Moral stories in hindi : बेटी,, ये शक का कीड़ा पति पत्नी के रिश्तों को खोखला कर देता हैं… तू अंदर ही अंदर क्यूँ घुट रही हैं मेरी बच्ची ….तुझे ऐसा लगता हैं कि दामादजी किसी परायी महिला से बात करते हैं… किसी के साथ नाजायज रिश्ते में हैं तो तू उनसे बात क्यूँ नहीं करती इस बारें में??
माँ,, आप तो जानती ही हो वो कितने गुस्से वाले हैं… अभी तो उन्हे ठीक से जान भी नहीं पायी हूँ … शादी को एक साल ही तो हुआ हैं अभी,, अपने काम में इतने बिजी रहते हैं …. मुझे डर लगता हैं इनसे बात करने में… पर इनका इस तरह बात करना मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रहा हैं माँ…. मेरा शक दिन पर दिन बढ़ता जा रहा हैं…. मीरा अपनी माँ से बात करते हुए फफ़क कर रो पड़ी …
रो मत बेटा…. मेरा बात करना तो ठीक नहीं होगा तू अपनी सास से बोल… वो सुलझी हुई लगती हैं…. वो ज़रूर तेरे शक की खोज बीन करेंगी ….
अरे नहीं नहीं माँ… मुझे तो उनकी आवाज से भी डर लगता हैं…. उनसे तो बिल्कुल नहीं…
मेरी बात मान … एक बार बात करके देख….
ठीक हैं आप कहती हैं तो कोशिश करती हूँ….
मीरा बहुत हिम्मत करके सासू माँ वीनाजी के पास गयी…. वीना जी हासिये से पिछले दिन सुखायी गयी अमिया काटने में लगी थी … मीरा चुपचाप उन्ही के पास खड़ी हो गयी…
खड़ी ही रहेगी य़ा कुछ बोलेगी भी… अमिया पर हासिया मारते हुए वीना जी बोली…
वो मम्मीजी … आप अपना काम कर लो… फिर आपसे एक बात करनी थी ….
काम हाथ से कर रही हूँ… मुंह से नहीं… अब बोलेगी भी….
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वो मम्मीजी …. इतना ही बोल पायी मीरा… अपने दोनों हाथ से चेहरा ढकते हुए सिसककर रोने लगी…
उसकी आवाज सुन हासिया छोड़ वीनाजी उठी … क्या हो गया बहुरिया … कुछ हुआ हैं क्या … घर की लक्ष्मी का रोना सही नहीं होता… बता तो सही क्या हुआ हैं??
आंसू पोंछते हुए मीरा बोली…वो मम्मीजी … ये किसी और से बात करते हैं…..
क्या … बस बस अब और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं… मेरी
गुड़िय़ां इतने दिनों से उदास क्यूँ हैं ये तो आई मेरे मन में… पर वजह जानने की कोशिश ही नहीं करी मैने… वैसे तो मेरा कुनाल ऐसा हैं नहीं…. पर फिर भी तेरे मन के शक के लिए मैं कुछ करती हूँ… अब तू जाकर आराम कर …. और सब मुझ पर छोड़ दे…
वीना जी ने बहू से तो कह दिया… पर अंदर ही अंदर उन्हे चिंता खाये जा रही थी … शाम को कुनाल के ऑफिस से आने की राह देखने लगी… बरामदे में पीठ से झुकी वीना जी लाठी लेकर इधर उधर चक्कर लगाती रही….
जैसे ही कुनाल आया… अपना बैग सोफे पर रख हाथ मुंह धोने जाने ही वाला था ….. तभी वीना जी बोली… ए रे कुनाल … ज़रा अपना वो फ़ोन तो लाना….
सकपकाती हुई आवाज में कुनाल बोला…. क्यूँ माँ…. आपको मेरे फ़ोन की क्या ज़रूरत पड़ गयी….
मुझे नहीं… बहुरिया को ज़रूरत हैं… उसे अपने मायके बात करनी हैं….
उसके पास तो फ़ोन हैं… अभी नया ही दिलाया था उसे….
वो उसका फ़ोन आज पानी में गिर गया… खराब हो गया हैं… तू कल सही करा आना… अभी बात करा दें उसकी… वीना जी ने मीरा को आवाज लगायी …
ले मीरा कुनाल के फ़ोन से समधिन से बात कर लें….
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लो मैं लगाकर देता हूँ…
क्यूँ मेरी बहुरिया क्या पढ़ी लिखी नहीं हैं…. फ़ोन चलाना नहीं जानती… वो क्या कहते हैं… ईमे कर रखा हैं उसने वो भी अंग्रेजी में…. तू बस खोल कर दे दें इसे फ़ोन….
मीरा के चेहरे पर माँ जी की होशियारी देख चमक आ गयी…
वो जल्दी से फ़ोन ले अपने कमरे में चली गयी… मीरा के पीछे पीछे कुनाल भी जाने लगा…
तू कहां चला… हाथ मुंह धो जाकर… मैं खाना लगाती हूँ… खाना खा ले…. तब तक उसे बात कर लेने दें….
ठीक हैं…. थोड़ा गुस्से में कुनाल बोला….
तभी कुछ देर बाद मीरा सासू माँ के पास आयी …. कुनाल खाना खा रहा था … तेरा खाना हो गया तो तू आराम कर जाकर …. वीना जी कुनाल से बोली….
आज सास बहू की खिचड़ी कुनाल की समझ के बाहर थी…
वो उठकर चला गया….
हां तो बता बहुरिया….. कौन हैं वो कलमुंही जो मेरे कुनाल के पीछे पड़ी हैं….
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माँ जी ,, मुझे माफ कर दिजिये…. वो औरत तो इनकी ऑफिस की हेड हैं…. जब भी उसका फ़ोन आता ये उठकर चले ज़ाते थे … और टायपिंग करके भी बात करते थे … बस दूर से मुझे सुन्दर सी औरत की फोटो दिखती थी वो भी एक ही औरत की… इसलिये मैने इन्हे गलत समझ लिया… ये तो बस ऑफिस की ही बात करते हैं उनसे…. वो तो उम्र में भी बहुत बड़ी हैं… मैने इन पर शक करके बहुत बड़ा पाप किया हैं मम्मीजी… भगवान भी मुझे माफ नहीं करेगा… आपको भी मैने चिंता में डाल दिया… मीरा बोलते बोलते जोर जोर से रोने लगी….
ये तो बहुत अच्छी बात हैं… तेरे मन का शक दूर हो गया … जब तक मैं हूँ तुझे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं… जो हो मन में अच्छा बुरा मुझे बताया कर … बूढ़ी ज़रूर हूँ पर अपने घर की नींव हूँ मैं….समझी … चेहरे को बिल्कुल गुलाब की तरह खिला हुआ रखाकर जिस से मेरा कुनाल तेरे बिना एक पल भी ना रह पायें…. अब आंसू पोंछ…. जा कुनाल अभी सोया नहीं होगा… तेरा ही इंतजार कर रहा होगा….
मीरा शर्मा गयी…. और वीना जी के पैर छू चली गयी…. मीरा मन ही मन ऐसी सास मिलने पर बंशी वाले का शुक्रिया अदा कर रही थी …
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा
#घर आंगन