शांति – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’ :

 Moral Stories in Hindi

“तुम्हें नींद आती भी है या नहीं सुबह से ही खटर-पटर शुरू कर देती हो…कम से कम अपना नहीं तो बाकी घरवालों का तो ध्यान रखा करो…” विजय अपनी पत्नी तारा को गुस्से में सुनाता जा रहा था।

“सभी का ध्यान रखती हूं इसीलिए इतना सुबह जल्दी उठती हूं और सबके सोने के बाद सोती हूं वरना…” 

“वरना क्या… ” विजय ने तारा की बात काटते हुए तेज आवाज में कहा “क्या तुम हमें रात को ठीक से सोने भी नहीं दोगी…और तुमसे किसने कहा है कि इतनी जल्दी जगा करो और सबके बाद सोया करो जो ये अहसान जता रही हो हम पर…”

इतना सुनकर बेचारी तारा हमेशा चुप हो जाती और अपने काम में लग जाती; आखिर क्या करती भी तो क्या ज्यादातर सुबह इसी बात पर झगड़ा होता था कि वह सुबह 4 बजे क्यों जगकर काम शुरू करती है।

आज विवाह के 28 साल हो गए, उसके तीनों बच्चे   अमन, राहुल और बेटी प्रिया भी बड़े हो गए और अमन का विवाह भी 6 महीने पहले हो गया लेकिन ये झगड़ा बन्द नहीं हुआ बेचारी तारा हर दिन ये सोचकर मन को समझा लेती थी कि शायद एक दिन सब सही हो जाएगा और सबको ये समझ आ जायेगा कि मैं इतनी जल्दी क्यों जगती हूं बिना किसी शिकायत के, बिना किसी से कुछ कहे…लेकिन आज शादी की सालगिरह पर उसके बड़े बच्चों और बहू के सामने फिर से जब झगड़ा हुआ तब उसे गुस्सा आ गया…

“मैं कोई एहसान नहीं जता रही, वैसे भी ब्रह्ममुहूर्त में जगना अच्छा होता है…”

“तो तुम हम सबकी नींद खराब करोगी…तुम्हारी आदत ही है कि जब तक झगड़ा न हो तब तक तुमको शांति नहीं मिलती…पूरे घर में अशांति फैलाकर रखी है जब से इस घर में आई हो…”

इस बात को सुनकर तारा को और गुस्सा आ गया ” भगवान करे कि आप हमेशा खुश रहो, आपकी इच्छा जल्दी पूरी हो और शांति बनी रहे इस घर में…”

इतना कहकर दुखी मन से तारा अपने कमरे में गयी।

कुछ दिन बाद अचानक तारा की तबियत खराब हो गयी और वह बेहोश होकर गिर पड़ी; उसे जल्दी पास के अस्पताल में ले जाया गया; जहाँ डॉक्टरों ने कुछ चेकअप करने के बाद कहा कि ये जिस डॉक्टर से इनका इलाज चल रहा है और जो कोई भी दवाई ले रही हैं उसकी फाइल आप हमें दिखा दीजिये …”

डॉक्टर की ये बात सुनकर सभी आश्चर्य से एक दूसरे की तरफ देखने लगे। 

विजय: “नहीं डॉक्टर साहब ये  किसी डॉक्टर का परामर्श नहीं ले रहीं और न ही कोई दवाई…”

डॉक्टर “ऐसे कैसे हो सकता है, इनकी खून की जांच में यह स्पष्ट है कि ये दवाई लेती हैं…और वैसे भी इन्हें कैंसर है तो क्या आपको यह नहीं पता….”

इतना सुन विजय के पैरों तले जमीन खिसक गई फिर कुछ संभलते हुए विजय डॉक्टर के सामने हाथ जोड़ते हुए ” प्लीज डॉक्टर साहब तारा को बचा लीजिए….”

“देखिए आप अपने आपको संभालिए और जल्दी ही हमें इनकी पुरानी फाइल दिखा दीजिए, तभी हम कुछ बता सकते हैं….”

कुछ सोचते हुए अमन शीघ्र ही घर जाकर उनकी अलमारी में खोजने लगता है कि कहीं कोई इलाज से सम्बंधित कागज मिल जाएं तभी उसकी नजर मां की कपड़ों की अलमारी में साड़ियों के बीच छुपी फाइल की ओर पड़ती है जिसे खोलकर वह आश्चर्यचकित रह जाता है कि पिछले 1 साल से मां इस बीमारी से अकेले लड़ रहीं थीं… उसी फाइल में एक कागज और रखा था जिसमें तारा ने अपने हाथ से बहुत कुछ लिखा था लेकिन उस समय अमन को अस्पताल जल्दी पहुंचना था इसलिए पढ़ा नहीं और वह फाइल और कागज लेकर अस्पताल पहुंचा।

“लीजिये डॉक्टर साहब…अब जल्दी देखकर माँ को बचा लीजिये…”अमन ने डॉक्टर को फाइल देते हुए कहा और अपनी माँ के हाथ के लिखे कागज को अपने पिता के हाथ में दे दिया।

कागज में लिखा था-

” आप सभी मुझे माफ़ कर देना कि मैंने किसी को अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताया…किन्तु मैं करती भी तो क्या करती आप सभी के पास अपनी बहुत सी जिम्मेदारियां है और बहुत सी चिन्ताएं इस वजह से मैं अपनी बीमारी के बारे में बताकर किसी को और ज्यादा परेशान नहीं करना चाह रही थी… आप सभी को मेरे जल्दी जगने से जो परेशानी होती थी उसके लिए भी मुझे माफ़ कर देना…मैं तो सुबह इसीलिए जल्दी जगती थी कि तुम सबको समय से स्कूल और ड्यूटी भेज सकूँ, कोई भी बिना नाश्ता किये या खाना खाये बिना न जाये…लेकिन अब तुनको कोई परेशानी नहीं होगी और अब हमेशा घर में शांति रहेगी क्योंकि मुझे पता है कि अब कुछ दिन की जिंदगी और है मेरी…मेरे बाद मेरे बच्चों का ध्यान रखना, उनको मेरी कमी महसूस न होने देना…और हो सके तो मुझे माफ़ कर देना…”

आपकी तारा”

तभी डॉक्टर तारा के पास से आते हैं “सॉरी! बहुत देर हो चुकी है हम कुछ नहीं कर सकते…”

विजय फूट फुटकर रोने लगता है “तारा! इतनी शांति भी अच्छी नहीं लगती…काश तुमने कुछ तो बोला होता किसी से…”

प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

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