शहर भ्रमण – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

जल्दी जल्दी हाथ चलाओ आज हमारे जज साहब के बाबू जी आ रहें हैं । कहीं भी कोई गंदगी ना हो और सब चीजें अपनी जगह पर सुव्यवस्थित तरीके से हो ।

क्यों मधु बाबू वो कोई आर्मी में थे ??

नहीं , वो एक रिटायर अध्यापक है ।

लेकिन उन्हें गंदगी और समान का बिखराव बिलकुल नहीं पसंद । तभी कार के हॉर्न की आवाज़ आती है और सब बाहर आ जाते है । विक्रम ने मधु से कहा “बाबू जी का सामान अंदर ले जाओ” । बाबू जी ! अभी आप आराम कीजिए मैं शाम को मिलता हूँ । रत्ना और पिंकी बाहर है वो थोड़ी देर में आ जाएँगे बोल विक्रम ऑफ़िस के लिए निकल गया ।

बाबूजी को कहां नींद आ रही थी , एक तो नयी जगह और कोई भी घर पर नहीं तो क्या करे ??कुछ सूझ नहीं रहा था । इस लिए उन्होंने सब नौकरों को बुलाया । उनके नाम और कितने पढ़े हो पूछा । मधु के अलावा कोई पढ़ा लिखा नहीं था । ठीक है तो कल से मैं तुम सब को पढ़ा दिया करूँगा ।

पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है वरना जीवन के सब रंग एक से लगते है । हर रंग को महसूस करने के लिए पढ़ा लिखा , सलीक़े वाला होना ज़रूरी है । यें सब सुन नौकरों ने बड़े भारी मन से कहा ठीक है बाबू जी ।

अगली सुबह जब उठें तो बाबू जी को सब नया सा लगा । तैयार हो बाबू जी खाने की मेज पर गए , तो अपनी बहू और पोती से मिल बहुत खुश हुए । खाना खा बेटा – बहू अपने काम से चले गए । पिंकी भी स्कूल चली गई । अकेले बाबूजी को जब कुछ सूझा नही तो उन्होंने रिकॉर्ड ऑन कर गाने लगा दिए । ये सुन मधु बाहर आया और बोला आपको गाने सुनने का शौक़ है ।

हाँ , इससे सुकून मिलता है ।

थोड़ी देर बाद उन्होंने सभी नौकरों को बुलाया और पढ़ाना शुरू कर दिया । सब एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे और बड़ी हिम्मत कर बोले “बाबू जी ये सब रहने दो , हमे बहुत काम है और पढ़ के भी हमे यही काम करना है । तो हमे माफ़ करे बोल सब अपने अपने काम पर लग गए ।ऐसे ही रोज़ की दिनचर्या में किसी के पास बाबू जी के लिए समय ही नहीं था ।

पिंकी भी स्कूल से आते ही सो जाती फिर शाम को ना जाने कौन कौन सी क्लास जाती । यें सब देख उनका मन उचटने लगा । जब मधु ने विक्रम को बताया तो उसने कहा मधु तुम बाबू जी को बाहर घूमाने के लिए ले जाना । मैं तो बहुत बिज़ी हूँ ।

अगले दिन बाबूजी बाहर घूमने गए उन्हें बहुत अच्छा लगा । जब वो आइसक्रीम खा रहे थे तो पास में एक बच्चा बैठा हुआ था । जो बहुत उदास लग रहा था । तो उन्होंने उसे भी आइसक्रीम दे दी और पूछा क्या हुआ ?? यहाँ ऐसे क्यों बैठे हो ?? इससे पहले वो कुछ कह पाता उसकी मम्मी आयी और बाबूजी पे चिल्लाने लगी ।

तुम होते कौन हो मेरे बच्चे को आइसक्रीम देने वाले । बेटा तुम्हें कितनी बार मना किया है अजनबी लोगों से ना तो बात करो और ना ही कुछ लो । यें सब देख बाबू जी हैरान परेशान बताओ मधु हमारे गांव में तो हम बच्चों को कुछ भी खाने की चीज दे देते थे । तो भी कोई कुछ नहीं कहता और ये शहर वाले….. तौबा है भाई ऐसे लोगो से ।

घर आकर जब उन्होंने यें सब बाते अपने बेटे को बतायी । तो वो बोला आपको क्या ज़रूरत है , किसी की पछड़े में टांग अड़ाने की । आप शहर घूमने आए है तो मज़ा करे । वाह बेटा मज़ा कैसा मज़ा ?? माना मुझे शहर आना था , पर तुम लोगो के पास तो समय ही नहीं है । ये मुलाजिम जो बस तुम्हारा हुकुम बजाते है । मैं इन्हें पढ़ाऊँ तो कतरा जाते है । क्या है इस शहर में कुछ नहीं । ना ही ताजा हवा , ना ही अपनापन ना ही सुकून है । बस सब लोग भागे जा रहे है ।

बेटा मेरा तो अब इस शहर से यहाँ के लोगों की सोच से मन खट्टा हो गया है । अब तो तू मेरे जाने की टिकट करा दे । शहर की आबों हवा मुझे रास नहीं आयी । लेकिन बाबूजी अभी आपने देखा ही क्या है ?? बहुत देख लिया बेटा …….जहां कुत्ते के लिए बिस्कुट है ,पर गरीब के लिए एक टुकड़ा नहीं तो क्या फ़ायदा ऐसे शहर में रह कर । हमारे गाँव में चाहें जानवर हों या इंसान कोई भूखा नहीं रहता ।

कुछ दिनो बाद बाबू जी ने शहर को अलविदा कहा । स्टेशन पर मधु बाबू जी से पूछ रहा था आप फिर कब आयेंगे ????

पता नहीं….बोल उन्होंने पिंकी को प्यार किया और बहू की आशीर्वाद दिया और अपने शहर का सफर पूरा किया ॥

#जी खट्टा होना

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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