श्रद्धांजलि (भाग 2) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

“ फिर क्या करें? मुझे इस लड़की से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी“ महिमा का उदास स्वर।

“ देखो महिमा”,अजय सिंह पत्नी को बड़े धैर्य से समझा रहे थे –“ हमें बिना अपना व्यवहार बदले बुद्धिमानी से काम लेना होगा। उसे पता नहीं चलना चाहिये कि हम सब कुछ जान गये हैं। उसका रिजल्ट आ जाने दो, इसके बाद कालेज की पढ़ाई के लिये इसे मैं अपनी दीदी और जीजाजी के पास भेज दूँगा। मैंने उनसे बात कर ली।”

“ आपने सचमुच बहुत सही सोंचा है। एक बार रुद्रा यहाँ से चली जायेगी तो थोड़े दिन में भूल जायेगी उस लड़के को।“

“ और क्या? केवल उम्र का आकर्षण है । नई जगह, नये दोस्त, नई राहें सामने होंगी तो सारा बचपना स्वतः ही समाप्त हो जायेगा और एक दिन तुम देख लेना कि मेरी बेटी मेरी तरह बैंक मैनेजर बनेगी। बस तुम अपना व्यवहार सामान्य रखना।“

“ मुझे तो बहुत गुस्सा आ रहा है। मन कर रहा है कि थप्पड़ मार मार कर चेहरा लाल कर दूँ। हमारे प्यार का यह फल दिया है इसने?”

“ अपने अंदर की क्षत्राणी को शान्त करो महिमा।“ अजय सिंह ने हँसते हुये कहा – मुझ पर भरोसा रखो मैं सब ठीक कर दूँगा।”

रुद्रा को कुछ पता न था, वह तो रंगीन सपनों में मग्न थी। उसके तो हृदय में इस समय वरदान के प्यार का सागर लहरा रहा था। उसका रिजल्ट आया तो परिणाम आशा के अनुरूप नहीं था। वह पास तो हो गई थी लेकिन उसके नम्बर बहुत कम आये थे। हाई स्कूल में उसके 78% नम्बर आये थे लेकिन इस बार उसके सिर्फ 63% नम्बर आये थे। पापा मम्मी ने योजनानुसार कुछ नहीं कहा- ” कोई बात नहीं बेटा, बी0एस0सी0 में अच्छे नम्बर लाना। जो बीत गया भूलकर आगे बढ़ो। सोंचो कहीं न कहीं तुमने कुछ गलती की होगी, इसलिये आगे अपनी गलती सुधारने की जिम्मेदारी तुम्हारी ही है।”

” जी पापा, मैं अगली बार अच्छे नम्बर लाऊॅगी।”

रुद्रा जानती थी कि सचमुच वरदान के प्यार में पड़कर उसने पढ़ाई पर बहुत कम ध्यान दिया था। वह बहुत कम स्कूल जाती थी और जब जाती भी थी तो उसका पढ़ने में मन ही नहीं लगता था। जब भी पढ़ने बैठती, वरदान की सूरत और बातें उसके कानों में गूॅजने लगतीं। हर वक्त वह वरदान के ख्यालों में डूबी रहती।

उसने निश्चय किया कि अब वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी वरना उसका भविष्य बरबाद हो जायेगा। रिजल्ट के चौथे दिन उसकी अठ्ठारहवीं वर्षगाॅठ थी। अपने कम नम्बरों के कारण वह बहुत शर्मिन्दा थी, उसकी सभी सहेलियों के अच्छे नम्बर आये थे, इसलिये उसने अपना जन्मदिन मनाने से इंकार कर दिया, लेकिन मम्मी पापा नहीं माने – ” एक छोटी सी असफलता से इतना दुखी नहीं होते।”

” लेकिन मम्मी हर आने वाला मेहमान सबसे पहले मेरे नम्बर पूॅछेगा तो मैं क्या उत्तर दूॅगी?”

” मैं केवल तुम्हारी सहेलियों को बुला लेती हूॅ। ” रुद्रा को असमंजस में देखकर उन्होंने फिर कहा – ” अच्छा ठीक है, तुम किसी को न कहना , मैं  सबको फोन कर दूॅगी।”

उसे अपनी सहेलियों के सामने भी शर्मिन्दगी महसूस हो रही थी। अपने ग्रुप में उसके हमेशा सबसे ज्यादा नम्बर आया करते थे। इसलिये एकाध ने तो कह भी दिया – ” यार, तूने तो इश्क के चक्कर में अपनी पढ़ाई ही बरबाद कर डाली।”

नीरजा ने भी कहा – ” कहती थी तुझसे कि पहले पढ़ाई कर ले, फिर इश्क कर लेना लेकिन तू  सुनती ही नहीं थी बिल्कुल पागल हो गई थी।”

लेकिन तभी मम्मी आ गईं और बात वहीं खतम हो गई। रात को सोते समय छोटी बहन सुभद्रा ने कहा – ” दीदी, आप चली जाओगी तो मैं तुम्हारे बिना अकेले कैसे रहूॅगी?”

” क्यों, मैं कहाॅ जा रही हूॅ ॽ॔” रुद्रा चौंक गई।

”  तुमको पढ़ने के लिये बुआ के यहॉ बाहर भेजा जा रहा है। अभी  पापा से मम्मी कह रही थीं कि अब तो रिजल्ट भी आ गया है। जल्दी से जल्दी इसे यहाॅ से ले जाकर छोड़ आओ, नहीं तो मैं कुछ कर बैठूॅगी। मुझसे नाटक और दिखावा नहीं होता। कुछ उल्टा सीधा कर आई तो कहीं के नहीं रहेंगे हम, दोनों छोटे बच्चों पर भी गलत असर पढ़ेगा।”

रुद्रा समझ गई कि घर वालों को वरदान के बारे में पता चल गया है।

” मैं कहीं नहीं जाऊॅगी, तू चिन्ता न कर, चुपचाप सो जा।”

रुद्रा ने बहन को तो चुप कराकर सुला दिया लेकिन उसका मस्तिष्क उलझन से भर गया। अब क्या करे? वह जानती थी कि एक बार अगर वह यहाॅ से चली गई तो वरदान को कभी नहीं पा पायेगी। बुआ और फूफा के कठोर अनुशासन में उनके अपने बच्चे छटपटाते रहते हैं तब वह क्या कर पायेगी? और पापा ने तो उन्हें सब बताकर कड़ी निगरानी के लिये कह दिया होगा, उसके पापा ने तो उसे कभी कुछ नहीं रोका था, अपने पापा की बेहद लाड़ली है वो।

बुआ के घर के परंपरावादी माहौल में तो उसका दम ही घुट जायेगा, साथ ही यह भी जानती थी कि रोने गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं होगा।

दूसरे दिन उसने जब नीरजा के घर जाने को कहा तो पहले तो महिमा ने मना कर दिया – ” कोई जरूरत नहीं, अभी कल तो आई थी नीरजा, आज क्या काम पड़ गया?”

” मम्मी, नीरजा की दीदी आईं हैं, कल चली जायेंगी। उन्होंने मिलने के लिये बुलाया है।”

” ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना और पहुॅचने के बाद मुझे फोन कर देना।”

नीरजा के यहाॅ जाना कोई नई बात नहीं थी , बचपन से एक साथ पढ़ी हैं। महिमा और अजय उनके पूरे परिवार को जानते थे, हालांकि उन लोगों से घनिष्ठता नहीं थी। नीरजा भी जब आती थी पूरे दिन रहकर शाम तक घर जाती थी।

नीरजा के घर में वह नीरजा के समक्ष बिखर गई – ” तू बता, मैं क्या करूॅ, ये लोग मुझसे वरदान को हमेशा के लिये छुड़वा देंगे। मैं वरदान को तो नहीं छोड़ सकती, दुनिया भले छोड़ दूॅ।”

सुनकर नीरजा भी अवाक रह गई , उसे भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ? उसने कई बार रुद्रा को समझाने का प्रयत्न किया – ” रुद्रा, इस तरह वरदान के साथ किसी दिन तुम्हारे पापा, मम्मी या रिश्तेदार ने देख लिया तो मुसीबत में पड़ सकती हो”

लेकिन रुद्रा बेफिक्री से हॅस देती – ” कुछ नहीं होगा यार, पापा भी जानते हैं कि लड़के भी दोस्त होते हैं और फिर प्यार किये बिना तुम्हें कैसे पता चलेगा कि दिल की बेचैनी कैसी होती है? एक बार करके देखो।”

” मुझे अपनी पढ़ाई और कैरियर पहले देखना है, यह सब तुम्हें ही मुबारक हो।”

लेकिन वह यह सब आज रुद्रा से नहीं कह सकती। वह जानती थी कि वह रुद्रा के लिये कुछ नहीं कर पायेगी लेकिन इस समय उसे तसल्ली देना बहुत जरूरी था – ” क्या वरदान भी तुम्हें उतना ही चाहता है जितना तुम? क्या वह जीवन भर तुम्हारा साथ देगा?”

” हाॅ।” रुद्रा को अपने प्यार पर पूरा भरोसा था।

” तब तो एक ही उपाय है कि तुम लोग शादी कर लो तो कोई तुम्हारा कुछ नहीं कर पायेगा। तुम अठ्ठारह साल की हो चुकी हो। कानूनी रूप से बालिग हो तुम दोनों।

” वरदान अभी शादी नहीं कर सकता। उसका भी अभी बी०एस०सी० का रिजल्ट आया है। उस पर बहुत जिम्मेदारी हैं। उसे पहले नौकरी करके दो बहनों की शादी करनी है। अभी तो उसकी मम्मी की पेंशन से घर चलता है। अपने खर्चे और पढ़ाई के लिये वरदान ट्यूशन पढ़ाता

है।”

” मेरी समझ में तो यही एक रास्ता है तुम वरदान से बात करो क्योंकि तुम्हारी बुआ से तो मैं भी डरती हूॅ। इसीलिये जब तुम्हारी बुआ आती हैं मैं तुम्हारे घर नहीं आती हूँ।  तुम वरदान से बात करो शायद कुछ रास्ता निकल आये।”

वरदान से मिलकर जब उसने पूरी बात बताई तो वह भी घबड़ा गया – ” अब क्या करें?”

” मुझे भी लगता है कि नीरजा का बताया रास्ता ही सही है। या तो मुझे अपना लो या हमेशा के लिये भूल जाओ। अपना निर्णय बताओ, आज हमारे प्यार की परीक्षा की घड़ी है।”

” क्या करोगी तुम?”

” कुछ भी…… लेकिन न तो तुम्हारे पास दुबारा गिड़गिड़ाने आऊॅगी और न ही पापा का दिया वनवास स्वीकार करूॅगी।” रुद्रा के चेहरे पर आंसुओं के सूखे निशान के साथ अपार दृढ़ता देखकर सहम गया वरदान।

उसने रुद्रा को गले से लगा लिया – ” जो होगा उसका मिलकर मुकाबला करेंगे। तुम्हें हमेशा के लिये खोने की हिम्मत नहीं है मुझमें।”

तीन दिन बाद रुद्रा ने अपनी मम्मी महिमा से कहा – ” मम्मी, आज स्कूल जाना है। अब तो यह स्कूल छोड़कर कालेज में एडमीशन लेना होगा, इसलिये तमाम औपचारिकतायें पूरी करनी होगी और अब तो हम सब अलग हो जायेंगे इसलिये स्कूल के काम के बाद वहीं पास के रेस्टोरेंट में हम सहेलियों ने एक छोटी सी पार्टी रखी है।”

महिमा का दिल भर आया, उसके मन में आया कि सहेलियाॅ ही क्यों परसों के बाद सब छूट जायेगा क्योंकि परसों रात की ट्रेन से अजय उसे छोड़ने जा रहे हैं। रिजर्वेशन हो चुका है। वो तो निश्चिंत थी कि रुद्रा को उनकी और अजय की योजना के बारे में कुछ भी मालुम नहीं है।

इसलिये उन्होंने कुछ नहीं कहा – ” ठीक है, ज्यादा देर न करना और ये लो पैसे, खूब अच्छे से पार्टी करना।”

जाते समय रुद्रा का दिल धड़क रहा था। उसके पर्स में अपने सारे सर्टीफिकेट, पाकेट मनी से बचाये गुल्लक के पैसे और मम्मी के दिये एक हजार रुपये के अलावा दो जोड़ी कपड़े थे।

स्कूल को कहकर गई रुद्रा वापस नहीं आई। आफिस से आने के बाद महिमा ने अजय को पार्टी वाली बात बताई तो उन्होंने कहा – ” अच्छा किया, जाने दिया। परसों तो चली ही जायेगी फिर जल्दी आने नहीं देंगे।”

शाम रात में बदलने लगी, प्रतीक्षा करते करते नौ बज गये तो चिन्ता हुई। नीरजा के यहाॅ फोन किया गया तो पता चला कि नीरजा को बुखार है, वह तो आज स्कूल गई ही नहीं। दूसरी सहेलियों ने भी अनभिज्ञता दिखाई, उन्होंने स्कूल जाने या किसी भी पार्टी से इंकार कर दिया। उन्हें कुछ नहीं मालुम था। नीरजा ने पहले ही अपने होंठ सिल लिये थे।

पुलिस में वरदान के नाम से रिपोर्ट लिखा दी गई – ” मेरी बेटी को फुसलाकर ले गया है यह लड़का।”

” आप रात भर इंतजार कर लीजिये, हो सकता है कि आपकी बेटी देर रात तक लौट आये। आजकल के बच्चों की पार्टियों में सब कुछ होता है। क्या पता नशा अधिक हो जाने के कारण किसी दोस्त के घर चली गई हो, सुबह नशा उतरेगा तो आ जायेगी।”

” मेरी बेटी ऐसी नहीं है।”

” सभी माता पिता को अपने बच्चों पर भरोसा होता है, लेकिन यही लोग कैसे भरोसा तोड़ते हैं, मैं जानता हूॅ। आप घर जाइये, सुबह आइयेगा।”

दूसरे दिन जब पुलिस के साथ अजय सिंह वरदान के घर पहुॅचे तो रुद्रा ही सामने आई। उसने पुलिस अधिकारी को आर्य समाज से अपने विवाह का प्रमाण पत्र दिखाकर कहा – ” सर, न मुझे बहलाया – फुसलाया गया है और न ही मेरा अपहरण किया गया है। अपनी मर्जी से वरदान से विवाह करके अपने पति के घर में रह रही हूॅ। हम कहीं भागकर नहीं गये हैं, अपने घर में रह रहे हैं। एक बालिग लड़के और लड़की को कानून विवाह और जीवनसाथी चुनने का अधिकार तो देता ही है।”

” अब हम आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते। इन दोनों को आशीर्वाद देकर अपना लीजिये।” पुलिस के लोग वापस चले गये।

अजय सिंह गुस्से से चीख पड़े – मूर्ख है तू। आखिर है क्या इस लड़के में? इसी दिन के लिये तुझे इतने दुलार से पाला था ? “

फिर उन्होने रुद्रा का हाथ पकड़ लिया – ” मेरे साथ चल बेटा, हम सब कुछ भूल जायेंगे। तुझे पहले की तरह प्यार करेंगे, पढ़ायेंगे लिखायेंगें, सुनहरा भविष्य तेरा इंतजार कर रहा है। अपने आपको बरबाद मत कर, मैं अपनी लाड़ली बेटी को आत्महत्या कैसे करने दे सकता हूॅ? यह लड़का तुझे कुछ नहीं देगा, अभाव और दायित्वों तले मेरी राजकुमारी सी बेटी पिस जायेगी। तू डर मत, मेरे साथ चल। अभी देर नहीं हुई है, मैं यह शादी निरस्त करवा दूॅगा। मैं सब ठीक कर दूॅगा।”

जब वह हर प्रकार से समझाने के बाद भी न मानी तो चलते समय अजय सिंह ने कहा – ” कभी अपने निर्णय पर बहुत पछताना पड़ेगा।”

उस समय गर्व से कहा था रुद्रा ने – ” पापा मर जाऊॅगी पर कभी भी अपने निर्णय पर पछताकर सहायता के लिये आपके पास नहीं आऊॅगी।”

आज सोंचती है तो आश्चर्य होता है कि मम्मी, पापा, छोटे भाई बहन सात्विक और सुभद्रा को इतना प्यार करने वाली उसने कैसे कठोर बनकर सबको ठुकरा दिया था। पापा और जमाने के सामने हमेशा वरदान की ढ़ाल बनी रही।

सचमुच उसने अभाव के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा। सास ने घर में तो रख लिया लेकिन स्वीकार नहीं किया – ” ऊपर स्टोर वाले कमरे में इसे ले जा आओ वरदान। मेरे सामने इसे आने की जरूरत नहीं है। जो लड़की अपने माॅ बाप की न हुई, मेरी क्या होगी?”

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श्रद्धांजलि (भाग 3) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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