हाल ही में हुई अमरनाथ धाम की त्रासदी, देश-विदेश में बाढ़ से तबाही, दरकते पहाड़, देश-दुनिया में पड़ रही भीषण गर्मी, सुलगते जंगल आदि अनेकों उदाहरण हैं जो कि सिध्द करते हैं कि प्रकृति से की गई छेड़छाड़ और संसाधनों के अंधाधुंध दोहन का परिणाम भयावह ही होता है।
जैसे-जैसे हम प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं हमें पर्यावरण से की गई छेड़छाड़ से उत्पन्न बर्बादी का भी सामना करना पड़ रहा है।
प्रगति की इस अंधकारमई अंधाधुंध दौड़ में हम भौतिक खुशहाली का दावा तो कर सकते हैं किंतु स्वस्थ,प्राकृतिक, पर्यावरण से मिलने वाले जीवनदाई तत्व निरंतर कमजोर पड़ते जा रहे हैं और हम सब बढ़ते जा रहे हैं एक अनजाने रसातल की ओर, जो हमारे चारों ओर प्रदूषण, भयंकर बीमारियों, अंधकारमय भविष्य का भयंकर जाल बुनता जा रहा है। हम इस चक्रव्यूह में स्वयं ही घुसते, फँसतेऔर उलझते जा रहे हैं।
यूँ तो प्रकृति स्वयं ही पर्यावरण संतुलन की दिशा में प्रयासरत रहकर निरंतर कार्य करती रहती है किंतु आधुनिकता का नशा, सामरिक होड़ और हमारी अनावश्यक दखलंदाजी, वनों की अनवरत कटान, कल-कारखानों के धुँए, रासायनिक गैस, परिवहन साधनों के मारक धुएँ, कूड़ा करकट का जल में मिलना, पानी की बर्बादी आदि से नित्य प्रति प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है।
हमें ध्यान रखना होगा कि धरती पर जीवन के लालन पालन के लिए पर्यावरण प्रकृति का अनुपम उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते हैं वह सभी पर्यावरण के अन्तर्गत आते हैं जैसे- हवा, पानी, प्रकाश, भूमि, पेड़, जंगल,पहाड़ और अन्य सभी प्राकृतिक तत्व। हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ एवम समृद्ध जीवन को अस्तित्व में रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हम सबको समग्र रूप में सोचना होगा कि हम अपने परिवेश,पर्यावरण एवं भविष्य को सुरक्षित करने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं और कैसे! हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि केवल विचार गोष्ठियों, चर्चा-परिचर्चा बहस या दिवसों के आयोजन अथवा दिखावे के चिंतन से हम प्राकृतिक तबाही और पर्यावरण प्रदूषण को नहीं रोक सकते और न ही ग्लोबल वार्मिंग का यह विनाशकारी घटना चक्र ही रुक सकता है।
यदि हम वास्तव में चाहते हैं कि हमारा पर्यावरण स्वच्छ, स्वस्थ और शुभ फलदाई हो सके तो इसके लिए हमें एक निश्चित, दृढ़ और शाश्वत संकल्प लेना होगा और निरंतर प्रयास, अथक कार्य करके अपने पर्यावरण, भविष्य और जीवन को बचाना होगा।
पर्यावरण को बचाने के लिए सबसे पहले हमें पानी को प्रदूषित होने से बचाना होगा। कारखानों, सीवरेज और घरों की नालियों से निकले पानी को नदियों और समुद्र में जाने से रोकना होगा। वनों को नष्ट होने से बचाना होगा और लोगों को पौधारोपण के लिए प्रेरित करना होगा। प्लास्टिक की सामग्री और थैलियों के उपयोग को रोकना होगा। यही नहीं बढ़ती हुई जनसंख्या, महानगरों की ओर निरन्तर पलायन, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग आदि से भी बचना होगा।
हमें याद रखना चाहिए की प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने कहा था कि:-
‘सादा जीवन और उच्च विचार ही इस धरती को बचा सकते हैं।’
यानि कि हमें एक मर्यादित जीवन जीने की आदत डालनी होगी, जंगलों के कटान, प्रकृति से छेड़छाड़ जैसे लापरवाही भरे रवैये से बचना होगा साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जो देश जितने विकसित दिखते हैं पर्यावरण की समस्या वहां उतनी ही भयावह है।
आज जल, वायु, परिवेश सभी कुछ प्रदूषित होता जा रहा है, प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल पर्यावरण विनाशक का कार्य कर रहा है। अगर अभी भी हम नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं कि जब धरती पर मनुष्य नहीं अपितु इसकी याद का ही अस्तित्व शेष रहेगा, हम और हमारी सभ्यता ना जाने कहाँ खो जाएगी, तब यह विलासिता, भौतिकता और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा की ललक ना तो स्वयं रह पाएगी और ना ही रहेगा अस्तित्व स्वच्छ पर्यावरण या स्वस्थ मनुष्य का, अगर रह जाएगा तो केवल खोखलापन,प्रदूषित जीवन, कुपोषण और विभीषिका।
अल गिरी के इस प्रेरक वाक्य कि:-
‘विश्व पर्यावरण संकट वर्षा की तरह वास्तविक है और मैं अपने बच्चों को उजड़ी धरती और टूटे भविष्य के साथ छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकता।’
को ध्यान रखते हुए हम स्वयं व समाज को तैयार करें कि वह ईश्वर की अनुपम धरोहर को सुरक्षित व संरक्षित रखकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य करें और यह बीड़ा उठाए कि
‘जो हो चुका वह हो चुका, अब आगे कुछ भी ऐसा ना होने देंगे’
अर्थात अपने पर्यावरण को स्वच्छ, स्वस्थ, संरक्षित और समृद्ध बनाएंगे इसके लिए पौधारोपण, तालाबों व कुओं की देखभाल पर ध्यान देंगे, प्राकृतिक संसाधनों के अनावश्यक दोहन से बचेंगे और
तीन ‘R’ के लाभकारी सूत्र
Reduce (कम उपयोग)
Recycle (पुनः चक्रण) और
Reuse (पुनः उपयोग)
का अनुपालन करते हुए एक सक्रिय नागरिक की भूमिका का निर्वहन कर, भविष्य के लिए एक सुंदर, सुखद और स्वस्थ परिवेश तैयार करेंगें।
रामG
[राम मोहन गुप्त ]