Moral Stories in Hindi : छटपटाती आँखें और पसीने से सराबोर चेहरा ,भय और घबड़ाहट के बीच शर्मिंदगी का एहसास, साठ साल के शशिभूषण जी में स्पष्ट रुप से दीख रही है। शशिभूषण दम्पत्ति अपने बेटे निखिल में कुसंस्कार के बीज अपने स्नेह की पैनी से पैनी कुल्हाड़ी से भी नहीं काट सके।शायद उनके पूर्वजन्म के कर्मफल का ही परिणाम होगा,जिसके कारण उनके सभ्य और सुसंस्कृत परिवार में निखिल जैसा बेटा पैदा हुआ, जिसके कारण सारा परिवार शर्मसार हो उठा है।उनकी पत्नी इन्दुजी ने जब से बेटे की करतूत सुनी है,तबसे उनका रो-रोकर बुरा हाल है।
शशिभूषण जी समझ नहीं पा रहे हैं कि बेटे निखिल की परवरिश में कहाँ गल्ती हो गई!दोनों बेटियाँ भी तो उसी वातावरण में पली-बढ़ी हैं,फिर बेटा क्यों गलत कामों में फँस गया।शायद बेंगलूर में पढ़ाई के दौरान गलत संगति में फँस गया हो!कहा भी तो गया है-‘संगति ते गुण होत है,संगति तेज गुण जात’।
शशिभूषण जी पत्नी तथा परिवार को दिलासा देते हुए कहते हैं -” आपलोग सब परेशान मत हों, मैं कल बेंगलूर जाकर सारी बातें पता करता हूँ।निखिल को सुधारने का हरसंभव प्रयास करुँगा।”
इन्दुजी-” मैं भी आपके साथ चलूँगी।अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह बर्बाद नहीं होने दूँगी।”
शशिभूषण जी पत्नी से कहते हैं -” ठीक है!कल साथ चलने की तैयारी कर लो।”
शशिभूषण जी बिस्तर पर लेट जाते हैं,परन्तु उनके मन की बेचैनी उन्हें सोने नहीं देती है।मन-ही-मन वह अपनी जिन्दगी का आकलन करने लगते हैं।उनका ताल्लुक ठाकुर परिवार से है।घर में काफी जमीन-जायदाद है।उनकी नौकरी शहर में लग गई। उनका परिवार बहुत ही सभ्य, सुसंस्कृत है।दोनों पति-पत्नी भी विनम्र स्वभाव के हैं।समाज में सभी के सुख-दुख में सदैव उपस्थित रहते हैं।उन्हें किसी बात का घमंड नहीं है।उन्हें दो बेटियाँ और एक बेटा है।दोनों पति-पत्नी ने बेटे-बेटियों की परवरिश में कभी भेद-भाव नहीं किया।दोनों बेटियाँ पढ़ने में काफी अच्छी थी।बेटा निखिल छोटा होने के कारण कुछ ज्यादा ही सबका दुलारा बन गया था।पढ़ाई में कुछ विशेष उसका मन नहीं लगता था।पता नहीं कैसे निखिल के मन में एकलौता बेटा होने की बात घर कर गई?दसवीं से ही उसे अपने धन पर अहंकार होने लगा था।
निखिल के बारहवीं पास करते ही शशिभूषण जी ने इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने बेंगलूर भेज दिया।इन्दुजी निखिल को अपनी आँखों से दूर नहीं भेजना चाहती थीं,परन्तु उन्होंने पत्नी से कहा -” देखो इन्दु! इतना पुत्र मोह ठीक नहीं है।जगह बदलने से उसकी कुसंगति भी छूटेगी और उसका मन पढ़ाई-लिखाई में भी लगा रहेगा।”
उन्हें कहाँ पता था कि पढ़ाई के नाम पर उनका बेटा परिवार का नाम डूबोकर सबको शर्मिन्दा कर देगा।अपनी जिन्दगी का आकलन करते-करते कब नींद की आगोश में चले गए, उन्हें कुछ पता ही नहीं चला!
अगले दिन पति-पत्नी बेंगलूर के लिए रवाना हो गए। वहाँ पहुँचकर निखिल के दोस्त अनिल से उनकी भेंट हुई।उन्होंने अनिल से सारी बातों की जानकारी ली।अनिल ने उन्हें निखिल के बारे में बताते हुए कहा -“अंकल!निखिल एक साल तो अच्छी तरह पढ़ाई कर रहा था,परन्तु बाद में उसकी दोस्ती ऐसे लड़कों से हो गई, जो पढ़ाई छोड़कर माता-पिता के पैसों पर बस ऐश करते थे।एक -दो बार मैंने उसे समझाने की कोशिश भी की,परन्तु वह कुछ समझने को तैयार ही नहीं था।”
शशिभूषण जी कहते हैं-” अनिल बेटा!मुझे कुछ-कुछ एहसास होने लगा था।निखिल बार-बार प्रोजेक्ट पूरा करने के नाम पर अतिरिक्त पैसा माँगते रहता था।”
अनिल-“अंकल!एक साल बाद तो उसे काॅलेज से भी निकाल दिया गया था।सुना है कि अपनी गलत आदतों को पूरी करने के लिए कुछ दोस्तों के साथ सुनसान रास्ते पर लोगों को लुटता,ऐय्याशियाँ करता और ड्रग्स भी लेने लगा था।लोग डर से पुलिस में रिपोर्ट नहीं करते थे।इनका धंधा बेरोक-टोक जारी था।परन्तु सच ही कहावत है कि ‘बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाएगी!एक दिन एक पुलिसअफसर की बेटी उसी रास्ते से अकेली आ रही थी।निखिल ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसके साथ बदतमीजी की और उसे लूटा भी।तभी संयोगवश पुलिस की गाड़ी मौके पर पहुँच गई। निखिल और उसके दोस्तों को पुलिस पकड़कर जेल ले गई है।मैंने ही आपको फोन किया था।”
बेटे की करतूत सुनकर शशिभूषण दम्पत्ति का सिर शर्मींदगी से जमीन में झुक गया। निखिल की माँ इन्दुजी स्तब्ध-सी बेटे के कारनामे को सुनती रहीं,फिर रोते -रोते पति से कह उठी -” आप किसी तरह कोई उपाय कर मेरे बेटे को जुर्म और ड्रग्स के दलदल से निकालिए। “
शशिभूषण जी भी जवान बेटे को इस तरह बर्बाद होते नहीं देखना चाहते थे।वे अनिल के साथ थाने गए।वहाँ पर उन्होंने अपनी पहचान के बल पर निखिल को छुड़वाया।थाने के एक अधिकारी ने उन्हें व्यंगयपूर्वक कहा -“शशिभूषण जी!थाने से छुड़वाना कोई बड़ी बात नहीं है।छुड़वाना ही है तो ड्रग्स छुड़वाइये, जिससे आपका बेटा एक अच्छा इंसान बन सके!”
शशिभूषण जी शर्मिंदगी से सिर नीचे कर थानेदार की बातें सुनते रहे।अनिल की सहायता से निखिल को नशा मुक्ति सेंटर ले गए, वहाँ उसे भर्ती करवाया।प्रत्येक जगह लोग निखिल की परवरिश और संस्कार पर सवाल उठाते ।शशिभूषण दम्पत्ति उस समय शर्म के मारे मानो धरती में समा जाना चाहते थे।
शशिभूषण जी विह्वल होकर पत्नी से पूछते हैं -” इन्दु!हमारी परवरिश में कहाँ चूक हो गई?”
इन्दु जी हिम्मत और विश्वास के साथ अपने पति से कहती हैं -” मुझे पूरा विश्वास है कि अब मेरा बेटा इन गलत आदतों से मुक्ति पा लेगा।हम उसे अपने साथ अपने ही शहर में रखेंगे।”
शशिभूषण जी दीर्घ श्वास छोड़ते हुए -” अच्छी बात है!उम्मीद पर ही तो दुनियाँ कायम है!”
दोनों पति-पत्नी की आँखों में उम्मीद की किरणें झिलमिलाने
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।
लगीं।