Short Moral Story In Hindi

“खजाना” :  Short Hindi Story with Moral

रामदीन आज सवेरे सवेरे ही अपना रिक्शा लेकर निकल गया था, आज उसने ठान लिया था की शाम तक थोड़े अधिक रुपए लेकर ही जायेगा चाहे उसके लिए जी तोड़ मेहनत ही क्यों ना करनी पड़े…
गर्मी भी अपनी चरम पर है, गेहूं कटाई के बाद अनाज गोदामों में पहुंच चुका था जिसे रामदीन को बताए हुए पते पर आटा चक्कियों पर पहुंचाना है.. तीन /चार फेरो के बाद बूढ़ा रामदीन बुरी तरह थक चुका था लेकिन उसने हिम्मत नही हारी, अब उसने अधिक बोरियां उठाने के लिए एक बोरी अपने सर पर भी रख ली थी, साथी रिक्शे वालो ने मना भी किया पर जाने कौन सी धुन सवार थी आज रामदीन पर की उसने किसी की भी ना सुनी और अपने काम में लगा रहा..
शाम को और दिन के मुकाबले आज तीन सौ रुपए अधिक मिले थे जिन्हे देख उसकी आंखों में सतरंगी सपने झिलमिला उठे थे…
अपनी झोपड़ी पर पहुंच उसने देखा उसका पांच साल का पोता और विधवा बहू बाहर ही बैठे है.. रामदीन ने अपने पोते को पुकारा तो बेहद उदास वो बच्चा अपने दादा की गोद में बैठ गया..
रामदीन ने प्यार से कहा “जन्मदिन मुबारक मेरे लाल” और रिक्शे में रखे केक, गुबारे, टॉफी और एक छोटा सा खिलौना अपने पोते को दे दिया… “जहां रोटी खाने के भी लाले थे वहां दादा द्वारा लाया गया ये सामान उस छोटे से बच्चे के लिए किसी खजाने से कम ना था”…
थक कर चूर रामदीन पोते के चेहरे की ये खुशी देख गदगद हो गया और वही दूसरी ओर बहू की आंखें भी डबडबा आईं …
मौलिक रचना
कविता भड़ाना

दुख : Short Stories in Hindi for Kids

भव्य आलीशान मकान, नौकर चाकर, धन संपत्ति सभी कुछ तो था और आज उसमें नितांत अकेले बैठे थे सौम्य और सुगंधा.
जिस सम्पन्न जीवन के लिए लोग तरसते है आज इस सबका उनके लिए कोई मायने नहीं था, कारण था दो दिन पूर्व उनके नौजवान इकलौते पुत्र की एक सड़क दुर्घटना में मौत..
जिस बेटे को सुख सुविधा और भव्य जिंदगी देने का सपना लिए अपने देश को छोड़कर विदेश आए थे आज मानो वो सब व्यर्थ चला गया था.
“सुनिए जी! यहाँ से वापिस गांव चलते हैं, अम्माँ के पास..!” भरी आँखों से सुगंधा बोली.
“मेरी ही जिद और महत्वकांक्षा की वज़ह से मैंने आप माँ और बेटे को अलग किया. आप को तो गांव का सीधा-सादा जीवन भी पसंद था परंतु मैं एक माँ को उसके बेटे से अलग करके यहां विदेश में ले आई,
याद है अम्माँ ने मेरे आगे कितनी मिन्नते की थी और तुमने भी तो.. परंतु जबरन बेटे की कसम देकर तुम्हें विदेश खींच ही लाई..
उस समय एक माँ को उसके बेटे से दूर करके उन्हें जो खून के आँसू रुलाये, ये उसी का दुष्परिणाम है जो आज मेरा बेटा मुझसे हमेशा के लिए दूर हो गया.. “
कुछ महीनों बाद…
गांव में जर्जर अवस्था में चारपाई पर पड़ी अम्माँ ने कसकर सुगंधा को सीने से लगा लिया,
” बेटा! मैं एक माँ की पीड़ा समझती हूं..ईश्वर तुझे इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे”
अम्माँ के सीने से लगी सुगंधा सोच रही थी कि दुःख किस माँ का अधिक है,
उस माँ का जिससे उसकी संतान एक दुर्घटना में छिन गयी जो विधि का विधान था या उस माँ का जिससे एक महत्वकांक्षा के कारण उसके जीवित पुत्र को अलग कर दिया गया और उसे खून के आँसू रुलाये गए..!
(स्वरचित, अप्रकाशित)
✍️पूजा अरोड़ा

#जीवन का सच : Hindi Short Stories with Moral


“सच में मैं तंग आ चुकी हूं नीलू, लगता है कहीं भाग जाऊं या फिर कुछ कर लूं। कितना भी कर लूं इन लोगों के लिए इनकी तसल्ली ही नही होती। क्या क्या न किया मैने इनके लिए पर इन्होंने क्या किया मेरे साथ, मेरे गहने तक रख लिए, कहीं आना जाना नही सारा दिन बस गधे के समान जुटे रहो। एक कप चाय का भी मैं अपनी मर्जी से नहीं बना सकती ।

सच्ची छह सालों में इन लोगों ने मुझे खून के आंसू रूला दिए हैं । अब तो लगता है कि ईश्वर से बोलूं कि हैं ये लोग कभी सुखी…..” अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि नीलू ने एकदम मेरे मुंह पर अपने हाथ रख दिया। मैं अवाक रह गई ।

” कुछ भी बुरा मुंह से मत निकालना अनु। अभी तुम गुस्से में हो पर शांति से काम लो। ये दिन भी निकल जायेंगे। सब दिन एक जैसे नहीं होते।” “ये तुम कह रही हो नीलू, अपना समय भूल गई क्या ? क्या क्या नही गुजरा तुम्हारे साथ? शायद तुम भूल गई कि एक बार रो रोकर तुम मेरे सामने ही कह रही थी कि घिसट घिसट कर मरेंगे ये..

.” ” हां….कहा था याद है मुझे अनु, इसीलिए अब तुम्हे रोक रही हूं। जो गलती मैने की है मैं नही चाहती वो तुम भी करो। कहते है ना ईश्वर आपकी हर इच्छा पूरी करता है बस अपनी इच्छा भी साथ में जोड़ देता है ।

मेरी सास तीन साल तक बिस्तर पर पड़ी रही। बेड सोर हो गए थे, ऊपर नीचे तक नलियां लगी हुईं थी । ना दिन का पता होता होता था न रात का बस सांसों के उतार चढ़ाव से पता चलता था कि हां अभी हैं। पर भुगत कौन रहा था मैं और पतिदेव। अब इतने पत्थर दिल हम दोनों ही ना थे कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते।

पर जब तक वो रहीं, चाहे अब वो कहने सुनने की सीमा से परे थीं पर सांसे तो थी ना। हमारी जिंदगी ही जैसे थम सी गई थी। न कहीं आना जाना, ना कोई तीज त्योहार की खुशी, ना कहीं जाने का उत्साह बस एक बंधी बंधाई जिंदगी जी रहे थे हम।

पिताजी की याद है ना तुम्हें, उन्हे बस अपने से मतलब होता था मेरी हर ख्वाहिश पूरी होनी चाहिए बस इसी भागा दौड़ी में दिन बीत रहे थे। और फिर एक दिन मैं जब बैठी हुई सब बातों का लेखा जोखा कर रही थी कि कहां मुझसे क्या गलत हुआ और बिजली सी कौंधी दिमाग में कि यही सब की कामना तो की थी मैंने इनके लिए …

ईश्वर ने पूरी की पर कैसे…साथ में मैं भी तो घिसट रही हूं। तब समझ में आया कि ईश्वर से किसी के लिए भी चाहे वो तुम्हारा दुश्मन ही क्यों न हो, बददुआ मत मांगो। दुख देना, सुख देना ऊपर वाले के हाथ में है तो फिर हम उससे मांग कर अपने लिए क्यों कांटे बो देते हैं।

इसीलिए तुम्हे भी कह रही हूं बस यही बोलो ईश्वर जो तुम्हे मंजूर हो, जो सबके लिए अच्छा हो वही कर” कहते हुए नीलू रोने लगी और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । कानों में नीलू की आवाज गूंज रही थी कि किसी के लिए भी बददुआ मत मांगो ये न हो तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाए पर फिर खून के आंसू तुम्हे ही पीने पड़ें।
शिप्पी नारंग

सास V/S बहू : Moral Stories in Hindi in Short


अरे गीता! तेरी बहू पर तो बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है तेरा। जब मर्जी आये बाहर चली जाती है, न आने का ठिकाना न जाने का? तू कैसे सहती है इसे? मेरी बहू ऐसा करे तो टांगे तोड़ दूँ उसकी। मेघा कुछ दिन पहले आई हैं अपनी मौसेरी बहन के घर इलाज के लिए। घर का हाल देख आज रहा नहीं गया उनसे, तो फूट पड़ी।
क्या करूँ दीदी। बेटे और ससुर की शह है न। मेरी तो चलती ही नहीं घर में। सारा दिन यूँ ही भटकती रहती है काम के बहाने।
इंटीरियर डेकोरेटर हुई तो क्या? घर के नियम कायदे तो मानने चाहिए न? मेघा ने प्रश्न किया।
फिर घण्टों बैठ दोनो बहनें अपनी अपनी बहू का दुखड़ा रोती रहीं।
दूसरे दिन गीता को किसी काम से बाहर जाना पड़ गया, बहू घर पर थी। मेघा ने खाने के बाद उसके कमरे में डेरा जमाया और खोद खोद कर पूछने लगी कि गीता कैसा व्यवहार करती है। थोड़ी देर तो बहू हां हूँ करती रही, फिर उसके बाद खुल कर सास की बुराई करने लगी। मेघा को बड़ा मजा आ रहा था। सास बहू के बीच का सामंजस्य जो दोनों दिखाते थे बाहर वो उजागर हो रहा था। बाहर उनकी छवि बहुत अच्छी है। आदर्श सास बहू वाली जोड़ी की।
अब मेघा सोच रही थी कि सब को बताएगी की हाथी के दांत दिखाने के और हैं खाने के और।
रात में सब सोए हुए थे कि मेघा के कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई।
बाहर बहू थी- मां कॉफ़ी पियेंगी?
जरूर उसने जवाब दिया।
बाल्कनी में महफ़िल जमी और दोनों ने मेघा से हुई बातचीत एक दूसरे को बताना शुरू किया। थोड़ी देर में पेट पकड़कर हंसने लगे दोनों। गीता ने बहू से कहा- बेटा! किसी की बातों में मत आना कभी भी। हमें साथ रहना है इस घर में। बाहर वालों की बातों में आकर गर हमने अपना प्यार खो दिया तो सब बिखर जाएगा।
बाहर वालों का क्या है? एक दूसरे की बातों घटनाओं को मिर्च मसाला लगाकर दूसरों को सुनाएंगे और मजे लेंगे। जितना हम सचेत रहें, उतना अच्छा। हां! रिश्ता भी बरकरार रखना है, स्नेह भी। इसलिए दिखाओ ऐसा की तुम उनकी तरफ हो। सब की बातें सुनो पर अपने घर के रिश्ते की नींव को कमजोर मत होने दो।
जी माँ! मेघा बुआ जैसे रिश्तेदारों को सम्हालना मुझे बखूबी आता है, आपसे सीखा है न। और दोनो हंस पड़े।
©संजय मृदुल

दंगा (लघुकथा) : Small Moral Stories in Hindi


अरे वाह! इतना सारा पनीर.. आज तो मैं नमक लगाकर पनीर खाऊँगी..6 वर्षीय बालिका बबली ने पनीर देखकर ललचाते हुये माँ से कहा।
चुपकर बेशर्म, तुझे यह पनीर खिला दूँगी तो शहर में क्या बेचूँगी और फिर घर कैसे चलेगा..माँ ने कहा, इसके बाद 5 किलो पनीर बाहर बाइक पर इंतज़ार कर रहे अपने पति लखन को दे दिया।
बबली ललचाई आँखों से उस पनीर को जाते हुये बस देखती रही और मन मसोसकर रह गई।

लखन का गाँव में दूध का व्यवसाय था , 4 भैसों से दोनों वक़्त का मिलाकर लगभग 30 लीटर दूध होता था, लखन दूध और दूध के प्रदार्थ जैसे दही, छाछ पनीर , मक्खन और घी आदि नजदीकी शहर में बेंचकर अपना घर जैसे तैसे चलाया करता था।
इतना दूध होने में बावजूद भी बमुश्किल आधा लीटर दूध छोड़कर बाकी का सारा दुग्ध प्रदार्थ लखन को शहर में बेंचना मजबूरी था, क्योंकि अगर वह इन्हें बेंचकर पैसा नही जोड़ेगा तो नई भैसें कहाँ से लाएगा, फिर उसका घर कैसे चलता। लखन को अपनी ही बेटी को घर पर बने प्रदार्थों को न देना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था, मगर वह कुछ नहीं कर सकता था।
★★
आज सुबह सड़क पर दौड़ती पुलिस की गाड़ियों, जगह जगह लगे बेरिकेड्स को देखकर लखन समझ गया कि शहर में कुछ “अनहोनी घटना” हुई है, पूछताछ करने पर पता चला कि कल रात ही उपद्रवी तत्वों ने पूरे शहर में आगजनी कर दी है जिससे “कर्फ्यू” लग गया है।
बेरिकेड्स के पार करके न कोई शहर से अंदर आ सकता और न ही शहर से बाहर जा सकता है।
तभी एक पुलिसकर्मी ने लखन पर लट्ठ बरसाते हुये कहा, तुझे मरने का ज़्यादा शौक पड़ा है क्या? जब बड़ी बड़ी दुकानों को आग लगा दी है, तो तुझे भी आग के हवाले कर देंगे वह लोग.. जा भाग जा अपने घर, और जबतक माहौल शांत नहीं होता, इधर मत आना।
हताश मन से लखन बिना कुछ सामान शहर में बेचें ही वापस घर आ गया।
★★★
घर आने पर लखन की पत्नी ने दूध को उबालकर “खीर” बना ली, पनीर खराब न हो जाये इसलिए उस पनीर की सब्जी बना ली और बचे हुए दूध को दही जमाने के लिए रख दिया ताकि उससे घी निकाल सके..
शहर के कस्टमर लखन को फ़ोन लगाकर बता रहें थे कि, आज उनके घर में चाय भी न बनी क्योंकि दूध नहीं था, बेटे को पनीर चिली खिलाना था मगर पनीर न मिला, बूंदी रायता बनाना था मग़र आज दही न मिला..सुनसुनकर लखन का सारा परिवार शहर के दंगों से दुःखी था..
मग़र बबली खीर पीकर और पनीर की सब्जी खाते हुये चहककर बोली- “माँ ये दंगा होना कितना अच्छा होता है न.. हमें ढेर सारा पनीर और स्वादिष्ट खीर खाने को मिलती हैं।
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जिंदगी में क़भी क़भी ऐसा भी होता है कि एक का दुःख दूसरे की वजह बन जाता है।
✍️ स्वलिखित
अविनाश स आठल्ये
©® सर्वाधिकार सुरक्षित

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