श्रद्धांजलि (अंतिम भाग ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बदले में सुकन्या की हॅसी सुनाई दी –

” मुझे इतना मूर्ख कैसे समझ लिया? एक बार धोखा खाने के बाद दुबारा धोखा खाना मेरा स्वभाव नहीं है। मैं जानती हूॅ कि तुम कोई चाल चलकर मुझसे वो सारे प्रमाण प्राप्त करने का प्रयत्न करोगे लेकिन सूचना के लिये बता दूॅ कि मेरे अपहरण और मृत्यु से भी कोई अन्तर नहीं पड़ेगा बल्कि तुम्हारे अपराधों में कुछ अपराध और बढ़ जायेंगे। उन सभी की और भी प्रतियाॅ हैं और वह व्यक्ति इतना खूंखार है कि रुद्रा और तुम्हारे बच्चों के साथ ही तुम्हारी बहनों के परिवार को भी नुकसान पहुॅचा सकता है।”

वरदान काॅप कर रह गया लेकिन अपने को सम्हालकर कहा –

” तुमने मुझे इतना नींच समझकर रखा है क्या? मैं तो बस एक बार तुमसे मिलना चाहता था ताकि हमारे बीच की सारी गलतफहमी दूर हो सकें।”

” हमारे बीच सब कुछ स्पष्ट है, गलतफहमी का प्रश्न ही नहीं है।”

” तब ठीक है, मुझे तुम्हारी कोई बात स्वीकार नहीं है, तुमसे जो करते बने कर लो। मैं तुम्हारी धमकियों से डरने वाला नहीं हूॅ।”

” मैं तुम्हें कोई धमकी नहीं दे रही बल्कि केवल तुम्हें दर्पण दिखा रही हूॅ। अभी तो मैं केवल अपनी ही बात कर रही हूॅ जबकि मेरी पिटारी में ऐसे बहुत से नाग हैं जो तुम्हें डसने को तैयार बैठे हैं।”

” नाग? कैसे नाग। मैं कुछ समझा नहीं।” वरदान के आश्चर्य की सीमा नहीं थी।

” आशा है तुम नीलिमा को नहीं भूले होगे। उसके साथ तुम्हारे कारनामों और आत्महत्या की सारी कहानी तुम्हारे ही शब्दों में मेरे पास है। सुनना चाहते हो तो भेज सकती हूॅ। वैसे रजनी और मेघना ने एक महीने के अंदर जिस कारण नौकरी छोड़ी थी, उसका भी पता मुझे चल गया है।”

” यह क्या बकवास है? कौन हैं ये लड़कियॉ? न तो मैं इन्हें जानता हूॅ और न मेरा इनसे कोई सम्बन्ध है।”

” कोई बात नहीं, पुलिस की हिरासत में सब याद आ जायेगा।”

” पुलिस का डर मत दिखाओ , मैं भी पुलिस के पास जा सकता हूॅ कि न जाने किसका पाप मेरे सिर मढ़कर मुझे ब्लैकमेल कर रही हो।”

” जाओ, मैंने कब मना किया है? डी०एन०ए० रिपोर्ट और अपनी आवाज के आडियो को कैसे नकार पाओगे? ” अपने बचाव का कोई रास्ता वरदान की समझ में नहीं आ रहा था। पुलिस की मदद लेने पर तो वह और बुरी तरह फॅस जायेगा।

” मैं बरबाद हो जाऊॅगा। मुझ पर रहम करो।”

” तुमने तो कभी किसी पर रहम नहीं किया। इसलिये तुम्हारे मुॅह से यह शब्द शोभा नहीं देता। सोंच लो मैं दुबारा फोन करूॅगी। आशा है तुम कुछ भी अनर्गल करने के लिये मुझे बाध्य नहीं करोगे।” फोन बंद हो गया साथ ही उसके पास नीलिमा के बारे में सारी सच्चाई को बयान करता उसी के स्वर का आडियो  पहुॅच गया।

वरदान समझ गया कि सुकन्या की बात मानने के अलावा कोई रास्ता शेष नहीं बचा है। आत्मसमर्पण ही एकमात्र रास्ता है। अपनी रुद्रा जैसी पत्नी और प्यारे से घर संसार के होते हुये उसने जिस राह पर कदम बढ़ाये थे उसका एक न एक दिन यह हश्र तो होना ही था। वह बेसब्री से सुकन्या के फोन का इंतजार करने लगा। उसे कहीं चैन नहीं था। आफिस जाता भी तो इसलिये कि सारा दिन घर में रहेगा तो और परेशान होगा।

पाॅच दिन तक सुकन्या का कोई फोन नहीं आया तो वह और भी परेशान हो गया। क्या करे? कहॉ जाये? कहॉ है सुकन्या? कुछ पता नहीं। उसका फोन भी लगातार बंद आ रहा है। वह हर बार एक नये नम्बर से फोन करती है , इसलिये उसे फोन भी नहीं कर सकता था।

छठे दिन एक नये नम्बर से फोन आया , समझ गया कि सुकन्या का ही फोन होगा – ” हॉ बोलो सुकन्या।” बेहद थकी आवाज थी उसकी।

” अब बताओ क्या सोंचा तुमने?”

” तुमने कुछ सोंचने लायक छोड़ा ही कहाॅ है? मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।”

” ठीक है, इंतजार करो, मैं तुम्हें फोन करती हूॅ।”

” जल्दी फोन करना, मैं बुरी तरह थक गया हूॅ।” प्रत्युत्तर में सुकन्या की सिर्फ हॅसी सुनाई दी।

दो दिन बाद उसी नम्बर से वरदान के पास फोन आया, सुकन्या ने उसे बताया कि वह रुद्रा से कहे कि वह उसे तलाक देने वाला है और आज से तीन दिन बाद टूर का बहाना करके बुलन्दशहर के रायल होटल में आये। वहॉ रिसेप्शन पर उसे सुकन्या मिल जायेगी। वहॉ से वो लोग आर्य समाज मंदिर जाकर शादी करेंगे और वापस आ जायेंगे।

” बिना तलाक के शादी कैसे हो सकती है? एक पत्नी के होते हुये दूसरी शादी नहीं हो सकती, इतना तो तुम्हें मालुम ही है।”

” रुद्रा को जब हमारी शादी की बात पता चलेगी तो वह खुद तुम्हें तलाक दे देगी।”

” अगर मैं अब भी न आऊॅ तो…….।”

” मत आओ, तलाक तो रुद्रा तुम्हें दे ही देगी। अगर तुम समय पर नहीं आये तो सारी तस्वीरें, वीडियो , आडियो और नीलिमा का वह पत्र भी रुद्रा तक पहुॅचा दिये जायेंगे। अभी तो रुद्रा और तुम्हारे बच्चों के बदले में मैं और मेरा बच्चा तुम्हारे पास होंगे वरना न मैं मिलूॅगी और न रुद्रा तुम्हें मिलेगी, जेल की सलाखें साथ में मुफ्त मिल जायेंगी। फैसला अब भी तुम्हारे हाथ में है, मैं बाद में फोन कर लूॅगी।” फोन एक बार फिर कट गया।

उसी दिन जब शाम को सुकन्या का फोन आया तो वरदान ने बुलन्दशहर आने की हामी भर ली।

सुबह वरदान को चुपचाप सूटकेस में कपड़े रखते देख रुद्रा समझ गई कि वरदान टूर पर जा रहा है। न जाने कितने दिन से वरदान ने उससे और बच्चों से बात नहीं की है, घर में खाना नहीं खाया है। रुद्रा उसकी परेशानी समझकर खुद भी चुप हो गई और बच्चों को भी समझा दिया।

लेकिन उसे आज तो पूॅछना ही पड़ा – ” टूर पर जा रहे हो क्या?”

” हाॅ।” वरदान ने बिना उसकी ओर देखे कहा।

” कब तक लौटोगे?”

” सारी बातें तुम्हें बतानी जरूरी है क्या? अपने काम से काम नहीं रख सकती क्या तुम?’ वरदान चीख पड़ा।

रुद्रा ने वरदान का हाथ पकड़ लिया -” मुझे बताओ कि तुम्हारी समस्या क्या है? क्यों इतने तनाव में जी रहे हो? खुद भी परेशान हो और हम लोगों को भी परेशान कर दिया है। कुछ तो बताओ, ऐसे कैसे चलेगा? शायद मैं तुम्हारी सहायता कर सकूॅ।”

” हाॅ तुम मेरी सहायता कर सकती हो।” वरदान एक पल के लिये रुका फिर दिल को मजबूत करके बोला – ” मुझसे दूर जाकर। मुझे घुटन होती है तुम्हारे साथ, अब तुम्हें और अधिक नहीं सह पा रहा हूॅ मैं। मेरे जीवन में अब तुम्हारी कोई आवश्यकता नहीं है। मेरा पीछा छोड़ दो, तंग आ गया हूँ तुमसे । जो चाहे ले लो और मुझे स्वतंत्र करो।” अपना हाथ उसने झटके से रुद्रा के हाथ से छुड़ा लिया।

रुद्रा अवाक रह गई। पहले तो वह समझ ही नहीं पाई कि वरदान कहना क्या चाहता है – ” मैं क्या बाजार से खरीदा हुआ सामान हूॅ जो आवश्यकता न होने पर हटा दी जाये। मैं पत्नी हूॅ तुम्हारी। हमारे बीच तो जन्म जन्मान्तरों का सम्बन्ध है। मैं तो अगले जन्मों में भी तुम्हारी ही कामना करूॅगी।”

” मुझे इसी जन्म में तुम्हारा साथ नहीं चाहिये।”

” और हमारे ये बच्चे…….।”

” इन्हें भी ले जाओ। मुझे न तो तुम्हारी जरूरत है और न तुम्हारे इन बच्चों की। मेरे लौटकर आने तक जहॉ मन हो इन बच्चों को लेकर चली जाना। खाली चेकबुक रखी है जितना पैसा चाहना भर लेना और घर से भी जो चाहना ले जाना लेकिन मुझे खाली घर मिलना चाहिये।”

” कैसी बातें कर रहे हो वरदान? तुम्हें क्या हो गया है? हम तो एक दूसरे को बेहद प्यार करते हैं फिर तुम इस तरह की बातें क्यों कर रहे हो ? ” रुद्रा समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे? ” अच्छा इतना तो बता दो कि हम तीनों का अपराध क्या है जो तुम अपने जीवन से हमें काटकर फेंकना चाहते हो?”

” मुझे कुछ भी बताने की जरूरत नहीं है। बस इतना समझ लो कि ऊब गया हूॅ मैं तुम सबसे और कान खोलकर सुन लो कि  मेरा फैसला बदल नहीं सकता। तलाक के कागजात तुम्हारे पास पहुॅच जायेंगे।” यह सब कहते हुये उसका दिल फटा जा रहा था। इस रुद्रा ने उसके लिये क्या नहीं किया और आज वह उसके साथ ऐसा व्यवहार करने को मजबूर है।

वरदान तो उस पर वज्रपात करके चला गया लेकिन रुद्रा में सोंचने समझने की शक्ति ही नहीं रही थी।

वरदान के शब्दों को सुनकर अपनी गृहस्थी में आकण्ठ निमग्न उसके हृदय में हलचल मच गई। स्वयं वरदान से न सुनती तो कभी विश्वास न करती कि उसका वरदान ऐसा भी कह सकता है। उसके प्रेम वृक्ष की जड़ों में विश्वासघात का दीमक कब प्रविष्ट हो गया, उसे पता ही नहीं चला और जब पता चला तो समूचा वृक्ष धराशाई होने की स्थिति में आ गया है। वह तो ऑंखें बन्द करे वरदान के विश्वास के कंधे पर सिर रखे चली जा रही थी कि अचानक किसकी नजर लग गई कि वरदान ने वह कन्धा हटाकर उसे जमीन पर गिरा दिया।

वरदान के प्यार का अथाह सागर ही उसकी सबसे बड़ी पूॅजी थी, जब वह नहीं तो उसे और क्या चाहिये?

पैसा तो उसने अपने व्यापार में कमा ही लिया है। एक तीन बेडरूम वाला फ्लैट भी है, जिसको किराये पर दे रखा है। उसका व्यापार तो बहुत अच्छा चल रहा था। बेटे के बाद भी कोई अन्तर नहीं पड़ा था लेकिन सास के न रहने के बाद चार महीने की बिटिया के कारण रुद्रा को परेशानी होने लगी।

तब वरदान ने ही कहा – ” रुद्रा तुमने संघर्ष में बहुत साथ दिया, अब तुम्हें इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं है। अभी तक मॉ थीं तो बच्चों और घर की जिम्मेदारियॉ सम्हाल लेती थीं, आराम से चल जाता था। मेरा काम तो जानती हो, पदोन्नति होने से जिम्मेदारियॉ भी बढ़ गई हैं, अक्सर टूर पर भी जाना पड़ता हैं। बच्चों को बिल्कुल समय नहीं दे पाता हूॅ। कम से कम तुम्हारा पूरा प्यार और समय तो इन्हें मिलना ही चाहिये।”

” मैं भी यही सोंच रही थी कि अगर पहले की तरह मेरा काम घर तक ही सीमित रहता तो मैं किसी तरह सम्हाल लेती लेकिन नन्हीं सी गुड़िया को नौकरों के सहारे छोड़कर जाने का मेरा भी मन नहीं करता। मैं भी नहीं चाहती कि मेरे बच्चे नौकरों के सहारे पलें लेकिन दो सौ स्त्रियों की आजीविका का प्रश्न है। उनके परिवार इसी कार्य से पलते हैं।”

” मैं विज्ञापन दे देता हूॅ जो तुम्हारी मशीनों सहित तुम्हारा पूरा व्यापार खरीद ले “

थोड़े दिनों बाद ही मि० सुधीर अग्रवाल ने उसकी सारी समस्या हल कर दी। सुधीर अग्रवाल ने रुद्रा की सभी शर्तें मान ली। रुद्रा की सबसे प्रमुख शर्त थी कि उसके किसी भी कर्मचारी को नौकरी से न निकाला जाये। चूॅकि उसके कारखाने में सभी कर्मचारी महिलायें थी तो उनकी सुविधानुसार उन्हें घर में काम ले जाने की भी सुविधा थी। सुधीर अग्रवाल बहुत खुश थे। उन्हें पूरी तरह जमा जमाया कारोबार, मेहनती और ईमानदार कर्मचारी के साथ रुद्रा का इतने दिनों का अनुभव और मार्गदर्शन भी मिला। रुद्रा ने उन्हें वो सभी स्थान दिखाये जहाॅ उसके कारखाने का सामान जाता था, सारे दुकानदारों से परिचय भी करा दिया।

सुधीर अग्रवाल की भी एक शर्त थी कि वह हफ्ते में कम से कम एक बार अपने कारखाने में आयेगी और अपने कर्मचारियों की समस्यायें सुनेगी। उन्होंने अपने आफिस में रुद्रा के लिये एक बढ़िया सा केबिन भी बनवा दिया – ” जब मन हो आकर बैठना, कभी न समझना यह व्यापार तुम्हारा नहीं है। तुम इसकी मालिक थीं और हमेशा रहोगी। बच्चे बड़े हो जायें तो मेरा हाथ बटाना।” रुद्रा विभोर हो गई चूॅकि सुधीर अग्रवाल उससे उम्र में काफी बड़े थे इसलिये वह उनके प्रस्ताव को मना नहीं कर पाई।

सुधीर अग्रवाल से मिले पैसों से ही उसने फ्लैट खरीदकर किराये पर दे दिया था। बचे हुये पैसे बैंक में जमा कर दिये थे। बैंक का ऋण तो उसने पाॅच साल में ही दे दिया था। समय से पहले ऋण लौटा देने के कारण उसे ब्याज में काफी छूट भी मिली थी।

वह जानती थी कि उसे पैसे की कोई कमी नहीं होगी। जितना है उसमें उसका और उसके बच्चों का पोषण आराम से हो जायेगा। फ्लैट के साथ ही बैंक में पैसे भी है। सुधीर अग्रवाल के साथ काम करने लगेगी। दो प्यारे से बच्चे हैं। अभी मात्र तीस वर्ष उम्र है तमाम मर्द हाथ थामने को तैयार हो जायेंगे।

सब कुछ रहेगा लेकिन अपने हृदय के लिये वरदान कहाॅ से लायेगी जिसके लिये सारी दुनिया ठुकरा दी थी। अपने बच्चों के लिये वो स्नेही पिता कहाॅ से लायेगी जो बच्चों को गर्म हवा से भी बचाने का प्रयत्न करता था।

सुबह से शाम हो गई लेकिन उसके मुॅह में खाना तो दूर पानी की बूॅद भी नहीं गई। चिन्ता और परेशानी ने उसकी भूख और प्यास हर ली थी। बच्चे भी इतने छोटे थे कि उनसे कुछ कहा नहीं जा सकता था। तीन साल की गुड़िया और पॉच साल के बेटे से क्या कहे?

शाम को उसके पास एक फोन आया – ” रुद्रा जी, क्या आपको पता है कि आपके पति आपके होते हुये कल दूसरा विवाह कर रहे हैं।”

” कल……?” रुद्रा चौंक गई आज सुबह ही तो वरदान उससे निर्णय लेने को कह रहा था

” यह झूठ है। ऐसा नहीं हो सकता, तुम झूठ बोल रहे हो।”

” यह सच है। आप पता कर सकती हैं कि बुलन्दशहर के रायल होटल में मि० और मिसेज वरदान आहूजा के नाम से कमरा नंबर 308 बुक करवाया गया है या नहीं। मेरी कोई सहायता चाहिये या कुछ पूॅछना हो तो इसी नम्बर पर फोन कीजियेगा, वरना जैसी आपकी मर्जी। रायल होटल का फोन नम्बर भेज रहा हूॅ।”

अभी तक रुद्रा को विश्वास था कि वरदान जो कुछ कहकर गया है, किसी मानसिक परेशानी के कारण कह गया , टूर से लौटने के बाद वह चाहे जैसे भी हो उसकी मानसिक परेशानी को जानकर रहेगी और उसका वरदान फिर पहले जैसा हो जायेगा। परन्तु यह कैसा फोन है, कैसी अनहोनी बात कर रहा है यह व्यक्ति?

थोड़ी देर बाद उसके मैसेज बाक्स में एक मोबाइल नम्बर था।

उसने काॅपते हाथों से रायल होटल में फोन किया तो उस अजनबी फोन वाले की बात सच थी। अब तो रुद्रा का धैर्य जवाब दे गया, वह फूट-फूटकर रोने लगी। करीब एक घंटे बाद उसी अजनबी का फोन फिर आया – ” अब बताइये रुद्रा जी मैं सही हूॅ या गलत।”

” तुम कौन हो? वह लड़की कौन है?’

” मैं कौन हूॅ, जानकर क्या करेंगी , समझ लीजिये एक शुभ चिन्तक हूॅ आपका। सच्चाई बताना मेरा फर्ज था, अब आपको जो करना हो कीजिये। हाॅ, लड़की आपके पति की सेकेट्री है।”

” सुकन्या।”

” हॉ ।”

” लेकिन वह तो बहुत दिनों से आफिस आ ही नहीं रही है।”

वह अजनबी हॅस दिया – ” जिस लड़की को आपके पति ने रानी बना दिया है वह सेकेट्री की नौकरी क्यों करेगी?”

उसके बाद फोन बंद हो गया और रुद्रा के लाख प्रयासों के बाद भी दुबारा नहीं खुला।

रुद्रा ने अपने ऑसू पोंछ लिये। अपना कर्तव्य निश्चित किया। सुबह से कुछ न खाने पीने से उसे चक्कर आने शुरू हो गये थे।

बच्चों के लिये खाना बनाया। उन्हें खिलाकर खुद भी खाया। जब परिस्थिति का मुकाबला करना ही है तो भूखे रहकर क्या फायदा?  बुलन्दशहर की फ्लाइट के लिये पता किया तो मालुम हुआ कि एक फ्लाइट जाने वाली है जो चार बजे पहुॅच जायेगी। शायद इसी फ्लाइट से वरदान जा रहे होंगे। दूसरी फ्लाइट रात एक बजे जायेगी जो सुबह सात बजे पहुॅच जायेगी।”

रुद्रा ने उसी फ्लाइट से टिकट बुक करा दी – ” तुम जैसे इंसान के साथ मुझे रहना तो अब है ही नहीं लेकिन तुम्हें ऐसे नहीं छोड़ूॅगी वरदान आहूजा। देखती हूॅ कि तुम कैसे शादी करते हो?”

बच्चों से उसने बताया कि वो लोग पापा के पास जा रहे हैं तो बच्चे खुश हो गये, हालांकि वरदान के इधर कुछ दिनों से व्यवहार से बच्चे कुछ डरे हुये थे इसलिये बेटे ने पूॅछ लिया – ” मम्मी पापा नाराज तो नहीं होंगे।”

” नहीं बेटा, पापा ने खुद हमें घुमाने के लिये बुलाया है। हम लोगों के लिये जहाज की टिकट भेजी है।”

टैक्सी भी रात में ही बुक करा ली जिससे वह समय से एयरपोर्ट पहुॅच सके। उसका अंग अंग जला जा रहा था। सामान वगैरह लेकर जब वह एयरपोर्ट से बाहर निकली तो सवा आठ बज चुका था। वह जल्दी से जल्दी रायल होटल पहुॅचना चाहती थी।

एयर पोर्ट से रायल होटल पहुॅचने में उसे एक घंटा और लग गया। जब वह रायल होटल पहुॅची तो उसे पता चला कि मिसेज वरदान तो कल आ गईं थी जबकि मि० वरदान सुबह आये हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाॅ से होटल छोड़कर जा चुके हैं।

अब क्या करे रुद्रा? वरदान और सुकन्या कहाॅ मिलेंगे उसे पता ही नहीं है। न ही वो यह जानती है कि शादी कहॉ हो रही है? रुद्रा की ऑखों में ऑसू आ गये। उसका मन कर रहा था कि वह यहीं दहाड़े मारकर रोने लगे।

तभी उसके मोबाइल पर उसी अजनबी का फोन आया – ” रुद्रा जी…….।

लेकिन उसके बोलने के पहले ही रुद्रा बोल पड़ी – ” वो दोनों रायल होटल में नहीं हैं।”

” आप कहाॅ हैं?”

” रायल होटल में।”

” वो लोग शादी के लिये निकल चुके हैं। आप टैक्सी से आर्य समाज मंदिर आ जाइये।”

” लेकिन आप……”

” रुद्रा जी समय बहुत कम है, जल्दी कीजिये।” रुद्रा का गुस्से के कारण बुरा हाल हो रहा था। वह सोती हुई गुड़िया को कंधे से लगाये और बेटे का हाथ पकड़े टैक्सी से सीधे आर्य समाज मंदिर पहुॅच गई। वरदान और सुकन्या दूल्हा और दुल्हन के वेश में खड़े फेरे लेने जा रहे थे। रुद्रा और बच्चों को देखकर वरदान जड़ हो गया।

तभी मृत्युंजय पुलिस  और मीडिया वालों को लेकर आ गया। उसके मोबाइल में सुकन्या के कई मैसेज थे – ” जय, मुझे बचा लो। मेरे बॉस मुझे ब्लैकमेल करके जबरदस्ती अपनी पत्नी के होते हुये मुझसे शादी कर रहे हैं।”

एक मैसेज जो करीब बीस – पच्चीस मिनट पहले लिखा गया था  – ” जय, जल्दी करो नहीं तो अनर्थ हो जायेगा।

पुलिस और मृत्युंजय के आते ही सुकन्या भागकर उनके पास आ गई, उसने पुलिस अधिकारी से कहा  – ” सर, आपने सही समय पर आकर मुझे बचा लिया। ये इनकी पत्नी और बच्चे हैं।”

पुलिस के पूॅछने पर रुद्रा ने स्वीकार किया कि वो लोग ही वरदान की पत्नी और बच्चे हैं।

सुकन्या की शिकायत पर वरदान को गिरफ्तार कर लिया गया। सुकन्या ने सारे वीडियो, आडियो और तस्वीरों के साथ वह पत्र भी पुलिस को सौंप दिया जो नीलिमा ने आत्महत्या के पूर्व उसको लिखा था।

सारे प्रमाण वरदान के विपरीत थे। समाचार पत्रों और मीडिया में यह खबर छा गई। समाचार पत्रों और टी०वी०  के हर चैनल में यह कहानी दिखाई जाने लगी। सुकन्या के पापा बैठे शाम के समाचार देख रहे थे कि अचानक एक अप्रत्याशित समाचार देख कर चौंक गये, उन्होंने वहीं से सुकन्या की मम्मी को आवाज दी, लेकिन वो नहीं आईं – ” मुझे नहीं देखना है, आप बार बार वही समाचार देखते हो।”

सुकन्या के पापा रसोई तक गये और उन्हें जबरदस्ती लिवा कर लाये। वो गुस्से में बड़बड़ाती हुईं‌ आकर सोफे पर बैठ गईं – ” क्या है, जो मुझे काम करते से जबरदस्ती लिवा लाये।” लेकिन जैसे ही उनकी नजर टी० वी० की ओर गई वो हड़बड़ा ‌गईं। टी०वी० पर नीलिमा, वरदान और सुकन्या की पूरी कहानी दिखाई जा रही थी। उन्होंने घबड़ाकर अपने पति की ओर देखा तो उन्होंने चुपचाप उन्हें  टी० वी० की ओर देखने का इशारा किया। वे दोनों लोग चकाचौंध से टी० वी० देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो जो सामने देख रहे हैं, उस घटना का सम्बन्ध उनकी अपनी पुत्री से है और इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं। उन्हें टी० वी० से जानकारी मिल रही है।‌ देखते देखते उन दोनों की ऑखों से गर्व और खुशी के ऑसू गिरने लगे, साथ ही भय से उनकी आत्मा तक कॉप उठी कि इस सबमें वे अपने इकलौते बच्चे को खो देते तो क्या होता?

समाचार समाप्त होने के बाद उन्होंने सुमन जी को फोन‌ किया तो वो अपने को अपराधी समझने लगीं – ” यकीन कीजिये भाई साहब मुझे कुछ पता नहीं था वरना मैं नीलिमा को खोकर इन लोगों को यह खतरा कभी न उठाने देती। मैं बहुत शर्मिन्दा हूॅ।”  सुमन जी फूट-फूटकर रो रहीं थीं।

” आप परेशान मत होइए, बच्चे बड़े हो जाते हैं तब हमसे बहुत कुछ छुपाने लगते हैं।” फिर भी जब सुमन जी का रोना बन्द नहीं हुआ तो उन्होंने फोन‌ अपनी पत्नी को दे दिया उन्होंने बड़ी मुश्किल से सुमन जी को चुप कराया और आपस में कुछ तय किया।

कम्पनी के मालिकों और एम० डी० ने साफ कह दिया कि उन्हें इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है। साथ ही उन लोगों ने वरदान को नौकरी से भी हटा दिया।

कम्पनी के खातों में भी वरदान द्वारा की गई हेरा फेरी सामने आ गई। वरदान पर इतने आरोप सिद्ध होते जा रहे थे कि उसे किसी भी तरह लम्बी सजा से बचाया नहीं जा सकता था। आजीवन कारावास की सजा हो सकती है उसे।

मीडिया वरदान और रुद्रा से बहुत कुछ पूॅछना चाहती थी लेकिन दोनों ने चुप्पी साध ली।

बहुत प्रयत्न करने पर रुद्रा ने इतना ही कहा कि उसे अपने पति के चरित्र और ऐसे गंदे कारनामों के बारे में कुछ नहीं मालुम था। अभी तक वो बहुत अच्छे पिता और बेहद प्यार करने वाले पति थे लेकिन मासूम लड़कियों की अस्मत से खेलकर उन्हें ब्लैकमेल करके आत्महत्या के लिये मजबूर करने वाले व्यक्ति का वह अपने बच्चों पर साया भी नहीं पड़ने देगी।

सुकन्या ने मीडिया के सामने आकर सब कुछ सच बताया कि न तो वह गर्भवती है और न ही वरदान ने उसे ब्लैकमेल किया है क्योंकि वे तस्वीरें उसने खुद वरदान को ब्लैकमेल करने के लिये खींची थी। वरदान से उसका कभी कोई शारीरिक सम्पर्क नहीं हुआ है। नीलिमा की मृत्यु का बदला लेने और वरदान की घिनौनी सच्चाई सबके सामने लाने के लिये उसे यह सब करना पड़ा।

वरदान का वह दोस्त संजय भी गिरफ्तार कर लिया गया जिसने वरदान का साथ दिया था। नीलिमा के पहले की दोनों सेकेट्री रजनी और मेघना जो अभी तक बदनामी के डर से चुप थीं ने भी पुलिस और मीडिया को सच्चाई बताई कि कैसे एक महीने के अंदर ही वरदान से तंग आकर उन्होंने खुद नौकरी छोड़ दी थी।

रुद्रा का तो सब कुछ लुट चुका था। जिस वरदान पर अपने से अधिक भरोसा किया था, उसने इस कदर उसके विश्वास को चकनाचूर कर दिया है कि उन टूटी हुई किरचों को समेटने में उसका दामन तार तार हो गया है।

उसे लग रहा था कि यह सब स्वप्न है, अभी ऑख खुलेगी और उसका हॅसता मुस्कराता संसार फिर पहले जैसा हो जायेगा। टी0वी0 और समाचारों को सुनकर इतने सालों बाद मम्मी , पापा और सात्विक आये भी तो वह सबके सामने शर्म से सिर तक न उठा पाई। पापा ने बहुत कहा उससे कि उसे अपने कर्मों की सजा भुगतने दो और मेरे साथ चलो।

मम्मी ने भी अपनी ममता का वास्ता देकर उसे अपने साथ ले जाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन अब किस मुॅह से जा सकती है वो पापा के साथ जब पहले नहीं गई थी। उसका वरदान पर जो गर्व था चूर चूर  हो गया था आज। जो भी होगा उसे अपने बच्चों के सहारे खुद भुगतना है।

उसकी ननदों ने तो एक बार आना तक उचित न समझा कि एक बार आकर तसल्ली तो दे देंती  बल्कि उन लोगों ने तो यहॉ तक कह दिया कि उसने ही उनके भाई पर ध्यान नहीं दिया तभी उनका भाई भटक गया। कितना संघर्ष और मेहनत की थी इस परिवार के लिये। सुभद्रा से कभी कम नहीं समझा था इन लोगों को। बड़ी ननद की शादी बाद बच्चे के बारे में सोंचा था।

लेकिन किसी का क्या दोष? इन लोगों के लिये  तो वरदान के प्यार के कारण किया था और जब वरदान ने न केवल उसके साथ छल ही किया है बल्कि अपराधी भी सिद्ध होता जा रहा है। जितने मुॅह थे, उतनी बातें थी। वह किस किस को जवाब दे और क्या जवाब दे? सच्चाई से कैसे मुॅह मोड़ पायेगी?

वरदान ने कितना भी बड़ा अपराध किया होता, उसने क्षमा कर दिया होता लेकिन इतने जघन्य और घृणित अपराध के लिये तो वह उसका नाम तक जीभ पर नहीं लाना चाहती है। दो बहनों का भाई और एक बेटी का पिता होकर क्या उसे एक बार भी ख्याल नहीं आया कि वो लड़कियॉ भी किसी की बहनें और बेटियॉ हैं? उसे यह ख्याल क्यों नहीं आया कि यही कृत्य यदि कोई उसकी बहनों और बेटी के साथ करता तो उस पर क्या बीतती?

उससे बार बार पूॅछा जाता है कि क्या वह सचमुच कुछ नहीं जानती थी, वह सबको क्या जवाब दे? फिर उसके उत्तर से पूॅछने वाला संतुष्ट भी तो नहीं होता है।

उसने कम्पनी के मालिकों से कह दिया है कि वह गबन किये गये सारे पैसे देने को तैयार है, उसे वरदान का कुछ नहीं चाहिये। वह अपने बच्चे अपनी कमाई से पालेगी।

वह जितना सोंचती उतना ही वरदान के अपराधों का कद बढ़ता नजर आता। पड़ोसियों ने उसके घर आना छोड़ दिया है। वरदान के पापों का दंड उसे मिल रहा है।

वह तो घर छोड़कर चली जाती लेकिन जब तक वह वरदान की कम्पनी को गबन किये गये सारे पैसे नहीं दे देगी, कहीं नहीं जायेगी। उसने ऐसा कुछ नहीं किया है कि उसे सबसे मुॅह छुपाना पड़े। जो कुछ किया है वरदान ने किया है तो वरदान के कृत्य के लिये वह अपराधियों की तरह मुॅह छुपाकर क्यों भागे?

ऐसे ही बैठे सोंच रही थी कि कालबेल की आवाज से उठकर दरवाजा खोलने गई तो चौंक गई। सामने सुकन्या को देखकर उसके मुॅह से आवाज नहीं निकली। वैसे ही खड़ी रह गई। न उसे अंदर आने को कह सकी और न जाने को। फटी फटी ऑखों से देखती रह गई – ” मैं अंदर आ जाऊॅ दीदी?”

” दीदी……..।” रुद्रा असमंजस में थी – ” अब कौन सा नया खेल खेलना चाहती हो? क्या चाहिये मुझसे?”

” मैं आपसे कुछ लेने नहीं आईं हूॅ, मेरा उद्देश्य पूरा हो गया है। मैं अपनी नीलिमा को श्रद्धांजलि दे चुकी हूॅ।”

फिर उसने साथ लाये हुये बड़े से बैग की ओर इशारा किया – ” इसके अन्दर आज तक वरदान ने जो दिया है , सब है। फ्लैट भी मैंने आपके नाम कर दिया है। उसके कागजात, ज्वैलरी, नगद पैसे यहाॅ तक जो ड्रेसेज वरदान ने दिलवाई हैं, वो भी इसी में हैं। मैं इन सबका क्या करूॅगी, मुझे तो घिन आती है इन सबसे लेकिन अपने लक्ष्य के लिये मुझे घृणित से घृणित कार्य करना स्वीकार था।”

फिर वह रुद्रा के हाथ पकड़कर  फूट-फूटकर रोने लगी – ” मैं जानती हूॅ कि आप मुझसे घृणा करती होंगी लेकिन आप बताइये , आप मेरे स्थान पर होतीं तो क्या करतीं? मेरी बहन से भी प्रिय सहेली ने पूरे विश्वास से मुझे सब कुछ बताया था तो उसका बदला तो मुझे लेना ही था, यही मेरा लक्ष्य था। मुझे विश्वास था कि अगर पत्र मिलते ही पुलिस को बता दूॅगी तो केस उतना मजबूत नहीं होगा और सबूतों के अभाव में और रिश्वत देकर वरदान साफ बच जायेंगे और हो सकता है कि मुझे और नीलिमा को ही झूठा कहकर फॅसा दिया जाये। आज मेरी नीलिमा की आत्मा संतुष्ट हो गई है। इससे बड़ी दौलत मेरे लिये कुछ भी नहीं है।”

रुद्रा कुछ बोल नहीं पा रही थी – ” आपके लिये मुझे सचमुच बहुत दुख हो रहा है लेकिन क्या यह उचित नहीं हुआ कि वरदान का घृणित रूप उजागर हो गया। वरना क्या फर्क पड़ता वरदान के लिये रजनी, मेघना, नीलिमा, सुकन्या जाती रहेंगी और दूसरी लड़कियाॅ शिकार बनती रहेंगी। मेरी नीलिमा तो वापस नहीं आयेगी लेकिन न जाने कितनी नीलिमा शिकार बनने से बच गईं।”

सुकन्या ने अपने ऑसू पोंछते हुये कहा – ” रजनी और मेघना के सामने कोई मजबूरी नहीं थी इसलिये उन्होंने तुरन्त नौकरी छोड़ दी थी लेकिन नीलिमा को तो इतना मजबूर कर दिया गया था कि उसने बिना किसी को बताये मृत्यु का वरण कर लिया। बहुत प्यार करती थी वो अपनी मम्मी और भाई को।”

रुद्रा मूर्तिवत बैठी रह गई, उसमें सुकन्या की किसी बात का जवाब देने की हिम्मत नहीं थी। सुकन्या उठकर खड़ी हो गई – ” चलती हूॅ दीदी, हो सके तो क्षमा कर देना।”

रुद्रा में इतनी शक्ति ही नहीं बची थी कि वह उठकर गेट बन्द कर सके। वह तो फटी फटी ऑखों से गेट से बाहर निकलती सुकन्या को देखे जा रही थी।

सुकन्या अपने छोटे से कमरे से सामान समेट कर एयरबैग और अटैची में रखती जा रही थी। फ्लैट छोड़ने के बाद मृत्युंजय ने सुरक्षा की दृष्टि से उसे इस कमरे में रहने को कहा था।

सुकन्या की ऑखों में बार बार ऑसू आ रहे थे। अपना लक्ष्य सफल होने से खुश तो बहुत थी लेकिन भीतर ही भीतर कुछ चुभ भी रहा था।

दरवाजा भी नहीं बन्द किया था। मम्मी पापा तो इतने नाराज हैं कि इतना सब होने के बाद एक बार भी फोन नहीं किया। वह फोन करती है तो फोन काट देते हैं। आज वह मृत्युंजय और सुमन चाची से बिना मिले चुपचाप जा रही है। कल उसने मृत्युंजय से भी नहीं बताया कि आज वह चली जायेगी। इसलिये वह जल्दी जल्दी सामान समेट कर चली जाना चाहती है। वैसे मृत्युंजय ने कहा था कि वह शाम को उसे लेने आयेगा।

तभी दरवाजे को खोलकर चुपचाप कोई अंदर आया और बिना जरा भी आवाज किये चुपचाप खड़ा हो गया।

सुकन्या ने अटैची बन्द की और जैसे ही मुड़ी, पीछे खड़े व्यक्ति को देखकर हतप्रभ रह गई। दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे, ऑंखें पूरी तरह से भीगी थीं – ” कहॉ जा रही हो?”

” मुझे मत रोको जय। मेरा उद्देश्य सफल हो गया और बिना तुम्हारी सहायता शायद मैं भी अपने लक्ष्य में इतनी आसानी से सफल न हो पाती। हमने नीलिमा को सच्ची श्रद्धांजलि दी है, उसकी आत्मा बहुत खुश होगी।”

” अभी नीलिमा को दी गई श्रद्धांजलि अधूरी है। उसका एक सपना भी तो था, उसे कौन पूरा करेगा?”

” नहीं जय, ऐसा मत कहो तुमने वो सारे वीडियो, आडियो और तस्वीरें देखी और सुनी हैं जिसमें मैं वरदान के साथ कैसी अवस्था में थी। परिस्थिति कुछ भी रही हो लेकिन कोई भी व्यक्ति ऐसी लड़की को सही नहीं कहेगा जिसने किसी गैर मर्द से ऐसे सम्बन्ध रखे हों।’

” यह सब मुझे क्यों बता रही हो? अपनी आत्मा को कुचलकर, अपनी जिन्दगी को दॉव पर लगाकर तुमने दोस्ती के नाम पर मेरी बहन के लिये जो किया है, वह दुनिया की कोई भी लड़की नहीं कर सकती थी। अपनी जिन्दगी और अपनी अस्मिता दॉव पर लगाकर तुमने वरदान का सच दुनिया के सामने उजागर किया है, वरना न जाने कब तक और कितनी लड़कियॉ वरदान के हाथों बरबाद होकर आत्महत्या करती रहती। तुमने केवल नीलू को श्रद्धान्जलि नहीं दी है बल्कि उन तमाम लड़कियों को भी बचाया है जो आगे चलकर वरदान की कुत्सा का शिकार होने वाली थीं। मैं तुम पर जितना भी गर्व करूॅ, कम है। फिर इतनी बहादुर होकर ऐसे कायरों की तरह मुँह छुपाकर क्यों जा रही हो, मुझे छोड़कर।”

” मैंने जो कुछ किया अपनी नीलिमा के लिये किया है, तुम पर कोई अहसान नहीं किया है। इस प्रयत्न में अगर मेरे प्राण भी चले जाते तो मुझे परवाह नहीं थी।”

” मैं भी तुम पर कोई अहसान नहीं कर रहा। कब से तुमसे प्यार कर रहा हूॅ, खुद नहीं जानता लेकिन मेरे सपनों में हमेशा एक ही लड़की रही, वह तुम थी। “

मृत्युंजय की ऑखों में सपने तैरने लगे – ” कभी कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। तुम्हारी और नीलिमा की मीठी नोक झोंक के बावजूद तुम्हारे अंदर छुपे प्यार से कभी अनजान नहीं रहा। सोंचता था कि पहले पढ़ाई पूरी करके कैरियर बना लूॅ फिर पहले तुमसे तुमको माॅग लूॅगा। अंकल और आंटी को मनाने के लिये तो नीलू और मम्मी थीं ही, वो दोनों तो यह सुनकर वैसे ही खुशी से पागल हो जातीं। फिर पहले हम नीलू की शादी करते इसके बाद अपनी।” मृत्युंजय की ऑंखें भर आईं – ” लेकिन हर देखा हुआ ख्वाब पूरा नहीं हो पाता, जिन्दगी और किस्मत अपना काम करती है। नीलिमा की किस्मत में ऐसे ही जाना लिखा था।”

” नहीं जय मुझे जाने दो। अभी सब कुछ नया है। जबकि यह  ज्वार उतरने के बाद यही प्यार तुम्हें बोझ लगने लगेगा और वो सारे वीडियो एवं  तस्वीरें तुम्हें मेरी विवशता और नाटक न लगकर सच लगने लगेंगी और तुम सब कुछ भूलकर सोंचने लगोगे कि मेरे सचमुच वरदान से अवैध सम्बन्ध थे। तब क्या करूॅगी मैं? कैसे सह पाऊॅगी मैं? इससे अच्छा है मैं सबसे दूर चली जाऊँ।”

” ऐसा कभी नहीं होगा, तुम्हें क्या मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं है। जब मैं सब कुछ जानता हूॅ तो ऐसी गन्दी और बेहूदी बात तुम्हें कैसे कह सकता हूॅ?”

” मैंने भी तुम्हें बहुत प्यार किया है और आज जानकर बहुत खुश हूँ कि तुमने भी मुझसे प्यार किया है। मुझे इससे अधिक कुछ नहीं चाहिये। मुझे सबसे दूर जाने दो ,मैं तुम्हारे प्यार और नीलिमा की यादों के सहारे कहीं भी जिन्दगी बिता लूँगी। तुम किसी भी अच्छी लड़की को अपनाकर सुख से रहना।” सुकन्या की ऑखों में बसे ऑसू कपोलो पर लुढ़क आये, जिन्हें उसने तुरन्त पोंछ दिया।

” तुम जाना चाहती हो तो  जाओ।”

मुस्कराकर मृत्युंजय आगे बढ़ा और उसने सुकन्या को अपनी बॉहों के घेरे में बॉध लिया – ” इन बॉहों की जंजीरों को तोड़कर जा सकती हो तो जाओ, मैं तुम्हें रोकूॅगा नहीं।”

अब सुकन्या मृत्युंजय के सीने से लगकर अपने ऑसुओं से उसकी शर्ट को भिगोने लगी। मृत्युंजय ने भी सुकन्या के सिर पर अपना चेहरा रखकर ऑखें बंद कर ली। बॉहों का घेरा कसता जा रहा था सुकन्या की पीठ पर भी और मृत्युंजय की पीठ पर भी।

एक बार फिर दरवाजा धीरे से बिना आहट के खुला और छै: जोड़ी ऑंखें इस खूबसूरत नजारे को आकर देखने लगीं। जब दोनों की ऑंखें खुलीं तो दोनों हड़बड़ाकर एक दूसरे से अलग हो गये।

कमरे में तीन लोगों के ठहाके गूॅज रहे थे और दो व्यक्ति शर्माये हुये खड़े थे। कभी कभी नीची नजर से एक दूसरे को देख भी लेते थे।

बीना अवस्थी, कानपुर

समाप्त

मेरे प्रिय पाठकों “श्रद्धान्जलि ” के सभी भाग पूर्ण हो चुके हैं। आप सबका प्यार और प्रतिक्रिया ही मेरे लिये अनमोल हैं। इसलिये अपने विचारों से अवश्य अवगत करायें साथ ही त्रुटियों और कमियों‌‌ को भी उजागर तरें।

3 thoughts on “श्रद्धांजलि (अंतिम भाग ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi”

  1. admi kb समझेगा की इस तरह के संबंध khud k परिवार को खरब कर देते h वरदान के साथ साथ उसकी बीवी और बच्चों न भी सजा पाई है। मैं बहुत रोई यह कहानी पढ़ कर आज कल बहुत हो रहा h y सब

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