आज किधर चीप मार्केट में आ गई हो तुम?अखिल झुंझला के दिव्या से बोले।
चलो तो..दिव्या ने अपने पति अखिल का हाथ खींचते हुए कहा।
तुम??और साप्ताहिक पेंठ से सामान खरीदो,इंपॉसिबल!अखिल बड़बड़ाया…
इसको तो पड़ोस में मंदिर भी जाना होता है तो अपनी शानदार बी एम डबलू निकलवाती है ड्राइवर से,बिसलेरी पानी के नीचे कुछ घूंट नहीं भरती और आज यहां सोमवार की पेंठ में क्या लेने चली आई।
दिव्या यार! किटी के लिए भी कुछ खरीदना हो तो यहां आओगी?अपने स्टैंडर्ड को तो देख लेती, कम से कम मेरी पोजीशन का ख्याल करो?अब हमारी बेटी की भी शादी होने वाली है,कहीं उसकी ससुराल से कोई दिख जाए तो सारी कमी कमाई इज्जत पर पानी फिर जाएगा।
समझते नहीं हो अखिल आप?दिव्या परेशान होती बोली,दरअसल कमली की लड़की की शादी है अगले महीने,
अच्छा!हमारी कामवाली की लड़की इतनी बड़ी हो गई,देखते देखते बच्चे कब बड़े हो जाते हैं,कल तक फ्रॉक पहन खेलती थी जब भी कमली के साथ आती थी।
तो हमारी दिया भी उससे कुछ हो साल बड़ी होगी,उसकी भी तो शादी है!दिव्या बोली।
हां…हां…ये तो है…अखिल हंसा…फिर कुछ सोचता हुआ बोला,लेकिन तुम यहां क्यों आई हो,सुपर मार्केट से मंगवा देती कुछ ऑनलाइन ऑर्डर कर देती?
जिद पकड़ी थी उसने कि मालकिन इस बार आपसे जरी की साड़ी,उससे मैचिंग जड़ाऊ नेकलेस ही लूंगी,अब इन लोगों के स्टैंडर्ड की चीज तो यहीं मिलेगी इसलिए मुझे इधर आना पड़ा। दिव्या बड़बड़ाई।
पर हमारा स्टैंडर्ड?उसका क्या डार्लिंग?अखिल अभी भी परेशान था।
अरे!आप परेशान न हो,यहां सामने ही बड़े शो रूम हैं, नल्ली, बेंगलोरी सिल्क, खादी सिल्क साड़ियों के,आप वहां चले जाना।दिव्या हंसी।
लेकिन मै साड़ियां देख कर क्या करूंगा?वो बोला।
मेरे लिए खरीद लीजिए एकाध साड़ी?दिव्या ने चुहल की।
उफ्फ…तुम क्या करोगी?हमने दिया की शादी की शॉपिंग में तुम्हारी पांच साड़ियां खरीदी तो हैं,तुम लेडिज का दिल ही नहीं भरता कभी?
तो क्या हुआ?कभी सरप्राईज गिफ्ट भी कर दिया करें!दिव्या मुस्कराई और बोली,चलिए!आप उधर जाएं, मै जल्दी से यहां से उसके लायक साड़ी और एक मोतियों का नेकलेस ले कर आती हूं जो भी सस्ता सा मिल जायेगा।
अखिल खादी सिल्क साड़ी सेंटर में घुस गए थे।दो चार साड़ियां देखी उन्होंने अनमने होकर तभी बराबर वाले काउंटर पर कमली दिखाई दी।
ओहो!तो ये अपनी बेटी की शादी की शॉपिंग यहां करने आई है?क्या बात है!बड़ा अच्छा पैसा कमा रही है आजकल?वो मुस्कराया।
तभी कमली अपनी साथ आई विमला से कहती सुनाई दी…देख विमला!ये साड़ी दिया बेबी जी पर अच्छी लगेगी?
अच्छी तो बहुत है पर कीमत पूछ ले दुकानदार भैया से?कहीं हमारी औकात से बाहर हो?यहां बहुत मंहगी चीज मिलती हैं।
अरे शादी कौन रोज रोज आती है?फिर मालकिन मुझे बहुत प्यार से रखती हैं,मेरा घर बना दिया उन्होंने,उनकी बेटी,मेरी बेटी जैसी ही है,फिर उन लोगों का स्टैंडर्ड भी तो ध्यान रखना पड़ेगा।
अखिल ने काउंटर छोड़ दिया और दौड़ता हुआ सा वहां जा पहुंचा जहां दिव्या एक सस्ती,साधारण सी साड़ी खरीद कर विजई भाव से मुस्करा रही थी।
ले आए मेरे लिए? अरे!तुम्हारे हाथ तो खाली हैं?वो बोली।
उसे बाजू से खींचता अखिल गाड़ी में ले गया और सारा किस्सा सुनाया,पलभर को वो शॉक्ड हो गई और शर्म से जमीन में गड़ गई।
सच कह रहे हो तुम?वो पानी पानी होते बोली।
और नहीं तो क्या?एक तुम हो जो उसका स्टैंडर्ड नाप रही थीं और एक वो है जो अपने पूरे महीने की कमाई लगाकर तुम्हारे स्टैंडर्ड की साड़ी खरीद रही है और सकुचा रही है कि हमें पसंद आएगी या नहीं।
अब चुप भी जाएं प्लीज! मैं शर्म से गड़ी जा रही हूं जमीन में,मुझे अपनी गलती महसूस हो गई है,हम पैसे वाले हैं पर दिल वाले नहीं,वो तो बेचारे इन गरीबों में हम से भी ज्यादा होता है।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद