Moral stories in hindi : वह बरसाती रात हर दिन से कुछ अलग ही थी, बादल गरज गरज कर शोर मचा रहे थे.. मूसलाधार बारिश आज एक अलग ही रिदम में संगीत गा रही थी..
इस बरसाती रात का “आनंद” लेने यूसुफ अपने कुछ खास दोस्तों के साथ अपनी बुलेरो तेज़ रफ़्तार के साथ रास्ते भर पानी के छीटें उड़ाते हुये जा रहा था। उस बुलेरो के अंदर “शराब पार्टी” चल रही थी.. गाड़ी में बज रहे तेज़ संगीत, सिगरेट के उड़ते धुंए और शराब के असर से वह सब उन्मुक्त होते जा रहें थे।
सहसा उन्हें रास्ते में पैदल छाता लिए जाती हुई एक नवयुवती दिखती हैं.. लाल रंग की स्कर्ट और टॉप, और लाल रंग का ही छाता उस नवयुवती को बहुत आकर्षक बना रहा था..
नशे में मदमस्त यूसुफ और उसके साथियों के लिये तो यह “सुअवसर” था अपनी उस रात को रंगीन करके एक और लड़की की जिंदगी बर्बाद करने का…
उन्होंने बुलेरो की गति धीमी करते हुये उसकी हेडलाईट की रौशनी अपर- डिपर करके लड़की के अंग-अंग को ललचाई नज़रों से देखना शुरू कर दिया…इधर इन सबसे बेख़बर वह लड़की अपनी धुन में तेज कदमों से चली जा रही थी..
उन लड़कों की आँखों में वासना का ज्वार उबलने लगा.. और एक बार फिर किसी असहाय लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिये..
यूसुफ ने उस लड़की से दस कदमों की दूरी पर अपनी बुलेरो रोकी और उसकी हेडलाईट बन्द की, अब तक उसके सभी “दक्ष साथियों” ने तेज़ी से आगे बढ़कर उस लड़की को क्रॉस करके आगे मोड़ तक नज़र दौड़ाई, कहीं दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था.. लड़की शायद इन सबसे बेखबर अपनी धुन में चली जा रही थी.. वह सब लड़के इस लड़की के कदमों से कदम मिला कर चलने लगे.. उसमें से एक लड़का कबीर मदमस्त होकर गाना गाने लगा..
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इक लड़की भीगीं भागी सी..
सोती रातों में जागी सी..
अब तक वह लड़की इन सबके मंसूबे समझकर भयभीत होकर तेज़-तेज़ कदमों से चलने लगीं थी कि तभी यूसुफ और उसके साथियों ने जबर्दस्ती उस लड़की को पीछे से पकड़कर बुलेरो तक ले जाने की चेष्टा की…
पर अचानक उस लड़की के फेके हुये किसी “द्रव्य” से यूसुफ सहित उन सभी अय्याश लड़को चेहरा और हाथ पैर बुरी तरह झुलस उठे.. छाता हटाते ही उस लड़की का चेहरा देखकर उन सभी लड़को के मुँह से चीख़ निकल आई…
चुड़ैल…या भूतनी.. उफ़्फ़ कितना भयानक चेहरा था उसका, आँखे पूरी तरह धंसी हुई, जला हुआ झुलसा चेहरा.. कटे फटे होंठ.. भवों और पलको पर कोई बाल ही नहीं..
वह लड़के बुरी तरह चीख़ते.. चिल्लाते किसी तरह बुलेरो में बैठकर नज़दीकी अस्पताल की तरफ भागें.. अब तक उन पर चढ़ी ख़ुमारी पूरी तरह उतर चुकी थी।
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अस्पताल में डॉक्टर ने उन सबकी हालत देखकर ही कह दिया कि आप लोगों पर “एसिड अटैक” हुआ है,
पुलिस केस बनेगा,पुलिस के आने के बाद ही आप लोगों का कोई इलाज शुरू हो सकता है।
जलन और दर्द से छटपटाते लड़के बेसब्री से पुलिस के आने की प्रतीक्षा कर रहें थे..
पुलिस इंस्पेक्टर “विक्रम” ने यूसुफ और उसके साथियों के मुँह से आती शराब की दुर्गंध और हालात तेज़ाब से जली यह देखकर अंदाज़ लगा चुका था कि यह सब भी उसी चुड़ैल के “शिकार” हुये हैं..
यानी “न्याय” तो हो ही चुका था बस पुलिसिया कार्यवाही की खाना पूर्ति ही करनी थी।
उन लड़कों के दिये गये बयान खुद उनके ही ख़िलाफ़ जा रहे थे.. उस पर से 5 लड़के एक अकेली लड़की का शिकार बन कैसे गये.. भूत प्रेत पर तो कोई मुकदमा होता नहीं.. पुलिस ने उन्ही लड़को पर शराब पीकर गाड़ी चलाने और किसी अनजान लड़की को हवस का शिकार बनाने की कोशिश की धाराएं लगाकर डॉक्टर से इलाज करने को कहा।
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वह “चुड़ैल” रविन्द्र कुमार जी की इकलौती पुत्री शिल्पा थी, वह निहायत सुंदर और सुशील महिला थी जो एक स्कूल में अध्यापिका थी, उसे लगभग 4 वर्ष पूर्व ऐसी ही किसी भयानक रात कुछ दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बना डाला था, फ़िर शुरू हुआ लगातार मुकद्दमों और समाज के तथाकथित ठेकेदारों के लांछन का दौर.. शिल्पा का तो रो रोकर “आँसुओं” का सैलाब निकल पड़ता जब उसके अपने ही रिश्तेदार और पड़ोसी उसके सामने ही कहते कि लड़कों से तो गलती हो ही जाती हैं, रविन्द्र जी आपको अपनी लड़की को कंट्रोल में रखना था..इतनी रात को कोई लड़की घूमती है क्या? जरूर वह लड़की ही धंधेबाज हैं और वसूली न होने की वज़ह से इन “शरीफ़” लड़कों पर बेहूदा इल्ज़ाम लगा रही है।
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इसी मानसिक प्रताड़ना से पीड़ित होकर एक दिन रविन्द्र कुमार ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस सदमें में 3 महीने के अंदर ही माँ भी स्वर्ग सिधार गई।
कुछ महीनों पूर्व भरापूरा परिवार, इस घिनौने हादसे की वजह से अब पूरी तरह उजड़ चुका था। मुकद्दमों की हर तारीख पर उन वहशियों के चहरे की कुटिल मुस्कान से शिल्पा का खून खौल उठता था। उसका बस चलता तो वह वहीं उन सबकी गोली मारकर हत्या कर देती.. पर क्या करती..अब वह अकेली थी..मजबूर थी और कानून पर भरोसा करती थी..
शिल्पा की मुख्य गवाही के एक दिन पूर्व इन्हीं दरिदों का एक साथी “मुख़्तार” उसके घर आया औऱ उसे बयान से पलटने का दवाब डालने लगा..शिल्पा के मना करने पर साथ लाई तेज़ाब की बॉटल से शिल्पा का चेहरा झुलसा कर भाग गया.. दर्द से तड़पती शिल्पा को पड़ोसियों ने किसी तरह अस्पताल पहुँचाया, डॉक्टर ने इलाज के साथ थी पुलिस को भी सूचना दे दी थी, इस मामले की जाँच वहीं इंस्पेक्टर विक्रम कर रहें थे, जिन्होंने शिल्पा के बलात्कार का केस कोर्ट में दायर किया था.. लिहाजा बलात्कार, पीड़िता को धमकाने और एसिड अटैक करने के कारण मुख़्तार सहित सारे वहशियों को उम्रकैद की सजा हो गई।
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परन्तु अदालत के इस न्याय से शिल्पा को क्या “न्याय” मिला, माता-पिता गुज़र गये, उसका अपना चेहरा झुलसकर इतना भयानक हो गया कि वह ताउम्र आईना नहीं देख सकती थी। इज्जत, दौलत और नाम सबकुछ मिट्टी में मिल चुका था।
पूरे दो वर्ष से अधिक लगे उसे इस सबसे उबरने में, ज़ख्म भर चुके थे मगर यह एसिड के दाग अब उम्रभर के साथी बन चुके थे..
इंस्पेक्टर विक्रम ने ही पहल करके उसे ऐसी समाजसेवी संस्था से मिलवाया जो एसिड पीड़िता महिलाओं की मदद करती थी, उनकी सहायता से शिल्पा के मन मे जीवन की आस जाग चुकी थी, रोजगार की समस्या भी हल हो चुकी थी.. किंतु अब भी उसके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला रह रहकर धधक उठती थी।
इसलिए वह हर ऐसी अंधेरी रात “बरसाती” रात को पूरी तरह “तैयार” होकर निकल जाती है सूनी पड़ी सडक पर इसी प्रकार के वहशियों के “शिकार” के लिये। इस तरह शिल्पा अपने बलात्कार और एसिड अटैक के जख्मों से निकले आँसुओं का हिसाब इन वहशियों के आँसुओं में निकालने का नायाब तरीका ढूंढ़ चुकी थी।
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महफूज़ ही रखना अपने दिल को नापाक दरिंदों से,
सुना है “इश्क़” के शिकारी, “शिकार” पर निकलें हैं।
✍️स्वलिखित
सर्वाधिकार सुरक्षित
अविनाश स आठल्ये
#आँसू