के पास कुर्सी पर बैठ गई –

” आप आज इस कुर्सी पर हैं लेकिन कभी तो आप भी नौकरी के लिये भटक रहीं होंगी , स्त्री होकर भी आप मेरी सहायता नहीं करना चाहती हैं। मैं आपसे किसी प्रकार की सिफारिश के लिये नहीं कह रही, बस एक बार मुझे बाॅस के पास भेज दीजिये, आगे मेरी मुकद्दर।”

” मैं आपकी सहायता करना तो चाहती हूॅ लेकिन मेरी भी मजबूरी है। अच्छा ठीक है,आप यहीं रूकिये ।बाॅस लंच समय में इधर से ही निकलेंगे, उस समय मैं कोशिश करूॅगी, अगर बॉस का मूड सही हुआ तो ठीक है, वरना मुझे डॉट पड़ जायेगी।”

” आपकी शुक्रगुजार रहूॅगी।”

लंच के समय जब बॉस रिसेप्शनिस्ट के सामने से होकर गुजरे तो एक नये चेहरे को देखकर थोड़ा ठिठक गये। तभी रिसेप्शनिस्ट को खड़े होते देख सुकन्या भी उठकर खड़ी हो गई। रिसेप्शनिस्ट ने बॉस को अभिवादन करते हुये कहा –

“सर, यह लड़की सुबह से आपसे मिलने के लिये बैठी है, मेरे मना करने के बाद भी नहीं मानती।”

बॉस ने उसे गौर से देखा , इस समय वह गहरे गले का बिना बाहों वाला टाप और जीन्स पहने थी –

” लंच के बाद इसे मेरे पास भेज देना।”

बॉस चले गये तो उस रिसेप्शनिस्ट ने सुकन्या से कहा –

” अभी ज्यादा उम्मीद मत पालना, बॉस का कोई ठीक नहीं है।”

” कोई बात नहीं, आपने मेरे लिये जो किया, वही बहुत है।”

लंच के बाद जब सुकन्या बॉस के पास गई तो पहले तो वो उसे ऑखों से तौलते रहे, फिर पूॅछा –

” हाॅ, बोलिये क्यों मिलना चाहती थीं आप मुझसे?”

सुकन्या ने जब बताया कि वह सेकेट्री की नौकरी के लिये आई है तो उन्होंने कहा –

” सेकेट्री का मतलब व्यक्तिगत सहायक भी होता है। क्या तुम जानती हो कि सेकेट्री और व्यक्तिगत सहायक का कार्य क्या होता है?”

” जी सर, आप जो कहेंगे मैं करूॅगी। आपको कभी शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा।”

” आपके पास न अधिक शैक्षिक योग्यता है और न कोई अनुभव। आपको यह नौकरी कैसे दी जा सकती है जबकि हमें अधिक शैक्षिक योग्यता और अनुभव वाले कर्मचारी आसानी से मिल रहे हैं।”

” सब जगह से निराश होकर आपके पास आई हूॅ, आप मुझे निराश न करिये। अगर हर व्यक्ति यही कहेगा तो अनुभव आयेगा कहॉ से?”

फिर उसने आगे बढ़कर बॉस के हाथ पर अपना हाथ रखकर हटा लिया और बहुत मिन्नत भरे शब्दों में कहा – ” सर, मैंने सुना है कि आप मेहनती और ईमानदार व्यक्ति को अवसर देते हैं। मुझे भी एक अवसर देकर देखिये, अगर मैं आपको संतुष्ट न कर सकूॅ तो आप मुझे तुरन्त नौकरी से निकाल दीजियेगा, मैं कुछ नहीं कहूॅगी।”

” ठीक है, मुझे सोंचने का अवसर दो। अपना फोन नम्बर दे दो। तुम्हें सूचित कर दिया जायेगा।”

सुकन्या ने अपना नम्बर दे दिया। दूसरे दिन सुकन्या के पास फोन आ गया कि वह आकर अपना नियुक्ति पत्र ले ले, उसे नौकरी मिल चुकी थी। सुकन्या की योजना का प्रथम चरण पूरा हुआ।

अब उसने अपने पापा को फोन किया – ” सुमन चाची बहुत परेशान हैं और मैं चाची के पास कुछ दिन और रहना चाहती हूॅ।”

” लेकिन तुम्हारी पढ़ाई……. ।’

” मैं इस साल पढ़ाई नहीं कर पाऊॅगी, आप लोग समझ सकते हैं कि मेरी क्या स्थिति है? चाची के पास रहकर मुझे बहुत तसल्ली मिल रही है।”

” ठीक है, मैं हर महीने तुम्हारे लिये पैसे भेजता रहूॅगा जिससे उन्हें बोझ न महसूस हो।”

” नहीं पापा, मुझे और चाची को नीलिमा की यादों से बाहर आना है इसलिये मैंने अपने लिये नौकरी ढूंढ ली है। खुद भी व्यस्त रहूॅगी और अपने तमाम कामों से चाची को भी व्यस्त रखूॅगी।”

फिर उसने पापा को एक दूसरी कम्पनी का नाम और वेतन बता दिया, वह जानती थी कि पापा को नीलिमा की कम्पनी का नाम मालुम है। यही नाम उसने सुमन चाची को भी बताया। बड़ी मुश्किल से मम्मी पापा राजी हुये – ” तुम्हें जितने दिन रहना है, रहो। नौकरी की क्या जरूरत है?”

” जरूरत है मम्मी। कमबख्त नीलिमा हर वक्त याद आती है इसलिये अपने को व्यस्त रखना जरूरी है।”

सुमन जी को पता चला तो वो खुश हो गईं, उन्हें विश्वास हो गया कि अब सुकन्या ज्यादा दिन उसके पास रहेगी।

सुकन्या आफिस के काम से अधिक बॉस वरदान आहूजा के व्यक्तिगत कार्यों का अधिक ख्याल रखने लगी, इससे बाॅस अधिक खुश रहते थे। बॉस को कब कहॉ क्या करना है, यह तो उसका कार्य था ही लेकिन सुकन्या ने तो धीरे धीरे व्यक्तिगत जीवन में दखल देना शुरू कर दिया।

वरदान की गलत हरकतों के लिये उसने न कभी रोका और न ही कुछ कहा बल्कि ऐसे समय वह हल्के से मुस्करा देती जिससे वरदान को बढ़ावा मिलता। कभी सुकन्या खुद बॉस वरदान को गले लगा लेती फिर अगले ही क्षण ” सारी” कहकर पीछे हट जाती।

पहले बॉस लंच के लिये कैन्टीन या बाहर जाया करते थो  लेकिन अब वो लंच के लिये बाहर नहीं जाते थे बल्कि अब उनका और सुकन्या का लंच आफिस में ही आने लगा। बॉस और सुकन्या साथ ही लंच करने लगे। कई बार आफिस के लोगों ने उन दोनों को एक दूसरे को अपने हाथों से खाना खिलाते देखा। इतनी जल्दी बॉस और सुकन्या के गहराते सम्बन्ध से सब हैरान थे। ऐसा तो कभी नहीं हुआ था।  सुकन्या के हिस्से के आफिस के सारे काम दूसरों को सौंप दिये जाते और सुकन्या को लेकर बॉस पूरा दिन मीटिंग के बहाने गायब रहने लगे।

अब सुकन्या को लगने लगा कि इतने से काम नहीं चलेगा तो एक दिन उसने वरदान से कहा –

” सर, मेरा घर यहाॅ से बहुत दूर है, आने जाने में ही मेरा बहुत समय बरबाद हो जाता है। उस पर मेरी मकान मालकिन की तमाम पाबन्दियों ने मेरा जीना हराम कर दिया है। घर आने में दस बजे से देर नहीं होनी चाहिये, वरना गेट नहीं खुलेगा। मेरा कोई पुरुष मित्र घर नहीं आ सकता। मैं तो तंग आ गई हूॅ, कहाॅ तक हिसाब दूॅ? इसीलिये आपके कहने के बावजूद मैं रुक नहीं पाती। अगर आप मेरे रहने की व्यवस्था कर दें तो मैं आपकी आभारी रहूॅगी।”

ठीक है, मैं एक दो ब्रोकर से बात करके तुम्हें मकान दिलवा देता हूॅ।”

वरदान खुश था कि अब वह सुकन्या को रात देर तक रोक सकेगा। उसके घर जा सकेगा।

बहुत फ्लैट दिखाये ब्रोकर ने लेकिन कोई सुकन्या को तो कोई वरदान को पसंद ही नहीं आया। आखिर हारकर ब्रोकर ने कहा – ” सर, जैसा फ्लैट आप लोग चाहते हैं, वैसा एक फ्लैट है तो लेकिन वह किराये पर नहीं मिल सकता, उसके मालिक उसे बेंचना चाहते हैं अगर आप इच्छुक हों तो मैं बात करवा सकता हूँ।”

” ठीक है, तुम पहले दिखाओ। मैडम को पसंद आ गया तो सोचेंगे।”

दूसरे दिन ब्रोकर उन्हें पूर्ण सुसज्जित फ्लैट में ले गया – ” देख लीजिये, आपको इससे अच्छा घर मिलेगा नहीं।”

” तुम्हें पसंद है?” वरदान ने सुकन्या से पूॅछा।

” पसंद तो बहुत है लेकिन……..।”

” बस, आगे कुछ नहीं।” फिर उन्होने ब्रोकर से कहा कि हम विचार करके बतायेंगे।

सुकन्या ने फ्लैट खरीदने में अनिच्छा दिखाई – ” मेरे पास इतने पैसे कहाॅ हैं कि मैं इतना मंहगा फ्लैट खरीद सकूॅ। रहने दीजिये, मैं जैसे रह रही हूॅ वैसे ही ठीक है।”

” तुम पैसे की चिन्ता क्यों कर रही हो? अगर तुम्हें पसंद है तो समझो फ्लैट तुम्हारा हुआ। कैसे, यह सोंचना मेरा काम है। तुम मेरा इतना ख्याल रखती हो तो मेरा भी तो कुछ फर्ज है।”

” मैं तो आपको प्यार करती हूॅ इसलिये………। तीर छोड़कर जान बूझकर चुप हो गई।

” क्या, जरा फिर से कहना, मैंने ठीक से सुना नहीं।” वरदान के चेहरे पर मुस्कान छा गई।

” आप सब कुछ जानते हैं, फिर भी अनजान बनते हैं।” वरदान ने उसे अपने समीप खींच लिया। अधर से अधर मिल गये। सुकन्या ने ऑखें बंद कर ली, उसका रोम रोम घृणा से तड़प उठा लेकिन अपनी नीलिमा की मृत्यु और यंत्रणा का बदला लेने के लिये तो उसे वेश्या बनना भी स्वीकार है।

” फिर अब कोई बहस नहीं, हम यह फ्लैट खरीद रहे हैं जहाॅ शान्ति के कुछ पल आराम से बिता सकें।”

सुकन्या ने सिर झुका लिया – ” जब आपने फैसला ले ही लिया है तो मैं क्या कह सकती हूॅ?”

वरदान ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया – खूबसूरत चेहरों पर उदासी अच्छी नहीं लगती और तुम तो बहुत सुंदर हो।”

सुकन्या ने सुमन को बताया कि उसे आफिस की ओर से फ्लैट मिलने वाला है तो उन्हें अच्छा नहीं लगा।

नीलिमा के अभाव में उन्हें सुकन्या से बहुत लगाव हो गया था –

” मैं आने जाने में बहुत थक जाती हूॅ तो मेरे पास प्रतियोगिता परीक्षाओं की पढ़ाई के लिये समय ही नहीं बचता है।”

” यह बात तो है। नीलू भी बहुत थक जाती थी। लेकिन बेटा नौकरी की क्या जरूरत है ?वापस लौट जाओ और अपनी पढ़ाई करो नीलू तो अब लौटकर आयेगी नहीं, मैं किसी तरह रह लूॅगी।”

” अगर नौकरी नहीं होगी तो मम्मी मुझे वापस बुला लेंगी और मैं आपको छोड़कर जाना नहीं चाहती। इस शहर में रहूॅगी तो  मुझे तसल्ली रहेगी। जब आपको जरूरत होगी, एक फोन करना आ जाऊॅगी। छुट्टी के दिन तो आपके हाथ का खाना खाने आऊॅगी ही। आप ढ़ेर सारा नाश्ता बनाकर दे देना जिससे एक सप्ताह मेरा उससे काम चल सके। नीलिमा नहीं है लेकिन आपकी यह बेटी अभी जिन्दा है। आखिर मेरा भी फर्ज है।”

दोनों की ऑखों से प्रेम और ममता के साथ नीलिमा की यादों के भी ऑसू गिरने लगे।

” लेकिन आपको मेरी एक बात माननी होगी।”

” क्या बेटा।”

” मम्मी पापा को यह बात पता नहीं चलनी चाहिये कि मुझे फ्लैट मिल गया वरना वो लोग मुझे एक दिन भी यहॉ रहने नहीं देंगे।”

सुकन्या ने उनके गले में बॉहें डाल दी – ” मेरे लिये इतना झूठ तो बोलना ही पड़ेगा।

जब वरदान सुकन्या के नाम से फ्लैट खरीदा तो वह दिखावे के लिये मना करने लगी – ” मेरे नाम से नहीं अपने नाम से लीजिये जिससे जब आप मुझे कभी नौकरी से निकाल दें तो आपकी सम्पत्ति आपके पास रहे। मैं इसमें  एक किरायेदार की हैसियत से रहूँगी और हर महीने अपने वेतन से आपको किराया दे दिया करूँगी।”

” मुझे प्यार भी करती हो और इतना संदेह भी करती हो? तुम्हारा यही स्वाभिमान और खुद्दारी तो मुझे अच्छी लगती है।”

वरदान मुस्करा दिया – ” अब तो यह फ्लैट मैं तुम्हारे नाम से ही खरीदूँगा जिससे कभी रुद्रा मुझे अपने घर से निकाल दे तो तुम्हारी बॉहों में पनाह पा सकूँ। तुम इस फ्लैट की मालकिन रहोगी, कोई इसे तुमसे छीन नहीं पायेगा।”

” कभी आपको यह न लगे कि मैं आपसे पैसे के लिये प्यार करती हूँ तो …….।” सुकन्या की ऑखों में नीलिमा को याद करके ऑसू आ गये – ” उस दिन तो मैं मर ही जाऊँगी।”

” कैसी पागलों जैसी बातें करती हो? मैं तुम पर संदेह कैसे कर सकता हूँ?” वरदान ने उसे गले से लगा लिया।

फ्लैट के साथ वरदान ने सुकन्या को नई कार भी खरीदकर दी। वह बहुत खुश था लेकिन सुकन्या बहुत उदास दिख रही थी – ” क्या बात है, आज खुशी के अवसर पर तुम इतनी उदास क्यों हो?”

” आप से मना करती हूँ तो आप मानते नहीं हैं लेकिन मैं सोंच रही हूॅ कि क्या करूॅगी इस इतने बड़े फ्लैट का, रहना तो मुझे अकेले ही है। आपके पास तो पत्नी है, बच्चे हैं, सामाजिक प्रतिष्ठा है मेरे पास अकेलेपन के सिवा कुछ नहीं है।” सुकन्या फूट फूटकर रो पड़ी।

” इतना भावुक होने से कैसे काम चलेगा?” वरदान ने उसे अंक में समेट लिया।

” आप तो बहुत अच्छे हैं, मेरा बहुत ख्याल भी रखते हैं और मुझे प्यार भी करते हैं लेकिन क्या करूॅ? कभी कभी मन बहुत घबड़ाने लगता है।”

” बेकार की बातें  अधिक मत सोंचा करो, तुम्हारी सुंदरता के लिये हानिकारक है।” सुकन्या मुस्करा दी लेकिन कुछ बोली नहीं।

” लेकिन तुम मेरा बिल्कुल ख्याल नहीं रखती।” वरदान ने रहस्य भरे स्वर में मुस्कराते हुये कहा।

” आप यह क्या कह रहे हैं? मैं आपके लिये क्या कर सकती हूॅ।”

” दिन पर दिन मेरी प्यास तो बढ़ाती जा रही हो लेकिन उसे बुझाने का कोई प्रबन्ध नहीं करती। कितने बार कहा कि मेरे साथ टूर पर चलो लेकिन तुम मना कर देती हो। अब मुझसे और सब्र नहीं होता।”

सुकन्या ने अपनी दोनों बाॅहें वरदान के गले में डाल दी – ” मुझसे ही कहाॅ सब्र होता है लेकिन यह सोचकर रुक जाती हूॅ कि आपकी पत्नी और बच्चों के साथ विश्वासघात है यह। प्यार का अर्थ मात्र दैहिक नहीं है आपसे मुझे इतना ही मिलता रहेगा तो मैं सारी जिन्दगी आपके नाम के सहारे काट लूॅगी। मुझे आपसे इससे अधिक कुछ नहीं चाहिये।”

वरदान से उसे गोद में खींच लिया और उस पर चुम्बनों की वर्षा कर दी – ” लेकिन मुझे तो तुमसे सब कुछ चाहिये। रुद्रा ने ही तृप्त किया होता तो मैं क्यों भटकता? उसे मेरी परवाह ही नहीं है। अलग कमरे हैं हमारे, एक छत के नीचे रहकर पति पत्नी होने का दिखावा करते हैं हम। तुमने मुझे जो दिया है वह रुद्रा से कभी मिला ही नहीं।”

साफ झूठ बोल रहा था वह लेकिन खुद नहीं जानता था कि वह सुकन्या के चंगुल में बुरी तरह फॅसता जा रहा है।

वरदान कई दिन तक सोंचता रहा था कि सुकन्या फ्लैट में आने के बाद खुद उससे आने के लिये कहेगी। वह सोंच रहा था कि सुकन्या को उसने अपने प्यार के धोखे में फॅसा लिया है लेकिन उसे क्या पता कि शिकारी खुद शिकार हो गया है।

जब कई दिन तक सुकन्या ने इस संबंध में कोई बात नहीं की तो उसने खुद सुकन्या से पूॅछा- ” फ्लैट लिये इतने दिन हो  गये। अपने फ्लैट में जल्दी से आओ, अब क्या बात है? “

” सर…….।”

” पहले तो तुम ” सर” कहना छोड़ो। कब तक सेकेट्री बनी रहोगी? चलो पहले मेरा नाम लेकर बोलो फिर कुछ बात सुनूॅगा।”

” लेकिन .…… अगर नाम लूॅगी तो आप को तुम भी कहना पड़ेगा।….. मैं कैसे ?”

” फिर आज से मेरी तुम्हारी बोलचाल बन्द….।” वरदान मुस्करा रहा था।

सुकन्या ने लजाते हुये वरदान का नाम ले दिया – ” अब, हमेशा नाम लेकर बोलना। अब बताओ क्या समस्या है?”

” मैं बहुत असमंजस में हूॅ। कभी सोंचती हूॅ कि नौकरी छोड़ दूॅ लेकिन तुम्हारे बिना मैं रह भी नहीं सकती।” सुकन्या की ऑखों से ऑसू गिरने लगे।

” रह तो मैं भी तुम्हारे बिना नहीं सकता।”

” तो रुद्रा जी…….।”

” मैं कोई रास्ता निकालूॅगा, तुम चिन्ता मत करो। अभी तुम अपने फ्लैट में आ जाओ।”

” ठीक है लेकिन मेरी एक ख्वाहिश है , तुम्हें उसे पूरी करना पड़ेगा।”

” बोलो।”

” जिस दिन मैं फ्लैट में जाऊॅगी उस रात तुम मेरे पास रहोगे। अपने सपनों के घर में पहली रात मैं अकेली नहीं रहूॅगी।”

वरदान बेहद खुश हो गया। सुकन्या खुद आमंत्रण दे रही है। अभी तक उसे सुकन्या से वह नहीं मिल पाया था जो वह चाहता था।

सुकन्या ने दो दिन की छुट्टी ली – ” परसों शाम को तुम आना। उसी दिन सुबह मैं अपने घर में प्रवेश करूॅगी और वह शाम हमारे लिये ऐसी यादगार शाम होगी जिसे हम कभी नहीं भूल पायेंगे।”

” मैं दिन में आ जाता हूॅ, मेरे साथ नये घर में प्रवेश करना।”

” नहीं वरदान, दो दिन मुझे तैयारी के लिये चाहिये। तुम्हारे लिये वह रात पता नहीं कैसी हो लेकिन मेरे लिये विशेष होगी।”

” मेरे लिये भी विशेष ही होगी।” और उसने सुकन्या के कपोल थपथपा दिये।

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श्रद्धांजलि (भाग 7) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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