साक्षात्कार (इंटरव्यू) – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

रुचि आज जॉब इंटरव्यू की तैयारी कर रही थी। मगर उसका मन बहुत घबरा रहा था। पिछले 6 महीनों से वह अलग-अलग जगह पर कई कंपनीयों में  इंटरव्यू दे चुकी थी। 

पहले दो चरणों में लिखित परीक्षाओं में पास हो जाती थी। तीसरे चरण में साक्षात्कार तो उसके अच्छे ही होते थे। परंतु परिणाम बिल्कुल भी वैसे नहीं आ रहे थे जैसे कि वह चाह रही थी।

रुचि की मां गरिमा जी एक सिंगल पैरंट थीं। वे रुचि को लेकर बहुत चिंतित थीं। पिछले कुछ दिनों से वे महसूस कर रही थी की रुचि अवसाद से घिर रही है। उन्होंने रुचि से कई बार इस बारे में बात करने की कोशिश की। मगर रुचि उनसे खुलकर बात नहीं कर रही थी। उन्हें डर था कि कहीं रुचि परेशानी में कोई गलत कदम ना उठा ले। इसलिए उन्होंने आशीष को फोन कर घर बुलाया था।

इससे पहले रुचि दो अन्य कंपनियों में नौकरी कर चुकी थी। मंदी (रिसेशन) के चलते उसका परफॉर्मेंस अच्छा होते हुए भी उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था। पहले पहल तो उसे इतनी चिंता नहीं हुई थी और दूसरी नौकरी भी उसने जल्द ही पा ली थी। मगर दूसरी नौकरी में भी वही होने से वह तनाव ग्रस्त रहने लगी थी।

तभी अचानक डोर बेल बजी उसने उठकर दरवाजा खोला। सामने देखा तो दरवाजे पर आशीष था। रुचि और आशीष बचपन से घनिष्ठ मित्र थे। रुचि ने  एम. टेक किया एवं आशीष एम. बी. ए. । दोनों स्कूल से ही साथ पढ़ते आए थे।  ग्यारहवीं कक्षा में आकर दोनों ने ही अलग-अलग विषय चुने फिर भी उनका साथ बना रहा।

आशीष को यूं अचानक आया देख रुचि ने पूछा आज सुबह-सुबह कैसे आना हुआ ?

आशीष के उत्तर दिया यहां से गुजर रहा था तो सोचा कि तुमसे मिलता चलूं।

कैसी चल रही है इंटरव्यू की तैयारी आशीष ने यह पूछते हुए बातचीत शुरू की। 

यह प्रश्न सुनते ही रुचि कुछ उदास सी हो गई। वह बोली तैयारी क्या खाक करूं? जब से पिछला जॉब गया है, कितने ही इंटरव्यूस दे चुकी हूं। नतीजा वही ढांक के तीन पात। 

यह बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने आप को ना जाने क्या समझती हैं। इन्हें फ्रेशर्स की कोई वैल्यू ही नहीं है। जब चाहे “गाजर मूली की तरह उखाड़ फेंकते हैं।”  इंप्लाईज के वर्तमान और भविष्य से इनका तो कोई लेना-देना ही नहीं है।

आशीष बोला  फिर क्या सोचा है? इंटरव्यू दोगी या नहीं ? 

रुचि बोली यह मेरा आखिरी इंटरव्यू होगा। अगर इस बार भी वही नतीजा रहा तो मैं फिर कभी कोई जॉब इंटरव्यू नहीं दूंगी।

आशीष बोला चिंता मत करो, तुम इतनी मेहनती हो, अब सब अच्छा ही होगा। बेस्ट ऑफ़ लक। 

चलो अब मैं चलता हूं। इंटरव्यू के रिजल्ट के बाद मिलेंगे। यह कहते हुए मन ही मन कुछ सोचता हुआ आशीष  उठ खड़ा हुआ। 

आशीष रुचि का ये तनाव वह बहुत अच्छे से समझ सकता था। कोरोना काल में उसे भी मंदी के चलते अपनी जॉब से हाथ धोना पड़ा था। उस समय बहुत सी कंपनियों  ने गाजर मूली तरह अपने हजारों कर्मचारियों को निकाल दिया था।

इतना ही नहीं, उसी समय कोरोना की वजह से उसने अपने पिता को भी खोया था। उस समय उस पर दोहरी जिम्मेदारी थी। एक तरफ नई जॉब ढूंढना। दूसरा अपनी मां,बहन पर गिरी गाज में उनकी देखभाल करना।

तब वह बहुत अकेला महसूस कर रहा था। तब रुचि ने ही उसे संभाला था। गरिमा आंटी ने उस समय उसकी मां व बहन की बहुत देखभाल  की थी। 

जब बहुत प्रयास करने पर भी उसे जॉब नहीं मिली थी। तब रुचि ही थी जिसने आशीष में कुछ नया स्वयं का व्यवसाय करने की उम्मीद जगाई थी।

आज आशीष रुचि की बदौलत स्वयं की बेग्स की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी का मालिक है।

 आज आशीष ने भी तय कर लिया था की रूचि के इस अंतिम इंटरव्यू का नतीजा जा जो भी वो वह उसे टूटने नहीं देगा।

गरिमा जी को पूर्ण विश्वास था कि एक आशीष ही है जो रूचि को बहुत अच्छी तरह से समझता है। इस निराशा एवं अवसाद की स्थिति से वही रुचि को बाहर निकाल  सकता है।

अब वे पूर्णतया आश्वस्त हो गई थी कि इंटरव्यू का नतीजा जो भी हो आशीष रुचि को टूटने नहीं देगा। गरिमा जी ये भी जानती थी कि आशीष रुचि को बहुत पसंद करता है। उन्हें भी आशीष रूचि के जीवनसाथी के रूप में बहुत भाता था।

कोरोना काल से पहले उन्होंने यह तय भी कर लिया था कि वह आशीष के माता-पिता से दोनों की शादी के बारे भी चर्चा करेंगी। वे बात पर पाती उससे पहले ही कोरोना काल ऐसा आया कि सभी स्थितियां ही बदल गई। इन सब बातों के लिए वह समय बिल्कुल भी उचित नहीं था। 

उसके बाद आशीष की माताजी के हालात देखकर इस बारे में बात करने की उनकी कभी हिम्मत ही नहीं हुई।

अगले 2 दिनों बाद रुचि का इंटरव्यू हो गया। अब इंतजार था नतीजे का।

नतीजे का मेल इंटरव्यू के चार दिन बाद आने वाला था।

आखिर वो दिन आ ही गया जिसका केवल रूचि को ही नहीं गरिमा जी एवं आशीष को भी बेसब्री से इंतजार था। नतीजा आ तो गया, लेकिन फिर वही हुआ जिसका डर था। रुचि का सिलेक्शन नहीं हुआ था।

रुचि रोते हुए अपने कमरे में चली जाती है। गरिमा जी बहुत परेशान हो जाती हैं। वे बहुत घबरा जाती हैं, उन्हें डर सताने लगता है कि रुचि कहीं कुछ गलत कदम ना उठा ले। वे तुरंत ही आशीष को कॉल करके घर बुलाती हैं।

आशीष घर आते ही रुचि के कमरे में जाता है। रुचि आशीष को देखकर जोर-जोर से रोने लगती है और कहती है कि सब कुछ खत्म हो गया। मेरा कैरियर बर्बाद हो गया। अब मैं कभी कुछ नहीं कर पाऊंगी। मेरे सारे सपने टूट गए आशीष। 

कुछ क्षण रुक कर आशीष ने कहना शुरू किया। मैं कुछ कहना चाहता हूं, रुचि सुनोगी? 

रुचि ने आश्चर्यचकित होकर आशीष की ओर देखा – आशीष ने कहना शुरू किया, रुचि कुछ खत्म नहीं हुआ है एक नौकरी पर पूरा जीवन नहीं टिका है। भूल गई या याद है, ऐसा ही कुछ तुमने कभी मुझसे कहा था। 

तुम इतनी कमजोर कैसे पड़ सकती हो रूचि? मेरे पास तुम्हारे लिए एक ऑफर है, अगर तुम चाहो तो आज ही मेरी कंपनी ज्वाइन कर सकती हो। मानता हूं सैलरी थोड़ी कम होगी। पर अगर हम दोनों मिलकर चलाएंगे, तो उसे बहुत ऊंचाई पर ले जाएंगे। “अब हमें गाजर मूली की तरह कोई नहीं निकाल सकेगा।” क्या तुम्हें मेरा ऑफर मंजूर है? 

थोड़ी ही देर में रूचि बोली यस बॉस। 

आशीष ने रुचि से कहा चलो रुचि बाहर चलकर मां को भी यह खुशखबरी दे देते हैं। काफी देर से वे भी तुम्हें लेकर बहुत परेशान हैं। 

दोनों बाहर हाल में आते हैं। गरिमा जी दोनों को आया देख उठ खड़ी होती हैं। तभी आशीष कहता है, बैठिए मां आपको एक खुशखबरी देनी है। रुचि बताओ, रुचि दौड़कर मां के गले लगती है और कहती है की मां मुझे नौकरी मिल गई है। जानती हैं कौन है मेरा बास ? गरिमा जी चकित होकर आशीष की ओर देखने लगती हैं।  हां मां बिल्कुल ठीक पहचाना आपने। 

गरिमा जी बहुत खुश हो जाती हैं। मन ही मन सोचती है कि अब सही समय आ गया है कि मुझे आशीष की माताजी से इन दोनों के रिश्ते की बात भी कर लेनी चाहिए। तभी रुचि रहती है मां कहां खो गई आप? 

गरिमा जी कहती है, मैं बहुत खुश हूं बेटा । थैंक यू आशीष आज तुम नहीं होते तो न जाने क्या हो जाता। 

आशीष कहता है वह सब छोड़िए मां चलिए सेलिब्रेशन की तैयारी करते हैं।

मित्रों आजकल प्राइवेट कंपनियों में जॉब पाना इतना आसान नहीं रह गया है। बहुत सारे बच्चे जांब नहीं मिलने पर अवसाद से घिर जाते हैं। फिर कोई गलत कदम भी उठा लेते हैं। 

अगर परिवार साथ हो तो ऐसा होने से रोका जा सकता है। जीविका के साधन बहुत सारे हो सकते हैं। 

स्वरचित 

 दिक्षा  बागदरे

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