साक्षात् लक्ष्मी है – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सुनसान सड़क पर इक्कीस वर्षीय लक्ष्मी बेतहाशा दौड़े जा रही थी कि अचानक उसकी आँखों के सामने तेज रोशनी चमकी और वह एक गाड़ी से टकराकर अचेत हो गई।ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगाकर गाड़ी रोकी और बाहर आकर एक बेहोश महिला को देखा तो चिल्लाया,” मालिकsssss..।” 

माणिक लाल साथ बैठी पत्नी सुभद्रा से बोले,” चिंता मत करो…मैं देखकर आता हूँ।” उन्होंने लक्ष्मी की नब्ज़ टटोली।आश्वस्त होकर ड्राइवर से पानी मँगवा कर उसके चेहरे पर छींटे मारे और होश आने प्रश्न किया,” तुम कौन हो बहन? इतनी रात को अकेली..कहाँ…।” सुनकर वह रोने लगी,” आपने मुझे क्यों बचाया…मुझ अभागन को तो मर जाना चाहिये….।” माणिक लाल ने घड़ी में समय देखा , लक्ष्मी को गाड़ी में बैठाया और ड्राइवर को घर चलने को कहा।

माणिक लाल एक स्वर्णकार थें।उनके दादा की ‘आभूषण’ नाम की सोने-चाँदी की एक छोटी-सी दुकान थी जिसे उनके पिता ने अपनी मेहनत से बढ़ाया और फिर माणिक लाल ने उसे ‘आभूषण शोरूम’ में बदल दिया।

अपने पिता की तरह ही माणिक लाल दयालु स्वभाव और दान-पुण्य करने वाले व्यक्ति थे।एक बीमारी के दौरान पिता की मृत्यु हो जाने के बाद अब परिवार में माताजी,पत्नी और पूजा-आकाश दो बच्चे थें।एक बड़ी बहन देवयानी थी जो विवाह के बाद कनाडा में शिफ़्ट हो गयीं थी।एक रिश्तेदार के यहाँ से विवाह-समारोह अटेंड करके वो वापस लौट रहें थें कि अचानक लक्ष्मी उनकी गाड़ी से टकरा गई।

घर आने पर सुभद्रा ने लक्ष्मी को पानी पिलाया और उसके सिर पर प्यार-से हाथ फेरते हुए बोली,” बहन..ईश्वर की दी हुई ज़िंदगी को नष्ट करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है…फिर तुम तो बहुत प्यारी हो…।”ममता भरा स्पर्श पाकर लक्ष्मी फूट-फूटकर रोने लगी,” मरती नहीं तो और क्या करती..।अपनी माँ का तो चेहरा याद नहीं, सौतेली माँ को ही अपनी माँ समझकर पूजती थी और उनके दिये दुख को सहती रहती कि छोटे भाई-बहन की तरह मुझे भी कभी उनकी ममता की छाँव मिलेगी।

मुँह-अंधेरे उठकर घर की साफ़-सफ़ाई करने और बरतन- कपड़े धोने के बाद ही माँ मुझे स्कूल जाने देती थी।इस बीच में मुझसे कोई भी गलती होती तो वो एक ही बात कहती,” अभागन…पैदा होते ही अपनी माँ को खा गई..अब जाने किसको खायेगी।” पिता चाहकर भी माँ का विरोध नहीं कर पाते थे।दसवीं कक्षा की परीक्षा पास कर लेने के बाद मैं आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन माँ पिताजी पर मेरा विवाह कर देने का दबाव डालने लगी।    

        एक दिन मेरे रिश्ते की बात पक्की करके पिताजी बाइक से लौट रहे थें कि एक ट्रक से उनकी ट्रक हो गई और…।फिर तो माँ का कहर मुझ पर टूट पड़ा।अपने भाई को बोली,” अंधा-लंगड़ा,शराबी-कबाबी जो मिले…उसके साथ इसे ब्याह दो..नहीं तो कलमुँही मेरे बच्चों को भी खा जायेगी।” कहकर वह रुकी फिर बोली,” बस…मुझे एक शराबी के पल्ले बाँध दिया गया जो ठेकेदारी से कमाये रुपयों को शराब में उड़ाता…रात को मुझ पर अधिकार जमाता और सुबह होने पर मुझे भूल जाता।

उसकी विधवा माँ और बहन मेरे साथ नौकरों से भी बदतर व्यवहार करतीं।मुँह से गालियाँ देतीं तो हाथ से…और घर-जँवाई दामाद शंकर जो ससुर की दुकान पर तो कब्ज़ा किये बैठा ही था..मुझ पर भी वह अपनी बुरी नज़र डाले रहता।मेरे अंदर एक जीव पलने लगा तो मन में एक आशा जगी और ये खुशखबरी जब मैंने अपने पति को सुनाई तो उन्होंने अनाप-शनाप बकना शुरु कर दिया।यहाँ तक कह दिया कि ये बच्चा मेरा नहीं है।अपने चरित्र पर लाँछन लगता देख मैं तिलमिला कर रह गई थी।सास तो इसी फ़िराक में थी

कि मुझे कोसने का कोई बहाना मिले सो मिल गया और एक दिन उन्होंने मुझे सीढ़ियों से धक्का दे दिया।मैं तो सख्त जान थी..बच गई लेकिन मेरा अजन्मा बच्चा…।एक लाश की तरह जिये जा रही थी कि एक दिन पति ने आकर खून की उल्टियाँ की और…।पता चला कि उसने जहरीली शराब पी ली थी।उस दिन मैंने मान लिया कि मैं अभागन हूँ।जिस पर भी मेरा साया पड़ता है वो भगवान को प्यारा को हो जाता है।फिर एक रात मैंने अपने शरीर पर किसी का स्पर्श महसूस किया।कौन है? कहकर मैंने बत्ती जलाई तो सामने ननदोई को देखकर मेरी चीख निकल गई।उसी शैतान के चंगुल से खुद को बचाकर मैं भाग रही थी कि आपकी गाड़ी से टकरा गई।काश! मैं मर जाती..।” 

  ” छि:..,ऐसा नहीं कहते..तुम तो साक्षात् लक्ष्मी हो।आज से हम सब तुम्हारा परिवार हैं।तुम हमारे साथ ही रहोगी।तुम मेरी छोटी ननद और मैं तुम्हारी भाभी।तुम।” कहकर सुभद्रा ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

   ” मुझे भी एक और बेटी मिल गई..।” हँसते हुए सुभद्रा की सास बोली जो आहट सुनकर कमरे से निकल आईं थीं और दोनों की बातें सुन रहीं थीं।

   ” माँजी…ये लक्ष्…।” 

“मैंने सब सुन लिया है बहू।अब इसे आराम करने दे…।” 

   ” जी…।” कहकर सुभद्रा लक्ष्मी को एक कमरे में ले गई और बोली,” सुबह होने को है..तुम थोड़ा आराम कर लो।”

      अगली सुबह ‘ छोटी बुआ..उठिये ना..’ की आवाज़ सुनकर लक्ष्मी ने आँखें खोली तो सामने दो बच्चों को देखकर चौंक गई।

  ” मैं पूजा हूँ “

 ” मैं आकाश हूँ “

     ” और हम दोनों अपने मम्मी-पापा के बच्चे हैं।” दोनों समवेत् स्वर में बोले तो वह अपनी हँसी रोक नहीं पाई।कितने सालों बाद वह मुस्कुराई थी।तभी सुभद्रा की सास आ गईं।उसने उन्हें प्रणाम किया।

      उस दिन लक्ष्मी का नया जन्म हुआ।माणिक लाल के कहने पर उसने काॅलेज में दाखिला ले लिया।इंटर की पढ़ाई के साथ-साथ वह ज्वैलरी-डिज़ाइनिंग का कोर्स भी करने लगी।माणिक लाल उसे कभी-कभी अपने साथ शाॅप पर भी ले जाते थें।इसी बीच घर में उसके पुनर्विवाह की चर्चा भी उठी लेकिन उसने यह कहकर साफ़ इंकार कर दिया कि भगवान के घर आ गई हूँ…अब कहीं नहीं जाऊँगी।

      लक्ष्मी के बनाये डिज़ाइन लोगों को पसंद आने लगे जिससे ‘आभूषण शोरूम ‘ में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी।कभी-कभी देवयानी भी लक्ष्मी को फ़ोन पर आर्डर देते हुए कहती,” तुम्हारे डिज़ाइन किये हुए ज्वैलरी की तो कनाडा में भी बहुत डिमांड है।” सुनकर वह बस मुस्कुरा देती।

     ग्राहकों की डिमांड पर माणिक लाल ने एक नई दुकान खोल ली और उसकी पूरी ज़िम्मेदारी लक्ष्मी को सौंप दी।दुकान के उद्घाटन पर आये मेहमानों में से एक ने लक्ष्मी की ओर इशारा करते हुए सुभद्रा की सास से पूछ लिया,” ये कौन हैं..कभी देखा नहीं।” तब वो हँसकर बोलीं,” देखते कैसे…हमारी लक्ष्मी है ना..।”

      समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहा…पूजा का ग्रेजुएशन पूरा हुआ तो माणिक लाल ने अच्छा घर और सुयोग्य वर देखकर उसके हाथ पीले कर दिये।आकाश  ‘आभूषण शोरूम’ को संभालने लगा तब अपनी माताजी की गिरती सेहत को देखकर उन्होंने अपने परिचित की शिक्षित और संस्कारी बेटी धरा के साथ उसका विवाह करा दिया।

       घर में आकाश के बच्चों की किलकारियाँ गूँजने लगीं। लक्ष्मी और आकाश के साथ अब धरा भी शोरूम जाने लगी।सुभद्रा जी और माणिक लाल अपने पोता-पोती के साथ फिर से अपने बचपन को जीने में मशगूल हो गयें।

      अपनी सास की दूसरी बरसी पर सुभद्रा जी गरीबों को दान करने के लिये लक्ष्मी के साथ मंदिर गईं।सभी याचक एक-एक करके आते जा रहें थें कि दो महिलाओं का चेहरा लक्ष्मी को जाना-पहचाना-सा लगा।वो याद कर पाती तब तक दोनों अपना मुँह छिपाकर तेजी-से आगे बढ़ गई।उसने भाभी से कहा कि मैं आती हूँ और उन दोनों के पीछे चली गई।उन दोनों ने मुड़कर देखा तो लक्ष्मी के मुँह से निकल पड़ा,” माँ..आप..इस तरह यहाँ…दीपक(बेटा) कहाँ है?”

     महिला लक्ष्मी की सौतेली माँ ही थी और साथ में उसकी सास थी।दोनों लक्ष्मी से आँखें नहीं मिला पा रहीं थीं।दोनों ने रोते-रोते अपनी व्यथा बताई।उसकी माँ कहने लगी कि दीपक ने अपने साले के साथ मिलकर मुझे घर से बेदखल कर दिया।सास बोली कि कपटी दामाद ने ससुर की दुकान तो हड़प ही रखी थी।एक बाजारु औरत को घर में लाकर हम माँ-बेटी को घर से बाहर कर दिया…बेटी तो सदमे से पागल हो गई और एक दिन ट्रेन के नीचे…।अपनों का दुख सुनकर लक्ष्मी की आँखें भी नम हो आईं।

      सुभद्रा जी ने उनकी बातें सुन ली थीं।उनसे बोलीं,” आप हमारी लक्ष्मी के अपने हैं…चलकर हमारे साथ रहिये..।”

   ” नहीं- नहीं बहन..हमने बहुत पाप किये हैं।अब यहीं मंदिर में रहकर… लोगों की सेवा करके हम अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे।” दोनों एक साथ बोलीं तो लक्ष्मी बोली,” जैसी आपकी इच्छा।” कहकर वह अपनी भाभी के साथ कार में बैठकर चली गई।उसे जाते देख दोनों अपने आँसू पोंछते हुए बोलीं,” वो तो साक्षात् लक्ष्मी है…अपने व्यवहार से परायों को भी अपना बना लिया उसने…अभागन तो हम हैं जो परायों को तो अपना कर न सके और जो अपने थे वो हमसे निभा न सके… हमें घर से बेघर कर दिया।”

                             विभा गुप्ता

# अभागन               स्वरचित 

            जैसे कि आग में तप कर सोना पर निखार आता है वैसे ही लक्ष्मी दुख सहकर मजबूत बनी और मेहनत करके समाज में अपनी एक पहचान बनाई।उसकी माँ और सास अपने बुरे कर्मों के कारण समाज में अभागन कहलायी।

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